आज कौन शेर है ... ?
सब हैं गीदड ...और ...
शेरनियों से शादी रचाए बैठे हैं ...
वो गुर्राया करती हैं ...
हम दुबके पड़े रहते हैं ...
घर से निकल कर कैसे कह दूँ ?
चौका-चूल्हा, बर्तन-भांडे ...
थे कभी जो उनके हिस्से ...
आते हैं अब मेरे हिस्से ...
कोमला, निर्मला, सौंदर्या ...
अबला, पीड़ित, कुचली, प्रताड़ित ...
कितने ही उपमान पाए इन्होने ...
सभी जानते हैं असलियत इनकी ...
कौन चाहता लाँघ…
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Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on September 17, 2010 at 9:00pm —
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दोहा सलिला:
नैन अबोले बोलते.....
संजीव 'सलिल'
*
*
नैन अबोले बोलते, नैन समझते बात.
नैन राज सब खोलते, कैसी बीती रात.
*
नैन नैन से मिल झुके, उठे लड़े झुक मौन.
क्या अनकहनी कह गए, कहे-बताये कौन?.
*
नैन नैन में बस हुलस, नैन चुराते नैन.
नैन नैन को चुभ रहे, नैन बन गए बैन..
*
नैन बने दर्पण कभी, नैन नैन का बिम्ब.
नैन अदेखे देखते, नैनों का प्रतिबिम्ब..
*
गहरे नीले नैन क्यों, उषा गाल सम लाल?
नेह नर्मदा…
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Added by sanjiv verma 'salil' on September 17, 2010 at 6:30pm —
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कांपते हाथों से
वह साफ़ करता है कांच का गोला
कालिख पोंछकर लगाता है जतन से ..
लौ टिमटिमाने लगी है ..
इस पीली झुंसी रोशनी में
उसके माथे पर लकीरें उभरती हैं
बाहर जोते खेत की तरह
समय ने कितने हल चलाये हैं माथे पर ?
पानी की टिपटिप सुनाई देती है
बादलों की नालियाँ छप्पर से बह चली हैं
बारह मासा - धूप, पानी ,सर्दी को
अपनी झिर्रियों से आने देती
काला पड़ा पुआल तिकोना मुंह बना
हँसता है
और वह…
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Added by Aparna Bhatnagar on September 17, 2010 at 5:00pm —
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शरमाये अपनी दास्तां पर ऐसा हाल न हो
नक़्दो - नजर खुद से कोई सवाल न हो
गौर फरमा ऐ दिल कदम उठाने से पहले
कि बाद में तुझको कोई मलाल न हो
करे जुवां दिलकश ब्यां जो खुले यह कभी
टूटे न दिल किसी का जीना मुहाल न हो
न कर नापाक करतूतों से दा़गदारे जिन्दगी
जाने फिर मुस्तकबिल तेरा खुशहाल न हो
सैकड़ों सांसे पास में चंद गमों से न धबरा
क्या फायदा जिन्दगी से जो इस्तेमाल न हो
दे मुकाम जिन्दगी को एक पहचान तुं शरद
वो वजूद कैसा…
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Added by Subodh kumar on September 17, 2010 at 4:00pm —
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मानवाधिकार का क्या मतलब है ! मानवाधिकार दो शब्दों से मिलकर बना है, मानव + अधिकार अर्थात मानव से सम्बन्धित अधिकार ! मानवाधिकार के अन्तर्गत वे सब अधिकार मानव को प्राप्त है , जिसका वह स्वतंत्र रूप से अधिकारी है ! आज के इस बदलते परिवेश में जहा मानव मूल्यों का हास हो रहा है ! वहा मानवाधिकारों का हनन होता जा रहा है ! चाहे वह सरकार के प्रशासन में जेल में कैदियों के साथ व्यवहार हो , समाज में फैली अनैतिकता , या फिर घरेलू हिंसा हो हर जगह पर मनुष्य के अधिकारों का हनन हो रहा है ! आज भारत के आजादी के ६ दशक…
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Added by Pooja Singh on September 17, 2010 at 1:58pm —
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अधीरता
व्यग्र हो अधीर हो,कौतुक हो जिज्ञाशु हो ,
जोड़ ले पैमाना उत्थान का,
घटा ले पैमाना पतन का,
हुआ वही जो होना था,
होगा वही जो तय होगा,
परिणिति शास्वत विनिश्चित है ,
ईश्वरीय परिधि में,
मानवीय स्वाभाव न बदला है,न बदलेगा,
होगा वही जो होना है, शाश्वत युगों से.
....अलका तिवारी
Added by alka tiwari on September 16, 2010 at 3:35pm —
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जब तक दुसरो के लिए जिया सब बोले हमारा हैं ,
अपना काम पड़ा तो समझ में आया कौन हमारा हैं ,
मैं अपना तन और धन दुसरो पे जब तक लुटाता हु ,
दोस्त मिलते हैं लाखो खुद सबके नजदीक पाता हु ,
पॉकिट खाली छाया कंगाली गया दोस्तों की हुजूम ,
वही जो आगे पीछे घुमा करते थे अब कहते हैं तुम ,
गुरु ज़माने को पहचान जब तक हैं दम तब तक ही ,
नहीं तो लोग हाथ झटक चल देंगे साथ था अब तक ही ,
ले प्रभु का नाम उसी को सहारा बना ओ साथ देगा ,
अंत समय जब तेरा अपना ना होगा तो पाड़ करेगा…
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Added by Rash Bihari Ravi on September 16, 2010 at 3:29pm —
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हमे खाना नहीं मिलता हैं ,
अब जीना मुस्किल हो रहा ,
बाह रे हिंद के सासक ,
हम खाए बिना मरते हैं ,
आप के अन्य सड़ अब रहा ,
सडा कर आप मंगवाएंगे ,
बिक्री के लिए टेंडर ,
सस्ते में निकल जायेगा ,
ये अनाज सब सड़ कर ,
हुजुर सड़े हुए से भी ,
अपना पेट भर जाता हैं ,
आप हमें बर्बाद करने की ,
जुगत अच्छी बनाई हैं ,
शराब बनेगे इन सब की ,
जिसको आप ने सडाइ हैं
आप ही सोचो हम गरीबो पे ,
दोहरा माड पर जाता हैं ,
एक दिन बाजार में जब…
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Added by Rash Bihari Ravi on September 16, 2010 at 1:00pm —
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शर्म का घाटा
मिलावट का एक और खुलासा
मिलावट खोरों को शर्म का घाटा
शहद में मीठा ज़हर मिलाया
जिसनें भी खाया वोह पछताया
देश की नामीं बारह कम्पनियों में से
ग्यारह के सैम्पल में पाया
जन्म से लेकर मृत्यु तक
शहद का होता है उपयोग
किसको पता था मिटेंगे नहीं
लग जाएँगे और भी रोग
रामदेव बाबा जी के शहद से लेकर
डाबर तक यह पाया गया
मीठे मीठे चटकारों से
हम सबको बहलाया गया
सूली पर लटका दो सबको
या फिर मार दो गोली
जिस जिसनें…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 16, 2010 at 12:30pm —
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फूलो की बहार है जिन्दगी,
काटो भरी सफर है जिन्दगी,
है जिन्दगी पर एक मकाम है यह जिन्दगी !
ये जिन्दगी एक अनकही पहेली है ,
जो समझ के भी समझ में न आये ,
ये जिन्दगी है, अनकही जिन्दगी !!
यह जिन्दगी है ,
सुबह से शाम है,
यह जिन्दगी हर एक नई सुबह है ,
यह जिन्दगी !
जिन्दगी जीने का नाम है ,
जीने की चाहत है ,
जिन्दगी हर दिन एक नया पैगाम है,
यह जिन्दगी !
इस जिन्दगी के सफर में,
जो पीछे छुट गया वह नही मिलता है ,
जो मिलता है,…
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Added by Pooja Singh on September 16, 2010 at 11:00am —
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अभियंता दिवस पर मुक्तिका:
हम अभियंता
अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल'
*
कंकर को शंकर करते हैं हम अभियंता.
पग-पग चल मंजिल वरते हैं हम अभियंता..
पग तल रौंदे जाते हैं जो माटी-पत्थर.
उनसे ताजमहल गढ़ते हैं हम अभियंता..
मन्दिर, मस्जिद, गिरजा, मठ, आश्रम तुम जाओ.
कार्यस्थल की पूजा करते हम अभियंता..
टन-टन घंटी बजा-बजा जग करे आरती.
श्रम का मन्त्र, न दूजा पढ़ते हम अभियंता..
भारत माँ को पूजें हम नव निर्माणों…
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Added by sanjiv verma 'salil' on September 16, 2010 at 10:17am —
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आत्मीय!
यह मुक्तिका १०.९.१० को भेजी थी. दी गयी पंक्ति न होने से सम्मिलित नहीं की गयी. संशोधन सहित पुनः प्रेषित.
तरही मुक्तिका::
कहीं निगाह...
संजीव 'सलिल'
*
कदम तले जिन्हें दिल रौंद मुस्कुराना है.
उन्ही के कदमों में ही जा गिरा जमाना है
कहीं निगाह सनम और कहीं निशाना है.
हज़ार झूठ सही, प्यार का फसाना है..
न बाप-माँ की है चिंता, न भाइयों का डर.
करो सलाम ससुर को, वो मालखाना है..
पड़े जो काम तो तू बाप गधे को कह…
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Added by sanjiv verma 'salil' on September 16, 2010 at 9:19am —
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याद है मुझे !
पिछला सावन
जमकर बरसी थी
घटाएँ
मुस्कुरा उठी थी पूरी वादीयाँ
फूल, पत्तियां मानो
लौट आया हो यौवन
सब-कुछ हरा-भरा
भीगा-भीगा सा
ओस की बूँदें
हरी डूब से लिपट
मोतियों सी
बिछ गई थी
हरे-भरे बगीचे में
याद है मुझे !
गिर पडा था मैं
बहुत रोया
माँ ने लपक कर
समेट लिया था
उन मोतियों को
अपने आँचल में
मेरे छिले घुटने पे
लगाया था मरहम
पौंछ कर मेरे आँसू और
मुझे बगीचे… Continue
Added by Narendra Vyas on September 15, 2010 at 10:16pm —
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तोड़ना जीस्त का हासिल समझ लिया होगा
आइने को भी मेरा दिल समझ लिया होगा
जाने क्यूँ डूबने वाले की नज़र थी तुम पर
उसने शायद तुम्हे साहिल समझ लिया होगा
चीख उठे वो अँधेरे में होश खो बैठे
अपनी परछाई को कातिल समझ लिया होगा
यूँ भी देता है अजनबी को आसरा कोई
जान पहचान के काबिल समझ लिया होगा
हर ख़ुशी लौट गई आप की तरह दर से
दिल को उजड़ी हुई महफ़िल समझ लिया होगा
ऐ तपिश तेरी ग़ज़ल को वो ख़त समझते हैं
खुद को हर लफ्ज़ में शामिल समझ…
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Added by jagdishtapish on September 15, 2010 at 7:12pm —
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कुछ न कुछ
मेरे शे-रों में कुछ न कुछ तो ज़रूर रहा होगा
वर्ना अश्क आपके,इस कदर न छलकते
अंधेरों में ही सही,चिराग जलाने चले आते हो
वर्ना मेरी मजार के आसपास,इस कदर बेबस न भटकते
मायूस होकर ना देखते,बंद फाइलों में तस्वीरें मेरी
मेरी यादों के लिए,इस कदर ना तरसते
यह तो 'दीपक कुल्लुवी' का वादा था याद रखेंगे
आप तो बेवफा थे,इस कदर बेवजह ना बदलते
दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'
०९१३६२११४८६
१५/०९/२०१०
Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 15, 2010 at 11:16am —
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नवगीत:
संजीव 'सलिल'
*
*
अपना हर पल
है हिन्दीमय
एक दिवस
क्या खाक मनाएँ?
बोलें-लिखें
नित्य अंग्रेजी
जो वे
एक दिवस जय गाएँ...
*
निज भाषा को
कहते पिछडी.
पर भाषा
उन्नत बतलाते.
घरवाली से
आँख फेरकर
देख पडोसन को
ललचाते.
ऐसों की
जमात में बोलो,
हम कैसे
शामिल हो जाएँ?...
हिंदी है
दासों की बोली,
अंग्रेजी शासक
की…
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Added by sanjiv verma 'salil' on September 15, 2010 at 7:54am —
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आज हिन्दी दिवस है . लेकिन क्या हम सही मायने में हिन्दी को वो सम्मान दे पा रहे है जो चाहिये, आज हिन्दी केवल कहने मात्र की राष्ट्र भाषा रह गई है | आज के युग में जहाँ हर तरफ पश्चिमी सभ्यता का चलन है इसलिये हमे हिन्दी का अस्तित्व बचाने के लिए बहुत प्रयास करना होगा तभी हिन्दी की गरिमा बच सकेगी और हिन्दी सही मायने में भारत की राष्ट्र भाषा बन सकेगी |
जय हिंद |
Added by Pooja Singh on September 14, 2010 at 5:30pm —
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कल की बाते हुई पुरानी ये तो दुनिया मानी ,
देश की खातिर जान देते हैं हम हिन्दुस्तानी ,
आलग थलग हम बटे हुए थे छोटे छोटे राजो में ,
दम थी अपनी अपनी अलग अलग आवाजो में ,
मगर न थी एकता जो सब हमपे की मनमानी ,
देश की खातिर जान देते हैं हम हिन्दुस्तानी ,
समझ में आई बीत चूका आये मुंगल और अंग्रेज ,
त्राहिमाम हम कर रहे थे भूलने लगे मतभेद ,
अलग अलग जो हम बटे थे आये एक धारा में ,
पूरा हिदुस्तान हमारा बुलंदी आई इस नारा में ,
मर मिटने पर तैयार हुई एक टोली…
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Added by Rash Bihari Ravi on September 14, 2010 at 3:41pm —
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:::::
हिंदी दिवस :::::
::::: (
क्या इस दिवस का नाम लेने भर की भी हैसियत है हमारी ?) :::: ©
हिंदी हिंदी हिंदी !!!
► . . . आज सभी इस शब्द केपीछे पड़े हैं, जैसे शब्द न हुआ तरक्की पाने अथवा नाम कमाने का वायस हो गया l खुद के बच्चे अंग्रेजी स्कूल में चाहेंगे और शोर ऐसा कि बिना हिंदी के जान निकल जाने वाली है l अरे मेरे बंधु यह दोगलापन किसलिए ? स्वयं को धोखा किस प्रकार दे लेते हैं हम ? किसी से बात करते समय खुद को अगर ऊँचे…
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Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on September 14, 2010 at 1:30pm —
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दो शब्द हिन्दी दिवस पर: 14 सितम्बर की बधाई
हिम तुल्य शितल, न्याय तुल्य निश्चल, दीप तुल्य उज्जवल
तीन अक्षर का संगम हिन्दी! सुबोध भाव अति निर्मल
अभिन्न भेष-भुषा सस्ंकृति से मान बढ़े लोकप्रियता का
केवल नागरिकता नहीं उचित परिचय राष्ट्रीयता का
भारतीयता का पूर्णतः प्रतीक हिन्दी बोल विशिष्ट विमल
वर्णित भारतीय सविंधान में है प्रस्तावना का प्रालेख
स्वीकृति सम्पूर्ण भारत में हो हिन्दी नियमित उल्लेख
कारण कई उत्तमता का लिपि सहज सरस सरल
गगन…
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Added by Subodh kumar on September 14, 2010 at 7:00am —
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