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दिगंबर नासवा
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Apr 13, 2020
दिगंबर नासवा commented on SALIM RAZA REWA's blog post रौशन है उसके दम से - सलीम 'रज़ा' रीवा
"पागल सी हो गईं हैं शरारों की रौशनी ... वाह ... बेहद लाजवाब शेर ... डोली दाद कबूल फरमाएं ..."
Nov 28, 2019
दिगंबर नासवा commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लम्हों की तितलियाँ - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर ' ( गजल )
"बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुयी है मुसाफिर जी ... मज़ा आया पढने के बाद ... मेरी दिली दाद कबूल फरमाएं ..."
Nov 28, 2019
दिगंबर नासवा commented on Balram Dhakar's blog post ग़ज़ल: वक़्त की शतरंज पर किस्मत का एक मोहरा हूँ मैं।
"वाह ... धाकड़ है आपकी ग़ज़ल धाकड़ जी ... हर शेर जैसे धड़कता हुआ दिल ... जिंदाबाद ... जिंदाबाद ..."
Nov 21, 2019
दिगंबर नासवा commented on SALIM RAZA REWA's blog post जब तलक ख़ुद ख़ुदा नहीं चाहे - सलीम रज़ा
"वाह ... कुछ शेर तो कमाल हैं ... दूर की बात कहते हुए ... बहुत बधाई इस ग़ज़ल की ..."
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दिगंबर नासवा commented on Naveen Mani Tripathi's blog post ग़ज़ल
"एक अच्छा प्रयास है आपका ... मेरी बहुत बधाई ..."
Nov 21, 2019
दिगंबर नासवा commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - उन  के बंटे जो  खेत तो  कुनबे बिखर गए
"वाह ... बेहतरीन ग़ज़ल ... दिली दाद कबूल फरमाएं ..."
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Ajay Tiwari commented on दिगंबर नासवा's blog post गज़ल - दिगंबर नासवा
"आदरणीय दिगंबर जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई."
Jul 20, 2019
दिगंबर नासवा commented on दिगंबर नासवा's blog post गज़ल - दिगंबर नास्वा - 4
"आभार आमोद जी ...  आपका सुझाव भी बेहतरीन है ... "
Apr 29, 2019
amod shrivastav (bindouri) commented on दिगंबर नासवा's blog post गज़ल - दिगंबर नास्वा - 4
"आ दिगंबर सहाब जी प्रणामहजज परिवार की बहर में अच्छी रचना की बधाई स्वीकारें पते पर क्यों नहीं भेजे गए हम दराज़ों में पड़े ख़त सोचते हैं"
Apr 26, 2019
amod shrivastav (bindouri) commented on दिगंबर नासवा's blog post गज़ल - दिगंबर नास्वा - 4
"आ दिगंबर सहाब जी प्रणाम हजज परिवार की बहर में अच्छी रचना की बधाई स्वीकारें"
Apr 26, 2019
दिगंबर नासवा commented on मनोज अहसास's blog post एक ग़ज़ल मनोज अहसास
"अच्छी ग़ज़ल हुई है मनोज जी ... "
Apr 24, 2019
दिगंबर नासवा commented on दिगंबर नासवा's blog post गज़ल - दिगंबर नास्वा - 4
"बहुत आभार है लक्ष्मण जी ..."
Apr 24, 2019
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on दिगंबर नासवा's blog post गज़ल - दिगंबर नास्वा - 4
"आ. भाई दिगम्बर जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बवाई।"
Apr 24, 2019
दिगंबर नासवा commented on दिगंबर नासवा's blog post गज़ल - दिगंबर नास्वा - 4
"बहुत आभार आदरणीय समर कबीर ..."
Apr 23, 2019
Samar kabeer commented on दिगंबर नासवा's blog post गज़ल - दिगंबर नास्वा - 4
"जनाब दिगंबर नासवा जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।"
Apr 23, 2019

Profile Information

Gender
Male
City State
Dubai
Native Place
Faridabad
Profession
CA

दिगंबर नासवा's Blog

गज़ल - दिगंबर नास्वा - 4

१२२२ १२२२ १२२ 

उदासी से घिरी तन्हा छते हैं

कई किस्से यहाँ के घूरते हैं

 

परिंदों के परों पर घूमते हैं

हम अपने घर को अकसर ढूंढते हैं

 

नहीं है इश्क पतझड़ तो यहाँ क्यों

सभी के दिल हमेशा टूटते हैं

 

मेरा स्वेटर कहाँ तुम ले गई थीं

तुम्हारी शाल से हम पूछते हैं

 

नए रिश्तों में कितनी भी हो गर्मी

कहाँ रिश्ते पुराने छूटते हैं

 

कभी तो राख़ हो जाएंगी यादें

तुम्हे सिगरेट समझ कर फूंकते…

Continue

Posted on April 19, 2019 at 8:22pm — 6 Comments

गज़ल - दिगंबर नासवा -3

१२२२ १२२२ १२२२ १२२ 

तेरी हर शै मुझे भाए, तो क्या वो इश्क़ होगा

मुझे तू देख शरमाए, तो क्या वो इश्क़ होगा

 

कभी हो इश्क़ तो रुन-झुन कहीं महसूस होगी

इशारे कर के समझाए तो क्या वो इश्क़ होगा 

 

पिए ना जो कभी झूठा, मगर मिलने पे अकसर

गटक जाए मेरी चाए, तो क्या वो इश्क़ होगा

 

सभी से हँस के बोले, पीठ पीछे मुंह चिढ़ाए

मेरे नज़दीक इतराए, तो क्या वो इश्क़ होगा

 

हज़ारों बार हाए, बाय, उनको बोलने पर   

पलट के बोल दे…

Continue

Posted on February 17, 2019 at 2:28pm — 7 Comments

गज़ल - दिगंबर नासवा -२

इस नज़र से उस नज़र की बात लम्बी हो गई

मेज़ पे रक्खी हुई ये चाय ठंडी हो गई

 

आसमानी शाल ने जब उड़ के सूरज को ढका

गर्मियों की दो-पहर भी कुछ उनींदी हो गई

 

कुछ अधूरे लफ्ज़ टूटे और भटके राह में     

अधलिखे ख़त की कहानी और गहरी हो गई

 

रात के तूफ़ान से हम डर गए थे इस कदर

दिन सलीके से उगा दिल को तसल्ली हो गई

 

माह दो हफ्ते निरंतर, हाज़री देता रहा

पन्द्रहवें दिन आसमाँ से यूँ ही कुट्टी हो…

Continue

Posted on February 8, 2019 at 1:30pm — 8 Comments

गज़ल - दिगंबर नासवा

मखमली से फूल नाज़ुक पत्तियों को रख दिया

शाम होते ही दरीचे पर दियों को रख दिया

 

लौट के आया तो टूटी चूड़ियों को रख दिया

वक़्त ने कुछ अनकही मजबूरियों को रख दिया

 

आंसुओं से तर-बतर तकिये रहे चुप देर तक  

सलवटों ने चीखती खामोशियों को रख दिया

 

छोड़ना था गाँव जब रोज़ी कमाने के लिए

माँ ने बचपन में सुनाई लोरियों को रख दिया 

 

भीड़ में लोगों की दिन भर हँस के बतियाती रही 

रास्ते पर कब न जाने सिसकियों को रख…

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Posted on January 23, 2019 at 9:30am — 13 Comments

Comment Wall (8 comments)

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At 9:49am on January 27, 2019, dandpani nahak said…
आदरणीय दिगंबर नासवा साहब
बहुत बहुत शुक्रिया
At 9:21am on April 20, 2011, nemichandpuniyachandan said…
Happy Birthday to you.
At 10:03pm on November 29, 2010,
सदस्य टीम प्रबंधन
Rana Pratap Singh
said…

At 5:57pm on November 25, 2010,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…
At 2:23pm on November 24, 2010, Ratnesh Raman Pathak said…

At 8:44pm on November 23, 2010,
सदस्य टीम प्रबंधन
Rana Pratap Singh
said…

At 5:53pm on November 23, 2010, Admin said…

At 5:08pm on November 23, 2010, PREETAM TIWARY(PREET) said…

 
 
 

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