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Dr. Vijai Shanker's Blog (202)

पिंजड़ा -- डॉo विजय शंकर

पिंजड़ा भी ,

एक अजीब बंधन है ,

दाना भी , पानी भी , बस ,

बंद पंछी उड़ नहीं सकता।

हौसलों से कहते हैं कि

क्या कुछ हो नहीं सकता ,

हो सकता है , बस पंछी ,

पिंजड़ा लेकर उड़ नहीं सकता।

कितने आज़ाद हैं हम ,

फिर भी उड़ नहीं पाते ,

मुक्त हो नहीं पाते ,

उन्मुक्त होकर जी नहीं पाते ,

बाहर से आज़ाद हैं , बस ,

कुछ पिंजड़े हैं हमारे अंदर ,

बाँधे हैं , कुछ ढीले , कुछ कस कर।

रूढ़ियाँ कब बन जाती हैं बेड़ियाँ ,

बंधे रह जाते हैं हम , पता… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 2, 2016 at 9:30am — 17 Comments

चोर को चोर कहना गुनाह होता है - डॉo विजय शंकर

हर गुनाह की सजा होती है ,
ये तो पता नहीं ,
पर हर गुनाह पर किसी न किसी का
हक़ होता है , ये पता है।
कभी कोई गुनाहगार मजबूर लाचार भी होता है ,
ये तो पता नहीं ,
पर बड़ा गुनाहगार अक्सर बड़ा ताक़तवर होता है ,
ये सबको पता है।
चोरी तो चौसठ कलाओं में से एक है ,
पता है न ,
पर चोर ताक़तवर हो तो
चोर को चोर कहना गुनाह होता है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on July 25, 2016 at 10:00am — 10 Comments

घुमावदार प्रश्न -- ( लघु-कथा ) -- डॉo विजय शंकर

अधिकारी - सर , इस बार पब्लिक ने जो प्रश्न उठाया है , वह बड़ा घुमावदार है। कोई हल मिल नहीं रहा है।
माननीय नेता जी - फिर तो बड़ा अच्छा है , हम भी उसे घुमाते रहेंगे। घुमाते-घुमाते उसे ही घुमा देंगे।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on July 18, 2016 at 10:54am — 4 Comments

अस्तित्व -- डॉo विजय शंकर

विशालता - सूक्ष्मता
का अनूठा संगम हैं प्रकृति,
हाथी भी है , चींटी भी है,
सूक्ष्म जीव , जीवाणु ,
कीट , कीटाणु भी हैं
दोनों का भोजन है ,
भूखा कोई नहीं है ,
इंसान को समझो ,
उसे न्यून मत करो ,
इतना न्यून तो
बिलकुल मत करो
कि वह सूक्ष्म हो जाए ,
और तुम्हें दिखाई भी न दे ,
कीटाणु की तरह ,
रोगाणु की तरह ,
रहेगा तब भी वह समाज में,
सोचो , क्या करेगा ?
समाज को ही रोगी करेगा।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on July 15, 2016 at 10:15am — 12 Comments

हालात-ए-तालीम -- डॉo विजय शंकर

सदैव सचेत ,जाग्रत ,

रहने वाले प्रबुद्ध हैं हम ,

बस अपने से ही दूर ,

अनन्त अंजान हैं हम।

जागते रहो , नारा है ,

लक्ष्य-आदर्श नहीं ,

दृश्य है , वो दीखता नहीं ,

अदृश्य , लक्ष्य है , और

पहुँच से बहुत दूर दीखता है ,

फिर भी अति प्रसन्न हैं हम ,

सुसुप्त-सुख से ग्रस्त हैं हम ,

जगा दे कोई किसी में दम नहीं।

फिर भी कोई दुःसाहस करे ,

जागते नहीं , उखड़ जाते हैं हम ,

भड़क जाते हैं हम ,

ज्ञान बोध से नहीं ,

अज्ञान के उद्भव से ,… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on July 2, 2016 at 10:00am — 8 Comments

नसीब आने पर ( लघु-कथा ) - डॉo विजय शंकर

एक बहुत गरीब आदमी था। गाँव के लोगों के छोटे-मोटे काम करता रहता था , लोग जो दे देते उसी से अपने परिवार की गुजर बसर कर लेता था। गरीबी से परेशान फिर भी शांत। जीवन भी अनुभव के अलावा उसे कुछ दे नहीं रहा था। एक बार उसने सारा दिन गाँव के कुम्हार के घर काम किया। शाम को खुश होकर कुम्हार ने उससे कहा , जाओ एक बर्तन उठा लो , जो अच्छा लगे , जो तुम चाहो , बड़े से बड़ा।" पर उससे कुछ सोचते हुए एक छोटी सी गुल्लक उठाई। कुम्हार यह देख कर मुस्कुराया पर कुछ बोला नहीं। उसने कुम्हार को धन्यवाद दिया और अपने घर चला…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 27, 2016 at 9:30am — 17 Comments

कर्म नहीं फल चाहिए - डॉo विजय शंकर

काम नहीं
परिणाम चाहिए।
तथ्य नहीं ,
प्रमाण चाहिए ,
शिक्षा नहीं ,
डिग्री चाहिए ,
डिग्री भी क्या ,
अर्थ तो पद से है ,
फलदार , रौबदार ,
सार्थक पद चाहिए।
पद पर हों तभी तो
सेवा कर पाएंगे ,
मार्गदर्शन कर पाएंगे।
इच्छित , सही दिशा में
ले जा पाएंगे ,
भगीरथ नहीं , अब
सिर्फ रथ के भागी दार हैं ,
रथ पर सवार होंगे
तभी तो महारथी कहलाएंगे।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on June 25, 2016 at 7:53am — 8 Comments

लघु-कवितायें -02 - डॉo विजय शंकर

मैं बड़ा ,

तू बड़ा ?

तू कैसे बड़ा ?

मैं सबसे बड़ा।

हर बड़े से बड़ा ,

बड़ों बड़ों से बड़ा।

मैं बड़बड़ा , मैं बड़बड़ा,

मैं सबसे बड़ा बड़बड़ा .

********************

हमको मालूम है कि

बातों से कुछ नहीं होता है ,

बस इसीलिये तो

हम बातें करते हैं , क्योंकि

बातों से किसी पक्ष को

कोई फरक नहीं पड़ता।

**********************



अच्छे को अच्छा कहने से

अपना क्या अच्छा होगा ,

अपने को अच्छा कहने से

अपना वो अच्छा न… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 20, 2016 at 9:46am — 6 Comments

लघु - कवितायें - 01 - डॉo विजय शंकर

तालाब की दुर्गन्ध
दूर दूर तक फ़ैली थी ,
वो कुछ मछलियों
के भाग जाने का
हवाला दे रहे थे।
**********************
लोग जितने नासमझ होगे
उतनी आप की बात मानेंगे।
लोग जितने टूटेंगे ,
आप उतने मजबूत होंगे।
आप जितनी रोटियां बाटेंगे ,
लोग उतने आपके होंगे।
***********************
राम का नाम सत्य है ,
कभी राम का निर्वासन हुआ ,
आज सत्य का हुआ है।
कारण तब भी राजनैतिक थे ,
अब भी राजनैतिक है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on June 14, 2016 at 11:03am — 20 Comments

कुछ बातें - ( क्षणिकाएँ) -डॉo विजय शंकर

क्यों कोई आया है ,

जान लेते हो ,

चेहरा पढ़ लेते हो ,

अनकहा , सुन लेते हो ,

आंसू जो बहे ही नहीं ,

देख - सुन लेते हो।

********************

सपने उन्हें दिखाते हो ,

पूरे अपने करते हो।

********************

अपनी सब जरूरतें जानते हो ,

गरीब की रोटी भी जानते हो।

********************

जान कहाँ बसती है , जानते हो ,

उनकीं भी जान है , जानते हो।

********************

सरकार में हो ,

पर सरकार से ऊपर हो।…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 8, 2016 at 11:30am — 7 Comments

दोस्ती का हक़ ( लघु- कथा ) -- डॉo विजय शंकर

रवि का फोन था , देखते ही उस में उत्साह सा आ गया , औपचारिक अभिवादन के बाद धन्यवाद देते हुए बोला , " हाँ , और थैंक्स , तूने बहुत ही अच्छी टिप्पणी लिखी मेरे लेख पर , वर्ना अधिकतर तो लोग बस खींच - तान में ही लगे रहते हैं , तुझे वाकई में मेरे तर्क सही लगे ? "

" ओह ! वो पिछले हफ्ते वाला , वो यार , मैंने पूरा पढ़ा तो नहीं था , पर अब तेरा नाम देखा तो इतना तो लिखना ही था , आखिर दोस्ती का कुछ तो हक़ होता ही है न ?"

जितने उत्साह से उसने फोन उठाया था वो धीरे धीरे ठंडा होकर एक गहरी निराशा में… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 7, 2016 at 10:47am — 18 Comments

संघर्ष - डॉo विजय शंकर

कभी यूं भी हुआ ,
मैं हारा ,
कोई गम नहीं।
हौसला कितनों का टूटा ,
किसी ने गिना नहीं।
--------
लोग दंग थे ,
जो जीता ,
उसे भी ,
कुछ मिला नहीं ।
--------
मैं हार कर भी खुश था ,
कुछ गया नहीं।
वो जीत कर भी ,
रोया , हाय , कुछ ,
कुछ भी , मिला नहीं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on May 26, 2016 at 11:00am — 6 Comments

युग है , उसी को समर्पित -क्षणिकाएँ- डॉo विजय शंकर

1 .

भगवान है ,

कैसे भी पूजो

चलता है ,

ये तो शैतान है

जिसको

पूजने के तरीके

निराले है।



2 .

झूठ है ,

सब जानते हैं

झूठ का सच

सब जानते हैं

फिर भी किस कदर

अनजान बनते हैं ..............



3 .

आदमी आज का

कल पुर्जों सा ,

जीवन उसका , यांत्रिक ,

संवेदनशीलता से मुक्त ,

मशीनें बेहद सेंसिटिव,

सम्भाल के , कलयुग है …………



4 .

वफ़ा के प्रतीक कुत्ते

गली गली मिल जाते… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on May 17, 2016 at 10:20am — 14 Comments

मशीन - डॉo विजय शंकर

अपने लिए बनाई थी ,

काम आसान करेगी ,

बहुत से काम करेगी ,

कुछ फुरसत देगी ,

शरीर को आराम देगी।

देखते देखते देखिये

बहुत काम करने लगी ,

अपने ही काम आने लगी ,

शरीर के काम आने लगी ,

शरीर के रोग बताने लगी ,

कि कितने बीमार हैं हम

हमें मशीन बताने लगी ,

रक्तचाप नापने लगी ,

रक्त निकालने लगी ,

खून , बदलने लगी ,

शरीर को बाहर से ,

अंदर से झाँकने लगी ,

किरण बन शरीर में जाने लगी ,

शरीर के हिस्से पुर्जे ,

बदलने… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on May 10, 2016 at 9:44am — 4 Comments

लोकतंत्र की करवट ( लघु-कथा ) - डॉo विजय शंकर

नेता जी क्षेत्र का दौरा करके लौट रहे थे।
कुछ निराश , कुछ हताश। क्षेत्र वाले अपनी सुना रहे थे , नेता जी अपनी लगाए थे। नेता जी को कोई बात बनती नज़र नहीं आ रही थी।
" फिर आते हैं ", कह कर वापस हो लिए।
कार में बड़बड़ाते हुए निजी स्टाफ से बोले ," ये नहीं सुधरेंगे " . थोड़ा रुक कर फिर बोले ," हमारे सुधरने का इंतज़ार करेंगे " .

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on May 2, 2016 at 8:22am — 14 Comments

सत्य का सम्मान - डॉo विजय शंकर

सत्य का
सम्मान करते हैं ,
दूर से
प्रणाम करते हैं।
उसके पास आने से
डरते हैं।
जानते हैं ,
काट नहीं लेगा
पर झूठ
जो फैला रखा है
अपने चारों ओर
उसे दूर करने से
डरते हैं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on March 5, 2016 at 9:43am — 7 Comments

एक छायावादी , एक छातावादी -डॉo विजय शंकर

वह जो

तपती दुपहरी मे

चिलमिलाती धूप में ,

जी तोड़ परिश्रम कर रहा है ,

पसीने में नहाया ,

कमा रहा है अपने लिए ,

अपने निजी सुख के लिए ,

वह सुख जो एक कल्पना है ,

तपती दुपहरी में भी वह एक

अदृश्य छाया का सुख भोग रहा है ,

कैसा छायावादी है वह ,

घोर अन्धकार में भी

रौशनी के मजे ले रहा है।

कठोर कष्ट में भी कैसा सुखद

काल्पनिक सुख भोग रहा है I

वह एक छायावादी है।

वह एक छायावादी है।



और एक वह है जो ,

विभिन्न सुरक्षा… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on February 22, 2016 at 8:00am — 4 Comments

सोये हो तो जागो - डॉo विजय शंकर

क्या कापुरुषत्व अब

सधे पौरुष का पर्याय बन गया है।

विवेक-शून्य होकर

हाँ में हाँ मिलाना ही

विवेक-शील होने का

एकमात्र प्रमाण बन गया है।



समय के साथ चलिए ,

हमारे साथ आगे बढ़िये ,

भले ही हमारा एहसास

सत्रहवीं शताब्दी का हो ।

समवेत-स्वर में गाइये,

सप्तम-स्वर में गाइये ,

स्तुति, वंदना , प्रशस्ति-गान ,

हमारे लिए , आज़ादी है ,

कहाँ मिलेगी ऐसी आज़ादी।

बाकी आवाज उठाना,

समझदार हैं आप ,

समय की बर्बादी है ,

अपनी ही… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on February 7, 2016 at 12:23pm — 6 Comments

अनवरत संघर्ष ( लघु-कथा ) - डॉo विजय शंकर

ऋग्वेद से लेकर पुराणोँ तक में देव-दानवों के युद्ध के वर्णन मिलते हैं। दानवों से त्रस्त देवता प्रायः ब्रह्मा के पास मार्ग- दर्शन , सहायता और सहयोग के लिए जाते हुए चित्रित मिलते हैं। युद्ध और युद्ध में शस्त्र की महत्ता को स्वीकार करते हुये देवता दधीच ऋषि के पास भी जाते हुए दर्शाये गए हैं। देवता विजयी भी होते थे पर न दानव समाप्त हुए न देवता अकेले रह कर सदैव के लिए अपना वर्चस्व ही स्थापित कर पाये। वास्तव में ये दोनों अच्छाई और बुराई के प्रतीक के रूप में देखें जाएँ तो स्थिति अधिक स्पष्ट होती नज़र… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on February 2, 2016 at 8:21am — 5 Comments

वफ़ादार झूठ - डॉo विजय शंकर

सच किस कदर लड़ता है ,
छटपटाता है सामने आने को ,
उठने नहीं देता झूठ उसे
अपना चेहरा भर दिखाने को।
झूठ कुछ नहीं होता
कोई असलियत नहीं होती उसकी ,
फिर भी हरेक झूठ दूसरे झूठ के प्रति
वफादार बड़ा होता है
एक झूठ की मदद के लिए देखिये
सौ झूठ खड़ा होता है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on January 21, 2016 at 9:51am — 8 Comments

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