१२२२ १२२२ १२२
उदासी से घिरी तन्हा छते हैं
कई किस्से यहाँ के घूरते हैं
परिंदों के परों पर घूमते हैं
हम अपने घर को अकसर ढूंढते हैं
नहीं है इश्क पतझड़ तो यहाँ क्यों
सभी के दिल हमेशा टूटते हैं
मेरा स्वेटर कहाँ तुम ले गई थीं
तुम्हारी शाल से हम पूछते हैं
नए रिश्तों में कितनी भी हो गर्मी
कहाँ रिश्ते पुराने छूटते हैं
कभी तो राख़ हो जाएंगी यादें
तुम्हे सिगरेट समझ कर फूंकते…
ContinuePosted on April 19, 2019 at 8:22pm — 6 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२
तेरी हर शै मुझे भाए, तो क्या वो इश्क़ होगा
मुझे तू देख शरमाए, तो क्या वो इश्क़ होगा
कभी हो इश्क़ तो रुन-झुन कहीं महसूस होगी
इशारे कर के समझाए तो क्या वो इश्क़ होगा
पिए ना जो कभी झूठा, मगर मिलने पे अकसर
गटक जाए मेरी चाए, तो क्या वो इश्क़ होगा
सभी से हँस के बोले, पीठ पीछे मुंह चिढ़ाए
मेरे नज़दीक इतराए, तो क्या वो इश्क़ होगा
हज़ारों बार हाए, बाय, उनको बोलने पर
पलट के बोल दे…
ContinuePosted on February 17, 2019 at 2:28pm — 7 Comments
इस नज़र से उस नज़र की बात लम्बी हो गई
मेज़ पे रक्खी हुई ये चाय ठंडी हो गई
आसमानी शाल ने जब उड़ के सूरज को ढका
गर्मियों की दो-पहर भी कुछ उनींदी हो गई
कुछ अधूरे लफ्ज़ टूटे और भटके राह में
अधलिखे ख़त की कहानी और गहरी हो गई
रात के तूफ़ान से हम डर गए थे इस कदर
दिन सलीके से उगा दिल को तसल्ली हो गई
माह दो हफ्ते निरंतर, हाज़री देता रहा
पन्द्रहवें दिन आसमाँ से यूँ ही कुट्टी हो…
ContinuePosted on February 8, 2019 at 1:30pm — 8 Comments
मखमली से फूल नाज़ुक पत्तियों को रख दिया
शाम होते ही दरीचे पर दियों को रख दिया
लौट के आया तो टूटी चूड़ियों को रख दिया
वक़्त ने कुछ अनकही मजबूरियों को रख दिया
आंसुओं से तर-बतर तकिये रहे चुप देर तक
सलवटों ने चीखती खामोशियों को रख दिया
छोड़ना था गाँव जब रोज़ी कमाने के लिए
माँ ने बचपन में सुनाई लोरियों को रख दिया
भीड़ में लोगों की दिन भर हँस के बतियाती रही
रास्ते पर कब न जाने सिसकियों को रख…
ContinuePosted on January 23, 2019 at 9:30am — 13 Comments
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