For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,926)

दिल की ख्वाहिश ...................

दिल की ख्वाहिश ...................
दिल की ख्वाहिश 
 
एक बार फिर 
दिल की ख्वाहिश है 
कुछ कहने की 
कुछ सुनने की 
कुछ दिल की बातें कहने की 
कुछ किसी के मन की सुनने की 
 
पर किससे पूछूं वह सवाल 
जिसे पूछने का साहस 
अब तक न जुटा सका मन 
कैसे कहूं कि 
धर्म की आग में 
मत करो 
मन होम 
 
कैसे कहूं…
Continue

Added by Amit Prabhu Nath Chaturvedi on December 22, 2010 at 10:19am — 4 Comments

मुक्तिका: कौन चला वनवास रे जोगी? -- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



कौन चला वनवास रे जोगी?



संजीव 'सलिल'

**



कौन चला वनवास रे जोगी?

अपना ही विश्वास रे जोगी.

*

बूँद-बूँद जल बचा नहीं तो

मिट न सकेगी प्यास रे जोगी.

*

भू -मंगल तज, मंगल-भू की

खोज हुई उपहास रे जोगी.

*

फिक्र करे हैं सदियों की, क्या

पल का है आभास रे जोगी?

*

गीता वह कहता हो जिसकी

श्वास-श्वास में रास रे जोगी.

*

अंतर से अंतर मिटने का

मंतर है चिर…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 21, 2010 at 11:36pm — 7 Comments

बहकाती है क्यूँ जिंदगी...? ©

 

बहकाती है क्यूँ जिंदगी...? ©



शुरू में गज़ल सी , फिर भटकती लय है क्यूँ जिंदगी......

हर रंग भरा इसमें तुमने , सवाल सी है क्यूँ जिंदगी.......

ज़वाब दिए खुद तुम्हीं ने , फिर अधूरी है क्यूँ जिंदगी.....

माना है डगर कठिन , कदम बहकाती है क्यूँ जिंदगी.....

मंजिल का पता नहीं पर , राह भटकाती है क्यूँ जिंदगी.....



Photography & Creation by :- जोगेन्द्र सिंह…

Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on December 21, 2010 at 11:30pm — 6 Comments

तुम जो साथ हो ...

 

कहा किसी ने 'बहुत ख्वाब सजाती हो तुम.
ज़िंदगी को भी सजाना सीखो.
नुस्खे जितने बताती हो ज़िंदगी जीने के,…
Continue

Added by Lata R.Ojha on December 21, 2010 at 11:30pm — 5 Comments


प्रधान संपादक
बलात्कार (लघुकथा)

"क्या यह बात सच है कि कल तुम्हारी बेटी से बलात्कार किया गया ?"
"हाँ साहब, कल शाम खेतों से लौटते हुए मेरी बेटी की इज्ज़त लूटी गई !"
"क्या तुम जानते हो कि दोषी कौन है !?"
"मैं ही नही साहब, सारा गाँव जानता है उस पापी को जिसने मेरी बेटी को बर्बाद किया है !"
"मगर इतनी बड़ी बात होने के बावजूद भी तुमने थाने जाकर रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवाई ?"
"क्योंकि मैं अपनी बेटी का सामूहिक बलात्कार नही चाहता था ! "

Added by योगराज प्रभाकर on December 21, 2010 at 4:30pm — 24 Comments

सच्चाई सूरत लेगी एक दिन

सच्चाई सूरत लेगी एक दिन

माटी मूरत होगी एक दिन



क्यों भागता है यों रूठकर तू मुझसे

मुझे तेरी जरूरत होगी एक दिन



कभी राज अपने भी बतलाऊंगा तुझे

जो सुनने कि फुरसत होगी तुझे एक दिन



क्यों लगाया है मन तूने में चोखट पे

खुद तेरे दर पे आऊंगा बनके जोगी एक दिन



बहुत ठोकरें खाई हैं तूने इन राहों में

कभी मंजिल भी दिखलाऊंगा तुझे एक दिन



बहता पानी है तू चलाती है ये ज़मीं तुझे

बहते बहते समुन्दर बन जायेगा तू एक दिन



गम ना…

Continue

Added by Bhasker Agrawal on December 21, 2010 at 3:51pm — 1 Comment

गीत: निज मन से हांरे हैं... -- संजीव 'सलिल'

गीत:

निज मन से हांरे हैं...

संजीव 'सलिल'

*

कौन, किसे, कैसे समझाये

सब निज मन से हारे हैं.....

*

इच्छाओं की कठपुतली हम

बेबस नाच दिखाते हैं.

उस पर भी तुर्रा यह, खुद को

तीसमारखां पाते हैं.

रास न आये सच कबीर का

हम बुदबुद-गुब्बारे हैं.....

*

बिजली के जिन तारों से

टकरा पंछी मर जाते हैं.

हम नादां उनका प्रयोग कर,

घर में दीप जलाते हैं.

कोई न जाने कब चुप हों

नाहक बजते इकतारे हैं.....

*

पान, तमाखू,…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 21, 2010 at 12:00am — 5 Comments

कैसा है यह नाते पर नाता..? Copyright ©

 

कैसा है यह नाते पर नाता..? Copyright ©



निकल कर देखा.. अपनी माँ के उदर से उसने,

अनजानी.. कुछ मिचमिचाती अपनी आँखों से,

सारा जहान था दिख रहा अजनबी सा उसको,

लग रही माँ भी उसकी.. अजनबी सी उसको,

बना फिर इक नया.. माँ से पहचान का नाता,

फिर भी अकसर.. क्यूँ लगती माँ अजनबी सी,

गोद…

Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on December 20, 2010 at 9:30pm — 2 Comments

हैं तुझपे नाज आज जो तुने कर दिया ,

हैं तुझपे नाज आज जो तुने कर दिया ,
हार हुई मगर तुने दर्द किनारा कर दिया ,
जय हो तेरी जय हिंदुस्तान की हो ,
सतकबीर जय तेरी उस धार की हो ,

Added by Rash Bihari Ravi on December 20, 2010 at 5:43pm — No Comments

घनाक्षरी : जवानी --संजीव 'सलिल'

घनाक्षरी :

जवानी

संजीव 'सलिल'

*

१.

बिना सोचे काम करे, बिना परिणाम करे, व्यर्थ ही हमेशा होती ऐसी कुर्बानी है.

आगा-पीछा सोचे नहीं, भूल से भी सीखे नहीं, सच कहूँ नाम इसी दशा का नादानी है..

बूझ के, समझ के जो काम न अधूरा तजे- मानें या न मानें वही बुद्धिमान-ज्ञानी है.

'सलिल' जो काल-महाकाल से भी टकराए- नित्य बदलाव की कहानी ही जवानी है..

२.

लहर-लहर लड़े, भँवर-भँवर भिड़े, झर-झर झरने की ऐसी ही रवानी है.

सुरों में निवास करे,…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 20, 2010 at 5:00pm — 1 Comment

GHAZAL - 17

                  ग़ज़ल



प्रश्न   मेरे  सामने  यह   एक   अन्धा   सा   कुआँ    है |

क्या हुआ जो दोस्त था कल आज वो दुश्मन  हुआ  है ||



जिसने  दी  थी  कल  खुशी, वो  आज  आँसू दे रहा,

ये   न  जाने   किसकी   मेरे   वास्ते एक …

Continue

Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 20, 2010 at 3:00am — 2 Comments

क्यों आज भी.....???

मैं भी कुछ लफ्ज़ तेरे बारे कह दूँ,

शायद तब दो घड़ी सुकून आए..…
Continue

Added by Lata R.Ojha on December 20, 2010 at 12:30am — 2 Comments

भेड़ चाल

माहिर होते है
भेड़ और गधे
एक लीक एक चलने में //

सुना है ---
अगर एक भेड़ कुए में गिरा
सब भेड़ उसी में गिरेंगे //

आज ----
कंक्रीट के जंगल में
रहनेवाला मानव
इसी भेडचाल की नक़ल तो कर रहा //

Added by baban pandey on December 19, 2010 at 5:49pm — 2 Comments

GAZAL ग़ज़ल by अज़ीज़ बेलगामी

 

ग़ज़ल

by

अज़ीज़ बेलगामी

 

हम समझते रहे हयात गयी

क्या खबर थी बस एक रात गयी



खान्खाहूँ से मैं निकल आया

अब वो महदूद काएनात…

Continue

Added by Azeez Belgaumi on December 19, 2010 at 4:00pm — 22 Comments

विकीलिक्स ये भी बताएं

अमेरिकी वेबसाइट विकीलिक्स के क्या कहने, वह सब कुछ जानती है। किसने, किसके बारे में क्या कहा, उसे सब कुछ पता है। दुनिया में आज हर किसी की नजर जूलियन असांज की वेबसाइट पर टिक गई हैं, क्योंकि वह एक के बाद एक खुलासे करती जा रही है। बीते कुछ दिनों से ऐसा कुछ माहौल बन गया है कि जैसे कोई कुछ बता सकता है तो वह है, विकीलिक्स। यही कारण है कि मेरा भी ध्यान विकीलिक्स पर है कि अब वे क्या खुलासा करने वाली है ? वैसे विकीलिक्स, जो भी भीतर की बात बता रही है, उससे इन दिनों बड़े चेहरे माने जाने वाले कइयों की पाचन…

Continue

Added by rajkumar sahu on December 19, 2010 at 1:09pm — No Comments

GHAZAL - 16

                    ग़ज़ल



रात - रात  भर  सोते - जगते,  मैंने   उसे   मनाया   है |

फिर भी खुदा न मेरा अब तक, सिर  सहलाने  आया है ||



कहते हैं- मालिक ने हमको, तुमको, सबको, जन्म दिया,

पर  लगता  है - कोई  वो पागल था जिसने भरमाया है ||



एक …

Continue

Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 19, 2010 at 12:00am — 2 Comments

लघुकथा: काफिला -- संजीव वर्मा 'सलिल'

लघुकथा:



काफिला



संजीव वर्मा 'सलिल'

*

कें... कें... कें...



मर्मभेदी कटर ध्वनि कणों को छेड़ते एही दिल तक पहुँच गयी तो रहा न गया.बाहर निकलकर देखा कि एक कुत्ता लंगड़ाता-घिसटता-किकयाता हुआ सड़क के किनारे पर गर्द के बादल में अपनी पीड़ा को सहने की कोशिश कर रहा था.



हा...हा...हा...



अट्टहास करता हुआ एक सिरफिरा भिखारी उस कुत्ते के समीप आया ... अपने हाथ की अधखाई रोटी कुत्ते की ओर बढ़ाकर उसे खिलाने और सांत्वना देने की कोशिश करने लगा. तभी खाकी…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 19, 2010 at 12:00am — 5 Comments

नवगीत: मुहब्बत - संजीव 'सलिल'

नवगीत:                                                                    

मुहब्बत



संजीव 'सलिल'

*

दिखाती जमीं पे

है जीते जी

खुदा की है ये

दस्तकारी मुहब्बत...

*

मुहब्बत जो करते,

किसी से न डरते.

भुला सारी दुनिया

दिलवर पे मरते..



न तजते हैं सपने,

बदलते न नपने.

आहें भरें गर-

लगे दिल भी कंपने.

जमाना को दी है

खुदा ने ये नेमत...

*

दिलों को मिलाओ,

गुलों को खिलाओ.

सपने न…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 18, 2010 at 11:21pm — 1 Comment

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service