बहुत दुखते हैं
पुराने घाव ,
जब आती हैं
मरहम लगाने
नई उँगलियाँ !
उन्हें नही पता -
कितनी है
जख्म की गहराई ,
क्या होगी
स्पर्श की सीमा !
उनमे नही होती
पुराने हाथों जैसी छुअन !
रिसने दो
मेरे घावों को ,
क्योकि बहुत दुखतें हैं
पुराने घाव
जब आती है
मरहम लगाने
नई उँगलियाँ !
अब और दर्द सहा न जाएगा…
ContinueAdded by Arun Sri on February 23, 2012 at 10:30am — 12 Comments
सरकार ने सख्ती दिखाई.फिर से हेलमेट की दुकानें सज गई.गोविन्द ने भी कुछ पैसे जमाये और एक हेलमेट की दुकान सड़क के किनारे खोलकर बैठ गया. धंधा चल निकला.लोगों के सरों की हिफाज़त के सरकारी फरमान के चलते गोविन्द और उस जैसे कई बेरोजगारों को काम मिल गया. तभी एक दिन दोपहर के वक़्त एक अनियंत्रित ट्रक गोविन्द की दुकान पर चढ़ गया. तमाम हेलमेट सड़क पर इधर-उधर बिखर गए. पुलिस वाले उन्ही हेलमेटों के बीच गोविन्द के धड से अलग हुये सिर की तलाश कर रहे थे..
....... अविनाश बागडे.
Added by AVINASH S BAGDE on February 23, 2012 at 10:00am — 5 Comments
फर्ज के अलाव में कब तक जलो
Added by rajesh kumari on February 23, 2012 at 9:05am — 11 Comments
Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on February 22, 2012 at 11:30pm — 4 Comments
Added by asha pandey ojha on February 22, 2012 at 1:00pm — 10 Comments
अश्रु गण साथी रहे
मेरे ह्रदय की पीर बनकर !
रात चुभ जाती हमेशा तीर बनकर !
मैं भटकता नीर बनकर !
तुम सुनहरे स्वप्न सी हो
मैं नयन हूँ !
बिन तुम्हारे मैं अधूरा
और मेरे बिन तुम्हारा अर्थ कैसा !
जीत की उम्मीद से प्रारंभ होकर
निज अहम के हार तक का ,
प्रथम चितवन से शुरू हो प्यार तक का ,
प्यार से उद्धार तक का
मार्ग हो तुम !
मै पथिक हूँ !
निहित हैं तुझमे सदा से
कर्म मेरे
भाग्य…
ContinueAdded by Arun Sri on February 22, 2012 at 1:00pm — 7 Comments
सूखे पेड़ों से मैंने डटकर के जीना सीखा है,
हरे-भरे पेड़ों से मैंने झुककर जीना सीखा है,
मस्त घूमते मेघों ने सिखलाया मुझको देशाटन,
और बरसते मेघों से सब कुछ दे देना सीखा है।
हर दम बहती लहरों से सीखा है सतत् कर्म करना,
रुके हुए पानी से मैंने थम कर जीना सीखा है,
जलती हुई आग से सीखा है जलकर गर्मी देना,
जल की बूंदों से औरों की आग बुझाना सीखा है।
सागर से सीखा है सागर जितना बड़ा हृदय रखना,
धरती से सब की पीड़ा का भार उठाना…
ContinueAdded by Prof. Saran Ghai on February 18, 2012 at 10:06pm — 4 Comments
शुरू में सब ठीक था
जब धरती पर
प्रारम्भिक स्तनधारियों का विकास हुआ
नर मादा में कुछ ज्यादा अन्तर नहीं था
मादा भी नर की तरह शक्तिशाली थी
वह भी भोजन की तलाश करती थी
शत्रुओं से युद्ध करती थी
अपनी मर्जी से जिसके साथ जी चाहा
सहवास करती थी
बस एक ही अन्तर था दोनों में
वह गर्भ धारण करती थी
पर उन दिनों गर्भावस्था में
इतना समय नहीं लगता था
कुछ दिनों की ही बात होती थी।
फिर क्रमिक विकास में बन्दरों का उद्भव हुआ
तब जब हम…
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 18, 2012 at 8:04pm — 2 Comments
१. मनमीत रे
Added by दुष्यंत सेवक on February 18, 2012 at 5:30pm — 5 Comments
आरोग्य दोहावली
१
दही मथें माखन मिले, केसर संग मिलाय.
होठों पर लेपित करें, रंग गुलाबी आय..
२
बहती यदि जो नाक हो, बहुत बुरा हो हाल.…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on February 18, 2012 at 2:30pm — 11 Comments
मेरे मन ,
बसंत के गाँव चल तो सही
सब कुछ है वहीं
उमंग उल्लास का गाँव है, रे
प्रीत की डोर थामे ,चल तो सही | सब कुछ…
Added by mohinichordia on February 18, 2012 at 11:16am — 3 Comments
Added by dilbag virk on February 16, 2012 at 8:00pm — 9 Comments
सुस्त वृक्ष का जीवन बोला
क्या होगा अब मेरा ?
खिर गए सब पान पल्लव
सूख गया रस मेरा |
खडा रहा वह ठूँठ सा
कुछ मुरझाया कुछ सुस्ताया
समय गुजरा, पास की मिटटी में उग आयी
एक बेल ने,…
ContinueAdded by mohinichordia on February 16, 2012 at 4:00pm — 2 Comments
सरहद पर जाते वक्त
Added by asha pandey ojha on February 16, 2012 at 4:00pm — 14 Comments
रास्ते प्यार के अब ह़ो चुके दुश्मन साथी
अब चलो बाँट लें हम मंजिलें अपनी-अपनी
वर्ना ये गर्द उठेगी अभी तूफां बनकर
ख्वाब आँखों के सभी चुभने लगेंगे तुमको
बनके आंसू अभी टपकेंगे तपते रस्ते पर
मगर ये पाँव के छालों को न राहत देंगे !
तपिश तो और अभी और बढ़ेगी साथी
तब भी क्या प्यार में जल पाओगी शमां बनकर ?
पाँव रक्खोगी जब जलते हुए अंगारों पर
शक्लें आँखों में ही रह जाएंगी धुआं बनकर !
मैं जानता हूँ कि अब कुछ नही होने वाला
वक्त को…
Added by Arun Sri on February 16, 2012 at 12:05pm — 2 Comments
बहुत सताया हमको अब वो दिन अंधियारे चले गये,
हमको गाली देने वाले गाली खाकर चले गये।
बहुत मचाई गुंडागर्दी तुमने शहरों-गावों में,
बहुत चुभाए कांटे तुमने धूप से जलते पांवों में,
आंधी जब हम लेकर आए तिनके जैसे चले गये।
जाने कितनों को रौंदा-कुचला था अपने पैरों में,
कितनों की इज्जत लूटी थी सामने अपने-गैरों में,
जब हमने हुंकार भरी तो पूंछ दबाकर चले गये।
बहुत विनतियां कीं थीं हमने लाख दुहाई दी तुमको,
रो रो कर…
ContinueAdded by Prof. Saran Ghai on February 15, 2012 at 7:55pm — 1 Comment
इन आंखों की गहराई में,
डूबा दिल दीवाना है.
मस्ती को छलकाती आंखें,
मय से भरा पैमाना हैं.
ये आंखें केवल आंख नहीं हैं ,
ये तो मन का दर्पण हैं .
दिल में उमड़ी भावनाओं का,
करती हर पल वर्णन हैं.
ये आंखे जगमग दीपशिखा सी ,
जीवन में ज्योति भरती हैं.
भटके मन को राह दिखाती,
पथ आलोकित करती हैं.
इन आंखों में डूब के प्यारे,
कौन भला निकलना चाहे.
ये आंखे तो वो आंखे हैं ,
जिनमें हर कोई बसना चाहे.
.…
Added by Pradeep Bahuguna Darpan on February 15, 2012 at 5:00pm — 8 Comments
पता नहीं क्यों मेरा मन॥ फ़िदा हुआ है आप पे॥
कर सिंगार मै कड़ी सामने॥ आप क्यों नहीं ताकते॥
देखो कलियाँ खिल रही है॥ ताक रही है आप को॥
बातो को कैसे सुन रही है॥ समझ रही है बात को॥
अब तुम भी तो समझ गए हो॥ क्यों नहीं फिर भापते॥
आँखों में अब तुम बसे हो॥ तुम ही मेरी जुबान हो॥
तुम तमन्ना हो मेरी॥ तुम ही मेरी शान हो॥
पा के मौसम की आहट॥ दिल को नहीं रोकते॥
Added by shambhu nath on February 15, 2012 at 12:30pm — No Comments
राह में खड़े हो यूँ घर-बार बेच के,
Added by AVINASH S BAGDE on February 15, 2012 at 11:00am — 4 Comments
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