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Naveen Mani Tripathi's Blog – February 2018 Archive (10)

ग़ज़ल अजब सी बेकरारी हो रही है

1222 1222 122

किसी पर जां निसारी हो रही है ।

नदी अश्कों से खारी हो रही है ।।

सुकूँ की अब फरारी हो रही है ।

अजब सी बेकरारी हो रही है ।।

तुम्हारे हुस्न पर है दाँव सारा ।

यहाँ दुनियां जुआरी हो रही है ।।

शिकस्ता अज़्म है कुछ आपका भी ।

सजाये मौत जारी हो रही है ।।

जली है फिर कोई बस्ती वतन की ।

फजीहत फिर हमारी हो रही है…

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Added by Naveen Mani Tripathi on February 24, 2018 at 10:57pm — 5 Comments

गज़ल

221 2121 1221 212

डूबा मिला है आज वो गहरे खयाल में ।

मिलता कहाँ सुकून है उलझे सवाल में ।।

बरबादियों का जश्न मनाते रहे वो खूब ।

फंसते गए जो लोग मुहब्बत के जाल में ।।

आनी थी हिज्र आ गयी शिकवा खुदा से क्या ।

रहते मियां हैं आप भी अब क्यों मलाल में ।।

करता है ऐश कोई बड़े धूम धाम से ।

डाका पड़ा है आज यहां फिर रिसाल में…

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Added by Naveen Mani Tripathi on February 23, 2018 at 6:50pm — 5 Comments

ग़ज़ल- समझा हूँ तेरे हुस्न के ज़ेरे ज़बर को में

221 2121 1221 212

ढूढा हूँ मुश्किलों से सलामत गुहर को मैं।

समझा हूँ तेरे हुस्न के जेरो जबर को मैं ।।

यूँ ही नहीं हूं आपके मैं दरमियाँ खड़ा ।

नापा हूँ अपने पाँव से पूरे सफर को मैं ।।

मारा वही गया जो भला रात दिन किया ।।

देखा हूँ तेरे गाँव में कटते शजर को मैं ।।

मत पूछिए कि आप मेरे क्या नहीं हुए ।।

पाला हूँ बड़े नाज़ से अहले जिगर को मैं ।।

शायद…

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Added by Naveen Mani Tripathi on February 20, 2018 at 7:28pm — 2 Comments

बात दिल मे ही ठहर जाती है

2122 1122 22



छू के साहिल को लहर जाती है ।

रेत नम अश्क़ से कर जाती है ।।

सोचता हूँ कि बयाँ कर दूं कुछ ।

बात दिल में ही ठहर जाती है ।।

याद आने लगे हो जब से तुम ।

बेखुदी हद से गुजर जाती है ।।

कुछ तो खुशबू फिजां में लाएगी ।

जो सबा आपके घर जाती है ।।





कितनी ज़ालिम है तेरी पाबन्दी ।

यह जुबाँ रोज क़तर जाती है ।।

हुस्न को देख लिया है जब से ।

तिश्नगी और…

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Added by Naveen Mani Tripathi on February 17, 2018 at 10:52pm — 5 Comments

ग़ज़ल

2211 2211 2211 22

यूँ जिंदगी के वास्ते कुछ कम नहीं है वो ।

किसने कहा है दर्द का मरहम नहीं है वो।।

सूरज जला दे शान से ऐसा भी नहीं है ।

फूलों पे बिखरती हुई शबनम नहीं है वो ।।

बेचेगा पकौड़ा जो पढ़ लिख के चमन में ।

हिन्दोस्तां के मान का परचम नहीं है वो ।।

बेखौफ ही लड़ता है गरीबी के सितम से ।

शायद किसी अखबार में कालम नहीं है वो ।।

मेहनत की कमाई में लगा खून पसीना ।

अब लूटिए…

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Added by Naveen Mani Tripathi on February 15, 2018 at 12:57am — 5 Comments

चश्मा उतार करके वफाओं को देखिए

221 2121 1221 212



पत्थर से चोट खाए निशानों को देखिए ।

बहती हुई ख़िलाफ़ हवाओं को देखिए ।।

आबाद हैं वो आज हवाला के माल पर ।

कश्मीर के गुलाम निज़ामों को देखिए ।।

टूटेगा ख्वाब आपका गज़वा ए हिन्द का ।

वक्ते क़ज़ा पे आप गुनाहों को देखिये ।।

गर देखने का शौक है अपने वतन को आज ।

शरहद पे ज़ह्र बोते इमामों को देखिए ।।

कुछ फायदे के वास्ते दहशत पनप रही ।

सत्ता में…

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Added by Naveen Mani Tripathi on February 14, 2018 at 11:28pm — 3 Comments

ग़ज़ल - आप दिल में समाने लगे

212 212 212



आप फिर याद आने लगे ।

क्या हुआ जो सताने लगे।।

दिल तो था आपके पास ही ।

आप क्यूँ आजमाने लगे ।।

क्या कमी थी मेरे हुस्न में ।

गैर पर दिल लुटाने लगे ।।

रफ्ता रफ्ता नजर से मेरी ।

आप दिल में समाने लगे ।।

क्या हुआ आपको आजकल…

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Added by Naveen Mani Tripathi on February 10, 2018 at 2:44pm — 3 Comments

मेरा दर्द पता रहता है

22 22 22 22

मुद्दत से उलझा रहता है ।

यह मन कब तन्हा रहता है ।।

मिलता है अक्सर जो हंसकर ।

वो गम को पीता रहता है ।।

जो गुलाब भेजा था तुमने ।

वो दिल मे खिलता रहता है ।।

कब आओगे मेरे घर तुम ।

खत में वो लिखता रहता है ।।

मुझसे मेरा हाल न…

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Added by Naveen Mani Tripathi on February 10, 2018 at 2:36pm — 6 Comments

शायद सनम की आँख से छलकी शराब है ।

2212 2212 2212 12

शायद तेरी नज़र को मिला इंतखाब है ।

उगने लगा मगरिब में कोई आफताब है ।।

उड़ते परिंदे खूब हैं इस जश्ने प्यार में ।

छाया मुहब्बतों में कोई इन्क्लाब है ।।

मुद्दत से मैं था मुन्तज़िर अपने सवाल पर ।

ख़त में किसी का आज ही आया जबाब है ।।

कुछ दिन से वह भी होश में मिलता नहीं मुझे ।

कैसा नशा है इश्क़…

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Added by Naveen Mani Tripathi on February 9, 2018 at 12:09pm — 6 Comments

आज मौसम बड़ा आशिकाना रहा

212 212 212 212

मुद्दतों बाद फिर मुस्कुराना रहा ।

आज मौसम बड़ा आशिकाना रहा ।।

आप आये यहां ये थी किस्मत मेरी ।

इक मुलाकत से दिन सुहाना रहा ।।

मुफ़लिसी में सभी छोड़ कर चल दिये ।

इस तरह से मेरा दोस्ताना रहा ।।

वो मुकर ही गए आज पहचान से ।

जिनके घर तक मेरा आना…

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Added by Naveen Mani Tripathi on February 4, 2018 at 2:08am — 10 Comments

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