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Sheikh Shahzad Usmani
  • Male
  • SHIVPURI M.P.
  • India
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Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"जी, सहमत हूं रचना के संबंध में।"
May 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"शुक्रिया। लेखनी जब चल जाती है तो 'भय' भूल जाती है, भावों को शाब्दिक करती जाती है‌। बाद में 'भय' शैतान या हैवान रूप में प्रकट हो जाये, इसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है इस दौर में।"
May 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"सादर नमस्कार आदरणीय सर जी। हमारा सौभाग्य है कि आप गोष्ठी में उपस्थित हो कर हमें समय दे सके। रचना पटल पर आपकी उपस्थिति और मार्गदर्शक व प्रोत्साहक टिप्पणी हेतु तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर जी।"
Apr 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"मनोविज्ञान नातिन वाला बाल मनोविज्ञान और नानी व ऐसे पीड़ितों का मनोविज्ञान और मनोदशा में। रचना में 'कश्मीर में' से 'पंडित' इंगित नहीं होते, इसलिए वैश्विक आतंकवाद को समेटकर व्यापक फ़लक की लघुकथा बनाने की गुंजाइश पर ध्यान आकृष्ट…"
Apr 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"रचना पर प्रतिक्रिया और राय हेतु शुक्रिया आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी। मेरी समझ अनुसार जो अपने मज़हब/धर्म की शिक्षाओं के अनुसार न चले, वही असली 'काफ़िर' है। रचना में इस शब्द को अन्यथा नहीं लिया जाना चाहिए। हर आतंकी अपने धार्मिक ग्रंथों की…"
Apr 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"सादर नमस्कार। प्रदत्त विषय को एक नया अहम आयाम देती बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया विभारानी श्रीवास्तव जी। हैवानियत का एक रूप यह भी। रचना में आपकी क्षेत्रीय बोली का प्रभाव दिखा। अनावश्यक कसावट या काट-छॉंट से पाठकों के लिए रचना का प्रवाह बाधित…"
Apr 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आदाब। एक बढ़िया बाल मनोविज्ञान आधारित समसामयिक और दीर्घकालिक लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय प्रतिभा पाण्डेय जी। अंतिम संवाद के साथ शब्द 'बेटी' की जगह 'नातिन' कर लीजिएगा। व्यापकता के लिए शब्दों  'कश्मीर में' की…"
Apr 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आदाब। बहुत बड़ा सरप्राइज दिया आपने। बहुत दिनों बाद गोष्ठी में आपकी उपस्थिति हमारा सौभाग्य है। मेरी रचना पटल पर समय देकर लघुकथा के अनुमोदन और मुझे प्रोत्साहन प्रदान करने हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय शिज्जु 'शकूर' जी। आपकी लघुकथाएं भी…"
Apr 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"सादर नमस्कार। नियमित सहभागी साथियों की रचना पटल पर उपस्थिति और प्रतिक्रिया से दिल ख़ुश हो जाता है। हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब।"
Apr 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आदाब। रचना पटल पर उपस्थिति और प्रोत्साहन हेतु तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया कल्पना भट्ट जी। चूंकि सर्वविदित और समसामयिक भी है, इसलिए वैसा ही लिखा, वरना उन्हें सांकेतिक रूप से भी बताया जा सकता है।"
Apr 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"काफ़िराना (लघुकथा) : प्रकृति की गोद में एक गुट के प्रवेश के साथ ही भयावह सन्नाटा पसर गया। हिंदू और मुस्लिम पर्यटक पृथक-पृथक कर दिये गये। पुरुष एक तरफ़ और दूसरी तरफ़ महिलाएं और बच्चे। केवल एक नवविवाहित जोड़ा एक दूसरे से लिपटा हुआ खड़ा रह…"
Apr 29
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने छोटे भाई से फोन पर कहा। "वाअलैकुमअस्सलाम भाईसाहब । कैसी रहती? जैसी होनी थी हो गई मेरी भी ई़द?" आपकी कैसी रही?" "कैसी ई़द? किसकी ई़द?…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  बढ़ती गयी...बढ़ती गयी पाठक की जिज्ञासा शीर्षक से लेकर रचना के पड़ाव -दर-पड़ाव और सरप्राइज तत्व  पंच के साथ उजागर हुआ अंत में। ई़दुलफ़ित्र और…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
Mar 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी व्यापार। बीस रुपए की पानी की बोतल की मनमानी क़ीमत और आपाधापी में ढाबे वाले की लापरवाही। विशाल मेलों में यह सब होता है। शृद्धा और आस्था के मेले में गंगा…"
Feb 28
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बढ़िया शीर्षक सहित बढ़िया रचना विषयांतर्गत। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। 'घर-गृहस्थी' शायद ग़लत टंकित हो गया है।"
Feb 28

Profile Information

Gender
Male
City State
Shivpuri M.P.
Native Place
Shivpuri
Profession
Radio Announcer
About me
A Private School- teacher, Freelancer and a Casual Radio Announcer. Simlple living, high thinking, fond of reading and writing.

Sheikh Shahzad Usmani's Blog

मुंगेरीलाल के वैक्सीन सपने (कहानी) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी :

मुंगेरीलाल और कोरोनाकाल... सबके बहुत बुरे हालचाल! लॉकडाउन पर लॉकडाउन... घर में क़ैद सब जॉब डाउन, रोज़गार डाउन! बेचारे मुंगेरीलाल ने अपनी कम्पनी की नौकरी छोड़कर बड़ी मुसीबत कर ली थी सात साल पहले। उनका काम और रुझान दिलचस्प और संतोषजनक था, फ़िर भी सपनों और दिवास्वप्नों में खोये रहने और बड़ी-बड़ी बातें फैंकने के कारण दफ़्तर, घर, बाज़ार और ससुराल सभी जगह लोग उनका मज़ाक उड़ा-उड़ा कर मौज-मस्ती कर लिया करते थे। उन सबकी बातों को मुंगेरीलाल कभी हल्के में, तो कभी बहुत गंभीरता से ले लेते थे।

एक बार…

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Posted on November 12, 2020 at 8:30am — 2 Comments

गार्गी की बार्बी (लघुकथा)/शेख़ शहज़ाद उस्मानी

भगवान देता है, तो छप्पर फाड़ कर देता है। लेता है, तो एक झटके में ले लेता है। देकर ले लेता है, तो हँसाने के बाद रुला-रुला कर। राजन, रंजीता और गंगा का ज़िन्दगीनामा भी यही साबित करता रहा; गार्गी और गार्गी की बार्बी का भी! बार्बी के साथ कब, क्या, कैसे और क्यूँ होगा; बार्बी ने कभी सोचा न था। सोचती भी कैसे? उसकी सोच तो उसकी मम्मी पर निर्भर थी। उसकी मम्मी ने भी तो न सोचा था वह सब। यही हाल गार्गी का था। गार्गी के साथ कब, क्या, कैसे और क्यूँ होगा; गार्गी ने कभी सोचा न था। सोचती भी कैसे? उसकी सोच तो…

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Posted on November 10, 2020 at 8:30am — 4 Comments

दिल के हाल सुने दिलवाला (लघुकथा)

"अपनी पैरों से रौंदें, दूजी जो भा जाये!"



"घर की मुर्ग़ी दाल बराबर; नयी पीढ़ी को कौन समझाये!"



अपनापन त्याग कर ख़ुदग़र्ज़ी, मनमर्ज़ी, दोगलापन, पागलपन, बचकानापन दिखाती अपने मुल्क की नई पीढ़ी की सोच और पलायन-गतिविधियों पर दो बुजुर्गों ने अपनी-अपनी राय यूं ज़ाहिर की।



"... 'ओल्ड इज़ गोल्ड' कहावत को छोड़ो जी; ओल्ड इज़ सोल्ड! नई पीढ़ी है सो बोल्ड! उन्हें ज़मीनी स्टोरीज़ टोल्ड हों या अनटोल्ड! हम बुड्ढे तो हुए क्लीन-बोल्ड!" उनमें से एक ने दूसरे से कहा, लेकिन ख़ुद के…

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Posted on March 10, 2020 at 2:34pm — 4 Comments

हिताय और सुखाय (संस्मरण)

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Posted on November 23, 2019 at 1:00pm — 7 Comments

Comment Wall (13 comments)

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At 12:50am on October 5, 2018, mirza javed baig said…

आली जनाब शहज़ाद उस्मानी साहिब आदाब, 

मुझे अपनी दोस्तों की फ़ेहरिस्त में जोड़ने का शुक्रिया 

At 6:43am on July 2, 2018, राज़ नवादवी said…

"आदरणीय Sheikh Usmani साहब, तरही मुशायरे में मेरी ग़ज़ल में शिरकत का दिल से शुक्रिया. समयाभाव था, कमेंट बॉक्स बंद हो चुका है. इसलिए यहाँ से आभार प्रकट कर रहूँ हूँ.सादर "

At 11:59am on April 12, 2018, MD SHAFIQUE ASHRAF said…

जी बहूत  बहुत शुक्रिया जनाब ... नया हूँ .... थोड़ा सीखने का मौका दीजिये  

At 10:23am on January 8, 2017, Dr Ashutosh Mishra said…
आदरणीय शेख भाई जी आपके मित्रों की सूची में खुद को शामिल पाकर मैं सुखद अनुभूति कर रहा हूँ आपकी लघु कथाएं इस मंच पर मेरे बिशेष आकर्षण का केंद्र है आपकी हर लघु कथा मैं पढता हूँ आपकी कलम सृजन के नए आयाम स्थापित करती रहे ऐसी अपनी शुभकामनाओं के साथ सादर
At 8:23pm on August 5, 2016, pratibha pande said…

आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ  आदरणीय उस्मानी जी  ,आपका रचनाकर्म हर दिन नई बुलंदियां छुएँ ,ये कामना करती हूँ 

At 7:30am on June 20, 2016, सुरेश कुमार 'कल्याण' said…
श्रद्धेय शेख शहजाद उस्मानी साहब ये सब तो आप जैसे मित्रों के सहयोग से ही हुआ है और आशा करता हूं कि भविष्य में भी मेरा मार्गदर्शन करते रहेंगे। हृदय की गहराईयों से धन्यवाद ।
At 8:42am on May 24, 2016, महिमा वर्मा said…

आभार आपका आ.शेख उस्मानी सर जी,अभी जानकारी  पूरी नहीं है ,तो आपको जवाब देने में देर हो गई.पुनः आभार आपका .

At 2:11pm on May 1, 2016, pratibha pande said…

मित्रता के लिए आभार 

At 8:41am on November 18, 2015, pratibha pande said…

हार्दिक आभार आपका आदरणीय 

At 9:27am on November 4, 2015, kanta roy said…

देखी वफ़ा-ए-फ़ुरसत-ए-रंज-ओ-निशात-ए-दहर

ख़मियाज़ा यक दराज़ी-ए-उमर-ए-ख़ुमार था---- 

मिर्ज़ा ग़ालिब साहब का ये शेर आज आपके लिए
असीम शुभकामनाएँ आपको आदरणीय शहजाद जी।

 

 
 
 

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