एक घनाक्षरी मेरा भी -----
सूर्य की गभस्तियों से अग्नि वृष्टि हो रही है और ये शरीर स्वेद से न पाए त्राण है
प्राण वायु का अभाव खलने लगा है मित्र आज व्यग्र नासिका व हीन शक्ति घ्राण है
ये प्रतीत हो रहा कि लक्ष्य मानवी शरीर ही बना हुआ प्रयुक्त वामनो का बाण है
हे मनुष्य जाग देख स्वार्थ लोभ का प्रसार प्रकृति से खेलने की वृत्ति का प्रमाण है
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
सर्वथा नूतन मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 10, 2013 at 11:03am — 6 Comments
मंदिर से घंटी ,मस्जिद से अजान की आवाज पूरी दुनिया को सुनाई है ,
धर्म बांटने की हमने कसम उठाई है .
मदिर से हिन्दू ,मस्जिद से मुसलमान बनाने की फैक्ट्री बनाई है ,
धर्म प्रचारक हैं हमने गजब जिम्मेदारी निभाई है
मंदिर नापाक कर मुसलमान ने ,मस्जिद तोड़ हिन्दू ने खुशियाँ मनाई…
ContinueAdded by Dr Dilip Mittal on June 10, 2013 at 10:42am — 4 Comments
दो छोटी रचनाएँ पिता को समर्पित
1.
थाम ऊँगली जो चलाये वो पिता होता है
प्यार छुपा जो डांट से समझाए वो पिता होता है
कंधे बिठा सारी…
Added by Sarita Bhatia on June 10, 2013 at 10:30am — 14 Comments
पर कटे से पड़े तडफडाते रहे
इश्क़ में उनके ऐसे फँसे दोस्तोँ !
रूबरू वो हुये चार पल के लिए
जाम नैनों अधर के पिला दोस्तों !
मयकशी में मुकद्दर के मारे तभी
लूट हँसते चले रोते हम दोस्तों…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 10, 2013 at 1:00am — 16 Comments
गाँव बदले हुए हैं ,शहर हो गए ,
स्वार्थ की आत्म-केंद्रित नहर हो गए,
सूर्य में थीं यहीं नेह की रश्मियाँ
रिश्ते सब गर्म अब दोपहर हो गए !
*
आओ मिलकर मोड दें पन्ने किताब के ,
और ढूँढें फूल कुछ सूखे गुलाब के ,
सकपकाई उम्र ,वो बारिश सवालों की
खूबसूरत झूठ ,वो किस्से जवाब के !
*
दर्द को खूब लिखा ,
गहरे जा डूब लिखा ,
पाँव जब जलने लगे
पथ को हरी दूब लिखा !
*
रूप की एक नदी बहती है,,
खूबसूरत ए हंसी लगती है,
फूल,घाटी…
Added by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 9, 2013 at 10:00pm — 8 Comments
पिता वह खूबसूरत नाम है उस इंसान का जो अपने बच्चों की सारी ख्वाहिशों को पूरी करने में दिन रात एक कर देते हैं, उनके लिए सारे कष्टों को झेलते हैं, उन्हें दो समय की भले ही न रोटी मिले पर कहीं न कहीं से वे अपने बच्चों का पेट भरने के लिए दो समय की रोटी का इंतजाम करते हैं।
वे धूप, ठंडक, आंधी-तूफ़ान, बारिश, किसी की परवाह किये बगैर दिन-रात मेहनत करते हैं। वे भले ही कभी अच्छे स्कूल में न पढ़े हों पर अपने बच्चों को हमेशा…
ContinueAdded by SAURABH SRIVASTAVA on June 9, 2013 at 4:00pm — 4 Comments
इंतजार
करता हूँ इंतजार उसका
कब वह आयेगी
हाँ कब वह आयेगी
सुबह से शाम तक
रात से सुबह तक
न सो पाया पूरी रात
उसके इंतजार में …
ContinueAdded by SAURABH SRIVASTAVA on June 9, 2013 at 3:31pm — 3 Comments
(छंद - मनहरण घनाक्षरी)
गोमुखी प्रवाह जानिये पवित्र संसृता कि भारतीय धर्म-कर्म वारती बही सदा
दत्त-चित्त निष्ठ धार सत्य-शुद्ध वाहिनी कुकर्म तार पीढ़ियाँ उबारती रही सदा
पाप नाशिनी सदैव पाप तारती रही उछिष्ट औ’ अभक्ष्य किन्तु धारती गही सदा …
Added by Saurabh Pandey on June 8, 2013 at 8:30pm — 33 Comments
ताकत झांकत लूटत पाटत,छीनत बीनत नोट फटा फट !
लोगन की परवाह नहीं अरु ,चाट रहे सब देश चटा चट!!
दौड़त भागत घूम रहे अरु, खाइ रहे सब कोष गटा गट !
बन्दर बांट करें फिर झूमत ,आपन लूट बढ़ाइ झटा झट !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक
मौलिक…
Added by ram shiromani pathak on June 8, 2013 at 5:30pm — 21 Comments
मेरा देश स्वर्ग से सुन्दर, जग में सबसे महान है |
वक्ष पर शोभें गंगा यमुना, प्रहरी हिमालय शान है |
जलधि हिन्द आ पाँव पखारे, सागर करें नित गान हैं |
हरदम रहे सुहाना मौसम, खेत की फसलें जान हैं |
सब मिलकर हर पर्व मनाते, भेद भाव का नाम नहीं |
साथ साथ रहते जनु भाई, मिलकर करते काम कहीं…
Added by Shyam Narain Verma on June 8, 2013 at 3:30pm — 3 Comments
Added by Abid ali mansoori on June 8, 2013 at 3:15pm — 3 Comments
फाईलु / फाइलातुन / फाईलु / फाइलुन
वज्न : २२१, २१२२, २२१, २१२
नैनो के जानलेवा औजार से बचें,
करुणा दया ख़तम दिल में प्यार से बचें,
पत्थर से दोस्त वाकिफ बेशक से हों न हों,
है आइना फितरती दीदार से बचें,
आदत सियासती है धोखे से वार की,
तलवार से डरे ना सरकार से बचें,
गिरगिट की भांति बदले जो रंग दोस्तों,
जीवन में खास ऐसे किरदार से बचें,
नफरत नहीं गरीबों के वास्ते सही,
यारों सदा दिमागी बीमार से…
Added by अरुन 'अनन्त' on June 8, 2013 at 1:00pm — 14 Comments
सुबह दरवाजे पे देखा
ढेरों फूल, हैं बिखरे
कहीं से, रात को तूफ़ान
लेकर साथ आया था
मेरी ही याद उन्हें आई ;कुछ श्रद्धा रही होगी
दरख्तों ने दिए आशीष कोई मर्जी रही…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 8, 2013 at 11:58am — 20 Comments
कुछ भी बनने से पहले
एक अच्छा इन्सान बनो।
कुछ भी करने से पहले,
दूसरों का सम्मान करो।
समझो दूसरों की भावनाएँ,
न उनका अपमान करो।
मत दो किसी को दुःख,
सबको प्रेम समान करो।
जो तोड़ दे किसी हृदय को,
ऐसी उपेक्षा,न अपमान करो।
यदि कोई गहराई से चाहे तुम्हें,
तो उस प्रेम का सदा मान रखो।
खेल कर किसी के भावों से,
उस प्रेम का न अपमान करो।
ठुकरा कर प्रेम किसी का,
न आहत आत्मसम्मान करो।
तुम्हारी उपेक्षा,आत्मग्लानि में
न…
Added by Savitri Rathore on June 8, 2013 at 12:20am — 15 Comments
आदरणीय प्रबंधन टीम एवं सभी प्रबुद्ध सदस्यों को मेरा नमस्कार , अभी कुछ दिनों से ही मैं ओ बी ओ से जुड़ा हूँ अभी ज्यादा नही समझ पाया हूँ ! ऐसे ही कुछ ना कुछ लिखता रहता हूँ जो हमारे समाज के पाक्षिक अखबार में प्रकाशित हो जाता है और ना होता है तो अपने बनाये ब्लॉग पर लिख देता हूँ !
ओ बी ओ सदस्य बनने बाद लगता है मेरे जैसे नौसिखीये को यहाँ बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त हो सकेगा !
आशा ही नहीं विश्वास है आप मेरी त्रुटियों को माफ करते हुए मेरा उचित मार्ग दर्शन करेंगे ।
मैं अपनी पहली रचना के रूप…
Added by D P Mathur on June 7, 2013 at 9:00pm — 12 Comments
Added by भावना तिवारी on June 7, 2013 at 7:46pm — 11 Comments
Added by Sumit Naithani on June 7, 2013 at 3:54pm — 14 Comments
सजी हैँ ख़्वाब बनकर
जुगनुओँ की तरह
मासूम हसरतेँ दिल की
हिज़्र की पलकोँ पर...
यह टीसती हवायेँ
यह लम्होँ की तल्खियां
मचलने लगी है
हर तमन्ना
वक्त की आगोश मेँ..
मुन्तज़िर है आज भी दिल
किसी मख़्सूस सी
आहट के लिए..
यह मंज़र यह फ़िज़ायेँ
यह प्यार का मौसम
कितना है हसीँ
तेरे इन्तेज़ार का मौसम..!
*******************************
(मौलिक व अप्रकाशित)
___आबिद अली मंसूरी
Added by Abid ali mansoori on June 7, 2013 at 11:00am — 24 Comments
Added by Vinita Shukla on June 7, 2013 at 9:30am — 28 Comments
इमारत का कद बढ़ता जाए
पानी का स्तर घटता जाए
हरियाली का दाव लगा है
चारों ओर ही सूखा पड़ा है
…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on June 6, 2013 at 11:00pm — 13 Comments
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