निर्झर
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पर्वत के शिखर की
उतुन्गता से उपजे
शुभ्र,धवल
निर्झर से तुम
कटीली उलझी राहों
अवरोधों को अनदेखा कर
कल कल करते
गुनगुनाते
सम गति से चलते
अपनी राह बनाते जाना
गतिशीलता धर्म तुम्हारा
रुकने झुकना
नहीं कर्म तुम्हारा
प्रशस्त राहों के रही
बनाना है तुम्हे
अंधियारे मैं
दीप सा
जलते रहना
रजनी छाबरा
Added by rajni chhabra on August 26, 2010 at 12:30am —
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प्लेविन एक ऐसा सपना ,
जो सपने चकनाचूर करे ,
इंसान को इंसान ना रहने दे ,
गलती को मजबूर करे ,
जो लेकर आये,
वो कभी वापस ना जाये ,
जो गए उसे पाने के लिए,
और लगाये और लगाये,
दिन पर दिन फटहाली,
और कंगाली छाये ,
जो इसके चक्कर में पड़े,
वो कही का ना रहे,
काम में भी मन न लगे,
अपनों से भी दूर करे ,
दोस्तों आप से गुजारिश हैं ,
सपने देखो मगर ऐसा नहीं,
चलो आप एक काम करो,
हर एक से ये बात कहो ,
उस प्लेविन से मुख…
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Added by Rash Bihari Ravi on August 25, 2010 at 6:00pm —
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धन्य हो प्रभु चिदंबरम ,
धन्य है आपकी सोच ,
जल रहा सारा भारत ,
आपका यही हैं खोज ,
कश्मीर से कन्याकुमारी तक ,
लोग जर्जर करते आज ,
आपको केवल दिख रहा हैं ,
भगवा आतंकबाद ,
धन्य हो प्रभु चिदंबरम ,
धन्य है आपकी सोच ,
आपको कुछ नहीं देखना चाहते ,
या आपको कुछ नहीं हैं याद,
अफजल गुरु मेहमान बना हैं ,
कसाब मुफ्त का खा रहा हैं
कानून बनावो सीधे फासी ,
चाहे कोई हो आतंकबादी ,
आप हो हमारे गृहमंत्री ,
लावो खुद में ओज ,
धन्य…
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Added by Rash Bihari Ravi on August 25, 2010 at 3:36pm —
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मैं बांधना चाहता हूँ राखी
आज रक्षा-बंधन के त्यौहार
हाथ में लिए फूलों का हार
बिटिया, राखी तुम्हारी कलाई
तुम्हे कृतज्ञता -वश......
जब-जब भी मुझे खांसी आई
या थोडा सा जुकाम हुआ.....
फोन की घंटी घड़-घ|ने लगती है ...
पापाजी कैसे हैं ? मम्मी!
जल्दी बताओ ! मेरा दिल डूबा जा रहा है ,
क्यों कि रात के अंतिम प्रहर में ,
मैंने एक सपना देखा है ....
पापाजी बीमार हैं
कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है ....
Added by chetan prakash on August 24, 2010 at 9:30pm —
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राखी आकर चली गई ,
कही मस्ती छाई ,
चली खूब मिठाई ,
बहना ने भाई की ,
कलाई पे बांधी !!
कहीं ये ख़ुशी दे गई ,
और कही गम का गुबार
देकर चली गई !!
अब एक दो रूपये में ,
राखी मिलती नहीं ,
दुखहरण के बेटी बुधिया के पास ,
चावल खरीदने के बाद,
पांच रुपये का सिक्का बचा ,
दाल की जगह ,
खरीद ली राखी ,
मिठाई के नाम पर ,
लिया बताशा
बाह रे दुनिया वाले ,
कैसा अजब तमाशा ,
तेरी कुदरत
कहीं हंसा गई
कहीं…
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Added by Rash Bihari Ravi on August 24, 2010 at 3:00pm —
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Added by Rana Pratap Singh on August 24, 2010 at 10:00am —
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ओ मेरी लाडली बहन, ओ मेरी माँ जाई,
तुझ पे कुर्बान है सदा, तुम्हारा ये भाई !
जहाँ में चाँद सितारे हैं कायम जब तक,
तेरा सुहाग भी अमर रहे सदा तब तक !
तुम्हारे गाँव से बस ठंडी हवा आती रहे,
जिंदगानी तुम्हारी यूँ ही मुस्कुराती रहे !
मेरे बाबा की मेरी माँ की निशानी तू है
मेरे कुनबे की शर्म-ओ-लाज की बानी तू है !
दिल ये कहता है कि मैं फिर से मनाऊँ तुझको ,
अपने कन्धों पे बिठा फिर से घुमाऊँ तुझको !
तुम्हारी कपडे की गुडिया बहुत…
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Added by योगराज प्रभाकर on August 23, 2010 at 11:30pm —
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जब वे जवान थे
वासना कुलांचे भरती थी
एक बदमास हिरन की तरह ॥
उनकी छुअन तो दूर
सिर्फ .....
यादों का झोंका
ला देता था उनमें
नई ताकत /नई उर्जा
पूरा शरीर तरंगित हो जाता था ॥
वासना की नदी पर तैरना
उनका शगल था ॥
आज वे बूढ़े है
कहते है ....
गर्म साँसे
स्पंदित नहीं करती उन्हें
यादें ....तो बस
सूखे फूल की पंखुडियो की तरह
जमींदोज़ हो रही है
एक -एक कर ॥
आलिंगन से भी
रोम-रोम पुलकित नहीं होता…
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Added by baban pandey on August 23, 2010 at 10:17pm —
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नेता जी ,
चुनाव के मौसम में
होते हैं ,
लोगो के ,
बहुत ही करीब के
और वह अक्सर ,
समझ जाते हैं ,
इशारे गरीब के,
जिन्हें नसीब न हुई थी ,
मुद्दतों से ,
सूखी रोटिया,
अब बाँट रहे हैं उनको,
दारू और बोटियाँ ,
और ले जाते हैं
उनकी वोट ,
बन कर करीब के ,
यूं समझते हैं वो
इशारे गरीब के
Added by Rash Bihari Ravi on August 23, 2010 at 7:30pm —
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कौन कहता है हमारा हिंदुस्तान गरीब हैं,
नहीं विश्वास तो मल्टीप्लेक्स पर देखिये,
भीड़ लगी रहती टिकट सौ के करीब हैं ,
कौन कहता है हमारा हिंदुस्तान गरीब हैं ,
ट्रेनों में अक्सर आरक्षण फुल रहता हैं ,
अग्रिम पश्चात स्कार्पियो महीनो बाद मिलता हैं ,
हर किसी के पास पैसा बनाने की तरकीब हैं ,
कौन कहता है हमारा हिंदुस्तान गरीब हैं ,
शराब की दुकानें लोगो से भरी रहती हैं ,
हवाई जहाज में भी सीट नहीं मिलती हैं ,
पेपर पर राष्ट्र हमारा उन्नति के करीब…
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Added by Rash Bihari Ravi on August 23, 2010 at 3:00pm —
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चंडी रूप धारण किए
आँखों में दहकते शोले लिए
मुख से ज्वालामुखी का लावा उगलती
बीच सड़क में
ना जाने वह किसे और क्यों
लगातार कोसे जा रही थी
सड़क पर आने जाने वाले सभी
उस अग्निकुंड की तपिश से
दामन बचा बचा कर निकल रहे थे
ना जाने क्यों सहसा ही .....
मुझ में साहस का संचार हुआ
मैंने पूछ ही लिया
बहना....,
क्या माजरा है ?
क्यों बीच सड़क में धधक रही हो ?
उसकी ज्वाला भरी आँखों से
गंगा यमुना की धार बह निकली
रुंधे गले से उसका दर्द…
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Added by Rash Bihari Ravi on August 23, 2010 at 2:30pm —
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अपने दामन में छुपा लूँगा तुम चले आओ
चराग दिल के जला लूँगा तुम चले आओ
तुम गया वक्त नहीं लौट के जो आ ना सके
फिर कलेजे से लगा लूँगा तुम चले आओ
में सनमसाज हूँ मर मर के तराशूंगा तुम्हें
काबायें दिल में लगा लूँगा तुम चले आओ
वफ़ा के नगमे लिखूंगा मै किताबे दिल पर
उम्र के साज पे गा लूँगा तुम चले आओ
सुकूने जिंदगी है ख़त का हर एक लफ्ज़ तपिश
पुर्जे-पुर्जे को उठा लूँगा तुम चले आओ
मेरे काव्य संग्रह ---कनक से ----
Added by jagdishtapish on August 23, 2010 at 12:00pm —
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गिरने से क्यों डर रहा
चलना तो तुझी को वीर |
डूबने से क्यों डर रहा
तबियत से लहरें तो चीर |
मार्ग तो प्रशस्त है
तो काहे की बिडम्बना
आए अगर विषमता
दिखा दे अपनी आकुलता
बेचैनी और व्याकुलता
याद कर अपनी मकसद को
झोंक दे उसमे खुद को
जलने से क्यों डर रहा
बहा दे उस अनल पे नीर
सुर तू ही शोर्य है
तू ही वो किरण है
कर्म पथ पे चल जरा
कहा तेरे चरण है
बेधने से क्यों डर रहा
फाड़ दे उस घटा की…
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Added by ritesh singh on August 23, 2010 at 4:30am —
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मुक्तिका:
समझ सका नहीं
संजीव 'सलिल'
*
*
समझ सका नहीं गहराई वो किनारों से.
न जिसने रिश्ता रखा है नदी की धारों से..
चले गए हैं जो वापिस कभी न आने को.
चलो पैगाम उन्हें भेजें आज तारों से..
वो नासमझ है, उसे नाउम्मीदी मिलनी है.
लगा रहा है जो उम्मीद दोस्त-यारों से..
जो शूल चुभता रहा पाँव में तमाम उमर.
उसे पता ही नहीं, क्या मिला बहारों से..
वो मंदिरों में हुई प्रार्थना नहीं सुनता.
नहीं फुरसत है उसे…
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Added by sanjiv verma 'salil' on August 22, 2010 at 3:25pm —
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एक दिन मै अकेले बैठा था, वीरान जगह, सुनसान जगह|
और सोच रहा था ये दुनिया आखिर किस चीज से चलती है||
याद आया दिन कालेज का तब, मार पड़ी थी जब मुझको|
ये बता न पाया था धरती, डिग्री पे झुक के चलती है||
मुझे मार पड़ी थी उस दिन भी, घंटा गणित का था शायद|
कुछ डिग्री कोण न बना सका, ये बात अभी तक खलती है||
इक चंचल चितवन की लड़की, जो प्यार मुझी…
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Added by आशीष यादव on August 21, 2010 at 11:30pm —
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सावन की ये अंजोरिया
झिलमिलाते चाँद -तारे
बादलों की आड़ से
लुक्का छिप्पी खेलते सारे
हलके हलके घनो से
हल्की बूंदों की रिमझिम
हर्षित मन को लगते न्यारे
शनै: शनै: पवन के झोखे
नीम पीपल आम के पत्ते
झींगुर के साथ और रतजगे
मिलकर किए निर्मित
कर्णप्रिये ध्वनि है मिश्रित
बसुधा से मिलन को बेताब
वो बूंद अम्बर से
आकर पत्तों पर गिरती
तब धरा को सर्वस्व मानकर
उससे आलिंगन करती
धरा और नभ के मिलन…
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Added by ritesh singh on August 21, 2010 at 4:11pm —
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राम और रावण
दोनों बसते है ...
मेरे /आपके हृदय में ॥
दोनों में चलता रहता है ...
एक युध्ध ...अहर्निश ॥
कभी राम सबल होता है
तो कभी रावण ॥
सुबह उठता हू ...
नित्य क्रिया कर
भगवान् की मूर्ति के सामने
आरती गाता हू
धुप जलाता हू ....
तब मेरा राम सबल रहता है
भिखारी को दान देना अच्चा लगता है
वृद्ध माता -पिता पूजनीय लगते है
सबसे प्रेम से बातें करता हू ....
जैसे -जैसे दिन बीतता है ...
झूठ /धोखा /बेईमानी…
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Added by baban pandey on August 21, 2010 at 2:08pm —
3 Comments
प्रगति की गति उसकी धमनी में रक्त बन चले हैं,
सर ढककर ,शोहरत की शौपिंग कर रही है,
लक्की बैम्बू लगा किस्मत सवांर रही है,
किचन में किचन इकोनोमी प्रयोग कर रही है,
कभी हॉट,कभी कूल,कभी प्रीटी लग रही है,
पजामा पार्टी में मनचले गप्पे मरते हुए ,
सामाजिक मुद्दों की परिचर्चा में भाग ले रही है,
मेहनत के टैक्स देकर,सपनों को पूरा कर रही है,
ख्वाहिशों की होम डेलिवेरी घर बैठे ले रही है,
राठौर जैसे मनचलों से लड़ रही है,
कल्पना के आकाश इ एक नाजो-अदा से उड़से रही…
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Added by alka tiwari on August 21, 2010 at 1:07pm —
6 Comments
निवेदन:
आत्मीय !
वन्दे मातरम.
जन्म दिवस पर शताधिक मंगल कामनाएँ भाव विभोर कर गयी. सभी को व्यक्तिगत आभार इस रचना के माध्यम से दे रहा हूँ.
मुझसे आपकी अपेक्षाएँ भी इन संदेशों में अन्तर्निहित हैं. विश्वास रखें मेरी कलम सत्य-शिव-सुन्दर की उअपसना में सतत तत्पर रहेगी. विश्व वाणी हिन्दी के सभी रूपों के संवर्धन हेतु यथाशक्ति उनमें सृजन कर आपकी सेवा में प्रस्तुत करता रहूँगा.
पाँच वर्ष पूर्व हिन्दीभाषियों की संख्या के आधार पर हिन्दी का विश्व में दूसरा…
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Added by sanjiv verma 'salil' on August 21, 2010 at 9:39am —
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वो ताड़ के पत्ते
वो भोज -पत्र
वो कपडे और कागज के टुकड़े
कितने खुशनसीब है ...
जिन्होंने अपने ऊपर
गुदवाया भारत का इतिहास ॥
वो साहिल के पंखों की कलम
वो दावात
और वो स्याही
आप कितने धन्य है ....
कितने ही क्रांतिवीरों ने
स्पर्श किया आपको ॥
छूना चाहता हू , मैं भी आपको
ताकि .....
क्रांतिवीरों का थोडा सा ओज
उनके क्रांतिकारी विचार
स्थानांतरित हो सके हममे
आप सहेज कर रखे गए है
शीशे के अन्दर संग्राहलयो में ॥
Added by baban pandey on August 20, 2010 at 10:57pm —
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