For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

SANDEEP KUMAR PATEL's Blog – September 2012 Archive (20)

ग़ज़ब था तेरा मिलाना नैना

कभी जो मैंने गुजारे थे पल

तुम्हारे दामन में दिन-ओ-रैना

हसीं वो मंजर भुला न पाया

ग़ज़ब था तेरा मिलाना नैना



दिवानापन ले भुला के खुद को

तुम्हारी चाहत को फिरता दरदर

भटकता राहों में तन्हा ऐसे

मिले न राहत मिले न चैना



जुदाई दे के चले हो मुझको

सुनो ये ताने ज़माना कसता

उड़े थे चाहत…
Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 29, 2012 at 6:56pm — 2 Comments

=====नज्म=====

=====नज्म=====



तुम्हारी भीगी पलकें

याद हैं मुझे

भीगी पलकें

झरने सी छलकीं

पिरो न पाया था

एक मोती भी

और मेरे समन्दर-ए-दिल में

बाढ़ आ गयी…



Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 27, 2012 at 4:41pm — 2 Comments

बुरे वक़्त का साया

सुना था बुरे वक़्त में

साया भी साथ छोड़ देता है

कमबख्त बुरे वक़्त का साया

मरते दम तक साथ चिपका रहता है

कभी नहीं छोड़ता

गर एक पल भी अच्छा पल मिला

उसने चुपके से आके

यादों की सुई चुभा दी

भूल मत भूल मत

कहता हुआ

मैं हूँ तेरा कल

तेरी परछाई

तेरी तन्हाई का साथी

तेरे बुरे वक़्त का साया

साया जो कभी नहीं छोड़ता साथ

सुखों में

दुखों में हर पल

रहता है पल पल

साथ

सच्चा दोस्त हूँ मैं

बुरे वक़्त का साया…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 27, 2012 at 8:50am — 2 Comments

नशेमन है हमारा दिल जनाब हल्का हल्का सा

रखा जो आपने रुख पे नकाब हल्का हल्का सा

चमकता चाँद दिखता आफताब हल्का हल्का सा



झुकी पलकें उठी दीदाबराई करने के खातिर

हया छलकी बढाने को शबाब हल्का हल्का सा



दिया बोसा मेरे लब सिल गए सफाई जो मांगी

सवालों का हसीं आया जवाब हल्का हल्का सा…



Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 25, 2012 at 11:34am — 2 Comments

"मन"

"मन"



सुबह सुबह

चिड़ियों का कलरव

झरने का कलकल

ठंडी हवाओं के झोंके लयबद्ध तान

कोयल की कूक

मुर्गे की बांग

ये सब संगीत है या शोर

प्रकृति का



ये सब मन की दशा पे निर्भर है

कभी ये सब संगीत लगता है

पटरी पे दौड़ती

सरपट लोहपथगामिनी का

चीखता निनाद भी

और कभी इक सुई का गिरना भी

कर्कश स्वर सा

शोर सा



मन स्वाभविक वृत्तियों में जकड़ा हुआ है

किन्तु है…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 24, 2012 at 1:59pm — 10 Comments

मान जाओ न

मान जाओ न



मचल उठता है

ये ह्रदय

जब आती है

दूर कहीं से कोयल की

कूक सी मीठी

सदा



पीपल के पत्तों की तरह  …

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 22, 2012 at 11:30am — 3 Comments

ग़ज़ल

===========ग़ज़ल=============



ग़मों के दौर में जब मुस्कुराने का हुनर आया

हमें बंजर जमीं पे गुल खिलाने का हुनर आया



भरोसा तोड़ कर तुमने दिया हर बार धोखा यूँ

मुसलसल चोट खाकर आजमाने का हुनर आया



खुदा होता निहां है पत्थरों में मान बैठा…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 20, 2012 at 12:45pm — 9 Comments

ग़ज़ल

============ग़ज़ल=============



लगा है वक़्त कितना ये हसीं दुनिया बसाने में

बफा औ इश्क के खातिर सभी वादे निभाने में 



भरोसा उठ चुका है दोस्ती के नाम से लोगो

लगा है यार को ही यार अब तो आजमाने में



जिगर के जख्म पर भी वाह वाही दी मुझे…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 19, 2012 at 2:49pm — 8 Comments

इस जग में जो सबसे सुन्दर वो मेरी भाषा हिंदी है

हिंदी दिवस की शुभकामनाओं सहित ये रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ





ये गंगा सी निर्मल पावन ये स्वर रुपी कालिंदी है

इस जग में जो सबसे सुन्दर वो मेरी भाषा हिंदी है



ये सुन्दर सरल सजीली है,

भाषा ये बहुत सुरीली है

ये नव रस और छंदों से युक्त

मन भावन मधुर पतीली है



ये भारत माँ के माथें में सूरज सी दमके बिंदी है

इस जग में जो सबसे सुन्दर वो मेरी भाषा हिंदी है



ये प्रेम की मीठी भाषा है

भारत की प्राण पिपासा…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 14, 2012 at 1:02pm — 7 Comments

इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना

न सूरज पश्चिम से ऊगे , न पूरव में होगा ढलना

इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना



तुम फेसबुक की टाइम लाइन

मैं ऑरकुट बहुत पुराना हूँ

तुम काजू किशमिश के जैसे

मैं तो बस चना का दाना हूँ

तुम अमरीका के डालर…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 13, 2012 at 12:14pm — 16 Comments

"लिखते लिखते"

"लिखते लिखते"



जमीं पे चाँद तारे

सूरज 

सब हैं दिखते

लिखते लिखते

नदियाँ, पहाड़, झरने

हाथी-घोड़ा

शेर, भालू, हिरने

कभी सजर

कभी…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 12, 2012 at 1:56pm — 11 Comments

दोपहर शाम शब् सहर जन्नत

दोपहर शाम शब् सहर जन्नत

हर घडी आ रही नज़र जन्नत



वक्ते फुरकत लगा जहन्नम सा

खंडहर हो गया है घर जन्नत



भूलना आपको हुआ मुश्किल

याद कर कर के हर पहर जन्नत



जिन्दगी किस तरह जियें तुझको…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 11, 2012 at 2:08pm — 4 Comments

हो गया है मेरा शहर जन्नत

शाम जन्नत हुई सहर जन्नत

आप आये हुआ ये घर जन्नत



जो पड़े हैं कदम तुम्हारे यूँ     

हो गया है मेरा शहर जन्नत



राह मुश्किल भरी रही लेकिन 

आपके साथ था सफ़र जन्नत



ख्वाब क्या और क्या हकीकत में…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 10, 2012 at 3:00pm — 16 Comments

"मौलिक संतान"

"मौलिक संतान"



कोख

माँ की कोख

प्यारी न्यारी

जीव का प्रारंभ

उसकी जन्नत

माँ की कोख

सबसे खूबसूरत

कोई शै नहीं

इस सारे जहाँ…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 10, 2012 at 1:25pm — 2 Comments

है ग़ज़ल ताज़ा कही तू या लिखी तहरीर है

संदली नाजुक बदन या बोलती तस्वीर है

आयतें खामोशियाँ हैं शर्म ये तफ़सीर है



सर्द हैं जुल्फों के साए सोज साँसों में भरी

कातिलाना है अदा या ख्वाब की ताबीर है



ये गजाली चश्म तेरे श्याह गहरी झील से

औ तबस्सुम होंठ पे जैसे कोई शमशीर है…



Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 6, 2012 at 4:05pm — 5 Comments

जबाब नहीं है ख़ामोशी

"जबाब नहीं है ख़ामोशी "



जबाब नहीं है ख़ामोशी

सब जानते हैं

इसमें तो छुपा होता है

गलतियाँ स्वीकारने का हाँ

कसमसाहट भरी वो हाँ

जो हाँ कहने पर

जुबान शर्मशार हुई जाती है…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 5, 2012 at 1:25pm — 4 Comments

खूब भटकी यों ग़ज़ल भी काफ़िये की खोज में

रात थकती बुझ रही रोशन दिये की खोज में

जल रहे हैं जाम खाली साकिये की खोज में



लिख दिए किरदार सारे पड़ गये हैं नाम पर

है अधूरी ये कहानी बाकिये की खोज में



हार कर इंसान खुद से आदमीयत खोजता  

जिन्दगी बेचैन फिरती हाशिये की खोज में…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 4, 2012 at 4:00pm — 11 Comments

मैं तो बस इक गुरु का शिष्य हूँ

मैं तो बस इक गुरु का शिष्य हूँ



बहुत उकसा के पूछा

बताओ कौन हो तुम

क्या हो तुम ???



तुम दिखावटी हो

या सच में फूल हो

नहीं नहीं

शायद तुम खार हो

कितना ग़ज़ब लगता है

तुम्हारा अलग अलग सा दिखना

किसने पैदा किया है तुम्हे 

कोई जादूगर

बागवान था क्या ??

गेंदे के फूल से 

गुलाब की खुशबू

लाजवाब है ये कारीगरी

खुदाई सी लगती है

पर है हकीकत



चाँद तारा या आफताब

क्या हो तुम

या जर्रा-ए-कायनात…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 4, 2012 at 1:30pm — 3 Comments

"जिन्दगी का कोरा सच

"जिन्दगी का कोरा सच "



सच

जिन्दगी का

कभी ग़ज़ल बना

कभी नज्म

कभी रुबाइयाँ

लिखते रहे

गुनगुनाते रहे

सुनते रहे

सुनाते रहे

क्या क्या न लिखा

धुप छाँव

राह, मंजिल

पड़ाव

गुल, गुलशन

खार

कभी जिन्दगी

इक भार 

दोस्त, यार

फिर दुनिया में

भ्रष्टाचार

हाहाकार

कभी सम्मान

कभी तिरस्कार

कभी लगती रही 

ये व्यापार

खुद दुकानदार

कभी नफरत

तो कभी प्यार

बार बार

लेकिन

हर…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 3, 2012 at 4:19pm — 19 Comments

"निवाले"

"निवाले"



रामू के

विदीर्ण वस्त्रों में छुपी 

कसमसाहट भरी मुस्कान

एहसास कराती है

खुश रहना कितना जरुरी है



दिन-रात

कचरा बीन बीन के 

उससे दो चार निवाले निकाल लेना

कुछ फटी चिथी पन्नियों से 

खुद के लिए और छोटी बहन के लिए भी

एहसास कराता है

कर्मयोगी होने का



रात उसके बगल में सोती है

कभी दायें करवट

कभी बाएं करवट

खुले आसमान के नीचे

उसका जबरन आँखों को मूंदे

भूख को मात देना

परिभाषित करता है आज़ादी…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 1, 2012 at 2:11pm — 9 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service