काश ! कोई साथी होता।
एक अच्छा-सा साथी होता।।
खुशियों में जो साथ निभाता,
दुःख में भी नहीं घबराता।
घिरे होते दुःख में हम,
वो बाँटता हमारे ग़म।
दूर करता दर्द सारे,
आँसू पोंछता हमारे।
होता उसका हमें सहारा,
होता वो एक हमारा।
ऐसा एक साथी होता।
काश ! कोई साथी होता।
ज़िन्दगी की राहें सुनसान,
ख़तरों से हम अनजान।
जब रास्ता जाते भटक,
मुश्किलों में जाते अटक।
थाम लेता हाथ हमारा,
देता फिर हमें सहारा।
भटकने से हमें बचाता,
एक नयी राह…
Added by Savitri Rathore on October 6, 2013 at 11:38am — 22 Comments
गजल— 1121/2122/1121/2122
तेरे रूप का ये जादू कहीं मुझपे चल न जाए
यूं बिखेरो ना ये जुल्फें कहीं दिल मचल न जाए
मेरे दिल की इस जमीं पे कोई फूल खिल रहा है
तेरे प्यार का ये मौसम कहीं फिर बदल न जाए
तूने खोल दी है जुल्फें लगे दिन चढ़ा है फिर से
'न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए'
तेरी याद का है जंगल यहां आग सी लगी है
मेरे तन को ना छुओ तुम तेरा हाथ जल न जाए
इसी सोच में हूं डूबा कि…
Added by शकील समर on October 6, 2013 at 11:12am — 19 Comments
कहते सब सरिता मुझे ,बढती हूँ निष्काम
जीवन के पथ हैं कठिन, चलते रहना काम
चलते रहना काम, नहीं रोके रुक पाती
शत्रु सामने देख , सहज दुर्गा बन जाती
मेरा शील स्वभाव , भाव हैं मुझमें बहते
मैं जीवन का स्रोत मुझे सब सरिता कहते //
....................................................
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Sarita Bhatia on October 6, 2013 at 10:01am — 23 Comments
माँ
गहरी सागर सी
ऊँची अनन्त सी
घुली पवन में
सुगंध सी
माँ!
हृदय तुम्हारा
कोमल फूलों सा
मिश्री सी वाणीं
लोरी, परियों की कहानी
माँ!
सुन्दर इतनी कि
अप्सराएँ शर्माएँ
आँचल में तुम्हारे
सागर ममता का
लहराये
महानता में ईश्वर भी
पीछे रह जाए
माँ!
स्पर्श में तुम्हारे
मिलता असीम सुख
हृदय से लग के
मिटता संताप, दुःख
माँ!
तुम मेरी…
Added by Meena Pathak on October 6, 2013 at 9:30am — 21 Comments
फिर कहो तुम मूक मै कैसे रहूँ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 6, 2013 at 9:00am — 37 Comments
ग़ज़ल –…
ContinueAdded by Abhinav Arun on October 6, 2013 at 8:42am — 21 Comments
ग़ज़ल –…
ContinueAdded by Abhinav Arun on October 6, 2013 at 8:39am — 39 Comments
गीत (दूरियाँ जो ये बढ़ सी रही दरमियाँ)
दूरियाँ जो ये बढ़ सी रही दरमियाँ, कोशिशें करके इनको घटा दीजिए,
एक कदम मैं चलूँ, एक कदम तुम चलो, धूल नफरत की दिल से हटा दीजिए।
कहना चाहते हो गर तुम तो खुल के कहो,
वरना रिश्ता…
ContinueAdded by Sushil.Joshi on October 6, 2013 at 2:30am — 34 Comments
साथ वाले सहगल साहिब यश जी से बोले घई जी के पिता हस्पताल में हैं यश जी ने कहा कल तो मेरे पास बैठे थे बेचारे परेशान थे ,पूछ रहे थे मुझे यहाँ आए हुए कितने दिन हो गए मैंने कहा मालूम नहीं उन्होंने फिर जिद्द करके पूछा फिर भी अंदाजा मुझे आए हुए कितना समय हो गया है ,मैंने कहा लगभग एक महीना हुआ होगा तो बोले फिर वो [छोटा बेटा] मुझे लेने क्यों आ रहा है? अभी दो महीने तो नहीं हुए हैं यह क्यों भेज रहे हैं मुझे इसी उधेड़बुन में शायद वो सुबह तक उठ ही नहीं पाए ,उनके एक हिस्से ने काम करना बंद कर दिया था और…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on October 5, 2013 at 11:30pm — 20 Comments
दर्द रह-रह के बढ़ता है
और दिल डूबा जाता है
नब्ज़ थम-थम के चलती है
दिल ज़ोरों से धड़कता है
बीमारी बढती जाती है
फ़िक्र है खाए जाती है
सलाहें खूब मिलती हैं
दवाएं बदलती जाती हैं
दुआएं काम नही आतीं
करें क्या ऐसे में हमदम
कहाँ से चारागर पायें
मत्था किस दर पर टेंकें
कहाँ से तावीजें लायें
तुम्हे मालुम है फिर भी
छुपा कर रक्खे हो नुस्खे
न लो अब और इम्तेहाँ
चले आओ जहां हो तुम
तुम्हारे आते ही हमदम …
Added by anwar suhail on October 5, 2013 at 9:30pm — 12 Comments
ये कैसी है चम् चम् चम् चम् ,
क्यों बहक रहा है मन,
टूटकर घटा से बरसे पानी,
हो गयी है रुत मस्तानी,
चारो और छायी हरियाली ,
जंगल मनाने लगा दिवाली ,
ऐसे बहे ठंडी बयार,
सपनो से हो जाए प्यार,
तन से टपके सुगन्धित पसीना ,
लो आया सावन का मस्त महीना !
तन की बजने लगी सितार ,
आँखें देखे सपने हजार,
अपने प्रियतम का करे इंतज़ार ,
जैसे कोई दुल्हन मस्तानी ,
कैसे खुद को काबू कर पाए ,
कैसे अपने दिल…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on October 5, 2013 at 9:17pm — 13 Comments
2122 2122 2122 2122
बह्र----रमल मुसम्मन सालिम
.
हादिसों से आज जिंदगियाँ गुजरती जा रही हैं
शबनमी बूंदे जों ख़ारों से फिसलती जा रही हैं
लूट…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 5, 2013 at 8:30pm — 40 Comments
एक ग़ज़ल - चाँद सूरज गुलाब रक्खा है !!
(२१२२ १२१२ २२/११२)
चाँद सूरज गुलाब रक्खा है |
ख़त में ख़त का जवाब रक्खा है ||
सिसकियों में कटी जो रात उसका
कागज़ों पर हिसाब रक्खा है ||
शामियाना तेरी मुहब्बत का
एक ऐसा भी ख़्वाब रक्खा है ||
लफ़्ज करते नहीं शिकायत क्या
खामुशी का नकाब रक्खा है ||
याद करना तुम्हें ख़ुदा की तरह
आदतों को ख़राब रक्खा है ||
ओढ़ रक्खी हैं झुर्रियाँ मैंने
और…
Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 5, 2013 at 8:05pm — 36 Comments
चित की शुचिता के लिए, नित्य कर्म निबटाय |
ध्यान मग्न हो जाइये, पड़े अनंत उपाय |
पड़े अनंत उपाय, किन्तु पहले शौचाला |
पढ़ देवा का अर्थ, हमेशा देनेवाला |
रविकर जीवन व्यस्त, करे कविता जनहित की |
आत्मोत्थान उपाय, करेगी शुचिता चित की |
मौलिक /अप्रकाशित
Added by रविकर on October 5, 2013 at 5:36pm — 10 Comments
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१६ / ९ /१३
मौलिक और अप्रकाशित
Added by shashi purwar on October 5, 2013 at 5:00pm — 12 Comments
फूल बागों में खिले ये सबके मन को भाते है
मंदिरों के नाम पर ये रोज तोड़े जाते है .
फूल माला में गुथे या केश की शोभा बने
टूट कर फिर डाल से ये फूल तो मुरझाते है
फूल का हर रंग रूप तो सुरभि भी पहचान है
फूल डाली पर खिले तो भौरों को ललचाते है
फूल चंपा के खिले या फिर चमेली के खिले
फूल सारे बाग़ के मधुबन को ही महकाते है
भोर उपवन की देखो तितली से ही गुलजार हुई
फूलों का मकरंद पीने भौरे भी मंडराते है
पेड़ पौधो से सदा…
Added by shashi purwar on October 5, 2013 at 5:00pm — 13 Comments
बड़े साहिब राज्य स्तरीय साहित्य सम्मान प्राप्त कर बेहद प्रसन्न थे. कार्यलय पहुँचते ही उन्होनें अपने स्टेनो को बुलाया और कई हफ़्तों से लंबित उसकी लोन की फाइल क्लीयर की तथा साथ ही उसकी पन्द्रह दिन की छुट्टी की अर्जी भी मंजूर कर दी। जाते समय उन्होनें स्टेनो को एक और बढि़या सी कहानी लिखने का आदेश दिया।
Added by Ravi Prabhakar on October 5, 2013 at 4:16pm — 12 Comments
Added by Ashish Srivastava on October 5, 2013 at 3:00pm — 5 Comments
आराधना तीन बेटों की माँ बन गयी थी, लेकिन बेटी की कमी हमेशा उसे अन्दर से कचोटती रहती। सासू माँ ने समझाया भी कि बहूँ एक बार और देख लों शायद माता रानी सुन लें, पर वह कोई चांस नहीं लेना चाहती थी, बड़ी ननद ने तो यहाँ तक कहा कि मेडिकल साइंस आज बहुत आगे है - चेक करा लेना और यदि बेटी नहीं हुई तो…… लेकिन आराधना ने साफ़ साफ़ कह दिया कि वो ऐसा घृणित पाप नहीं कर सकती ।
नवरात्रि का पहला दिन था सुबह सुबह आराधना पूजा की डलिया लिए मंदिर जा रही थी, तभी…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 5, 2013 at 2:30pm — 43 Comments
Added by Admin on October 5, 2013 at 12:00pm — 17 Comments
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