ग़ज़ल
माँ के आँचल सा खिलता है गुलमोहर,
मुझसे अपनों सा मिलता है गुलमोहर.
तुम अपने रेखा चित्रों में रंग भरो,
मेरे सपनों में हिलता है गुलमोहर.
खुशबू वाले चादर तकिये और गिलाफ ,
बूढ़ी आँखों से सिलता है गुलमोहर.
चौड़ी होती सड़कों से खुश होते हम,
बची हुई साँसे गिनता है गुलमोहर.
भक्काटा* के शोर में छोटे बच्चे सा ,
अपने मांझे को ढिलता है गुलमोहर .
चटख चाँदनी जब करती सोलह सिंगार ,
झोली में तारे बिनता है…
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Added by Abhinav Arun on September 29, 2010 at 4:00pm —
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ग़ज़ल
आ रहा जब तक पतन से अर्थ है,
आचरण पर बहस करना व्यर्थ है.
आपके चेहरे पे गड्ढे शेष हैं,
आईने पर धूल की एक पर्त है.
चौक पर कबिरा मुनादी कर रहा,
आइये देखें क्या उसकी शर्त है.
सत्य आँखों की परिधि से दूर था ,
आज न्यायालय में जीता तर्क है.
मार्क्स गाँधी गोर्की को भूलकर ,
पीढी क्या जानेगी क्या संघर्ष है .
क़त्ल भाषा धर्म जाति के सबब,
सभ्यता का क्या यही उत्कर्ष है.
दोष अपना मेरे ऊपर मढ़ गया…
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Added by Abhinav Arun on September 29, 2010 at 3:30pm —
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जब तक अथ से इति तक
ना हो सब कुछ ठीक ठाक ,
सुख की पीड़ा से अच्छा है
पीड़ा का सुख उठाना.
जब तक सुनी ना जाएँ आवाज़े
सिलने वाले हो हज़ार सूइयों वाले
और होंठों पर पहरे पड़े हों ,
चुप्प रहने से अच्छा है,
शब्दों की अलगनी पर खुद टंग जाना .
जब तक जले न पचास तीलियों वाली माचिस
या ख़ाक न हो जाएँ सडांध लिए मुद्दे
हल वाले हांथों का बुरा हो हाल
मेंड़ पर बैठने से अच्छा है बीज बन जाना .
जब तक मदारी का चलता हो खेल
और एक से एक मंतर हो रहें हो…
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Added by Abhinav Arun on September 29, 2010 at 3:00pm —
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लिखने वाला लिख दिया है करले तू तैयारी ,
गिन चुन के बचे हैं बन्दे अब तो दिन चारी ,
धर्म कर्म तू कर ले बन्दे ले आगे की सुधारी ,
बच जायेगा इस जहाँ से कर ले सत्य सवारी ,
लिखने वाला लिख दिया है करले तू तैयारी ,
नाम काम ना आएगा जब भेजेगा ओ सवारी ,
बोल ना तुम पाओगे सन्देश भेजेगा अगरी ,
आँख की ज्योति कम हुई तुने चस्मा लगली ,
बाल सफ़ेद जब दिखा बन्दे मेहँदी से रंगवाली ,
लिखने वाला लिख दिया है करले तू तैयारी ,
एक ही रास्ता हैं इस जग में ओ हैं पालनहारी…
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Added by Rash Bihari Ravi on September 29, 2010 at 2:49pm —
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भूलना मत दीन और ईमान को.
या खुदा दे अक्ल हम इन्सान को.
अमन से सुन्दर है कुछ दूजा नहीं.
प्रेम से बढ़कर कोई पूजा नहीं.
बांटना क्या राम और रहमान को.
या खुदा दे अक्ल हम इन्सान को.
प्यार और खुशियाँ ही बसती थी जहाँ.
हिन्द वो इकबाल का खोया कहाँ.
किसने जख्मी कर दिया मुस्कान को.
या खुदा दे अक्ल हम इन्सान को.
स्वार्थ से हरगिज़ ना तौलो प्यार को.
दुःख मे पुरी बदलो ना व्यवहार को.
थाम लो तुम गिर रहे इंसान को.
या खुदा दे अक्ल हम इन्सान…
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Added by satish mapatpuri on September 29, 2010 at 2:43pm —
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बना ब्लू लेन
कामनवेल्थ गेम्स
लगता जाम
- - - -
घर से निकले
ट्रैफिक में फँसे
अब इंतजार
- - - -
आया सावन
बरस जाता पानी
टपकी छत
- - - -
खिलती धूप
रौशनी में नहाते
झूमते पेड़
- - - -
आया सावन
बरस जाता पानी
टपकी छत
- - - -
खिलती धूप
रौशनी में नहाते
झूमते पेड़
- - - -
साँझ की बेला
पेड़ों के…
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Added by Neelam Upadhyaya on September 29, 2010 at 11:40am —
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यूँ तो बस एक रवायत है दोस्ती !
मगर खुदा की इबादत है दोस्ती !
दिल दरिया में जैसे एक कंकर आ गिरा,
कुछ ऐसी ही तो शरारत है दोस्ती !
लोग ढूँढ़ते हैं इस में नफा ही नफा,
उनके लिए बस कोई तिजारत है दोस्ती !
इश्क क्या आशिक क्या, हम क्या जाने,
हमारी तो इकलौती मोहब्बत है दोस्ती !
दोस्तों से धोखे बहुत खाए मगर,
क्या करें हमारी तो आदत है दोस्ती !
तू बस हमारा ही क्यूँ इम्तिहान लेती है,
तुझ से बस इतनी सी शिकायत है दोस्ती !
Added by Archana Sinha on September 29, 2010 at 12:30am —
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सलुम्बर की वह काव्य संध्या
आप हाड़ी रानी की कथा से कितने परिचित हैं , नहीं जानती .. मैं स्वयं भी कितना जानती थी , इस रानी को ! लेकिन इस नाम से पहला परिचय झुंझुनू शहर में जोशी अंकल द्वारा हुआ था . उन दिनों हम कक्षा नौ में थे . पापा की पोस्टिंग इस शहर में हुई ही थी. नए मित्र , नया परिवेश . मन में कई उलझनें थीं. जोशी अंकल हमारे पड़ोसी थे. बेटियां तो उनकी छोटी -छोटी थीं पर अंकल खासे बुज़ुर्ग लगते थे .. उनमें कुछ ऐसा था कि देखते ही…
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Added by Aparna Bhatnagar on September 28, 2010 at 9:21pm —
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हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई,
आपस में सब भाई-भाई ।
बहकावे में आ जाते हैं,
हम में है बस यही बुराई ।
अब नहीं बहकेंगे हम भईया,
हम ने है ये क़सम उठाई ।
मिलजुल कर हम सदा रहेंगे,
हमें नहीं करनी है लड़ाई ।
देश करेगा ख़ूब तरक़्क़ी,
हर घर से आवाज़ ये आई ।
Added by moin shamsi on September 28, 2010 at 3:30pm —
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हास्य कविता:
कान बनाम नाक
संजीव 'सलिल'
*
शिक्षक खींचे छात्र के साधिकार क्यों कान?
कहा नाक ने- 'मानते क्यों अछूत श्रीमान?
क्यों अछूत श्रीमान, न क्यों कर मुझे खींचते?
क्यों कानों को लाड़-क्रोध से आप मींचते??
शिक्षक बोला- "छात्र की अगर खींच दूँ नाक,
कौन करेगा साफ़ यदि बह आयेगी नाक?
बह आयेगी नाक, नाक पर मक्खी बैठे.
ऊँची नाक हुई नीची, तो हुए फजीते..
नाक एक है कान दो, बहुमत का है राज.
जिसकी संख्या अधिक हो, सजे शीश…
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Added by sanjiv verma 'salil' on September 28, 2010 at 10:30am —
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मेरा इक छोटा सा सपना
कब होगा वो पूरा अपना
देखो ये बरसाती मौसम
छत का मेरी टप-टप करना
बचपन की सब बातें मुझको
लगती मुझको जैसे सपना
राही भटका राहों में है
कोइ घट न जाए घटना
लम्बी तानू सोना चाहूं
मेरा इक छोटा सा सपना
Added by abhinav on September 27, 2010 at 7:30pm —
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तुम चले क्यों गये
मुझको रस्ता दिखा के, मेरी मन्ज़िल बता के
तुम चले क्यों गये
तुमने जीने का अन्दाज़ मुझको दिया
ज़िन्दगी का नया साज़ मुझको दिया
मैं तो मायूस ही हो गया था, मगर
इक भरोसा-ए-परवाज़ मुझको दिया.
फिर कहो तो भला
मेरी क्या थी ख़ता
मेरे दिल में समा के, मुझे अपना बना के
तुम चले क्यों गये
साथ तुम थे तो इक हौसला था जवाँ
जोश रग-रग में लेता था अंगड़ाइयाँ
मन उमंगों से लबरेज़ था उन दिनों
मिट चुका था मेरे ग़म का…
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Added by moin shamsi on September 27, 2010 at 5:56pm —
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मैं भारत देश का एक जिम्मेवार और कर्त्वयानिस्थ नागरिक होने के नाते मैं इस देश के तमाम लोगो से एक आग्रह करना चाहूँगा की---
कल देश के इतिहाश में एक नया अध्याय जुड़ने वाला है ,मेरा मतलब है की कल अयोध्या मामले पर माननीय अल्लाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा फैसला दिया जाने वाला है.
जहा तक मेरा सोच है ---फैसला चाहे जो भी ,जिसके पछ में आये .....हम जो भी है ,जिस धरम से है ,जिस जाती से है ,पर सबसे पहले हम इंसान है ,और हमें इन्सानियत का फ़र्ज़ सबसे पहले अदा करना होगा .
इसलिए कृपया अपने विचारो…
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Added by Ratnesh Raman Pathak on September 27, 2010 at 5:00pm —
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मतलब कठिन शब्दों काः-
1.तुर्बत = कब्र, 2.इख़्तिलात = मेलजोल, 3.इशरत = अहसास,
4.निस्बत = लगाव
ये कितना खुदगर्ज हुआ जरूरत में आदमी
जिस कदर बेखबर रहे तुर्बत1 में आदमी
इख़्तिलात2 किसी से न पेशे खिदमतगारी है
बेखुदी का परस्तिश है वहशत में आदमी
रहे सबको इशरत3 फकत् अपने सांसो की
नहीं सिवा इसके अब फुर्सत में आदमी
काटे सर गैरों की इलत्तिजाये ज़िन्दगी में
करे है दरिंदगी अपने निस्बत4 में आदमी
ढुंढ़े नहीं मिले नियाजे5 अदब वफाये…
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Added by Subodh kumar on September 27, 2010 at 2:00pm —
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मुखौटे
हर तरफ मुखौटे..
इसके-उसके हर चहरे पर
चेहरों के अनुरूप
चेहरों से सटे
व्यक्तित्व से अँटे
ज़िन्दा.. ताज़ा.. छल के माकूल..।
मुखौटे जो अब नहीं दीखाते -
तीखे-लम्बे दाँत, या -
उलझे-बिखरे बाल, चौरस-भोथर होंठ
नहीं दीखती लोलुप जिह्वा
निरंतर षडयंत्र बुनता मन
उलझा लेने को वैचारिक जाल..
..... शैवाल.. शैवाल.. शैवाल..
तत्पर छल, ठगी तक निर्भय
आभासी रिश्तों का क्रय-विक्रय
होनी तक में अनबुझ व्यतिक्रम
अनहोनी का…
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Added by Saurabh Pandey on September 27, 2010 at 1:00pm —
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तुम्ही पहचान हो मेरी,
तुम ही बस जान हो मेरी,
यह तुम हो जिससे हम 'हम' हैं
यह हम हैं जिसके रग-रग मे,
बसे बस तुम हो, तुम ही हो .
तुम्हारा नाम लेकर ही,
मेरी हर सांस आती है....
तुम्हारे बिन
मेरी साँसें न आती हैं ...न जाती हैं
तुम्ही हो मायने अबतक,
हमारे ज़िंदा रहने के.....
तुम्ही कारण बनोगे,
मौत मेरी जब भी आएगी
नही मालूम मुझको,
ज़िंदगी से चाहिए क्या अब ?
तुम्हारे प्यार और दीदार का बस
आसरा हो… Continue
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on September 27, 2010 at 5:30am —
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कुछ समय में यहाँ से चले जायेंगे,
इक नयी ज़िन्दगी को फिर अपनाएंगे|
याद आएगा कुछ, कुछ भूलेगा नहीं,
बाँध यादों की गठरी को ले जायेंगे|
क्या पता होगा अपना ठिकाना कहाँ,
क्या करें तय की हमको है जाना कहाँ|
मंजिल सामने होके आवाज देगी,
वक़्त के रास्ते हमको आजमाएंगे|
कुछ समय में .......................
तब तमाम ऑफिस के छोड़ कर मामले,
जी होगा साथ दोस्तों के कॉलेज चलें|
तब न होंगे ये दिन, ये समय, ये घडी,
गर होंगे तो ये दिन ही नज़र…
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Added by आशीष यादव on September 26, 2010 at 11:00pm —
11 Comments
कोई भी बात दिल से न अपने लगाइये,
अब तो ख़ुद अपने दिल से भी कुछ दिल लगाइये ।
दिल के मुआमले न कभी दिल पे लीजिये,
दिल टूट भी गया है तो फिर दिल लगाइये ।
दिल जल रहा हो गर तो जलन दूर कीजिये,
दिलबर नया तलाशिये और दिल लगाइये ।
तस्कीन-ए-दिल की चाह में मिलता है दर्द-ए-दिल,
दिलफेंक दिलरुबा से नहीं दिल लगाइये ।
दिल हारने की बात तो दिल को दुखाएगी,
दिल जीतने की सोच के ही दिल लगाइये ।
बे-दिल, न मुर्दा-दिल, न ही संगदिल, न…
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Added by moin shamsi on September 26, 2010 at 5:30pm —
3 Comments
अब कहाँ किसी में रही सोचने कि फुरसत ,
देखी गई हैं अक्सर इन्सान की ये फितरत ,
जाने कहाँ चली गई इंसानों से इंसानियत ,
यही हैं यही हैं यही हैं असलियत ,
अबलाओ पे अत्याचार चोर बन गए पहरेदार ,
होने लगी है अक्सर अपनों में ही तकरार ,
देखो यारो बदली कैसी इंसानियत कि सूरत ,
अंधी हो गई अपनी इंसाफ कि ये मूरत ,
यही हैं यही हैं यही हैं असलियत ,
आप रहो अब होशियार जानने को तैयार ,
अजब लगेगा आपको लोगो का व्यवहार ,
क्या न करवाए सब कुछ पाने कि…
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Added by Rash Bihari Ravi on September 26, 2010 at 5:00pm —
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दहेज का दानव बहुत बड़ा है
मुँह विकराल किये खड़ा है ,
कितना भी रोको नही रुकता यह,
रक्तबीज जैसा अपना आकार किया,
पिताओं की पगड़ी इसने उछाली है,
बेटियों के अरमानो को तार तार किया,
कई बेटियों को इस दानव ने जला दिया,
ताने सुन सुन कर जीना हुआ मुहाल,
जो बेटी दहेज न लेकर आई ससुराल,
उस बेटी का क्या था कसूर,
मारकर घर से उसे निकाल दिया,
कैसी परंपरा जो है सब मजबूर,
देश के युवा अब करो कुछ तुम्ही उपाय,
दहेज दानव जल्द से जल्द मारा…
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Added by Pooja Singh on September 26, 2010 at 8:30am —
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