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छन्न पकैया (सार छंद)
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छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।
लहराता अब धरा - चाँद पर, करता मन को ठंडा।।
छन्न पकैया - छन्न पकैया, देश जान से प्यारा।
हम सबके ही मन में बहती, देश प्रेम की धारा।।
छन्न पकैया- छन्न पकैया, दुर्गम अपनी राहें।
मन में है कोमलता बसती, फ़ौलादी हैं बाँहें।।
छन्न पकैया- छन्न पकैया, हम भारत के फौजी।
तन पर सहते कष्ट हज़ारों, फिर भी मन के…
ContinuePosted on August 19, 2025 at 1:00pm — 3 Comments
गहरी दरारें (लघु कविता)
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जैसे किसी तालाब का
सारा जल सूखकर
तलहटी में फट गई हों गहरी दरारें
कुछ वैसी ही लग रही थी
उस वृद्ध की एड़ियां
शायद तपा होगा वह भी
उस तालाब सा कर्त्तव्य की धूप में
अर्पित कर दिया होगा
अपने रक्त का कतरा - कतरा
अपनों को पालने में।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Posted on August 18, 2025 at 1:00pm — 3 Comments
लूटकर लोथड़े माँस के
पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त
डकारकर कतरा - कतरा मज्जा
जब जानवर मना रहे होंगे उत्सव
अपने आएंगे अपनेपन का जामा पहन
मगरमच्छ के आँसू बहाते हुए
नहीं बची होगी कोई बूॅंद तब तक
निचोड़ने को अपने - पराए की
बचा होगा केवल सूखे ठूॅंठ सा
निर्जिव अस्थिपिंजर ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Posted on July 29, 2025 at 3:57pm — 3 Comments
पलभर में धनवान हों, लगी हुई यह दौड़ ।
युवा मकड़ के जाल में, घुसें समझ कर सौड़ ।
घुसें समझ कर सौड़ , सौड़ काँटों का बिस्तर ।
लालच के वश होत , स्वर्ग सा जीवन बदतर ।
खाते सब 'कल्याण', भाग्य का नभ थल जलचर ।
जब देते भगवान , नहीं फिर लगता पलभर ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Posted on July 24, 2025 at 2:22pm — 3 Comments
आद.सुरेश कुमार जी ,आपकी कविताओं में खूबसूरत बहाव है.सहजता है जो हर पाठक से सहज में जुड़ जाती है.
आदरणीय
सुरेश कुमार 'कल्याण' जी,
सादर अभिवादन,
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सादर ।
आपका
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