सोचने लगती हूँ तो लगता है जैसे कल की ही बात है, बारहवीं के पेपर देकर फ्री हुई तो खूब मस्ती हो रही थी | एक दिन मम्मी ने कहा “चल हेमा अजित भैया के घर चलते हैं, भाभी का फ़ोन आया था भैया कई दिनों से ऑफिस नहीं गए उनकी तबियत ठीक नहीं है | मैंने कहा चलो चलते हैं | मामाजी के यहाँ मुझे हमेशा अच्छा लगता था, बस उनकी एक ही आदत शराब पीने वाली मुझे अच्छी नहीं लगती थी | मैंने मम्मी से पूछा कि मामाजी क्या अब भी शराब पीते हैं |मम्मी…
ContinueAdded by savi on June 26, 2012 at 5:00pm — 12 Comments
कुछ बातों की कोई इम्तेहा नहीं होती
होती है बस, कमोबेश वफ़ा नहीं होती
करो बहबूदीकी तमन्ना और भूलजाओ
जिसमें हो एहसान वो दुआ नहीं होती
माँ माँ होतीहै लहुलुहान होकर भी माँ
बच्चोंके लिए कभी आब्लापा नहींहोती
गरीबों केलिए ज़्यादा गिज़ा नहीं होती
अमीरों केलिए भूखकी दवा नहीं होती
अगर न होती भूल आदमोहव्वा से तो
रंगभरी और दुःखभरी दुनिया नहींहोती
काश कि औरत न होती रागिबेपैदाइश
और…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 5:00pm — 3 Comments
आग उगलते सूरज का रथ
दौड़ रहा था
अनवरत, अन्तरिक्ष पर
पीछे जन्म लेते
धूल के गुबार ने ढक
दिए सब वारि के सोते
कुम्भला गए दम घोंटू
गर्द में कोमल पौधों के पर
चिपक गए परिधान बदन से
हाँफते हुए ,पसीनों से लथपथ
उसके अश्वों के स्वेद सितारे
छितरा गए सागर की चुनरी पर
मिल गए खारे सागर की बूंदों से
जबरदस्त उबाल उठा
सागर के अंतर में
प्यासी धरा की आहें
कर बैठी आह्वान
मंथन से मुक्त होकर
उड़ चला वो वाष्पित आँचल…
Added by rajesh kumari on June 26, 2012 at 2:30pm — 15 Comments
कितनी महंगी रेल हो गई बाबाजी
पैसेन्जर भी मेल हो गई बाबाजी
आदर्शों को फांसी दे दी दिल्ली ने
नैतिकता को जेल हो गई बाबाजी
सुख के बादल बिखर गये हैं बिन बरसे
दुःख की धक्कमपेल हो गई बाबाजी
नकल हो रही पास आज विद्यालय में
और पढ़ाई फेल हो गई बाबाजी
आई पी एल की हाट में हमने देखा है
खिलाड़ियों की सेल हो गई बाबाजी
खादी वाले खड़े - खड़े खा जाते हैं
भोली जनता भेल हो गई बाबाजी
लोकराज ने लज्जा का…
Added by Albela Khatri on June 25, 2012 at 5:00pm — 41 Comments
मैं जानता हूं
आप कुछ नहीं कर सकेंगे
पढ़ कर, सोचेंगे थोड़ा
या हो सकता है
बिल्कुल भी नहीं देंगे ध्यान
सही भी है
आपकी भी अपनी हैं परेशानियां
ऐसे में मेरे लिए कहां होगा समय
लेकिन फिर भी बताता हूं आपको
अपने मन की बात
बहुत परेशान करती है
छोटी-छोटी बातें
हो कोई बड़ी समस्या
तो की जा सकती है तैयारियां
मांगी जा सकती है मदद
लेकिन क्या करूं
जब समस्याएं हो छोटी-छोटी और
फैला दूं हाथ - मांगू मदद
तब लगता है
आखिर अब मैंने क्या…
Added by Harish Bhatt on June 25, 2012 at 2:42pm — 9 Comments
हांग कांग की छटा है प्यारी बाबाजी
पर भारत की बात ही न्यारी बाबाजी
प्यार मिला, सम्मान मिला इस महफ़िल में
ओ बी ओ पर मैं बलिहारी बाबाजी
रूपया रोक न पाया ख़ुद को गिरने से
डॉलर ने वो बाज़ी मारी बाबाजी
ममता,ललिता,सुषमा तीनों गायब हैं
तन्हा रह गये अटल बिहारी बाबाजी
कौन बनेगा सदर हमारे भारत का
ये भी संकट है इक भारी बाबाजी
चाट पकौड़ी खाओ, किरपा आएगी
कहते बाबा लीलाधारी बाबाजी
'अलबेला' की इस…
Added by Albela Khatri on June 25, 2012 at 10:00am — 33 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on June 24, 2012 at 2:30pm — 22 Comments
मुक्तक काव्य "कमला "
मन वीणा को झंकृत करती, मीठा स्पंदन हो कमला
छंदों में रस वर्षा करती, रस अभिवंदन हो कमला
निर्झर की पावन झर झर तुम, हंसती हो सरगम जैसा
साधक है खुद स्वर तेरे तो, तुम स्वर गुंजन हो कमला
तन मलयागिर का चन्दन सा, मुखड़ा कुंदन है कमला…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 24, 2012 at 10:40am — 7 Comments
ऐ गम ! जा के ढूंढ़ ले कोई दूसरा घर ,
Added by Ajay Singh on June 24, 2012 at 10:01am — 7 Comments
स्वर्ग-नरक
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 23, 2012 at 6:46pm — No Comments
घन गरज बरस प्यासी धरती पुकारे ;
कृषक भी ताक रहे कब से ही आसमान |
मेघा टर्र-टर्र कर थकने लगे हैं जैसे ;
अब सुन ले उनकी अच्छा नहीं ये गुमान |
तुझ पर ही निर्भर खेती हमारे देश की ;
बिन तेरे हो जाएगी रूखी-सूखी सुनसान |…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 23, 2012 at 6:02pm — 25 Comments
मंत्रालय में आग.......भाग डी. के..भाग.......!!!!!!
Added by AVINASH S BAGDE on June 23, 2012 at 4:57pm — 11 Comments
ढूंढने गया मैं खुद को
बाज़ार में
मैं न जाने कहाँ खो गया
चाँदी की खनक में
सोने की दमक में
मैं न जाने कहाँ खो गया
क्यों आया हूँ यहाँ
मैं क्या हूँ ?
मैं भूल गया
इस चमक-दमक की दुनियाँ में
मैं खुद को ही भूल गया
मैं भूल गया
मेरे हाथों में
कलम की ऐसी ताकत थी
ऊपर वाले की देन कहें
या हृदय की मेरी गागर थी
चलती थी
मेरी अश्रु स्याही से
भावो के मोती विखेरने को
समराग्नी की ताकत रखती थी
नव-निर्वाण की हुँकार…
Added by जगदानन्द झा 'मनु' on June 23, 2012 at 1:30pm — 9 Comments
निर्मल मन मैला बदन , नन्हे नन्हे हाथ
रोटी का कैसे जतन,समझ ना पाए बात (1)
तरसे एक -एक कौर को ,भूखे कई हजार
गोदामों में सड़ रहे, गेहूं के आबार (2)
शून्य में देखते नयन , पूछ रहे है बात
प्रजा तंत्र के नाम पर,क्यूँ करते हो घात (3)
सीना क्यूँ फटता नहीं, भूखे को बिसराय
हलधर का अपमान कर,धान्य, जल में बहाय (4)
शासन की सौगात हो, या किस्मत की हार
निर्धन को तो झेलनी, ये जीवन की मार (5)
रंक का चूल्हा…
Added by rajesh kumari on June 23, 2012 at 1:00pm — 26 Comments
जय जय भारत जय जय भारत
नारद शारद करते आरत
जय जय भारत जय जय भारत
वीरों की जननी है भारत
संतों की धरनी है भारत
अब तो बस ठगनी है भारत
जय जय भारत जय जय भारत
नव नव गुंडे फिरते हैं अब
घोटाले ही करते हैं अब
चोरों की सत्ता है भारत
जय जय भारत जय जय भारत
आतंकी अब मौज मनाते
नक्शल वादी फ़ौज बनाते
दहशत की संज्ञा है भारत
जय जय भारत जय जय भारत
गंगा की धारा है निर्मल
यमुना भी बहती है कल कल
पुस्तक में ऐसा था भारत
जय जय…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 23, 2012 at 10:30am — 12 Comments
Added by योगराज प्रभाकर on June 23, 2012 at 10:00am — 52 Comments
गीत:
लोकतंत्र में...
संजीव 'सलिल'
*
लोकतंत्र में शोकतंत्र का
गृह प्रवेश है...
*
संसद में गड़बड़झाला है.
नेता के सँग घोटाला है.
दलदल मचा रहे दल हिलमिल-
व्यापारी का मन काला है.
अफसर, बाबू घूसखोर
आशा न शेष है.
लोकतंत्र में शोकतंत्र का
गृह प्रवेश है...
*
राजनीति का घृणित पसारा.
काबिल लड़े बिना ही हारा.
लेन-देन का खुला पिटारा-
अनचाहे ने दंगल मारा.
जनमत द्रुपदसुता का
फिर से खिंचा केश…
Added by sanjiv verma 'salil' on June 23, 2012 at 8:10am — 11 Comments
दिल मेरा तोड़ के इस तरह से जाने वाले।
बेवफ़ा तुझको पुकारेंगे ज़माने वाले॥
प्यार में खाईं थी क़समें भी किए थे वादे,
क्या तुझे याद है कुछ मुझको भुलाने वाले॥
झांक के देख ले अपने भी गिरेबाँ में तू,
उँगलियाँ मेरी शराफ़त पे उठाने वाले॥
सर झुकाये हुए कूचे से निकल जाते हैं,
हैं पशेमान बहुत मुझको सताने वाले॥
बाद मरने…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 22, 2012 at 9:30am — 16 Comments
बारिश का मौसम
काले काले मेघ
काली काली जुल्फों के सायों की मानिंद
टिप -टिप टिप- टिप
बूँदें गिरती है
भीगी भीगी जुल्फों से टूटे मोती से
भिगोती है तन
मेरी सानों को छूती…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 21, 2012 at 6:27pm — 9 Comments
Added by rajesh kumari on June 21, 2012 at 12:00pm — 20 Comments
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