कभी चाह थी बहुत दिल मे
कि छू लूँ मैं भी बढ़ा के हाथ
मिट्टी,हवा,पानी इन सब को
पीछे छोड़ शून्य को
जिंदगी को चाह थी भरपूर जीने की
थी ललक, कुछ भी कर गुजरने की
जिंदगी एक किताब खूबसूरत थी
जिसे पढ़ने की प्यार से तमन्ना थी
फिर घेरा ऐसा बादलों ने निराशा के
खुद से बातें करती,हंसती,रोती,बावली
सी, ना चाह रही जीने की ना…
Added by Meena Pathak on February 28, 2013 at 8:30pm — 21 Comments
झूठे वचन हैं जिसके ,भाषण जिसका काम !
खाये सबकी गालियाँ ,नेता उसका नाम !!
नेता उसका नाम,जो लूटकर ही खाये !
बेचकर शर्म लाज,स्वयं को सही बताये !!
दिखता बंदरबाट ,तो जनता क्यूँ न रूठे !
नहीं रहा विश्वास ,सभी नेता है झूठे!!
राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
(मौलिक/अप्रकाशित )
Added by ram shiromani pathak on February 28, 2013 at 8:27pm — 9 Comments
तुम अविराम हृदय में
गहरे पैठे जाते हो
कैसे रोकूं तुमको कि
जाने क्या कर जाते हो
तुमसा दूजा कौन जगत में
जिसका मैं विश्वास करूं
पर तुम हो मेरे मन में…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on February 28, 2013 at 8:17pm — 18 Comments
मैं प्रेम हूँ
तुम भी तो प्रेम ही हो
प्रेम से हट कर
क्या नाम दूँ
तुम्हें भी और मुझे भी ...
कितनी सदियों से
और जन्मो से भी
हम साथ है
जुड़े हुए एक-दूसरे के
प्रेम में
हर जन्म में तुमसे
मिलना हुआ
लेकिन मिल के भी मेल
ना हो सका
प्रेम फिर भी रहा
तुम में और मुझ में भी
चलते जा रहें है
समानांतर रेखाओं की तरह
साथ हो कर भी साथ…
ContinueAdded by upasna siag on February 28, 2013 at 3:30pm — 17 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on February 28, 2013 at 12:49pm — 10 Comments
अभिचार सा
करता
छिड़कता जल
चला था,
शून्य पथ
धर अफीमी
रूप कोई
रात थी
बेहद सुरत
कुछ धुरंधर
मेघ भी तो
कर गए
नि:शब्द ही
गलफड़े भर
श्वांस भरके
थे खड़े
कुछ दर्द भी
ढह ना पाई
रोशनी पर
ना हुई
पथ से विपथ
करबले की
ओर बढ़ते
पांवों में थी
जो शपथ
Added by राजेश 'मृदु' on February 28, 2013 at 12:31pm — 9 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 28, 2013 at 10:11am — 18 Comments
कुछ चट-पटॆ सॆर ...मॆरॆ मौला
मॆरी बद्दुआ मॆं तासीर, हॊ जायॆ मॆरॆ मौला,
इस कुर्सी कॊ बबासीर, हॊ जायॆ मॆरॆ मौला !!१!!
ना चल सकॆ न बैठ पायॆ,सलीकॆ सॆ कभी,…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on February 27, 2013 at 9:00pm — 18 Comments
यदि अंकुश हो क्रोध पर, सहनशीलता पास !
वहां पाप होता नहीं, हो खुशियों का वास !!
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गुरुजन की सेवा करो, रहो बढ़ाते ज्ञान !
यदि करना जीवन सफल, दो इनको सम्मान !!
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धन की चंचल चाल है, क्यूँ करते विश्वास ,
कुछ दिन तेरे साथ है, कल फिर उसके पास !!
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लोगों में संस्कार हो, उत्तम हो व्यवहार !
कलह क्लेश ना फिर वहां, हो प्रसन्न…
Added by ram shiromani pathak on February 27, 2013 at 9:00pm — 18 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 27, 2013 at 6:57pm — 14 Comments
आखरी वादा ..........
मैं तुझे भूल जाऊं,ना कभी याद आऊँ
यह आखरी वादा तुमने मुझसे ही लिया
जिस पल भी तेरी याद आयी
उस पल को ही मिटा दिया
काश, हवाओं को भी कुछ कह जाती
मौसमो को भी यह कसम दे…
ContinueAdded by pawan amba on February 27, 2013 at 3:58pm — 5 Comments
दोहा मुक्तिका:
नेह निनादित नर्मदा
संजीव 'सलिल'
*
नेह निनादित नर्मदा, नवल निरंतर धार.
भवसागर से मुक्ति हित, प्रवहित धरा-सिंगार..
नर्तित 'सलिल'-तरंग में, बिम्बित मोहक नार.
खिलखिल हँस हर ताप हर, हर को रही पुकार..
विधि-हरि-हर तट पर करें, तप- हों भव के पार.
नाग असुर नर सुर करें, मैया की जयकार..
सघन वनों के पर्ण हैं, अनगिन बन्दनवार.
जल-थल-नभचर कर रहे, विनय करो उद्धार..
ऊषा-संध्या का दिया, तुमने रूप निखार.
तीर…
Added by sanjiv verma 'salil' on February 27, 2013 at 6:30am — 26 Comments
हम सहिष्णु हैं भोले भाले मूंछें ताने फिरते
अच्छे भले बोल मन काले हम को लूटा करते
भाई मेरे बड़े बहुत हैं खून पसीने वाले
अत्याचार सहे हम पैदा बुझे बुझे दिल वाले
कुछ प्रकाश की खातिर जग के अपनी कुटी जलाई
चिथड़ों में थी छिपी आबरू वस्त्र लूट गए भाई
माँ रोती है फटती छाती जमीं गयी घर सारा
घर आंगन था भरा हुआ -कल- कोई नहीं सहारा
बिना जहर कुछ सांप थे घर में देखे भागे जाते
बड़े विषैले इन्ही बिलों अब सीमा पार से आते
ज्वालामुखी दहकता दिल में मारूं काटूं…
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 26, 2013 at 10:30pm — 4 Comments
एक नई ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले कर रहा हूँ, जैसी लगे वैसे नवाजें
उलझनों में गुम हुआ फिरता है दर-दर आइना |
झूठ को लेकिन दिखा सकता है पैकर आइना |
शाम तक खुद को सलामत पा के अब हैरान है,
पत्थरों के शहर में घूमा था दिन भर आइना |
गमज़दा हैं, खौफ़ में हैं, हुस्न की सब देवियाँ,
कौन पागल बाँट आया है ये घर-घर आइना |
आइनों ने खुदकुशी कर ली ये चर्चा आम है,
जब ये जाना था की बन बैठे हैं पत्थर, आइना |
मैंने पल भर झूठ-सच पर…
Added by वीनस केसरी on February 26, 2013 at 10:00pm — 29 Comments
बस लो भाई राम का नाम ,
बन जायेंगे बिगड़े काम !!
आशिकी का बुखार चढ़ा है ,
आशिकी में करना है नाम!
भेजो ऐसी सुन्दर कन्या ,
जो पिलाए इश्क का ज़ाम!!
इधर ढूंढा,उधर ढूंढा,
हो गई सुबह से शाम !
बेबस ,लाचार सा बैठा .
छोड़कर सब अपने काम !
गर्ल्स होस्टल के चक्कर काटकर,
बन गया हूँ उनका दुश्मन!
लड़कियाँ खोज़ती रहती मुझको ,
लिए हाँथ हाकी तमाम !
गर पिट गया तो गम नहीं ,
चलो ये दर्द भी सह लूँगा !
लेकिन अंत में भेज…
Added by ram shiromani pathak on February 26, 2013 at 9:22pm — 5 Comments
कविता कराह रही है
गली के नुक्कड़ पर पड़ी हुई
तेज रफ्तार जिंदगी
रौंदकर चली गयी उसे
स्वार्थ और वासना के वस्त्रों पर
प्रेम की ओढ़नी ओढ़े
समाज तमाशबीन…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on February 26, 2013 at 7:33pm — 13 Comments
जगाता रहा
समय का चाबुक
जन जन को !
निगाहों पर
तस्वीरों के निशान
उभर आते !
सोयी आँखों में
सपने बनकर
बिचरते हैं !
संकेत देते
बढ़ते कदमो को
संभलने का !
इंसानी तन
लिप्त था लालसा में
नजरें फेरे !
संभले कैंसे
रफ़्तार पगों की
बेखबर दौड़े !
रचना – राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’
Added by राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' on February 26, 2013 at 7:30pm — 4 Comments
बोल मेरे अर्पण
तुझको क्या लुभाए
डैनें बांध रहना
या उड़ना जग उठाए
मूड़ता जो माथा
है वह अनादि गाथा
आवर्त की ये रूनझुन
पथ में सभी ने पाए
रोहित न हो तू लोहित
आकर है तू तो शोभित
स्वर दे जरा गमक दे
अनहद तुझे बुलाए
इक दृष्टि अपलक दे
सोंधी सी इक धमक दे
यह चक्र जो अनघ है
सबको ही आजमाए
नीरव निशा जो रहती
श्यामल सी चोट सहती
भासित उसी से…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on February 26, 2013 at 10:54am — 4 Comments
|| ग़ज़ल || |
शाम आना है सुब्ह जाना है || |
दिल सितारों से क्या लगाना है… |
Added by SALIM RAZA REWA on February 25, 2013 at 9:00pm — 4 Comments
दोस्तों एक गजल लिखने की कोशिश की है अपने कुछ मित्रों के सहयोग से आशा है आप लोग अवलोकित करके मुझे मार्गदर्शित करेंगे |
+++++++++++++++++++++++++++++
जूनून -ए-इश्क में आबाद, ना बर्बाद हो पाए
मुहब्बत में तुम्हारी कैद ना ,आज़ाद हो पाए ||
कहानी तो हमारी भी बहुत ,मशहूर थी लेकिन
जुदा होकर न तुम शीरी न हम, फरहाद हो पाए ||
न कुछ तुमने छुपाया था ,न कुछ हमने छुपाया था
न तुम…
Added by Manoj Nautiyal on February 25, 2013 at 6:00pm — 12 Comments
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