मदिरा मत समझो मुझे , नहीं नशे की चीज़
एक दीवानी प्रेम की , प्रेम से जाओ भीज
Added by Ashish Srivastava on September 16, 2013 at 1:00pm — 5 Comments
दहेज प्रथा
सामाजिक पतन
कैसी ये व्यथा !!
भ्रूण संहार
अंसतुलित हम
गिरता स्तर !!
घना कोहरा
छायी उदासीनता
न हो सवेरा !!
उम्र नादान
विलक्षण प्रतिभा
छू आसमान !!
कड़वा सच
गिरती नैतिकता
देख दर्पण !!
मौलिक व अप्रकाशित
(प्रवीन मलिक)
Added by Parveen Malik on September 16, 2013 at 12:30pm — 18 Comments
--------------------
बेशर्म लोगों की
बड़ी -बड़ी फ़ौज है
चोर हैं उचक्के हैं
लूट रहे मौज हैं
----------------------
थाने अदालत में
'चोर' बड़े दिखते हैं
नेता के पैरों में
'बड़े' लोग गिरते हैं
---------------------
बूढा किसान साल-
बीस ! आ रगड़ता है
परसों तारीख पड़ी
कहते 'वो' मरता है
------------------------
बाप की पगड़ी में
'भीख' मांग फिरता है
'नीच' आज नीचे…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 16, 2013 at 10:30am — 14 Comments
मुजरिम मैं नहीं पर मुफ़लिसी गोयाई छीन लेती है
दौलत आज भी इन्साफ की बीनाई छीन लेती है
हैं जौहर आज भी मुझ में वही तेवर भी हैं लेकिन
सियासत अब मेरे हाथों से रोशनाई छीन लेती है
नफरत थक गयी दामन मेरा मैला न कर पाई
मोहब्बत मेरे दामन से हर रुसवाई छीन लेती है
यही रहज़न कभी रहबर हुआ करता था बस्ती का
ग़रीबी रंग में आती है तो अच्छाई छीन लेती है
~सालिम शेख
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by saalim sheikh on September 15, 2013 at 10:02pm — 20 Comments
(आज से करीब ३१ साल पहले: साहित्य और आध्यात्म)
मैट्रिक की परीक्षा शेष होने के बाद के खालीपन में मैं अक्सरहा या तो हिंदी साहित्य की किताबे पढ़ने लगा हूँ या अध्यात्म की. दोनों ही तरह की किताबों की कोई कमी नहीं है हमारे घर में. ये मुझे मेरे नाना, मेरे पिता, मेरे मंझले चाचा, एवं मेरे बड़े भाई जो मुझसे उम्र में करीब १३-१४ साल बड़े हैं, से विरासत में मिली हैं. साहित्य में जहां टैगोर, शरतचंद्र, प्रेमचंद्र, टॉमस हार्डी जैसे कथाकारों की किताबें भरी पडी हैं वहीं अध्यात्म एवं दर्शन में…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 15, 2013 at 10:00pm — 8 Comments
1.बीता हिन्दी दिवस भी, मना लिए सब जश्न!
न्याय लेख भी हो हिंदी, कौन करेगा प्रश्न!
2.नियम सरलता से बने, सब कुछ हो स्पष्ट
तर्क कुतर्क न बन जाय, बने वकील न भ्रष्ट.
3.मूल्य कर्म अनुरूप हो, हो न कोइ कंगाल.
दोउ हाथ दो पैर सम, अलग क्यों हो भाल!
4.मिहनत से धन आत है, बिन मिहनत धन जात.
मिहनत कर ले रे मना, काहे नहीं बुझात!
5.अहंकार को त्याग कर, करिए सदा सत्कर्म,
सोने की लंका गयी, बूझ न रावण मर्म.
6.नारी को सम्मान कर, नारी शक्ति महान
…
Added by JAWAHAR LAL SINGH on September 15, 2013 at 8:32pm — 12 Comments
अजीब विडम्बना है
कि अपने दुखों का कारण
अपने प्रयत्नों में नहीं खोजते
बल्कि मान लेते हैं
कि ये हमारा दुर्भाग्य है
कि ये प्रतिफल है
हमारे पूर्वजन्मों का...
अजीब विडम्बना है
जो मान लेते हैं हम
ब-आसानी उनके प्रचारों को
कि तंत्र-मन्त्र-यंत्र,
तावीजें-गंडे
शरीर में धारण कर लेने मात्र से
दूर हो जाएंगे हमारे तमाम दुःख !
अजीब विडम्बना है
लम्बी-लम्बी साधनाओं का
तपस्या का
मार्ग जानते हुए भी
हम…
Added by anwar suhail on September 15, 2013 at 8:24pm — 3 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on September 15, 2013 at 6:41pm — 2 Comments
अर्द्ध रजनी है , तमस गहन है,
आलस्य घुला है, नींद सघन है.
प्रजा बेखबर, सत्ता मदहोश है,
विस्मृति का आलम, हर कोई बेहोश है.
ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?
रंगशाला रौशन है, संगीत है, नृत्य है,
फैला चहुँओर ये कैसा अपकृत्य है.
जो चाकर है, वही स्वामी है
जो स्वामी है, वही भृत्य है .
ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?
बिसात बिछी सियासी चौसर की
शकुनी के हाथों फिर पासा है .
अंधे, दुर्बल के हाथों सत्ता…
ContinueAdded by Neeraj Neer on September 15, 2013 at 4:30pm — 16 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on September 15, 2013 at 3:15pm — 14 Comments
भाषा
भाषा अभिव्यक्ति का ऐसा साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों और भावों को प्रकट करता है और दूसरों के विचार और भाव जान सकता है।
संसार में अनेक भाषाएँ हैं, जैसे- हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, बँगला, गुजराती, पंजाबी, उर्दू, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, फ्रैंच, चीनी, जर्मन इत्यादि।
भाषा दो रूपों में प्रयुक्त होती है- मौखिक और लिखित। परस्पर…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on September 15, 2013 at 2:30pm — 15 Comments
वज्न : २१२२, २१२२, २१२
दूरियों का ही समय निश्चित हुआ,
कब भला शक से दिलों का हित हुआ,
भोज छप्पन हैं किसी के वास्ते,
और…
Added by अरुन 'अनन्त' on September 15, 2013 at 11:27am — 56 Comments
वो जन्नत है,वो रहमत है,वो मेराज-ए-मोहब्बत है
समंदर मेँ कहाँ, जो माँ की ममता में है गहराई
उसी की तरबियत से इस चमन में फूल खिलते हैँ
बिना मरियम के क्या ईसा और ईसा की मसीहाई
-सालिम शेख
मौलिक व अप्रकाशित
Added by saalim sheikh on September 15, 2013 at 10:59am — 5 Comments
!!! फकीरी में विरासत है !!!
जगो जालिम बढ़ो देखो
मिलन की र्इद आयी है,
दिवा से शाम तक सजदा
रात में तीर कसता है।
भुलाकर प्रेम की बातें
बढ़ाता द्वेष भावों को,
खुदा की शान को गाये
संभाले दीन की राहें।
मगर आयत भुला कर तू
सदा हैरान करता है,
करम है कत्ल अपनों का
बना तू पीर फिरता है।
गुनाहों को छिपाता है
खुदा को ताख में रखता,
चलाता तीर औ खंजर
नमाजी बन करे धोखा।
करे है घाव नश्तर से
छुरा…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 15, 2013 at 8:14am — 5 Comments
1 / आजादी के बाद ही हमें हिंदी को राष्ट्रभाषा, सरकारी कामकाज व न्यायालय की भाषा अनिवार्य रुप से घोषित कर देनी थी, पर अंग्रेज एवं भारत के अंग्रेजी पूजकों के बीच हुए समझौते ने और उसके बाद सत्ता पर बैठे अंग्रेजी समर्थकों ने भारत की आजादी को गुलामी का एक नया रुप दे दिया। “ तन से आजाद पर मन से गुलाम भारत का " और उसी दिन से शुरू हो गई भारत को धीरे - धीरे इंडिया बनाने की साजिश।
.
2 / आजादी के बाद सत्ता के चेहरे तो बदल गये पर चरित्र नहीं बदले। अंग्रेजों ने उन्हें पूरी तरह…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 14, 2013 at 7:00pm — 16 Comments
रामभरोसे ट्रेफिक पुलिस में हवलदार था, ड्यूटी करके वो घर में घुसते हुए अपनी पत्नी को चिल्ला कर बोला, “पार्वती, सुनो! गुड़िया को डॉक्टर को दिखाया? कुछ खांसी में फर्क पड़ा?”
उनकी पत्नी ने जवाब दिया, “सरकारी हस्पताल गयी थी, लेकिन वहां डॉक्टर साहब ने देख कर बोला कि पूरा चेकअप करना होगा, बच्ची को शाम को घर पर लाओ|”
रामभरोसे सर से लेकर पाँव तक गुस्से से तरबतर हो गया| वो पत्नी से बोला, “ये डॉक्टर बस रुपये कमाना ही जानते हैं, जनता की सेवा करना नहीं| पता है ना कि सरकारी…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 14, 2013 at 4:30pm — 12 Comments
अपनों को खोके बहुत रोता है आदमी,
यादों के जब बोझ को ढोता है आदमी.
रिश्ते जो हो न सके कामयाब सफ़र में
उन्हीं को करके याद दामन भिगोता है आदमी
पहले काटता है पेड़, जलाता है जंगलात ,
एक टुकड़ा छांव को फिर रोता है आदमी .
बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय,
पाता वही वही है जो बोता है आदमी ..
......... नीरज कुमार ‘नीर’
पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neeraj Neer on September 14, 2013 at 3:00pm — 13 Comments
"इक तो तू रोज दारू पीकर आता है, रोज समय से पहले भाग जाता है...और जो काम बताओ, उसे पूरा ही नहीं करता...ऐसा कर, कल से काम पे आना बंद कर..समझ !" रामेश्वर ने रोज रोज से तंगाकर गुस्से में कहा..
लखन ने बिना पछतावा किये, वहां से जाते हुए कहा..."अपने को क्या, सरकार इतना सस्ता राशन दे रही है, बच्चे स्कूल में दिन को खा ही आते है, घरवाली मजूरी करती ही है....अपनी बोतल...."
जितेन्द्र ' गीत '
( मौलिक व् अप्रकाशित )
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on September 14, 2013 at 1:30pm — 26 Comments
नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे
नई डगर पे अब क़दमों को मोड़ दे!!
राहों में जब
तेरी कंटक आयेंगे
उलझेंगे फिर
मन को बहुत डरायेंगे
आगे बढ़कर उस डाली को तोड़ दे
जहरीली मूलों को तू झिंझोड़ दे
नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे!!
घर के तेरे
दरवाजे भी टोकेंगे
मर्यादा की
बैसाखी से रोकेंगे
आगे बढ़कर उनके रुख को मोड़ दे
घूंघट में छुप कर शर्माना छोड़ दे
नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे!!
दुश्मन तेरे…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 14, 2013 at 1:16pm — 19 Comments
हिंदी दिवस // कुशवाहा //
----------------------------
दिन हुआ करते थे कभी अब
स्मृति कलश सजाये जाते हैं
प्रतीक रूप में चुन चुन उन्हें
नित दिवस मनाये जाते हैं
परम्परा तो स्वस्थ्य है
क्यों करें हम इनकार
इसी बहाने बनाते हम
हर दिवस को यादगार
-----------------------------
हिंदी
------------
अंग्रेजी उर्दू सौतन बनी
घर उजाड़ रही ये बहना
भारत की बिंदी है हिन्दी
देवनागरी स्वर्णिम गहना
हिंदी के गलबहियां…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on September 14, 2013 at 12:02pm — 11 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |