कुछ चुटकियाँ ....
वो चाय क्या
जिसमें भाप न हो
वो नींद क्या
जिसमें ख्वाब न हो
.............
वो प्याला क्या
जिसमें शराब न हो
वो हिजाब क्या
जिसमें शबाब न हो
.......... ..........
वो किताब क्या
जिसमें गुलाब न हो
वो ख़्वाब क्या
जिसमें माहताब न हो
.....................
वो समर्पण क्या
जिसमें स्वीकार न हो
वो जीत क्या
जिसमें हार न हो
.........................
वो…
ContinueAdded by Sushil Sarna on February 28, 2022 at 1:43pm — No Comments
कुछ दिन पहले तक ही तो,वो घुटनो के बल चलती थी
अपनी तुतलाती भाषा में, पापा-पापा कहती थी
पहली बार जो अपने मुँह से, पहला शब्द वो बोली थी
मुझे याद अब भी वो तो, पापा ही तो बोली थी
कल ही की तो बात है उसने, गुड़िया मुझसे माँगा था
मेरे काम के थैले को कल ही, खूंटी पर उसने टांगा था
कल तक जो मेरे घुटनो के, ऊपर तक ना बढ़ पाई थी
अपने पैरों पर चल कर वो,…
ContinueAdded by AMAN SINHA on February 28, 2022 at 10:44am — No Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२
पाकर जिसे हयात हवालात हो गई
इक ऐसे ग़म से आज मुलाक़ात हो गई
कैसे बताएँ आपके बिन कुछ नहीं हैं हम
कैसे बताएँ आपको क्या बात हो गई
अंजान थी जो आँख मिरी जान अश्क़ से
बाद आपके यूँ रोई की बरसात हो गई
इक पल में खुशनुमा हुई इक पल में रहनुमा
फ़िर एक पल में दर्द की सौग़ात हो गई
कैसी है दास्ताँ ये मिरी जान ज़िंदगी
रौशन हुई कहीं तो कहीं रात हो गई
मौलिक व…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on February 26, 2022 at 11:30pm — 2 Comments
शोख़ दोहे :
कातिल हसीन शोखियाँ, मयखाने सा नूर ।
दिल बहके तो जानिए, सब आपका कुसूर ।।
साँसें दे हर साँस को, साँसों का उपहार ।
साँसों को अच्छा लगे, ये साँसों का प्यार ।।
पागल दिल की हसरतें, पागल दिल के ख़्वाब ।
पागल दिल को कर गए , ख़्वाबों के सैलाब ।।
बड़े तीव्र हैं प्यास के, अधरों पर अंगार ।
नैनों से नैना करें, मधुर मिलन मनुहार ।।
बेहिज़ाब अगड़ाइयाँ, गज़ब नशीला नूर ।
देख बहकना नूर को, दिल का है…
Added by Sushil Sarna on February 26, 2022 at 3:53pm — 2 Comments
कम्बख्त ये वक्त , बड़ा बेरहम है
खुद ही दवा है अपनी, खुद में ये जखम है
हाथ होता है मगर ये, साथ होता है नहीं
हक़ में लगता है मगर ये, हक़ में होता है नहीं
क्या बला की शै है ये, खुद को ही दोहराता है
बन कभी तस्वीर खुद की, गुमशुदा हो जाता है
शख्श है आवारा जाने, क्यूँ कहीं रुकता नहीं
कोई भी हो सामने पर, ये कभी झुकता नहीं
साथ जिसके ये हुआ, अर्श पर छा जाएगा
सर पे जिसके आ गिरा, वो ख़ाक में मिल जाएगा
कोई कितना भी बड़ा हो,…
ContinueAdded by AMAN SINHA on February 26, 2022 at 1:58pm — No Comments
जीवन साथी है वो मेरी, साथ हमेशा रहती है
सुख हो या हो दुःख के दिन, पास सदा वो रहती है
साथ फेरों का बंधन बांधे, घर मेरे जब आई थी
खुद से पैसे बच ना पाते, बस इतनी मेरी कमाई थी
घर आई वो साथ में अपने, ढेरों खुशियां ले आयी
मेरे मन के अंधियारे को, दूर किसी को दे आयी
टुटा फूटा डेरा मेरा, सबकुछ उसने अपनाया
दो दिन में ही उस डेरे को ,महलों जैसा मैंने पाया
बिखरा बिखरा जीवन मेरा, जैसे तैसे चलता था
कभी यहाँ पर कभी वहाँ पर, युहीं…
ContinueAdded by AMAN SINHA on February 25, 2022 at 11:30am — No Comments
बूंदों का बरसना यूं बिजली का कड़कना
कुछ याद पुरानी सी तड़पा के हमको चली गयी
बात हल्की सी थी बिल्कुल फुहारों की तरह
अनसुनी सी कानो में सुना के वो चली गयी
एक मुद्दत से हमने अश्कों को छुपा रक्खा था
बेदर्द थी बारिश आज हमे रुला के चली गयी
आज मस्ती थी बड़ी झूमता हर एक ग़म था
छत फूटी थी मेरी बि स्तर भींगा के चली गयी
पक्के मकान को गर्मी से जैसे राहत थी मिली
फुटपाथ के बर्तन को संग बहा के चली गयी
नांव से खेलते थे बच्चे…
ContinueAdded by AMAN SINHA on February 24, 2022 at 10:21am — No Comments
बूंदों का बरसना यूं बिजली का कड़कना
कुछ याद पुरानी सी तड़पा के हमको चली गयी
बात हल्की सी थी बिल्कुल फुहारों की तरह
अनसुनी सी कानो में सुना के वो चली गयी
एक मुद्दत से हमने अश्कों को छुपा रक्खा था
बेदर्द थी बारिश आज हमे रुला के चली गयी
आज मस्ती थी बड़ी झूमता हर एक ग़म था
छत फूटी थी मेरी बि स्तर भींगा के चली गयी
पक्के मकान को गर्मी से जैसे राहत थी मिली
फुटपाथ के बर्तन को संग बहा के चली गयी
नांव से खेलते थे बच्चे…
ContinueAdded by AMAN SINHA on February 24, 2022 at 10:20am — No Comments
दिलबर है ना तो कोई रहबर है
हाल-ऐ-दिल सुनाए तो किसको
मिले हमसा हमको इस जहां में
खोल के ये दि ल दि खाए उसिको
फासले दरम्यान है हम दोनों के लेकि न
कदम न चले तो मिटेंगे वो कैसे
उन रेलों की पटरी को देखा है मैंने
मिलते नहीं पर संग चलते है जैसे
जो हम न रहे तो रोओगे तुम भी
दि ल से हमे तुम भुलाओगे कैसे
बदन पे तुम्हा रे जो लि ख गया है
मेरा नाम अब तुम मिटाओगे कैसे
है सपना अगर ये तो सोने हो दोना
अगर जग गया मैं तो पाओगे तुम…
Added by AMAN SINHA on February 23, 2022 at 1:39pm — 3 Comments
थक गया हूँ झूठ खुद से और ना कह पाऊंगा
पत्थरों सा हो गया हूँ शैल ना बन पाऊंगा
देखते है सब यहाँ पर अजनबी अंदाज़ से
पास से गुजरते है तो लगते है नाराज़ से
बेसबर सा हो रहा हूँ जिस्म के लिबास में
बंद बैठा हूँ मैं कब से अक्स के लिहाफ में
काटता है खलीपन अब मन कही लगता नहीं
वक़्त इतना है पड़ा के वक़्त ही मिलता नहीं
रात भर मैं सोचता हूँ कल मुझे कारना है क्या
है नहीं कुछ हाथ मेरे सोच के डरना है क्या
टोक न दे कोई मुझको मेरी…
ContinueAdded by AMAN SINHA on February 22, 2022 at 3:48pm — No Comments
अंजाना सफर तनहाई का डेरा
उदासी का दिल मेंं था उसके बसेरा
साँवली सी आंखो पर पालकों का घेरा
भुला नहीं मैं वो चमकता सा चेहरा
आंखे भरी थी और लब सील चुके थे
दगा उसके सीने मे घर कर चुके थे
था कहना बहूत कुछ उसको भी लेकिन
धोख़े के डर से वो लफ्ज जम चुके थे
हाले दिल चेहरे पर दिखता था यू हीं
के ग़म को छुपाने की कोशि श नहीं थी
दिल चाहता तो था संग उसके चलना
मगर साथ चलने की कोशि शनहीं थी
कहा कुछ…
ContinueAdded by AMAN SINHA on February 21, 2022 at 3:30pm — No Comments
सामाजिक न्याय दिवस (२० फरवरी) पर
जाति धर्म के फेर से, मुक्त नहीं जब देश
तब सामाजिक न्याय का, मिले कहाँ परिवेश।।
*
कत्ल अपहरण रेप की, बलशाली को छूट
है सामाजिक न्याय की, यहाँ आज भी लूट।।
*
चन्द यहाँ खुशहाल है, शेष सभी गमगीन
सामाजिक समता नहीं, देश भले स्वाधीन।।
*
धनवानों को न्याय हित, घर आता आयोग
न्याय न्याय चिल्ला मरे, लेकिन निर्धन लोग।।
*
सज्जन को करना क्षमा, एक बार है न्याय
दुर्जन को बस दण्ड ही, केवल शेष…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2022 at 11:00pm — 10 Comments
जो कही नहीं तुम से, मैं वो ही बात कहता हूँ
चलो मैं भी तुम्हारे संग कदम दो चार चलता हूँ
चाहत थी यही मेरी के तू भी साथ चल मेरे
न बंदिश हो ना दूरी हो राहूँ जब साथ मैं तेरे
लूटा दूँ ये जवानी मैं बस इस दो पल की यादों मे
छुपा लूँ आँ खमे अपने न बहने दूँ मैं पानी मे
कहता हूँ जो नज़रों से जुबा से कह ना पाऊँगा
हूँ रहता साथ मैं हरदम पर…
ContinueAdded by AMAN SINHA on February 18, 2022 at 1:53pm — 1 Comment
माघ पूर्णिमा जन्म ले, कहलाए रविदास
जीवन जीकर आम का, बातें की हैं खास।१।
*
देते जीवन भर रहे, नित्य सीख अनमोल
सबके हितकारक रहे, सच है उनके बोल।२।
*
रहो प्रेम से कह गये, जातिवाद को त्याग
जिसमें जले समाज ये, यह तो ऐसी आग।३।
*
दिया नित्य रविदास ने, केवल इतना ज्ञान
छोड़ो पद या जाति को, करो गुणों का मान४।।
*
निर्मल मन भागीरथी, करता कह निष्पाप
जनसाधारण जन्म ले, आप हो गये आप।५।
*
रहे न लालच द्वेष जब, मिटे बैर का भाव
ऐसे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 16, 2022 at 3:13am — 6 Comments
प्रेम दिवस :
दिलवालों का आ गया, दिलवाला त्योहार ।
दिल ले कर दिल ढूँढता, दिल अपना दिलदार ।।
लाल दिलों का लग रहा, गली-गली बाजार ।
अब तो दिल का आजकल, होता है व्यापार ।।
प्रेम प्रदर्शन का बना, मुक्त मिलन आधार ।
कैसा यह त्योहार जो, लील रहा संस्कार ।।
कितनी उत्सुक लग रही, युवा सभ्यता आज ।
अवगुंठन में प्यार के, करें कलंकित लाज ।।
वेलेंटाइन की आढ़ में, लज्जित होती लाज ।
देख प्रेम की दुर्दशा, क्षुब्ध आज है…
Added by Sushil Sarna on February 14, 2022 at 2:42pm — 4 Comments
उसके सब्र की इन्तेहाँ हो रही थी, लगभग दो घंटे बीत चुके थे उसे पार्क में आये हुए. घर में सुबह ही उसे पता चल गया था कि परी अपनी माँ के साथ आ रही है. छह महीने तो बीत ही चुके थे उसे परी को देखे लेकिन कोई रास्ता भी नहीं था उसके पास जिससे वह परी को एक नजर देख भी सके. पत्र लिखने की हिम्मत कहाँ से आती जबकि उसे खुद पता नहीं था कि परी उसके लिए क्या सोचती है.
साथ पढ़ते थे दोनों और एक ही मोहल्ले में रहते थे, उस समय आने जाने के लिए बहुत हुआ तो एक साइकिल मिल जाती थी, वर्ना पैदल ही स्कूल जाना और…
ContinueAdded by विनय कुमार on February 8, 2022 at 4:42pm — 1 Comment
स्वागत करो बसंत का, अब.. अनंग दरवेश।
बदन..सुलगने ..हैं लगे, खिल उठा परिवेश ।।
रथ सवार सूरज हुआ, बढ़ती ..आँगन ..धूप।
मकरंद बसा प्राण में, प्रतिपल प्रिया अनूप ।।
अलसाया सी डाल पर, उतर ..पड़ी है.. धूप।
कलियाँ मुस्काने लगीं, जगमग गाँव अनूप ।।
गंधायी ..अब है ..हवा, खिलने.. लगे.. प्रसून।
गश्त बढ़ गई भ्रमर की, कली लाल सी खून ।।
मौलिक व अप्रकाशित
प्रोफ. चेतन प्रकाश…
ContinueAdded by Chetan Prakash on February 8, 2022 at 9:22am — No Comments
आहट की संभावना, करवट का आभास,
पुलक देह ने भर छुअन, लिया मुग्ध उच्छ्वास
नस-नस झंकृत राग-लय, तन-तन लहर गुँजार
बासंती मनमुग्ध को, प्यार प्यार बस प्यार !
पता नहीं किस ठौर से, आयी अल्हड़ भोर
तन मन से बेसुध मगर, मुग्ध नयन की कोर
तन्वंंगी अल्हड़ लता, बैठी उचक मुँडेर
खेल रही है धूप में, बासंती सुर टेर ।
***
Added by Saurabh Pandey on February 5, 2022 at 12:00pm — 11 Comments
शुक्ल पंचमी माघ की, लायी यह संदेश
सजधज साथ बसंत के, बदलेगा परिवेश।।
*
कुहरे की चादर हटा, लगी निखरने धूप
दुल्हन जैसा खिल रहा, अब धरती का रूप।।
*
डाल नये परिधान अब, दिखे नयी हर डाल
हर्षित इस से सज रही, भँवरों की चौपाल।।
*
तरुण हुईं हैं डालियाँ, कोंपल हुई किशोर
उपवन में उल्लास है, अब तो चारो ओर।।
*
गुनगुन भँवरों ने कहे, स्नेह भरे जब बोल
मार ठहाका हँस पड़ी, कलियाँ घूँघट खोल।।
*
नहीं उदासी से …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 5, 2022 at 9:00am — 8 Comments
221 2121 1221 212
अब आदमी में जोश का ज़ज्बा नहीं रहा
मौसम बहार का वो सुहाना नहीं रहा
हमको तुम्हारा तो सहारा नहीं रहा
वो दर्द ज़िन्दगी का अपना नहीं रहा
उम्मीद कब रही हमें इस ज़ीस्त से कभी
मंज़िल का जाँ कभी भी वो चहरा नहीं रहा
कोशिश बहुत की कोई हमदम कहाँ हुआ
इक दोस्त न मिला कभी साया नहीं रहा
धोका मिला जहाँ हमें वुसअत के नाम पर
सुन दोस्त ज़िन्दगी का निशाना नहीं…
ContinueAdded by Chetan Prakash on February 3, 2022 at 7:00pm — 1 Comment
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |