For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,998)

अपना घर

परदेस में रहने की ख़ुशी और अलम और ,
याद आये अगर घर की तो होता है सितम और .
परदेस से खींचे है कशिश घर की कुछ ऐसे ,
जाना हो अगर घर पे तो बढ़ते है क़दम और .

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 4:00pm — No Comments

तेरी रुसवाई भी तो हो ...........

फ़क़त मै क्यों रहू रुसवा तेरी रुसवाई भी तो हो ,

सितमगर तेरी महफिल में शब् -ऐ -तन्हाई भी तो हो .



तुझे पाने की ख्वाहिश में जो रख दे जान भी गिरवी ,

ज़माने में मेरे जैसा कोई सौदाई भी तो हो .



मै तुमको बेवफा कहता हु तो इसमें बुरा क्या है ,

ये माना कि तुम अपने हो मगर हरजाई भी तो हो .



वफ़ा के खुश्क दरिया में मै कैसे डूब सकता हो ,

तेरे दरिया -ऐ -उल्फत में कोई गहराई भी तो हो .



शब् -ऐ -फुरक़त क हर लम्हा सितारे गिन के काटा है ,

बिछड़ के… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm — 1 Comment

सुराग


शब् भर हमारी याद में ऐसे जगे हो तुम ,

आराम तर्क कर के टहलते रहे हो तुम ..

बिस्तर की सिलवटो से महसूस हो गया

कुछ देर पहले उठ के यहाँ से गए हो तुम

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm — No Comments

आँख और आंसू



ये बोला आँख से आंसू के माँ ये क्या किया तुने

हमारी कौन सी ग़लती का ये बदला लिया तुने

कभी औलाद को अपनी जुदा माँ तो नहीं करती

फिर अपने लाल को क्यों घर से बेघर कर दिया तुने







ये बोली आँख आंसू से जुदा बस यु किया तुझको

बुलंदी पर पहुचने का दिया है रास्ता तुझको

अगर तू साथ रहता तो तेरी क्या अहमियत होती

ज़मी पे गिर के ही तो मर्तबा आला मिला… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm — No Comments

नाराज़ महबूबा



तुम्ही मेरी ज़रूरत हो तुम्ही पहली मुहब्बत हो

क़सम कोई भी ले लो तुम बहुत ही ख़ूबसूरत हो



तुम्हारे ध्यान से क़ल्ब -ओ -जिगर में रौशनी आये

तुम्हारी मुस्कराहट ही मेरे लब पर हंसी लाये



जो तुम मेरी तरफ देखो मेरे दिल को सुकू आये

ज़रा हंसकर कभी बोलो मेरे दिल पर ख़ुशी छाए



न हो तुम ग़मज़दा की मेरा दिल मचलता है

तुम्हारे एक इक आंसू से मेरा दिल पिघलता है



मुहब्बत का वाफाओ का मेरी कुछ तो सिला दे… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm — No Comments

तू समझता है बदौलत तेरी है .............

तू समझता है बदौलत तेरी है
मेरे दम से ही ये इज्ज़त तेरी है

यु उजड़ता कब है कोई गुलसितां
लगता है इसमें शरारत तेरी है

तू अमीर -ऐ -शहर था मग़रूर था
हाथ फैला अब ज़रूरत तेरी है

चाहतें किस किस की है दिल में तेरे
मेरे दिल में सिर्फ चाहत तेरी है

इसलिए महफूज़ रखता हु इसे
ज़िन्दगी मेरी अमानत तेरी है

शेर महफ़िल में सुनाता है 'हिलाल '
या खुदा इस पे ये रहमत तेरी है

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm — No Comments

ज़िन्दगी ज़िन्दगी हो गयी ......

बात उनसे कभी हो गयी

ज़िन्दगी ज़िन्दगी हो गयी



दिल्लगी आशिकी हो गयी

आशिकी बंदगी हो गयी



वो तसव्वुर में क्या आ गए

क़ल्ब में रौशनी हो गयी



जब कभी उनसे नज़रें मिली

अपनी तो मैकशी हो गयी



बात फिर से जो होनी न थी

बात फिर से वो ही हो गयी



जब कभी वो खफा हो गए

ख़त्म सारी ख़ुशी हो गयी



बादलो क जब आंसू गिरे

कुल जहाँ में नमी हो गयी



सैकड़ो घोंसले गिर गए

क्यों हवा सरफिरी हो गयी



ध्यान उनका… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm — 5 Comments

मुक़दमा -उस्ताद की कलम से



बिस्मिल्लाह हिर्रहिमा निर्रहीम



हिलाल वजीरगंजवी (बदायूं )



हिलाल अहमद 'हिलाल ' मेरे सभी शागिर्दों में एक मुनफ़रिद मकाम के हामिल है . हिलाल , आले अहमद 'ज़ौक मुहम्मदी के फरजंद और हाफिज़ अबरार अहमद 'जाहिद मुहम्मदी के भतीजे है उन के दादा मरहूम मौलवी मुहम्मद बक्श साहब बस्ती के मशहूर पाकबाज़ शक्सीयत थे .



ज़ौक मुहम्मदी , जाहिद मुहम्मदी ने भी मुझसे शरफ तलाम्मुज़ हासिल किया और फख्र की बात ये है के मेरा और हिलाल का घराना एक… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm — No Comments

हुस्न



तेरे हुस्न -ओ -नजाकत का बदल मै लिख नहीं सकता - कि तेरी शान में कोई ग़ज़ल मै लिख नहीं सकता



तबस्सुम और तेरे गुफ्तार के बारे में क्या लिक्खूं

तेरे सुर्खी भरे रुखसार के बारे मै क्या लिक्खू

तेरी सीरत तेरे किरदार के बारे मै क्या लिक्खू



तेरी पाजेब क़ी झंकार के बारे में क्या लिक्खू - के तेरी शान मै कोई ग़ज़ल मै लिख नहीं सकता



तेरे लहराते आँचल को मै अब तशबीह किस से दूँ

तेरी आँखों के काजल को मै अब तशबीह किस… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm — 2 Comments

आशियाँ मेरा रखा है जब शरारों के करीब ................



आशियाँ मेरा रखा है जब शरारों के करीब

कौन दिल बहलाए फिर जाकर बहारों के करीब



कल मेरी कश्ती डुबोने में उन्ही का हाथ था

आज जो अफ़सोस करते है किनारों के करीब



ज़लज़ले में कितने बच्चे हो गए है कल यतीम

देख लो जाकर ज़रा उन बेसहारों के करीब



मेरे घर की मुफलिसी ज़ाहिर न हो दीवार से

इश्तहारों को लगाया है दरारों के करीब



क़त्ल केर दो मुझको लेकिन एक ख्वाहिश है मेरी

दफन करना मुझको मेरे… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:00pm — No Comments

तसव्वुफ़


क्यों कहू खुद से मै जुदा तुमको

जब के अपना बना चुका तुमको

तुम तसव्वुर में आ गए फ़ौरन

जब भी चाहा के देखता तुमको

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:00pm — No Comments

लगता है उसके पास कोई आईना नही

अपनी बुराइयाँ जो कभी देखता नही

लगता है उसके पास कोई आईना नही



गुलशन मे रहके फूल से जो आशना नही

उसका तो खुश्बुओ से कोई वास्ता नही



हम सा वफ़ा परस्त वतन को मिला नही

लेकिन हमारा नाम किसी से सिवा नही



मैं उससे कर रहा हू वफाओं की आरज़ू

जिस शक्स का वफ़ा से कोई राबता नही



तुम मिल गये तो मिल गयी दुनिया की हर खुशी

पास आने से तुम्हारे मेरे पास क्या नही



उनका ख्याल आया तो अशआर हो गये

अशआर कहने के लिए मैं सोचता… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 2:30pm — 2 Comments

What is the difference between Maa and other relations?


मेहनत के बावजूद जो पंहुचा मै अपने घर ,

वालिद का ये सवाल कमाया है तुने कुछ .

बीवी को और बच्चों को फरमाइशों की लत ,

बस माँ को ये ख्याल के खाया है तुने कुछ .

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 2:30pm — No Comments

मन में

मन में मंदिर होता है

तब मन भी सुंदर होता है

दुःख तो आना जाना है

क्यूँ चिंता करता रोता है

दूजे पर क्यूं हँसता है

वही काटेगा जो बोता है

पाप करेगा भोझ भी उसका

जीवन भर दिल ढोता है

पहले सोचा होता तुने

दाग लगा तब धोता है

रातों को वो जागे है

दिन भर देखो सोता है

Added by abhinav on September 19, 2010 at 2:28pm — 19 Comments

::::: गुमशुदा की तलाश :::::



एक लड़की लापता है ...

चिंताग्रस्त ...

हड्डियों के ढाँचे सी दुबली ...

सुना है घर से अकेली निकली है ...

कहती है ज़माना बदलेगी ...



दीवारों पर गुमशुदा का ...

"प्रति" जी का इश्तिहार लगा है ...

नाम छपा मानवता ...

कोई कहे यथार्थवादी डाकू ...

कोई कहे भौतिकता का डाकू ...

उठा ले गया उसे ...



लिखा है गुमशुदा के पोस्टर में ...

किसी सज्जन को मिले तो ले आना ...

मैं बोला भईया… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on September 19, 2010 at 2:00am — 3 Comments

रोने भी नहीं देते हसने भी नहीं देते ,

रोने भी नहीं देते ,

हसने भी नहीं देते ,

मन के माफिक ये तो ,

चलने भी नहीं देते ,

कल तक था मेरे मन में ,

देश के लिए जिऊंगा ,

चल पड़ा सीना ठोक कर ,

देश का सेवा करूँगा ,

देखा एड पढ़ कर भर दी ,

आ गया बुलावा भी ,

दौड़ में मैं आगे निकला ,

गर्व हुआ अपने ऊपर ,

आकर एक जन पूछा मुझसे ,

कौन तुझे भेजा अन्दर ,

मैं डट कर बोला उनसे ,

कोई नहीं हैं मेरे ऊपर ,

बोला चलो बगल में आओ ,

आगे आपना हाथ बढ़ावो ,

ये धागा मैं बांघ देता हु… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on September 18, 2010 at 8:37pm — No Comments

वाह रे जमाना खूब मस्त काम कर दिया ,

वाह रे जमाना खूब मस्त काम कर दिया ,
सहाद में जहर मिलाकर बर्बाद कर दिया ,
बिस्वास जिनपे किये आखं बंद कर के ,
दुसमन दोस्त अपने लूटे हमदर्द बन के ,
ये काम हिंद के आग्रिम लोग कर दिया ,
वाह रे जमाना खूब मस्त काम कर दिया ,
सिखाते हैं ओ हमें अच्छा काम कर लो ,
देश के हित में तू कुछ नाम कर लो ,
क्या पता ओ भी हमें जहर ही पिलायेंगे ,
नाम होगा सहाद का मीठा जहर खिलायेगे ,
फासी पे चढाओ ऐसा घिर्नित काम किया ,
वाह रे जमाना खूब मस्त काम कर दिया ,

Added by Rash Bihari Ravi on September 18, 2010 at 8:00pm — No Comments

क्या स्वीकार कर पाएगी वह

क्या स्वीकार कर पाएगी वह ?



कोयला उसे बहुत नरम लगता है

और कहीं ठंडा ..

उसके शरीर में

जो कोयला ईश्वर ने भरा है

वह अजीब काला है

सख्त है

और कहीं गरम .!

अक्सर जब रात को आँखों में घड़ियाँ दब जाती हैं

और उनकी टिकटिक सन्नाटे में खो जाती है ..

तब अचानक कुछ जल उठता है ..

और सारे सपनों को कुदाल से तोड़

वह न जाने किस खंदक में जा पहुँचती है l





तभी पहाड़ों से लिपटकर

कई बादल… Continue

Added by Aparna Bhatnagar on September 18, 2010 at 7:00pm — 8 Comments

पहली मुलाक़ात

क़ल्ब ने पाई है राहत आप से मिलने के बाद,

हो गयी ज़ाहिर मोहब्बत आप से मिलने के बाद,

ये इनायत है नवाज़िश है करम है आपका,

बढ़ गयी है मेरी इज़्ज़त आप से मिलने के बाद,

Added by Hilal Badayuni on September 18, 2010 at 2:30pm — 1 Comment

कलयुगी मानव

देखो,
यह कलयुगी मानव,
कैसा है ?
यह कलयुगी मानव !
जिसका जीवन यंत्रो जैसा,
आखो में लालच है,
लालच इसकी न चेहरे पर भाव !
झूठ इसकी है बुनियाद !
बईमानी इसकी है आदत !
धोखा इसका है स्वभाव !
हर पल में इसका अभिनय बनता,
बातो में इसके छलावा पन !
हर पल में नया चरित्र है बनता !
देख कर अवसर वार यह करता !
रहता हरदम चोक्न्ना देखो,
यह कलियुगी मानव !
कैसा है ?
यह कलयुगी मानव !!

Added by Pooja Singh on September 18, 2010 at 1:00pm — 1 Comment

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service