कभी जो मैंने गुजारे थे पल
तुम्हारे दामन में दिन-ओ-रैना
हसीं वो मंजर भुला न पाया
ग़ज़ब था तेरा मिलाना नैना
दिवानापन ले भुला के खुद को
तुम्हारी चाहत को फिरता दरदर
भटकता राहों में तन्हा ऐसे
मिले न राहत मिले न चैना
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 29, 2012 at 6:56pm — 2 Comments
=====नज्म=====
तुम्हारी भीगी पलकें
याद हैं मुझे
भीगी पलकें
झरने सी छलकीं
पिरो न पाया था
एक मोती भी
और मेरे समन्दर-ए-दिल में
बाढ़ आ गयी…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 27, 2012 at 4:41pm — 2 Comments
सुना था बुरे वक़्त में
साया भी साथ छोड़ देता है
कमबख्त बुरे वक़्त का साया
मरते दम तक साथ चिपका रहता है
कभी नहीं छोड़ता
गर एक पल भी अच्छा पल मिला
उसने चुपके से आके
यादों की सुई चुभा दी
भूल मत भूल मत
कहता हुआ
मैं हूँ तेरा कल
तेरी परछाई
तेरी तन्हाई का साथी
तेरे बुरे वक़्त का साया
साया जो कभी नहीं छोड़ता साथ
सुखों में
दुखों में हर पल
रहता है पल पल
साथ
सच्चा दोस्त हूँ मैं
बुरे वक़्त का साया…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 27, 2012 at 8:50am — 2 Comments
रखा जो आपने रुख पे नकाब हल्का हल्का सा
चमकता चाँद दिखता आफताब हल्का हल्का सा
झुकी पलकें उठी दीदाबराई करने के खातिर
हया छलकी बढाने को शबाब हल्का हल्का सा
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 25, 2012 at 11:34am — 2 Comments
"मन"
सुबह सुबह
चिड़ियों का कलरव
झरने का कलकल
ठंडी हवाओं के झोंके लयबद्ध तान
कोयल की कूक
मुर्गे की बांग
ये सब संगीत है या शोर
प्रकृति का
ये सब मन की दशा पे निर्भर है
कभी ये सब संगीत लगता है
पटरी पे दौड़ती
सरपट लोहपथगामिनी का
चीखता निनाद भी
और कभी इक सुई का गिरना भी
कर्कश स्वर सा
शोर सा
मन स्वाभविक वृत्तियों में जकड़ा हुआ है
किन्तु है…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 24, 2012 at 1:59pm — 10 Comments
मान जाओ न
मचल उठता है
ये ह्रदय
जब आती है
दूर कहीं से कोयल की
कूक सी मीठी
सदा
पीपल के पत्तों की तरह …
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 22, 2012 at 11:30am — 3 Comments
===========ग़ज़ल=============
ग़मों के दौर में जब मुस्कुराने का हुनर आया
हमें बंजर जमीं पे गुल खिलाने का हुनर आया
भरोसा तोड़ कर तुमने दिया हर बार धोखा यूँ
मुसलसल चोट खाकर आजमाने का हुनर आया
खुदा होता निहां है पत्थरों में मान बैठा…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 20, 2012 at 12:45pm — 9 Comments
============ग़ज़ल=============
लगा है वक़्त कितना ये हसीं दुनिया बसाने में
बफा औ इश्क के खातिर सभी वादे निभाने में
भरोसा उठ चुका है दोस्ती के नाम से लोगो
लगा है यार को ही यार अब तो आजमाने में
जिगर के जख्म पर भी वाह वाही दी मुझे…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 19, 2012 at 2:49pm — 8 Comments
हिंदी दिवस की शुभकामनाओं सहित ये रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ
ये गंगा सी निर्मल पावन ये स्वर रुपी कालिंदी है
इस जग में जो सबसे सुन्दर वो मेरी भाषा हिंदी है
ये सुन्दर सरल सजीली है,
भाषा ये बहुत सुरीली है
ये नव रस और छंदों से युक्त
मन भावन मधुर पतीली है
ये भारत माँ के माथें में सूरज सी दमके बिंदी है
इस जग में जो सबसे सुन्दर वो मेरी भाषा हिंदी है
ये प्रेम की मीठी भाषा है
भारत की प्राण पिपासा…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 14, 2012 at 1:02pm — 7 Comments
न सूरज पश्चिम से ऊगे , न पूरव में होगा ढलना
इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना
तुम फेसबुक की टाइम लाइन
मैं ऑरकुट बहुत पुराना हूँ
तुम काजू किशमिश के जैसे
मैं तो बस चना का दाना हूँ
तुम अमरीका के डालर…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 13, 2012 at 12:14pm — 16 Comments
"लिखते लिखते"
जमीं पे चाँद तारे
सूरज
सब हैं दिखते
लिखते लिखते
नदियाँ, पहाड़, झरने
हाथी-घोड़ा
शेर, भालू, हिरने
कभी सजर
कभी…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 12, 2012 at 1:56pm — 11 Comments
दोपहर शाम शब् सहर जन्नत
हर घडी आ रही नज़र जन्नत
वक्ते फुरकत लगा जहन्नम सा
खंडहर हो गया है घर जन्नत
भूलना आपको हुआ मुश्किल
याद कर कर के हर पहर जन्नत
जिन्दगी किस तरह जियें तुझको…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 11, 2012 at 2:08pm — 4 Comments
शाम जन्नत हुई सहर जन्नत
आप आये हुआ ये घर जन्नत
जो पड़े हैं कदम तुम्हारे यूँ
हो गया है मेरा शहर जन्नत
राह मुश्किल भरी रही लेकिन
आपके साथ था सफ़र जन्नत
ख्वाब क्या और क्या हकीकत में…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 10, 2012 at 3:00pm — 16 Comments
"मौलिक संतान"
कोख
माँ की कोख
प्यारी न्यारी
जीव का प्रारंभ
उसकी जन्नत
माँ की कोख
सबसे खूबसूरत
कोई शै नहीं
इस सारे जहाँ…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 10, 2012 at 1:25pm — 2 Comments
संदली नाजुक बदन या बोलती तस्वीर है
आयतें खामोशियाँ हैं शर्म ये तफ़सीर है
सर्द हैं जुल्फों के साए सोज साँसों में भरी
कातिलाना है अदा या ख्वाब की ताबीर है
ये गजाली चश्म तेरे श्याह गहरी झील से
औ तबस्सुम होंठ पे जैसे कोई शमशीर है…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 6, 2012 at 4:05pm — 5 Comments
"जबाब नहीं है ख़ामोशी "
जबाब नहीं है ख़ामोशी
सब जानते हैं
इसमें तो छुपा होता है
गलतियाँ स्वीकारने का हाँ
कसमसाहट भरी वो हाँ
जो हाँ कहने पर
जुबान शर्मशार हुई जाती है…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 5, 2012 at 1:25pm — 4 Comments
रात थकती बुझ रही रोशन दिये की खोज में
जल रहे हैं जाम खाली साकिये की खोज में
लिख दिए किरदार सारे पड़ गये हैं नाम पर
है अधूरी ये कहानी बाकिये की खोज में
हार कर इंसान खुद से आदमीयत खोजता
जिन्दगी बेचैन फिरती हाशिये की खोज में…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 4, 2012 at 4:00pm — 11 Comments
मैं तो बस इक गुरु का शिष्य हूँ
बहुत उकसा के पूछा
बताओ कौन हो तुम
क्या हो तुम ???
तुम दिखावटी हो
या सच में फूल हो
नहीं नहीं
शायद तुम खार हो
कितना ग़ज़ब लगता है
तुम्हारा अलग अलग सा दिखना
किसने पैदा किया है तुम्हे
कोई जादूगर
बागवान था क्या ??
गेंदे के फूल से
गुलाब की खुशबू
लाजवाब है ये कारीगरी
खुदाई सी लगती है
पर है हकीकत
चाँद तारा या आफताब
क्या हो तुम
या जर्रा-ए-कायनात…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 4, 2012 at 1:30pm — 3 Comments
"जिन्दगी का कोरा सच "
सच
जिन्दगी का
कभी ग़ज़ल बना
कभी नज्म
कभी रुबाइयाँ
लिखते रहे
गुनगुनाते रहे
सुनते रहे
सुनाते रहे
क्या क्या न लिखा
धुप छाँव
राह, मंजिल
पड़ाव
गुल, गुलशन
खार
कभी जिन्दगी
इक भार
दोस्त, यार
फिर दुनिया में
भ्रष्टाचार
हाहाकार
कभी सम्मान
कभी तिरस्कार
कभी लगती रही
ये व्यापार
खुद दुकानदार
कभी नफरत
तो कभी प्यार
बार बार
लेकिन
हर…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 3, 2012 at 4:19pm — 19 Comments
"निवाले"
रामू के
विदीर्ण वस्त्रों में छुपी
कसमसाहट भरी मुस्कान
एहसास कराती है
खुश रहना कितना जरुरी है
दिन-रात
कचरा बीन बीन के
उससे दो चार निवाले निकाल लेना
कुछ फटी चिथी पन्नियों से
खुद के लिए और छोटी बहन के लिए भी
एहसास कराता है
कर्मयोगी होने का
रात उसके बगल में सोती है
कभी दायें करवट
कभी बाएं करवट
खुले आसमान के नीचे
उसका जबरन आँखों को मूंदे
भूख को मात देना
परिभाषित करता है आज़ादी…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 1, 2012 at 2:11pm — 9 Comments
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