Added by Taj mohammad on June 30, 2023 at 9:01pm — 1 Comment
२२१/२१२१/१२२१/२१२
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पढ़ लिख गये हैं और जहालत के दिन गये
लेकिन इसी के साथ रिवायत के दिन गये।१।
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जितने भी संगदिल थे तराशे गये बहुत
लेकिन न इतने भर से कयामत के दिन गये।२।
*
हर छोटी बात अब तो है तकरार का विषय
इस से समझ लो आप मुहब्बत के दिन गये।३।
*
साया गया जो बाप का क्या कुछ छिना न पूछ
उस की समझ खुली है शरारत के दिन गये।४।
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बाँटा गया अनाज यूँ दो- चार - दस किलो
उस पर कहन कि आज से गुरबत के दिन गये।५।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2023 at 7:30pm — 2 Comments
पैसों के तराजू में अब तुल रहे हैं रिश्ते,
छल कपट के नकाब में पल रहे हैं रिश्ते,
छीन लेते हैं अपने ही हमारी मुस्कान,
दिल के बंद पन्ने अब खोल रहे हैं रिश्ते।
चेहरों पे अब नकाब लगाने का चलन है,
नाप तौल से रिश्ते निभाने का चलन है,
चार दिन की जिंदगी भूल गए हैं सब,
गले लगा कर गला काटने का चलन है।
दिलजलों की महफिल में एहतराम कैसा,
गुम हो रहे रिश्ते, है ये फरमान कैसा,
चांद की चांदनी से चमकते रिश्ते,
स्वार्थ के अंधकार में फिर छिपना…
Added by Anita Bhatnagar on June 30, 2023 at 7:00pm — No Comments
ग़ज़ल
221 2121 1221 212
मदमस्त हम न हों कभी आँखों नमी से हम
सुख दुख रहें खुशी से सदा बन्दगी से हम
हर शख़्स चाहता है ख़ुशी से हो ज़िन्दगी
तस्बीह हो ख़ुदा की बचें हर बदी से हम
हमदर्द बन रहें कभी ज़िन्दा न लाश हों
खुशहाल ज़िन्दगी जियें इन्सान ही से हम
हमको क़सम ख़ुदा की न ज़ालिम का साथ हो
खुशहाल हर कोई कि हर दम नबी से हम
हम भूल कर भी साथ न हों साज़िशों कहीं
जल्लाद हर कहीं हैं…
Added by Chetan Prakash on June 30, 2023 at 5:06pm — 2 Comments
आँगन में जब शूल के, हँसते हों नित फूल
अच्छे दिन का आगमन, समझो है अनुकूल।।
*
सुख चलते हों नित्य जब, लेकर टूटे पाँव
रंगत कैसे प्राप्त हो, अभिलाषा के गाँव।।
*
दुख की तपती धूप में, जलते सुख के पाँव
कैसे फिर बोलो मिले, अभिलाषा को छाँव।।
*
गिरकर भी सँभले नहीं, जो भी जन सौ बार
कब ईश्वर भी कर सके, आ उन का उद्धार।।
*
जीया मीठी बातकर, जो जीवन पर्यन्त
या तो वो शातिर बहुत, या फिर सीधा सन्त।।
*
मौलिक -अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2023 at 3:42pm — No Comments
2211 -2211 -2211 -22
जाँ फिर से नुमूदार न हों ग़म के निशाँ और
आ चल कि चलें ढूँडें कोई ऐसा जहाँ और
दुनिया का सफ़र मुझ पे गिराँ होने लगा है
कहती है मेरी तब्अ' कि ठहरूँ न यहाँ और
आते हैं नज़र फिर से मुझे पस्ती के इम्कान
लगता है कि बाक़ी हैं अभी संग-ए-गिराँ और
भड़की हुई आतिश न बुझे ख़ून-ए-जिगर से
इस इश्क़ के दरिया में जले आब-रसाँ और
अब सहरा की लहरें नज़र आती हैं…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 29, 2023 at 7:18pm — No Comments
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221 2121 1221 212
चाहें किसी को और निबाहें किसी से हम
ख़ुश होईये कि हो ही गए आदमी से हम.
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वो आते इस से क़ब्ल दवा काम कर गई
उकता गए हकीम की चारागरी से हम.
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दीवार पर लगी हुई तस्वीर है अना
पीछे से झाँकती हुई इक छिपकली से हम.
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बन्दों में और ख़ुदा में अजब घालमेल है
हम से ही वो बना है, बने हैं उसी से हम.
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सूरज नहीं हैं हम जो किसी रात से डरें
लड़ते रहेंगे सुब्ह तलक तीरगी से हम.
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दुनिया की दौड़…
Added by Nilesh Shevgaonkar on June 28, 2023 at 5:00pm — 6 Comments
दोहा पंचक . . . .
नारी का कामुक करे, दागदार जब चीर ।
आँखों की प्राचीर से, झर- झर बहता नीर ।।
हार वही जो जीत का, लिख डाले इतिहास ।
तृप्ति संग तृष्णा करे, हरदम प्यासी रास ।।
जीवन मधुबन ही नहीं, इसमें हैं कुछ खार ।
दो पल खुशियों के मिलें, दुख की लगी कतार।।
मन को मन का मिल गया, मन चाहा मन मीत ।
मन के आँगन अवतरित, मन की होती प्रीत ।।
वो नजरों के पास हैं, या नजरों से दूर ।
दिल के सारे खेल तो, दिल से…
Added by Sushil Sarna on June 27, 2023 at 6:30pm — 6 Comments
जीवन दाता ने रचा, जीवन बड़ा अनन्त
मिट्टी से आरम्भ कर, मिट्टी से दे अन्त।१।
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मिट्टी में उपजे फसल, भरे सभी का पेट
मिले इसी से जिन्दगी, मिट्टी को मत मेट।२।
*
मिट्टी बढ़कर स्वर्ण से, सदा लगाओ भाल
केवल मिट्टी ही यहाँ , सब को सकती पाल।३।
*
जन्म, ब्याह, पूजा, मरण, कर मिट्टी की बात
कहते फिर भी लोग नित, घट मिट्टी की जात।४।
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मिट्टी को घट बोलकर, रखते स्वर्ण सँभाल
पर मिट्टी को ही चलें, जग में चाल कुचाल।५।
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करते पंछी पेड़ सब, मिट्टी का…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 25, 2023 at 8:31pm — No Comments
दिया दिखाते सूर्य को, बनकर वो कवि सूर ।
आखर एक पढ़ा नहीं, महफिल की हैं हूर ।।
बुद्ध ...पड़े ..बेकार ..हैं, जग की रेलम पेल ।
कि गधों के सिर ताज है, चलते उलटी रेल ।।
नवाँकुरों ..के घर हुई, उस्तादों... से रार ।
आज ग़ज़ल प्राईमरी, मीर भी गिरफ्तार ।।
छूट मिली थी जो चचा , उन्हें नहीं दरकार ।
आँखों ..के ...अन्धे हुए, घर के पहरे दार ।।
ज़ुल्म करते रहे अदब, बदल काफिया…
ContinueAdded by Chetan Prakash on June 25, 2023 at 9:30am — 1 Comment
तेरे रूठने का सिलसिला कुछ ज्यादा हीं बढ़ गया है
लगता है मुझे दिल का किराया बढ़ाना होगा
बहुत जिये तेरी उम्मीद के साये में अब तक
अब खुदका एक तय आशियाँ बनाना होगा
सब जानते है पता जिसने ताजमहल बनवाया था
मगर उन गुमशुदा…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 24, 2023 at 11:24pm — 1 Comment
Added by Anita Bhatnagar on June 22, 2023 at 12:43pm — 2 Comments
जो भी घटता घाट पर, सिर्फ समय का खेल
बाँकी जो भी जन करें, सब कुछ तुक का मेल।१।
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कहता है सारा जगत, समय बड़ा बलवान
इसीलिए वह माँगता, हरपल निज सम्मान।२।
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चाहे जितना आप दो, दौड़ भाग को तूल
कर्म जरूरी है मगर, फले समय अनुकूल।३।
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जो भी छाया धूप है, या फिर कीर्ति कलंक
समय बनाता भूप है, और समय ही रंक।४।
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सच कहते हैं सन्त जन, नहीं समय से खेल
समय करेगा खेल जब, नहीं सकेगा झेल।५।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 21, 2023 at 6:50pm — 2 Comments
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अँधेरे पल में ख़ुद के ‘नूर’ का दीदार हो जाना
ये ऐसा है कि दुनियावी बदन के पार हो जाना.
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कई सदियों से बस किरदार बन कर थक चुका हूँ मैं
मेरी है मुख़्तसर ख़्वाहिश कहानी-कार हो जाना.
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दुआ है, जान है जब तक मेरा ये जिस्म चल जाए
बहुत रंजीदा करता है यूँ ही बेकार हो जाना.
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जिन्हें मैं जोड़ने में रोज़ थोड़ा टूट जाता था
उन्हें भी रास आया है मेरा मिस्मार हो जाना. (तक़ाबुले रदीफ़ स्वीकर करते हुए)
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मेरी बातें वही…
Added by Nilesh Shevgaonkar on June 19, 2023 at 5:15pm — 6 Comments
मोहब्बत है या नफरत है सभी कुछ जनता हूँ मैं
इन लहजों को अदाओं को बहुत पहचानता हूँ मैं
तेरे आने से फैली है जो खुशबू इन हवाओं में
इस खुशबू से उस आहट तक तुझे पहचानता हूँ मैं
कभी कुछ सोचना चाहा ख़यालों में तुम्ही ही आए …
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 16, 2023 at 8:39pm — 1 Comment
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बनें जब तक बना कर हम रखेंगे इस ज़माने से
फिर इक दिन लौट जाएँगे चले थे जिस ठिकाने से.
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अँधेरे की हुकूमत यूँ तो चारों सिम्त फैली है
मगर वो काँप जाता है दीये के टिमटिमाने से.
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तो फिर दरिया तो क्या मैं इक समुन्दर भी बहा देता
अगर बिछड़ा कोई मिलता हो अश्कों के बहाने से.
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कई बरसों से मैं बस उन की ही महफ़िल में जाता हूँ
जिन्हें कुछ फ़र्क़ पड़ता हो मेरे आने न आने से.
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बड़प्पन ये कि औरों से लकीर अपनी बड़ी रक्खें
नहीं बढ़ता किसी…
Added by Nilesh Shevgaonkar on June 14, 2023 at 1:00pm — 2 Comments
22 22 22 22 2
आँगन-आँगन अब धूप खिली है
कि..अंगड़ाई ले ..नदी ..बही है
ओस पत्तियाें हुई सतरँगी है
बसंत, बूँद हीर कनी बनी है
बागों बहार फूल कली आई
ऋुतु बसन्त भी बन वधू बिछी है
लिखा शह्र के भाग्य अभी रोना
गली-सड़क याँ, लू गर्म बही है
तपता तवा सड़क तारकोल की
मुफलिस के घर वो छान पड़ी है
आई क्या गरमी मई - जून की
मौत आम जन सर, आन पड़ी है
बहरा हो गया ख़ुदा…
ContinueAdded by Chetan Prakash on June 12, 2023 at 5:26pm — No Comments
दबा कर आँखों में आँसू यूं मुस्कुरा जाते हो तुम
देकर खुशियाँ अपने हिस्से की हमें ग़म भुला जाते हो तुम
कैसे अपने एहसासों को ज़ुबां पर आने नहीं देते
दिल के बवंडर को क्यों बह जाने तुम नहीं देते
कैसे हर बार तुम हीं अपने अरमानो को दबाते हो …
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 10, 2023 at 6:47am — No Comments
रिश्ते सब बिखर गये
दोस्त उज़्र कर गये
वक़्त की हवा में रुख़ों से नक़ाब उतर गये
हम तो बस वफ़ाओं का मज़ार देखते रहे
टूटते यक़ीन तार-तार देखते रहे
ग़म की धूप धीरे-धीरे सब नमी चुरा गई
पत्तियों का नूर और कली का रूप खा गई
मेरे आशियाँ पे कोई बर्क़-सी गिरा गई
ख़ाक भी न मिल सकी कि इस तरह जला गई
ज़ख़्म हो गए हरे
खिल गए, जो थे भरे
दब चुके तमाम दर्द फिर उभर-उभर गये
हम तो बस अचेत-से
मुट्ठियों की…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 9, 2023 at 1:16am — No Comments
कैसी ये पुकार है? कैसा ये अंधकार है
मन के भाव से दबा हुआ क्यों कर रहा गुहार है?
क्यों है तू फंसा हुआ, बंधनों में बंधा हुआ
अपनी भावनाओं के रस्सी में कसा हुआ
त्याग चिंताओं को अब चिंतन की राह धरो
स्वयं पर विश्वास कर दृढ़ हो…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 3, 2023 at 7:26pm — No Comments
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