For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Featured Blog Posts – June 2018 Archive (9)

ग़ज़ल(212)

उम्रभर।
मोतबर।।

मुश्किलें।
तू न डर।।

ताकती।
इक नज़र।।

धूप में।
है शज़र।।

वो तेरा।
फिक्र कर।।

रात थी।
अब सहर।।

इश्क़ ही।
शै अमर।।

मौलिक/अप्रकाशित

राम शिरोमणि पाठक

Added by ram shiromani pathak on June 19, 2018 at 8:29am — 10 Comments

सूर्य उगाने जैसा हो- गीत

जीवन की सूनी राहों में,

मधु बरसाने जैसा हो.

अबकी बार तुम्हारा आना

सचमुच आने जैसा हो.

 

धूप कुनकुनी खिले माघ में,

भीगा-भीगा हो सावन.

बादल गरजें जिसकी छत पर,…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on June 18, 2018 at 10:00am — 20 Comments

तुम्हारे स्पर्श से....

मैं संग चल दी उनके,

मेरा मन यहीं रह गया...

उन्होंने दिखाये होंगे हजारों ख्वाब,

पर इन आँखों में रौशनी कहाँ थी !!

कितने ही गीत सुनाये होंगे उन्होंने,

पर इन कानों के पट तो बंद हो चुके थे !!

उनके सबालों का,

जबाब भी ना दे पायी थी मैं....

क्योंकी इन होठों पे, तुम्हारा ही नाम रखा था!!

कितना आक्रोश था उनके ह्रदय में,

जब उन्होंने,

मेरे केशों को पकड़कर खींचा था...

और मैं पत्थर सी हो गयी थी,

किसी भी आघात की पीड़ा ना हुई…

Continue

Added by रक्षिता सिंह on June 15, 2018 at 5:12pm — 10 Comments

जलियांवाला बाग़ (लघुकथा)

‘‘फ़ायर!’’ जनरल के कहते ही सैकड़ों बन्दूकें गरजने लगीं। उस जंगल में आदिवासी चारों तरफ़ से घिर चुके थे। उनकी लाशें ऐसे गिर रही थीं जैसे ताश के पत्ते। क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या जवान, कोई भी ऐसा नहीं नहीं था जो बच सका हो। कुछ ने पेड़ों के पीछे छिपने की कोशिश की तो कुछ ने पोखर के अन्दर मगर बचा कोई भी नहीं। देखते ही देखते हरा-भरा जंगल लाल हो गया।

‘‘आगे बढ़ो!’’ जनरल ने आदेश दिया। सेना लाशों के बीच से होते हुए जंगल के भीतर बढ़ने लगी। वहाँ कोई भी ज़िन्दा नज़र नहीं आ रहा था सिवाय उस छोटी सी…

Continue

Added by Mahendra Kumar on June 13, 2018 at 12:00pm — 13 Comments

ग़ज़ल _तक़दीर आज़माने की ज़हमत न कीजिए

(मफऊल _ फाइलात _ मफाईल _फाइलुन)

तक़दीर आज़माने की ज़हमत न कीजिए |

उस बे वफ़ा को पाने की हसरत न कीजिए |

बढ़ने लगी हैं नफरतें लोगों के दरमियाँ

मज़हब की आड़ ले के सियासत न कीजिए |

जलवे किसी हसीन के आया हूँ देख कर

महफ़िल में आज ज़िक्रे कियामत न कीजिए |

आवाज़ तो उठाइए हक़ के लिए मगर

इसके लिए वतन में बग़ावत न कीजिए |

बैठा है चोट खाके हसीनों से दिल पे वो

जो कह रहा था मुझ से मुहब्बत न कीजिए…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on June 12, 2018 at 10:30pm — 19 Comments

तुम्हारे जख्म सहलाये गये हैं

बहुत बेचैन वो पाये गए हैं ।

जिन्हें कुछ ख्वाब दिखलाये गये हैं ।।

यकीं सरकार पर जिसने किया था ।

वही मक़तल में अब लाये गए हैं।।

चुनावों का अजब मौसम है यारों ।

ख़ज़ाने फिर से खुलवाए गए हैं ।।

करप्शन पर नहीं ऊँगली उठाना ।

बहुत से लोग लोग उठवाए गये हैं ।।

तरक्की गांव में सड़कों पे देखी ।

फ़क़त गड्ढ़े ही भरवाए गये हैं ।।

पकौड़े बेच लेंगे खूब आलिम ।

नये व्यापार सिखलाये…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on June 10, 2018 at 11:04pm — 13 Comments

अकुलायी थाहें

अकुलायी थाहें

कटी-पिटी काली-स्याह आधी रात

पिघल रहा है मोमबती से मोम

काँपती लौ-सा अकुलाता

कमरे में कैद प्रकाश

आँखों में चिन्ता की छाया

ऐसे में समाए हैं मुझमें

हमारे कितने सूर्योदय

कितने ही सूर्यास्त

और उनमें मेरे प्रति

आत्मीयता की उष्मा में

आँसुओं से डबडबाई तेरी आँखें

तैर-तैर आती है रुँधे हुए विवरों में

तेरी-मेरी-अपनी वह आख़री शाम

पास होते हुए भी मुख पर…

Continue

Added by vijay nikore on June 10, 2018 at 12:13pm — 18 Comments

अस्वीकृत मृत्यु (लघुकथा)

अंतिम दर्शन हेतु उसके चेहरे पर रखा कपड़ा हटाते ही वहाँ खड़े लोग चौंक उठे। शव को पसीना आ रहा था और होंठ बुदबुदा रहे थे। यह देखकर अधिकतर लोग भयभीत हो भाग निकले, लेकिन परिवारजनों के साथ कुछ बहादुर लोग वहीँ रुके रहे। हालाँकि उनमें से भी किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि शव के पास जा सकें। वहाँ दो वर्दीधारी पुलिस वाले भी खड़े थे, उनमें से एक बोला, "डॉक्टर ने चेक तो ठीक किया था? फांसी के इतने वक्त के बाद भी ज़िन्दा है क्या?"

दूसरा धीमे कदमों से शव के पास गया, उसकी नाक पर अंगुली रखी और…

Continue

Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 6, 2018 at 6:00pm — 17 Comments

नदिया  पोखर सब सूखे - गजल ( लक्ष्मण धामी " मुसाफिर"

२२२२ २२२२ २२२२ २२२



पोथा पढ़ना पंडित  भूले  शुभ मंगल  में आग लगी

जो माथे को शीतल करता उस संदल में आग लगी।१।



जहर  भरा  है  खूब हवा  में  हर मौसम दमघोटू  है

पंछी अब क्या घर लौटेंगे जिस जंगल में आग लगी।२।



कैसी  नफरत  फैल  गयी  है  बस्ती  बस्ती  देखो तो

जिसकी छाँव तले सब खेले उस पीपल में आग लगी।३।



धन दौलत  की  यार पिपासा  इच्छाओं का कत्ल करे

चढ़ते यौवन जिसकी चाहत उस आँचल में आग लगी।४।



किस्मत फूटी है हलधर की नदिया  पोखर सब…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 6, 2018 at 4:55pm — 19 Comments

Featured Monthly Archives

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service