रुस्तमे-हिन्द दारासिंह के देहावसान पर उनके प्रशंसक अलबेला खत्री की विनम्र शब्दांजलि
नील गगन के पार गया है बाबाजी
छोड़ के यह संसार गया है बाबाजी
हरा सका न कोई जिसे अखाड़े में
मौत से वह भी हार गया है बाबाजी
देवों को कुछ दाव सिखाने कुश्ती के
कुश्ती का सरदार गया है बाबाजी
अपनी माता के संग भारत माता का
सारा क़र्ज़ उतार गया है बाबाजी
हाय! रुस्तमे-हिन्द को कैसा रोग लगा
हर इलाज बेकार गया है…
Added by Albela Khatri on July 12, 2012 at 9:30pm — 25 Comments
परिवर्तन के नाम पर ,अलग -अलग है सोच
किसी ने वरदान कहा ,इसे किसी ने बोझ ||
परिवर्तन वरदान है ,या कोई अभिशाप
एक को बांटे खुशियाँ ,दूजे को संताप ||
विघटित करके देश के ,कई प्रांत बनवाय
महा नगर विघटित हुए ,इक -इक शहर बसाय||
शहर- शहर विघटित हुए ,और बन गए ग्राम
ग्रामों में गलियाँ बनी ,परिवर्तन से धाम||
घर बाँट दीवार कहे ,परिवर्तन की खोज
बूढ़े मात -पिता कहें ,ये छाती पर सोज ||
जो नियम भगवान् रचे ,वो…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 12, 2012 at 9:00pm — 27 Comments
मित्रों दोहों के रूप में कुछ अपने जीवन के अनुभव और विचार प्रस्तुत कर रहा हूँ अपने विचार अवश्य रखें प्रसन्नता होगी
==========दोहे =========
पीर पराई देख के , नैनन नीर बहाय
दया जीव पे जो करे, वो मानव कहलाय
सब धर्मों का एक ही, तीरथ भारत देश
सबको देता ये शरण, कैसा भी हो वेश
मोक्ष आखिरी लक्ष्य है, हर मानव का दीप
मोती पाना कठिन है, गहरे सागर सीप
दीप जलाओ ज्ञान का, मन से मन का मेल
बाती जिसमें शास्त्र की, रीतों का हो…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 8:38pm — 9 Comments
देखो
तूफ़ान उठ रहा है
सागर मचल रहा है
लहरें उठ रही हैं
आसमान छू लेने को
चल रहा अपनी धुन में
दुनिया से बेखबर
स्वतंत्र
बाधाओं को लांघते…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 6:23pm — 6 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on July 12, 2012 at 6:00pm — 17 Comments
अँधेरा मुझमे सो रहा है, माँ तेरे बिन,
डर को मुझमे बो रहा है, माँ तेरे बिन,
घर में घुस आईं हैं, धूल लेकर आंधियां अब,
कि जीना मुस्किल हो रहा है, माँ तेरे बिन,
ठोकरें लौट आई हैं, भर कर पत्थर राहों में,
नज़रों से उन्जाला खो रहा है, माँ तेरे बिन,…
Added by अरुन 'अनन्त' on July 12, 2012 at 5:55pm — 9 Comments
मैं बंजर जमीं पे चमन ढूंढता हूँ
यूँ दिल को जलाते जलन ढूंढता हूँ
हैं हर-सू धमाके डराते दिलों को
है आतंक फिर भी अमन ढूंढता हूँ
था इतिहास में जो परिंदा सुनहरा
मैं वो हिंद औ वो वतन ढूंढता हूँ
जो लिपटे तिरंगा बदन से सुकूँ लूं
वो दो गज जमीं वो कफ़न ढूंढता हूँ
जो पैसा कमाना अभी सीखते हैं
मैं उनमे कलामो रमन ढूंढता हूँ
है अब की सियासत बुरी "दीप"…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 3:00pm — 7 Comments
अंधी पीसे कुत्ता खाए, खाने दो .
मत भेजे पे बोझा भेजो जाने दो .
बेईमान का भाव करोड़ों में , देखो .
और ईमान का मोल नही है आने दो .
कुतर कुतर कर मुल्क स्वार्थी चूहों ने .
खा जाना है, खा जाते हों खाने दो .
कालिमा कालिमा ही बस फैली है .
दीप बुझाओ रौशनी को मत आने दो .
अपने कल को दे के विष अपने हाथों .
घोडे बेच के आत्मा को सो जाने दो .
.
दीप ज़िर्वी
11.7.२०१२
Added by DEEP ZIRVI on July 12, 2012 at 2:30pm — 4 Comments
नहीं करते बात
आसमां छूने की
वो तो है सितारों का
जमीं पर रच देंगे इतिहास
क्योंकि जमीं है हमारी
अभी तो शुरू हुआ है
सफर हमारा
और भी है मुकाम
मिलकर चलेंगे
साथ सफर पर
क्योंकि
मंजिले करती है
इंतजार हमारा.
भरोसा है अपने पर
मिलेगा साथ आपका ..
Added by Harish Bhatt on July 12, 2012 at 2:00pm — 6 Comments
देखो !
उस चिड़िया के पंख निकाल आए
अब वो अपने पंख फैलाएगी
आसमानों के गीत गाएगी
बातें करेगी-
-गगनचुम्बी उड़ानों की !
तोड़ डालेगी-
-तुम्हारी निर्धारित ऊंचाईयां !
और उसकी अंगडाईयां
कंपा देंगी तुम्हारे अंतरिक्ष को !
वो देख आएगी
तुम्हारे सूरज में घुटता अँधेरा !
प्रश्न उठाएगी
तुम्हारे सूर्योदय पर भी !
फिर कौन पूजेगा -
-तम्हारे अस्तित्व को ?
कौन मानेगा -
-तुम्हारी…
ContinueAdded by Arun Sri on July 12, 2012 at 1:30pm — 14 Comments
शीशे की तरह दिल में, इक बात साफ़ है,
ये दिल दिल्लगी के, बिलकुल खिलाफ है,
खता इतनी थी कि उसने, मज़बूरी नहीं बताई,
फिर भी उसकी गलती, तहे-दिल से माफ़ है,
लगने लगी है सर्दी, अश्कों में भीगने से,
इतना हल्का हो गया, तन का लिहाफ है,…
Added by अरुन 'अनन्त' on July 12, 2012 at 12:37pm — 10 Comments
उठता यूँ हिजाब देख के
उनको ही तकते रह गए
काला तिल रुखसार पर
लेता जाँ है जाने जिगर
दिल पे है कैसा ये असर
न रही दुनिया की खबर
रंगत औ शबाब देख के
उनको ही तकते रह गए
लगती है जैसे गुल बदन
उठती है मीठी सी चुभन
धरती है या है वो गगन
सीने में चाहत की अगन
होंठों में गुलाब देख के
उनको की तकते रह गए
गहरा वो कोई सागर
या कल कल सा कोई निर्झर…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 11:44am — 6 Comments
हाय ! ये कैसा मौसम आया बाबाजी
देख के मेरा मन घबराया बाबाजी
पूरब में तो बाढ़ का तांडव मार रहा
उत्तर में है सूखा छाया बाबाजी
भीषण गर्मी के…
Added by Albela Khatri on July 12, 2012 at 8:30am — 15 Comments
कहीं लब पर तराने हैं मुहब्बत के फ़साने हैं.
सुहाने दिन तेरी आगोश में मुझको बिताने हैं.
फिजा में ये हवायें भी तेरे दम से महकती हैं,
सुना है हीर की खातिर कई रांझे दिवाने हैं...
****************************************
यहाँ सब लोग तेरे हुश्न के किस्से सुनाते हैं.
अधर ये शबनमी उसके मुझे अक्सर रिझाते हैं.
बहुत बेचैन है ये दिल उड़ी है नींद आँखों से,
कटीले दो नयन तेरे बहुत मुझको सताते…
ContinueAdded by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on July 11, 2012 at 10:30pm — 14 Comments
अनछुआ चैतन्य
क्या याद हैं
तुम्हें
वो लम्हे,
जब
हम तुम मिले थे ?
तब सिर्फ़
एक दूसरे को
ही नहीं सुना था हमने,
बल्कि,
सुना था हमने
उस शाश्वत खामोशी को
जिसने
हमें अद्वैत कर दिया था....
तब सिर्फ़
सान्निध्य को
ही नहीं जिया था हमने,
बल्कि,
जिया था हमने
उस शून्यता को
जो रचयिता है
और विलय भी है
संपूर्ण सृष्टि की.... …
Added by Dr.Prachi Singh on July 11, 2012 at 9:30pm — 31 Comments
कहती है सरकार ,खजाना खाली है
बेकल बेरोजगार खजाना खाली है
बिना विभाग के मंत्री पद निर्माण करें ;
जनता के लिए यार ,खजाना खाली है .
अपने हक जो मांगे उन को पीटो बस;
कर लो गिरफ्तार ,खजाना खाली है .
सी .एम् पुत्र तो सी. एम् ही बन जाना है
काहे की तकरार ,खजाना खाली है .
वोटें हैं ,मेहनत हैं ,या फिर जेबें हैं ;
इन की क्यों सोचें यार ,खजाना खाली है .
दीप जीर्वी
Added by DEEP ZIRVI on July 11, 2012 at 7:48pm — 9 Comments
देश हित वाली बात हिल-मिल सुनाइए
ज्ञान का प्रकाश दे जो दीप वो जलाइए
देश पर विदेशियों की रीत न चलाइए
मान सम्मान अपने देश का बचाइये
अपना संस्कारों वाला देश नव बनाइये
रीत औ रिवाजों वाले गीत अब गाइए
छोटों को गरीबों को कभी मत सताइए
हो सके तो उनको भी गले से लगाइए
संदीप पटेल "दीप"
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 11, 2012 at 3:00pm — 8 Comments
नापाक इरादे से दिल लगाने को तुला है,
इक शक्स मेरी हस्ती मिटाने को तुला है,
हजारों किये हैं जुर्म मगर सजा कोई नहीं,
मुझको भी गुनाहों में फ़साने को तुला है,
सौदागर है, दिलों का व्यापार करता है,
धंधा है यही वो जिसको, बढ़ाने को तुला…
Added by अरुन 'अनन्त' on July 11, 2012 at 2:29pm — 10 Comments
Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on July 11, 2012 at 1:52pm — 19 Comments
तकदीर पर विशवास तो नही मुझे ,
आये क्यों हो मेरी जिंदगी में तुम ,
निभाया सदा साथ तुम्हारा लेकिन ,
दर्देदिल के सिवा क्या मिला मुझे|
.........................................
भुला कर हमने हर सितम तुम्हारे ,
साथ निभाने का क्यों वादा किया ,
हद हो गई अब ज़ुल्मो सितम की ,
प्यार में तो हमने धोखा ही खाया |
.........................................
निभा न सके जब तुम वफ़ा को ,
चुप रहे फिर भी खातिर तुम्हारी ,
दफना दिया सीने में ही दर्द को ,
उफ़ तक न की…
Added by Rekha Joshi on July 11, 2012 at 1:33pm — 17 Comments
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