आदरणीय गुरुजनों, अग्रजों, मित्रों एवं प्रिय पाठकों आप सभी को सादर प्रणाम. भौंरा और फूल पर आधारित उनके मिलन एवं विरह पर एक कविता लिखने का छोटा सा प्रयास किया है, आशा है आप सभी को पसंद आएगा.
रसिक लाल = भौंरे का नाम
मैं शुष्क धरा, तुम नम बदली.
मैं रसिक लाल, तुम फूलकली.
तुम मीठे रस की मलिका हो,
मैं प्रेमी थोड़ा पागल हूँ.
तुम मंद - मंद मुस्काती हो,
मैं होता रहता घायल हूँ.
मेरा तन काला,…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on April 22, 2013 at 11:21am — 25 Comments
ये साँझ सपाट सही
ज्यादा अपनी है
तुम जैसी नहीं
इसने तो फिर भी छुआ है.. .
भावहीन पड़े जल को तरंगित किया है..
बार-बार जिन्दा रखा है
सिन्दूरी आभा के गर्वीले मान को…
Added by Saurabh Pandey on April 22, 2013 at 12:00am — 42 Comments
Added by manoj shukla on April 21, 2013 at 9:22pm — 14 Comments
प्रेम के मोती
नमवायु के शुष्क, जमे कण
धरती की गर्माहट भरी
सतह पर
हो जाते हैं जब इकट्ठे
तो बन जाते हैं कोहरा |
फिर यही कोहरा
अस्त-व्यस्त कर देता है
जन जीवन को ,
धीमा कर देता है
जिन्दगी की रफ़्तार को,
कारण बनता है
कई चिरागों के बुझने का,
साक्षी बनता है
हृदय स्पर्शी चीत्कारों का|
वापिस भी मोड़ देता है
आगे बढे हुए
कई क़दमों को,
धुंधला कर…
ContinueAdded by Usha Taneja on April 21, 2013 at 3:36pm — 18 Comments
Added by Abhinav Arun on April 21, 2013 at 1:58pm — 18 Comments
हम हैं कौन, हमारी वास्तविक पहचान क्या है, क्या हम महज हाड़ मांस से बने शरीर मात्र हैं या इससे भी अलग हमारी कोई पहचान है।
ये प्रश्न सृष्टि के…
ContinueAdded by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on April 21, 2013 at 11:30am — 8 Comments
ये दिल आज भी मचलता है तुम्हारे लिए।
अश्कों का दरिया बहता है तुम्हारे लिए।।
मैं जी नहीं पा रही हूँ तुमसे अलग होकर,
सीने में एक दर्द पिघलता है तुम्हारे लिए।।
जाने क्यों मैं आज भी ज़िंदा हूँ तुम्हारे बिन,
मैं आख़िर मर क्यों नहीं जाती तुम्हारे लिए।।
तू मेरी ज़िन्दगी,मेरी जान,मेरा सब कुछ है,
ये साँस आज भी चलती है सिर्फ़ तुम्हारे लिए।।
ताउम्र रहेगा तेरा इंतज़ार मुझको मेरे साथी,
मरकर भी ये आँखें खुली रहेंगी…
Added by Savitri Rathore on April 20, 2013 at 11:30pm — 10 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 20, 2013 at 8:08pm — 11 Comments
चलो मुसाफिर देख लो , कहाँ होगा गुजार | |
ना दे सहारा कोई , फिर से करो विचार | |
खंजर मारें पेट में , दूर से मेहमान | |
देख चिच्लाते चीखते, खुश हों बेईमान | |
अब किस पर यकीन करे,… |
Added by Shyam Narain Verma on April 20, 2013 at 3:07pm — 3 Comments
"ख्यालों से मेरे उतर आये सामने तू कभी
थम जाये ये वक़्त भी ,उस पल को वहीँ
आ भी जा इक पल को कभी यूँ भी…
Added by Kedia Chhirag on April 20, 2013 at 10:57am — 5 Comments
आंखों देखी
बात फ़रवरी 1986 की है. भारत का पाँचवा वैज्ञानिक अभियान दल अंटार्कटिका में अपना काम समाप्त कर चुका था. शीतकालीन दल के सभी 14 सदस्य भारतीय अनुसंधान केंद्र “ दक्षिण गंगोत्री ” में पहुँच चुके थे. इस दल को अगले एक वर्ष तक यहीं रहना था. ग़्रीष्मकालीन दल के करीब सब अभियात्री 15 किलोमीटर दूर खड़े जहाज “ एम.वी. थुलीलैण्ड “ में थे. मौसम बेहद खराब हो जाने की वजह से एक दो वैज्ञानिक जहाज में नहीं पहुँच पाये थे. कुछ और औपचारिकताएँ बाकी थीं...इंतज़ार था मौसम के ठीक होने का. मौसम का आलम यह था…
ContinueAdded by sharadindu mukerji on April 20, 2013 at 4:07am — 10 Comments
Added by shikha kaushik on April 19, 2013 at 11:09pm — 5 Comments
सफ़र में आँधियाँ तूफ़ान ज़लज़ले हैं बहुत॥
मुसाफ़िरों के भी पावों में आबले हैं बहुत॥
ख़ुदा ही जाने मिलेगी किसे किसे…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on April 19, 2013 at 12:30pm — 11 Comments
मुलाकातें हमारी, तिश्नगी से
किसी दिन मर न जाएँ हम खुशी से
महब्बत यूँ मुझे है बतकही से
निभाए जा रहा हूँ खामुशी से
उन्हें कुछ काम शायद आ पड़ा है
तभी मिलते हैं मुझसे खुशदिली से
उजाला बांटने वालों के सदके
हमारी निभ रही है तीरगी से
ये कैसी बेखुदी है जिसमे मुझको
मिलाया जा रहा हैं अब मुझी से
उतारो भी मसीहाई का चोला
हँसा बोला…
Added by वीनस केसरी on April 19, 2013 at 12:14am — 16 Comments
तू ये ना समझना , तेरी याद ने रुलाया है ,
तेरी आँख का कोई आँसू है , मेरी आँख से आया है ,
तू ये ना समझना , तेरे खुशबू ने बुलाया है ,
हवा का कोई झोंका है , तेरे ज़िस्म को छू के आया है ,…
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 18, 2013 at 11:00pm — 7 Comments
कहीं पे चीख होगी और कहीं किलकारीयाँ होंगी ! |
अगर हाकिम के आगे भूख और लाचारियाँ होंगी !! |
अगर हर दिल में चाहत हो शराफ़त हो सदाक़त हो ! |
मुहब्बत का चमन होगा ख़ुशी की क्यारियाँ होंगी !!… |
Added by SALIM RAZA REWA on April 18, 2013 at 9:30pm — 18 Comments
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 18, 2013 at 6:23pm — 5 Comments
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 18, 2013 at 4:45pm — 15 Comments
Added by Dr.Ajay Khare on April 18, 2013 at 4:30pm — 9 Comments
शर्मा जी की यूँ तो आदत बहुत खाने की है, बुराई एक है अपने खाने में से वो किसी को पूंछते नहीं कि भैया जी थोडा सा आप भी खा लो. धार्मिक इतने कि कार्यालय कभी प्रातः साढ़े ग्यारह से पहले नहीं आते और चार बजे कार्यालय छोड़ देते . कारण पूछो तो बताते कि पूजा पर बैठते हैं.
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 18, 2013 at 4:00pm — 19 Comments
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