रात ना कटे तो तुम ऐसा करना ..
काली लम्बी इस रात के 3 टुकड़े करना
इक टुकडा काट के आसमान को दे देना
फिर दूसरा टुकडा दे देना तुम चाँद को
बचा हुया वो एक आखिरी टुकडा
तुम अपने पास अपने सरहाने रख लेना,
लेटे लेटे उसमे देखना बीता वक़्त हमारा
वो मिलना ,वो जीना,वो बिछड़ना हमारा
इस लम्बे से सफ़र में वो छोटा…
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Added by Venus on November 16, 2010 at 12:30am —
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व्यंग्य
नया युग आ गया है, अरे भई पुराना जब और पुराना होगा तो नया नया युग तो आएगा ही, नए पैंतरे, नया दांव, नई उठापटक, और तरीके भी नए-नए। पुराने दौर में फिल्मों की नायिका गाती थी फूल तुम्हें भेजा है खत में ...क्या ये तुम्हारे काबिल है, अब की हीरोईन डांस कम एक्सरसाईज करते हुए सीधे किस पर आ जाती है, ओ बाबा लव मी, ओ बाबा किस मी। न फूल ढूंढने की जरूरत न खत लिखने की झंझट, मैगी नूडल्स की तरह, फटाफट तैयार, बस दो मिनट। बीच में न आशिक से मिलने के सपने न ही बाबुल से कोई बहानेबाजी, कि मैं तुझसे…
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Added by ratan jaiswani on November 15, 2010 at 9:00pm —
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बात एक साल पुरानी है। सदी के महानायक अभिनेता अमिताभ बच्चन फिल्म पा दिसंबर 2009 में रिलीज हुई थी, जिसमें उन्होंने आॅरो के किरदार को निभाया है। इस फिल्म की दर्षकों में खासी चर्चा रही और पहली बार इस फिल्म के माध्यम से ऐसी अजीबो-गरीब बीमारी प्रोजेरिया, लोगों के सामने आया, जिसे जानकर हर कोई सोच में पड़ गया, क्योंकि डाॅक्टरों की मानें तो यह बीमारी, एक करोड़ में एक व्यक्ति को होती है। पा फिल्म में प्रोजेरिया बीमारी को दुनिया के सामने लाया गया है और इस फिल्म मे अभिनेता अभिताभ बच्चन ने 13 वर्षीय एक ऐसे…
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Added by rajkumar sahu on November 15, 2010 at 7:47pm —
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ग़ज़ल:- आज़ादी की बस इतनी परिभाषा
पोर पोर पर प्रकृति ने फेंका पासा देख
क्यों उदास है तू बसंत की भाषा देख |
श्रमजीवी कलमें कहतीं रूमानी शेर
कैसी उभरी अंतस की अभिलाषा देख |
युग के विश्वामित्र ने फिर छेड़ी है रार
फिर त्रिशंकु की टूट रही है आशा देख |
ठूंठ भरी इस राह में रोड़े और छाले
इस पथ जाता कौन पथिक रुआंसा देख |
भूख ग़रीबी महंगाई और भ्रष्टाचार
आजादी की…
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Added by Abhinav Arun on November 15, 2010 at 3:25pm —
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ग़ज़ल :- आग पानी है
मुफलिसी में अब कहाँ है ज़िंदगी
आग पानी है धुआं है ज़िंदगी |
गिरते पड़ते भागते फिरते सभी
यूं लगे अँधा कुआं है ज़िंदगी |
हम जड़ों से दूर गुलदस्ते में हैं
गाँव का खाली मकां है ज़िंदगी |
अब तो हर एहसास की कीमत है तय
कारोबारी हम दुकाँ है ज़िंदगी
एक फक्कड़ की मलंगी देखकर
हमने जाना की कहाँ है ज़िंदगी |
हर…
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Added by Abhinav Arun on November 15, 2010 at 2:57pm —
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मैंने सारे बंधन तोड़ दिए,
भंवर में ही उनको छोड़ दिए|
ऐसा उसने कहा था|
ये है बिलकुल हकीकत,
रहा मै वहीँ तक|
साथ में औरों को जब
वो जोड़ लिए........
मैंने सारे..................
वाकई मै गलत था,
इसका क्या मतलब था?
कुछ कहे ही बगैर
उनको छोड़ दिए............
मैंने सारे......................
नाव फिर कभी न बहती,
भार भी न वो सहती|
साथ दोनों को तन्हा ही
छोड़ दिए..................
मैंने…
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Added by आशीष यादव on November 15, 2010 at 10:00am —
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गीत:
मैं नहीं....
संजीव 'सलिल'
*
मैं नहीं पीछे हटूँगा,
ना चुनौती से डरूँगा.
जानता हूँ, समय से पहले
न मारे से मरूँगा.....
*
जूझना ही ज़िंदगी है,
बूझना ही बंदगी है.
समस्याएँ जटिल हैं,
हल सूझना पाबंदगी है.
तुम सहायक हो न हो
खातिर तुम्हारी मैं लडूँगा.
जानता हूँ, समय से पहले
न मारे से…
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Added by sanjiv verma 'salil' on November 15, 2010 at 1:00am —
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देवोत्थानी एकादशी के अवसर पर मेरे पूज्य पिताजी देवों को जगाया करते थे आज उनकी स्मृति को मन मे संजोए उनकी परंपरा का निर्वाह मै निम्न शब्दों से करता हुआ आप सबको देव- उठानी एकादशी की बधाई देता हूँ.
जागो मेरे स्वामी जागो...
तुम सोए तो सो जाती है...
इस जग की ममता अनजानी,
कहाँ... न जाने खो जाती है,
मेरी भी क्षमता अनचीन्ही..
तुम जागो तो विश्व जागेगा
मानवता..विश्वास जगेगा...
भेद भावना ,… Continue
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on November 14, 2010 at 9:30pm —
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भारत, दुनिया का एक विशाल देश है और आबादी के लिहाज से देखें तो पूरे संसार में चीन के बाद इसका दूसरा स्थान है। इस तरह भारत में आज की स्थिति में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है, जिसे सत्ता पर काबिज होने के पहले हर पार्टी के नेता खत्म करने की दुहाई देते हैं, मगर हालात में किसी तरह का बदलाव नहीं होता। देश में केवल साल-दर-साल आबादी बढ़ती चली जा रही है और रोजगार का सृजन नहीं हो पा रहा है। ऐसे में देश के करोड़ों युवा, बेरोजगार हो गए हैं और इसका सीधा असर देश के विकास पर पड़ रहा है। यह भी माना जाता है कि पूरी…
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Added by rajkumar sahu on November 14, 2010 at 6:13pm —
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`बहुत दिन हुए नहिं देखा दस का सिक्का...
स्कूल के दरवाज़े पर खड़े होकर शांताराम के चने नहीं खाए
बहुत दिन हुए आंगन के चूल्हे पर हाथ तापे..
याद नहीं आखरी बार कब डरे थे अँधेरे से...
कब झूले थे आखरी बार, पेड़ की डाली पर...
कब छोडा था चाँद का पीछा करना..
याद नहीं, कब कह दिया सुनहरी पन्नी वाली चॉकलेट को अलविदा..!!
कहाँ छुट गए कांच की चूडियों के टुकड़े..,
माचिस की डिबिया, चिकने पत्थरों की जागीर..
कब सुना…
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Added by Sudhir Sharma on November 14, 2010 at 2:57pm —
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बाल दिवस पर विशेष
आज का दिन बहुत ही विशेष दिन है क्योकि आज का दिवस उन नन्हे-मुन्नों का है,जो आगे चलकर देश का बागडोर संभालेंगे !ये वही बच्चे है जिन्हें चाचा नेहरु ने देश का भविष्य कहा था .
आज पूरा देश पंडित जवाहरलाल नेहरु को याद कर उनका जन्मदिवस बाल दिवस के रूप में मना रहा है .चाचा नेहरु के देश में आज भी कुछ ऐसे बच्चे रह गए है जो इन…
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Added by Ratnesh Raman Pathak on November 14, 2010 at 12:41pm —
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जैसे .......
पर्व -त्यौहार,
बना देते हैं,
हमारी जिन्दगी को,
मजेदार,
गरम - मसाले,
बना देते हैं,
सब्जियों को,
लज़्ज़तदार,
खिड़कियाँ,
बना देती हैं,
कमरे को,
हवादार,
ठीक वैसे ही,
अगर बच्चे हों समझदार,
और सजनी हो दिलदार,
तो,
सजन क्यों न बने,
ईमानदार ॥
Added by baban pandey on November 14, 2010 at 10:30am —
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रिश्ते बनते हैं बदलते हैं ,
मगर जीवन चलता रहता हैं ,
कभी बेटा पैदा होने की ख़ुशी ,
तो कभी बाप का मरने का गम ,
कभी ख़ुशी के छलकते आँसू ,
तो कभी गम से होती आँखे नम ,
समय चक्र चलते रहते हैं ,
रिश्ते बनते हैं बदलते हैं ,
रिश्तों की मिठास ,
वो अपने बुआ के आते ही ,
उनकी गोद में चढ़ने के लिए ,
अक्सर मचलता था ,
लेकिन जब से बुआ करने लगी
पुश्तैनी जायदाद में
हिस्से की मांग ,
तब से ख़त्म होने लगी ,
रिश्तों की मिठास ,
Added by Rash Bihari Ravi on November 13, 2010 at 4:30pm —
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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अर्थात आरएसएस की अपनी एक ऐसी पृष्ठभूमि है, जिसके तहत देश ही नहीं, दुनिया में यह एक अनुशासित संगठन के रूप में जाना जाता है। आरएसएस से जुड़े कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को संयमी माना जाता है और उन्हें संयमित शब्दावली के लिए जाना जाता है, लेकिन आरएसएस द्वारा पूरे देश में भगवा आतंकवाद के खिलाफ मोर्चाबंदी के दौरान मध्यप्रदेश के भोपाल में संघ के पूर्व सरसंघचालक के.एस. सुदर्शन ने जो कुछ यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के खिलाफ तीखी टिप्पणी की, उससे देश का राजनीतिक माहौल ही…
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Added by rajkumar sahu on November 13, 2010 at 1:06pm —
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ग़ज़ल
ज़मीर इसका कभी का मर गया है
न जाने कौन है किसपर गया है |
दीवारें घर के भीतर बन गयीं हैं
सियासतदाँ सियासत कर गया है |
तरक्की का नया नारा न दो अब
खिलौनों से मेरा मन भर गया है |
कोई स्कूल की घंटी बजा दे
ये बच्चा बंदिशों से डर गया है |
बहुत है क्रूर अपसंस्कृति का रावण
हमारे मन की सीता हर गया है |
शहर से आयी है बेटे की चिट्ठी
कलेजा माँ का फिर…
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Added by Abhinav Arun on November 12, 2010 at 10:43pm —
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ग़ज़ल
किताबें मानता हूँ रट गया है
वो बच्चा ज़िंदगी से कट गया है|
है दहशत मुद्दतों से हमपर तारी
तमाशे को दिखाकर नट गया है |
धुंधलके में चला बाज़ार को मैं
फटा एक नोट मेरा सट गया है |
चलन उपहार का बढ़ना है अच्छा
मगर जो स्नेह था वो घट गया है |
पुराने दौर का कुर्ता है मेरा
मेरा कद छोटा उसमे अट गया है |
राजनीति में सेवा सादगी का
फलसफा रास्ते से हट…
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Added by Abhinav Arun on November 12, 2010 at 10:30pm —
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छोटी सी भूल (रैगिंग)
'अमन' को आज इन्साफ मिला
हम फिर भी हैं शर्मसार
मेरे हिमाचल के बच्चों ने
ली थी उसकी जान
एक छोटी सी गलती ने
कारागार पहुँचाया
खुद भी हुए कलंकित
हिमाचल को कलंक लगाया
में लेखक हूँ ,मुझको है
अफ़सोस इस घटना पर
विनती है हर नौजवान से
ऐसे कृत्यों से डर
ऐसे कुकर्म से डर
दीपक शर्मा कुल्लुवी
०९१३६२११४८६
११-१०-२०१०.
खबर : मेरी जन्म भूमि काँगड़ा के मेडिकल कालेज टांडा(काँगड़ा)…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on November 12, 2010 at 1:15pm —
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तुम्हीं से सुबहें, तुम्हीं से शामें,
हर एक लम्हा, तुम्हारी बातें,
हैं साथ मेरे, हर एक पल में
तुम्हारी यादें, तुम्हारी बातें I
मेरी निगाहों में तेरा चेहरा,
ये दिल और धड़कन हैं संग जैसे,
तू संग चलता है ऐसे मेरे,
है चलता ये आसमाँ संग जैसे I
हूँ भीगा मैं ऐसे तेरी खुश्बुओं से,
हो बादल कोई डूबा बूँदों में जैसे,
यूँ छाया तेरा इश्क़ है मेरे दिल पे,
हो सिमटी कोई झील धुन्धों में जैसे I
तुझ ही में पाया मैंने ख़ुदा को,
ख़ुदा…
Added by Veerendra Jain on November 12, 2010 at 12:30pm —
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सर फिरोशी की तमन्ना है तो सर पैदा करो
वरना छोडो यूं हवा में आप नारे छोड़ना .
गर मुल्क से इश्क है तो दिल जिगर शैदा करो
वरना छोडो यूं हवा में आप नारे छोड़ना .
सब यहाँ का खा रहे पर न यहाँ का गा रहे ;
उस शजर को काटते हैं ,छाया जिस से पा रहे.
छाया से जो इश्क है तो पेड़ से पैदा करो
वरना छोडो यूं हवा में आप नारे छोड़ना .
जो हुए हैं नाम चीन गुलचीं गुलिस्तान के…
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Added by DEEP ZIRVI on November 12, 2010 at 6:00am —
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गीत:
कौन हो तुम?
संजीव 'सलिल'
*
कौन हो तुम?
मौन हो तुम?...
*
समय के अश्वों की वल्गा
निरंतर थामे हुए हो.
किसी को अपना किया ना
किसी के नामे हुए हो.
अनवरत दौड़ा रहे रथ
दिशा, गति, मंजिल कहाँ है?
डूबते ना तैरते, मझधार
या साहिल कहाँ है?
क्यों कभी रुकते नहीं हो?
क्यों कभी झुकते नहीं हो?
क्यों कभी चुकते नहीं हो?
क्यों कभी थकते नहीं हो?
लुभाते मुझको बहुत हो
जहाँ भी हो जौन हो…
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Added by sanjiv verma 'salil' on November 11, 2010 at 9:32pm —
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