मर्यादित आचरण ही,सद्चरित्र व्यवहार,
सद्चरित्र व्यवहार से,हो दर्शन करतार //
कर दर्शन करतार के, सदाचार सोपान,
सदाचार सोपान से, होगा बेडा पार //
होगा बेडा पार तब,परहित तेरे कर्म,
परहित तेरे कर्म हो, उसेही मनो धर्म //
पुरुषोत्तमश्री राम का, है मर्यादित चरित्र,
अनुशासित नित्कर्म, है आचरण पवित्र //
जीवन दर्शन तत्व को,कृष्ण ही समझाय
युक्ति संगत करम को, कर्मयोगी बतलाय //
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 31, 2012 at 11:30am — 16 Comments
सौन्दर्य तुम्हारा प्रियतमे, सप्तसुर संगीत है!
धरती-गगन संयुक्तता सा, प्रेम अपना गीत है!
संसार ये अतिशय है तप्त, मै बहुत संतप्त हूं!
संतप्तता के इस गहर में, संग तुम तो शीत है!
जग क्षितिज पर पाषाणता के, है तुम्हे भी कष्ट दे!
परन्तु उसी जग हेतु तुममे, शेष अति नवनीत है!
तुम नित करो नवनीत वर्षण, जग बदल सकता नही!
पाषाण मानव के ह्रदय में, कृतघ्न एक रीत है!
सत्प्रेमता का इस मनुज में, भाव कोई है नही!
सो…
Added by पीयूष द्विवेदी भारत on August 30, 2012 at 11:30am — 8 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 29, 2012 at 10:04pm — 5 Comments
Added by VISHAAL CHARCHCHIT on August 27, 2012 at 3:00pm — 26 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 25, 2012 at 1:02pm — 7 Comments
Added by Abhinav Arun on August 25, 2012 at 11:41am — 10 Comments
Added by Abhinav Arun on August 25, 2012 at 11:30am — 17 Comments
जिंदगी एक रेल होती है
ये न समझो कि खेल होती है।
जिंदगी का सफर बहुत लम्बा,
रूक गये तो ये फेल होती है।
वो जहाँ चाहे मोड दे हमको,
हाथ उसके नकेल होती है।
आजकल जिंदगी की भागमभाग,
पानी कम ज्यादा तेल होती है।
आज कानून ही बदल गया है,
बोल दो सच तो जेल होती है।
अब तो राशन की लाइने या सडक,
हर जगह धक्का पेल होती है।।।।
सूबे सिंह सुजान
Added by सूबे सिंह सुजान on August 24, 2012 at 11:00pm — 10 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on August 24, 2012 at 7:12pm — 19 Comments
जो तुम बोलते हो क्या सिर्फ वही है भाषा ?
मैं जब सोचती हूँ तुम्हें
और खोती हूँ ,
तुम्हारे ख्यालों में ,
सपने सजाती हूँ नयनों में ,
और मुझे बहुत दूर जहाँ
के पार ले जाते है मेरे सपने
वहां जहाँ कोई नही होता मेरे पास
मैं नहीं खोलती अपना मुंह
फिर भी मैं बतयाती हूँ
फूलों से,तितलियों से, बहारों से
और तुमसे .
मेरे अहसास में होते हो तुम ,
बिन बोलें करती…
Added by Naval Kishor Soni on August 24, 2012 at 5:30pm — 8 Comments
नींबू अदरक लहसुना, सिरका-सेब जुटाय,
सारे रस लें भाग सम, मिश्रित कर खौलाय.
मिश्रित कर खौलाय, बचे तीनों चौथाई.
तब मधु लें समभाग, मिला कर बने दवाई.
'अम्बरीष' नस खोल, हृदय दे, महके खुशबू.
नित्य निहारे पेय, तीन चम्मच भल…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on August 22, 2012 at 7:30pm — 16 Comments
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तुम हकीकत हो
या ख़्वाब?
बतादो ना.
अरज है मेरी
ज़नाब
बतादो ना.
तुम्हारे ही ख़्वाबों में
मैं जीता हूँ,तुम्हारी आँखों से ही
मैं पीता हूँ.
तुम अमृत हो
या शराब ?
बतादो ना.
अपनी जिंदगी का अक्स
तुम्हीं में देखता हूँ,
अपनी जिंदगी के मायने
तुम्हीं में पढता हूँ.
तुम आईना हो
या किताब?
बतादो ना.
जिंदगी के समंदर का
ज्वार भी तुम हो,
मेरी कश्ती और
पतवार भी तुम हो.
तुम सवाल हो
या…
Added by अशोक पुनमिया on August 20, 2012 at 2:55pm — 11 Comments
कवि तेरे भी
कवि तेरे भी मन में
कोई तो विरहिणी
रहती है
श्वेत शीत पड़ी
किरण देह सी…
Added by राजेश 'मृदु' on August 14, 2012 at 10:30pm — 6 Comments
घनाक्षरी :
शीश हिमगिरि बना, पांव धोए सिंधु घना,
माँ ने सदा वीर जना, देश को प्रणाम है |
ब्रम्हचर्य जहाँ कसे, आर्यावर्त कहें इसे,
चार धाम जहाँ बसे, देश को प्रणाम है |
वाणी में है रस भरा, शस्य श्यामला जो धरा,…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on August 13, 2012 at 2:00am — 15 Comments
मित्रों, एक ताज़ा ग़ज़ल पेश -ए- खिदमत है ....
जाल सय्याद फिर से बिछाने लगे
क्या परिंदे यहाँ आने जाने लगे
खेत के पार जब कारखाने लगे
गाँव के सारे बच्चे कमाने…
Added by वीनस केसरी on August 12, 2012 at 11:30pm — 10 Comments
जो कह गए शहीद, चलो उसको दुहराएँ |
आजादी का पर्व, आओ मिलकर मनाएँ ||
है दिन जिसको वीर, जीत कर के लाए थे,
चट्टानों को चीर, मौत से टकराए थे |
कर लें उनको याद, जिन्होंने शीश कटाए,
आजादी का पर्व, आओ मिलकर मनाएँ ||…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 11, 2012 at 8:21am — 8 Comments
कान्हा कृष्णा मुरली मनोहर आओ प्यारे आओ
व्रत ले शुभ सब -नैना तरसें और नहीं तरसाओ
जाल –जंजाल- काल सब काटे बन्दी गृह में आओ…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 10, 2012 at 8:00am — 10 Comments
सारे रिश्ते देह के, मन का केवल यार
यारी जब से हो गई , जीवन है गुलज़ार
मन ने मन से कर लिया आजीवन अनुबन्ध
तेरी मेरी मित्रता स्नेहसिक्त सम्बन्ध
मित्र सरीखा कौन है, इस…
Added by Albela Khatri on August 5, 2012 at 1:00pm — 38 Comments
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 3, 2012 at 10:00pm — 12 Comments
कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है॥
तो फिर लम्हों में सदियों का भरोसा टूट जाता है॥
भले जुड़ जाये समझौते से पहले सा नहीं रहता,
मुहब्बत का अगर इक बार शीशा टूट जाता है॥
क़ज़ा की आंधियों के सामने टिकता नहीं कोई,
सिकंदर हो कलंदर हो या दारा टूट जाता है॥
कभी हिम्मत नहीं हारा जो मीलों मील उड़कर भी,
कफ़स में क़ैद होकर वह परिंदा टूट जाता है॥
यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,
मगर…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on August 3, 2012 at 5:00pm — 15 Comments
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