217 members
555 members
22 members
171 members
119 members
ढोल-मजीरा , नाल-पखावज, शहनाई-मृदंग राग-रागिनी, गायन-वादन , नृत्य-ताल और छंद .गीत, ग़ज़ल ,कविता सी लगती , है सबको हर बार दिवाली नई उमंगें - नई उम्मीदें, ले आती हर बार दिवाली. ---- सतीश…Continue
Started this discussion. Last reply by tejwani girdhar Nov 16, 2012.
मेरी शादी की 25 वीं सालगिरह की पार्टी में OBO के संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक श्री गणेश जी बागी की…Continue
Started this discussion. Last reply by Raj Tomar Jun 14, 2012.
शागिर्द , लव इन टोकियो , फिर वही दिल लाया हूँ ,जिद्दी , एक कली मुसकाई ,एक बार मुस्कुरा दो…Continue
Started this discussion. Last reply by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी Mar 11, 2012.
जरुरी नहीं कि हर विदेशी प्रोग्राम का हिंदी संस्करण हो. पोर्न स्टार के बल पर BIG BOSS की जरुरत नहीं है.मुझे याद है, जब अमिताभ बच्चन इस कार्यक्रम को HOST कर रहे थे तो ऐसी कोई अश्लीलता नहीं…Continue
Started this discussion. Last reply by Afsos Ghazipuri Nov 27, 2011.
अगर रंग - बिरंगे ये नारे न होते.
तो फिर हम भी इतने बेचारे न होते .
बस बातों के मरहम से भर जाते शायद .
अगर ज़ख्म दिल के करारे न होते .
भला किसकी हिम्मत सितम ढा सके यूँ .
अगर हम जो आदत बिगाड़े न होते .
कहीं ना कहीं से तो शह मिल रहा है .
निर्भया के बसन यूँ उतारे न होते .
मिट जाती कब की ये रस्मोरिवाज़ें .
अगर पूर्वजों के सहारे न होते .
मौलिक और अप्रकाशित
सतीश मापतपुरी
Posted on September 20, 2015 at 10:00pm — 3 Comments
जिसने बताया हमको , लिखना हमारा नाम .
जिसने सिखाया हमको , कविता ,ग़ज़ल -कलाम .
समझाया जिसने हमको , दीने -धरम ,ईमान .
जिसने कहा कि एक है ,कह लो रहीम - राम .
भगवान से भी पहले ,करता नमन उन्हीं को .
मानों तो हैं खुदा वो , ना मानों तो हैं आम .…
Posted on September 5, 2012 at 3:46am — 18 Comments
ऐ मालिक ! बता दे तू , कि बहार बनाया क्यों ?
गर बहार बना था , तो उजाड़ बनाया क्यों ?
चमन में खिलती हैं कलियाँ , कली से नेह भौरों को .
पर भंवरे काँप उठे उस वक़्त , आखिर खार बनाया क्यों ?
जुदाई प्यार की मंजिल , तड़पना दिल को पड़ता है .
दिवाना कहती है दुनिया , तो फिर यह प्यार बनाया क्यों ?
मिलन की चाह होती है , मिलन होता मुकद्दर से .
तो मिलकर क्यों बिछड़ते हैं , आखिर दीदार बनाया क्यों ?
अगर मापतपुरी जालिम , तो उस पे कर करम मौला .
ख़ता…
Posted on August 31, 2012 at 2:15am — 4 Comments
[ एक ]
कठपुतली भी हँस रही, देख मनुज का हाल.
सबसे बड़ा मदारी वो , लिखे जो सबका भाल.
कौन नचाता है किसे, क्या इसका परमान.
सबकी डोर पे पकड़ जिसे, कहते कृपानिधान.
जिस उर में लालच बसे ,वहाँ कहाँ ईमान .
देय वस्तु पर नेह जिसे , सबसे बड़ा नादान.
जीवन गगरी माटी की , जिसका करम कोंहार .
सरग - नरक येही ठौर है , जिसका जस व्यवहार .
देने वाले ने दिया , एक सूर्य और सोम .
किन्तु मनुज ने बाँट ली , धरती नदियाँ व्योम .
कहत अभागा नियति का , नीयत नियत…
Posted on August 3, 2012 at 1:27am — 6 Comments
ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।
जन्म दिवस की मंगलमय हार्दिक शुभकामनाए
आदरणीया satish sir ji सादर प्रणाम
ग़ज़ल को पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद सहित सादर आभार
राउर जनमदिन के हमरा ओरि से ढेरम्ढेर मुबारकबादी, भाईजी.. .
दुका ना दुका में अतना अझुराइल रहुईं, ए भइया, जे कुबेरा भऽ गइल. ओबिओ पर हमार हेने लकम से ना आवल अतना बुझवा देले रहे जे हमार सतीश भाई पिपिताइल होइहें. भाई, पित्ता-पित्ती फरिका, पहिले दिल के कोरी आ भावना का ओरी से बड़हन बधाई.. .
सादर
satish ji namaskar,
kavita ki sarahna ke liye aap ka dhanyvad.....
मै आपका बहुत ही आभारी हूँ की आपने मेरी कविता की सराहना करके मेरा उत्साह वर्धन किया
माह की श्रेष्ठ रचना चयन पर हार्दिक बधाई स्वीकारें सतीश जी !
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |