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मेरे शहर की बारिश

मेरे शहर की बारिश

लेकर आती है

ठंडी हवा के झोंकों में लिपटी 

माटी की सोंधी खुशबू 

बेसाख्ता बरसती बूँदें

समेटे प्यार दुलार भरी ठंडक

और तन बदन भिगोती

मन तक भिगो जाती है

लेकिन किसी को ये सब झूठ लगता है

क्यूंकि ये लेकर आती है

घरों की टपकती

छत की टप-टप

तेज़ हवा के झोंको से सरसराहट

दरवाजों पे आहट

बिरह की आग

सखी की याद

धुत्कार भरी तपिश

भिगोती है तन बदन…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 20, 2012 at 10:40am — 9 Comments

इज्जत

वो एक बड़ा अफसर है. अफसर है तो जाहिर सी बात है शहर में रहता है. पिता एक साधारण से किसान है. खेती करते हैं, सो गाँव में रहते है. अफसर बेटा अपने परिवार में बहुत व्यस्त है इसलिए गाँव जाकर पिता का हाल-समाचार लेने का समय नहीं है. बेटे से मिले बहुत दिन हो गए तो पिता ने विचार किया शहर जाकर खुद ही उससे मिल आया जाये. शहर में बेटे के रहन सहन को देख कर पिता बहुत खुश हुवे. अगले दिन गाँव वापस आने का विचार था लेकिन पोते-पोती की जिद से और रुकना पड़ा. एक - दो दिन तो ठीक ठाक बीत गए. किन्तु फिर बेटे के अफसरी…

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Added by Neelam Upadhyaya on June 20, 2012 at 10:00am — 11 Comments

सोन परी हिय मोद भरे !

बिटिया रानी खिली कली सी

सागर चीरे- परी सी आई

बांह पसारे स्वागत करती

जन मन जीते प्यार सिखाई !

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कदम बढ़ाओ तुम भी आओ

धरती अम्बर प्रकृति कहे

गोद उठा लो भेद भाव खो

सोन परी हिय मोद भरे !

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हहर-हहर…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 20, 2012 at 12:56am — 16 Comments

भ्रूणहत्या रोक कर, बेटी को बचाइये

बांहें दी पसार मैंने,
कर दी पुकार मैंने,
आओ आओ आओ मेरे  गले लग जाइए

दामिनी सी चंचल मैं,
फूल जैसी कोमल मैं,
मेरी ओजस्वी आँखों से आँख तो मिलाइए

आज किलकारी हूँ मैं,
कल फुलवारी हूँ मैं, 
भारत की नारी हूँ मैं, मेरे पास आइये

वंश को बढ़ाना हो तो,
देश को बचाना हो तो,
भ्रूणहत्या रोक कर, बेटी को बचाइये

___जय हिन्द !

Added by Albela Khatri on June 19, 2012 at 8:30pm — 12 Comments

अतिथि आप बार-बार आइए (मनहरण घनाक्षरी)

अतिथि से गृहस्वामी बोला मेरे स्नेहपात्र;
आकांक्षा हमारी आप बार-बार आइए|
अतिथि ने अभिभूत कहा धन्य भाग्य मेरे;
इतनी ख़ुशी आपकी, कारण बताइए|
गृहस्वामी ने सुनाया, बड़ा अच्छा लगता है;
इतना तो निश्चित ही आप जान जाइए|
पर जो सुख मिलता है जाते देख आपको;
उस परमानंद से मुक्ति न दिलाइए||

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 19, 2012 at 12:30pm — 12 Comments

एक पत्र रक्त देवता के नाम

प्यारे रक्त देवता

सादर जीवनदानस्ते!

आपके जीवनदायिनी रूप को नमन करते हुए पत्र प्रारम्भ करता हूँ। अब आप सोचते-सोचते अपना सिर खुजा रहे होंगे, कि आपको इस तुच्छ प्राणी ने भला देवता क्यों कह दिया? देखिए मैं भारत देश का वासी हूँ और यहाँ जगह-जगह थान बनाकर और हर ऐरे-गैरे नत्थू खैरे की मज़ार बनाकर जब पूजा व सिज़दा किया जा सकता है, तो आपको देवता के…

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Added by SUMIT PRATAP SINGH on June 19, 2012 at 12:26pm — 6 Comments

हाईकू

हाईकू
----------------------
जंगो-जुनून
हर आदमी अँधा 
किसे सुकून.
--------------------
मस्तक सजे
माटी मेरे देश की…
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Added by AVINASH S BAGDE on June 19, 2012 at 10:30am — 7 Comments

लिख नहीं जो सकता तू सच ख़बर ज़माने की

लिख नहीं जो सकता तू सच ख़बर ज़माने की।

बोल क्या ज़रूरत है फिर क़लम उठाने की॥

 

छोड़ दे ये हसरत भी दिल कहीं लगाने की।

सह नहीं जो सकता तू ठोकरें ज़माने की॥…

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Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 18, 2012 at 1:00pm — 13 Comments

विकलांगता अभिशाप ? (निजी डायरी के आधार पर)

११ वी कक्षा उतीर्ण करने के बाद वर्ष १९६३ में मेरे पिताजी एवं बड़े भाई ने सोचा लक्ष्मण ने संस्कृत विद्यापीठ,मुंबई से प्रथमाँ परीक्षा भी पास की है, को औयुर्वेदिक महाविद्यालय में पढने हेतू दाखिला दिला देते है | वैद्य एवेम आयुर्वेदिक कॉलेज के प्रोफेसर श्रीछाजू राम जी की सलाह अनुसार प्रवेश आवेदन भरकर साक्षात-कार के पश्चात प्रवेश सूची में नाम न देखकर,लक्ष्मण के पिता रामदासजी ने प्रिंसिपल एव आयुर्वेदाचार्य श्री रामप्रकाश स्वामी से मिले, तो उन्होंने बताया की जब हमें प्रवेश हेतु शारीरिक दक्ष…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 18, 2012 at 10:00am — 8 Comments

गुलाब

हँसता हुआ गुलाब बोला 

देखो मैं कितना सुन्दर हूँ !

कितना गोरा रंग मेरा ,

खुशबू का मैं घर हूँ !

कितना कोमल अंग मेरा ,

सहलाना तो छोडो !

पंखुडियाँ झड जाएँगी 

मुझको कभी न तोडो !



शाहों अमीरों का शान बना, पुष्पों का सरताज हूँ 

यूँ बहुत पुराना राजा हूँ मैं  फिर भी नया नया हूँ !

खाद रसों को चूस चूस कर इतना बड़ा हुआ हूँ 

ओढ़ भेड़ की खाल को मैं भेडिया बना खड़ा हूँ !



राधा के होंठों से मैं  लाली चुरा लाया हूँ 

राम के सिलीमुख को शूल बना बैठा…

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Added by Raj Tomar on June 17, 2012 at 7:47pm — 7 Comments

यात्रा संस्मरण: लुटेरे हैं दरबारी पहाड़ों वाली के

दाएँ से पिंडी रूप में माँ काली, माँ वैष्णो व माँ सरस्वती

      माँ वैष्णों देवी…

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Added by SUMIT PRATAP SINGH on June 17, 2012 at 5:00pm — 6 Comments

जीवन पथ

ओ नन्ही परी मासूम कली  आ गोद  उठा लूं 
जीवन है रेत सा तो   क्या घरोंदे तो बना लूं 
फैला समुन्दर दूर तलक दूर तलक आकाश 
छाया अँधेरा घना बहुत जाने कब हो प्रकाश
बीत न जाये ये सुन्दर लम्हे सपने तो सजा लूं 
ओ नन्ही परी मासूम कली  आ…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 17, 2012 at 4:54pm — 12 Comments

बेशक नफरतों को दिल में पालिए

 

बेशक नफरतों को दिल में पालिए 

मगर छाँव औरों पर मत डालिए 
 
रिश्तों की ये अजमाइश रहने दे 
इन्हें दौलत के…
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Added by yogesh shivhare on June 17, 2012 at 3:30pm — 6 Comments

गर वो हमारे होते

जिन्दगी हमारी भी बनती एक सवाल

गर सवाल का जबाब 'वो 'हमारे होते

उन यादों में ही गुजर लेते उमर सारी

गर दो पल भी 'वो ' साथ हमारे होते ..



न भिगोते अश्क पलकों को भी ,गर

ये नयन न उनके मतवारे होते

जान लेते हकीकत प्यार की हम भी

जो प्यार का आइना 'वो ' हमारे होते ..



राहों में हमारे होते उजाले अनेक

जो 'उनके अँधेरे ' न हमारे होते

भूल के उनको सो लेते चैन से

सपने जो वश में हमारे होते ..



गुनगुना लेते ताउम्र उनको हम

जो…

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Added by Ajay Singh on June 17, 2012 at 9:30am — 2 Comments

सावन स्वागत

छा गए बदरा कारे कारे नभ में

बयार शीतल लगी खिल उठे सभी

पात पात फूल फूल ये बात हो रही

खबर लाई है हवा बरसात की अभी

गिर पड़ी बूँदें यकायक धरा पर ज्यों ही

पुलकित हो गए है मन सभी

लू के थपेड़ों को सहते रहे बड़ी आस के साथ

खिल उठी कलियाँ मदमस्त सभी

आगमन में सभी जीव चर गा रहे है गीत

मिटटी की ख़ुशबू में मदमस्त है सभी

किसान अपने हल को देखकर मुस्कुराया

और मन में ख़ुशी की लहर दौड़ गई है

आओ स्वागत है सावन इस…

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Added by yogesh shivhare on June 16, 2012 at 7:00pm — 3 Comments

कहानी : आँखों के साँप

कजरी गाँव से नई नई आई थी शहर में अपने मामा के पास। उसकी माँ और तीन छोटी बहनें गाँव में ही थे। उसका बाप चौथी बेटी के जन्म के बाद घर छोड़कर भाग गया था ऐसा गाँव के लोग कहते थे। उसकी माँ का कहना था कि उसका बाप इलाहाबाद के माघ मेले में नहाने गया था और मेले के दौरान संगम के करीब जो नाव डूबी थी उसमें उसका बाप भी सवार था। जिन लोगों को थोड़ा बहुत तैरना आता था उनको तो बचा लिया गया पर जो बिल्कुल ही अनाड़ी थे उनको गंगाजी ने अपनी गोद में सुला लिया। तब वह छह साल की थी। उसकी माँ ने पुलिस में रिपोर्ट भी लिखाई…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 16, 2012 at 6:58pm — 8 Comments

माँ से बढ़ कर कौन सखी है बाबाजी

इस दुनिया में कौन सुखी है बाबाजी

जिसको देखो, वही दु:खी है बाबाजी



तुम तो केवल चखना लेकर आ जाओ

बोतल हमने खोल रखी है बाबाजी



इसकी चन्द्रमुखी है, उसकी सूर्यमुखी

मेरी ही क्यों  ज्वालमुखी है बाबाजी



रिश्वत की मदिरा फिर उससे न छूटी

जिसने भी इक बार चखी है बाबाजी



बाप से बढ़ कर कौन सखा हो सकता है

माँ से बढ़ कर कौन सखी है बाबाजी



काम अपना जी जान से करने वालों ने

अपनी किस्मत आप लिखी है बाबाजी



पथ के…

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Added by Albela Khatri on June 16, 2012 at 5:00pm — 15 Comments

हमारे प्यारे रहनुमा - बाबा जी

 गांधी टोपी  पहन  के भागे कुरता पैजामा सिलवाने  बाबा जी 

कितना प्यारा देश का  मौसम जनता को उल्लू बनाने  बाबा जी 

कर जोर  मांगते  भीख वोटन  की  पाकर जीत तन  जाते  बाबा जी 

चोर चोर मौसेरे भाई  बैठ  संग देश की लाज लुटाते   बाबा  जी 

मुन्नी संग कमर मटकाते जेल में राखी बंधवाते बाबा जी 

सर्वस्व…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 16, 2012 at 1:37pm — 2 Comments

उगता सूरज -धुंध में

उगता सूरज -धुंध में

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कर्म फल -गीता

क्रिया -प्रतिक्रिया

न्यूटन के नियम

आर्किमिडीज के सिद्धांत

पढ़ते-डूबते-उतराते

हवा में कलाबाजियां खाते

नैनो टेक्नोलोजी में

खोजता था -नौ ग्रह से आगे

नए ग्रह की खोज में जहां

हम अपने वर्चस्व को

अपने मूल को -बीज को

सांस्कृतिक धरोहर को

किसी कोष में रख

बचा लेंगे सब -क्योंकि

यहाँ तो उथल -पुथल है

उहापोह है ...

सब कुछ बदल डालने की

होड़ है -कुरीतियाँ… Continue

Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 16, 2012 at 1:01pm — 39 Comments

मैं वोटर हूँ...

मैं वोटर हूँ

एक आम मतदाता,

इसी देश का नागरिक

भीड़ का एक चेहरा

ज्यादा नहीं कमाता

शायद लिखना भी नहीं आता;

मेरा कोई संगठन नहीं

कोई नारा नहीं

हैलीकॉप्टर से तो दिखता भी नहीं

बहुत छोटा हूँ मैं

चिल्लाता हूँ कोई सुनता नहीं

इतना खोटा हूँ मैं;

इसी का आदी हूँ

शिकायत नहीं करता,

मेरा भी महत्त्व है

अचानक पता लगता,

पाँच सालों में; एक बार,

जब झुग्गियों में स्कॉर्पियो आती है,

काफिले आते हैं,

मैं "जनता जनार्दन" हो जाता हूँ

देसी…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 16, 2012 at 12:10pm — 4 Comments

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