Added by राजेश 'मृदु' on November 23, 2012 at 1:30pm — 12 Comments
चन्द्रबदन!
तेरे कपोल पे तेरे नैनों का नीर
लागे जैसे सीप में मोती
शशी से भी तू सुन्दर लागे
जब ओढ़ चुनर तू है सोती
झरने सी तू चंचल है
सुन्दरता से भी सुन्दर है
सुगंध तेरी जैसे कोई संदल
चन्द्रबदन, चन्द्रबदन, हय तेरा चन्द्रबदन…
तेरे केशों में…
ContinueAdded by Ranveer Pratap Singh on November 16, 2012 at 10:30pm — 8 Comments
गिरती दीवारें सूने खलिहान है
गावों की अब यही पहचान है
चौपालों में बैठक और हंसी ठट्ठे
छोटे छोटे से मेरे अरमान है
जनता के हाथ आया यही भाग्य है
आँखों में सपने और दिल परेशान है
लें मोती आप औरों के लिये कंकड़
वादे झूठे मिली खोखली शान है
हम निकले हैं सफर में दुआ साथ है
मंजिल है दूर रस्ता बियाबान है
Added by नादिर ख़ान on November 16, 2012 at 4:30pm — 12 Comments
जब तेरी यादों की दरिया में उतर जाता हूँ मैं॥
कागज़ी कश्ती की तरहा फिर बिखर जाता हूँ मैं॥
कैसी वहशत है जुनूँ है और है दीवानपन,
तू ही तू हरसू नज़र आया जिधर जाता हूँ मैं॥
सारे मंज़र, तेरी यादें सब जुदा हो जाएंगी,
सोचकर तनहाई में अक्सर सिहर जाता हूँ मैं॥
किसकी नज़रों ने दुआ दी है, के तेरी बज़्म में,
बेहुनर हूँ जाने कैसे बाहुनर जाता हूँ मैं॥
तेरी यादों का ये जंगल मंज़िले ना रास्ते,
जिस्म अपना छोडकर जाने किधर जाता हूँ मैं॥
दर्द-ओ-ग़म के…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on November 15, 2012 at 1:30am — 10 Comments
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दवा ही बन गई है मर्ज़ इलाज क्या होगा;
उसे सुकून यक़ीनन बहुत मिला होगा; (१)
मैं नूरे-चश्म था जिसका कभी वो कहता है,
नज़र भी आये अगर तो बहुत बुरा होगा; (२)
हमारे बीच मसाइल हैं कुछ अभी बाक़ी,
ठनी है जी में यही, आज फ़ैसला होगा; (३)
जहाँ ख़ुलूस दिलों में है धड़कनों की तरह,
वहीं पे मंदिरों में जल रहा दिया होगा; (४)
तेरे गुनाह की पोशीदगी है दुनिया से,
मगर ख़ुदा की निगाहों से क्या छुपा होगा;…
ContinueAdded by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on November 14, 2012 at 2:30pm — 23 Comments
मुक्तिका:
तनहा-तनहा
संजीव 'सलिल'
*
हम अभिमानी तनहा-तनहा।
वे बेमानी तनहा-तनहा।।
कम शिक्षित पर समझदार है
अकल सयानी तनहा-तनहा।।
दाना होकर भी करती मति
नित नादानी तनहा-तनहा।।
जीते जी ही करी मौत की
हँस अगवानी तनहा-तनहा।।
ईमां पर बेईमानी की-
नव निगरानी तनहा-तनहा।।
खीर-प्रथा बघराकर नववधु
चुप मुस्कानी तनहा-तनहा।।
उषा लुभानी सांझ सुहानी,
निशा न भानी तनहा-तनहा।।
सुरा-सुन्दरी का याचक…
Added by sanjiv verma 'salil' on November 14, 2012 at 11:51am — 9 Comments
बहर : २१२२ ११२२ ११२२ २२
रह गया ठूँठ, कहाँ अब वो शजर बाकी है
अब तो शोलों को ही होनी ये खबर बाकी है
है चुभन तेज बड़ी, रो नहीं सकता फिर भी
मेरी आँखों में कहीं रेत का घर बाकी है
रात कुछ ओस क्या मरुथल में गिरी, अब दिन भर
आँधियाँ आग की कहती हैं कसर बाकी है
तेरी आँखों के समंदर में ही दम टूट गया
पार करना अभी जुल्फों का भँवर बाकी है
तू कहीं खुद भी न मर जाए सनम चाट इसे
आ मेरे पास तेरे लब पे…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 12, 2012 at 2:21pm — 33 Comments
विरहन का क्या गीत अरे मन |
प्रियतम प्रियतम, साजन साजन ||
जब से हुए पी आँख से ओझल,
प्राण है व्याकुल साँस है बोझल,
किस विध हो अब पी के दर्शन || विरहन का...
प्रीत है झूटी सम्बन्ध झूटा,
सौगंध झूटी अनुबन्ध झूटा,
मिथ्या मन का हर गठबन्धन || विरहन का...
जब दर्पण में रूप सँवारूँ,
अपनी छवि में पी को निहारूँ,
मेरी व्यथा से अनभिज्ञ दर्पण || विरहन का...
दुख विरहन का किस ने जाना,
अपने भी अब मारें…
Added by लतीफ़ ख़ान on November 5, 2012 at 1:30pm — 5 Comments
मुक्तछंद कविता सम जीवन,
तुकबंदी की बात कहाँ है ||
लय, रस, भाव, शिल्प संग प्रीति |
वैचारिक सुप्रवाह की रीति ||
अलंकार से कथ्य चमकता |
उपमानों से शब्द दमकता ||
यगण-तगण जैसे पाशों से,
होता कोई साथ कहाँ है |
मुक्तछंद कविता सम जीवन,
तुकबंदी की बात कहाँ है ||
अनियमित औ स्वच्छंद गति है |
भावानुसार प्रयुक्त यति है ||
अभिव्यक्ति ही प्रधान विषय है |
तनिक नहीं इसमें संशय है ||
ह्रदयचेतना से सिंचित ये,
ऐसा यातायात कहाँ है |
मुक्तछंद…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 5, 2012 at 8:38am — 12 Comments
काव्यगोष्ठी , परिचर्चा
कभी किसी विषय का विमोचन ,
आये दिन होते रहते
कविता पाठ के मंचन .
बाज़ न आते आदत से
ये कवियों की जो जात है .
वाह -वाह क्या बात है !
वाह -वाह क्या बात है !
इन्हें आदत है बोलने की
ये बोलते जायेंगे ,
हमारा क्या है , हम भी
सुनेंगे , ताली बजायेंगे .
पल्ले पड़े न पड़े , कोई फर्क नहीं
बस ढiक का तीन पात है .
वाह -वाह क्या बात है !
वाह -वाह क्या बात है !
ये निठल्ले , निकम्मे कवि
बे बात के ही पड़ते…
Added by praveen singh "sagar" on November 3, 2012 at 2:00pm — 7 Comments
जब कभी मेरी बात चले
ख़्वाब में भी कोई ज़िक्र चले
मेरे हमदम मेरे हमराज़
यूं ही खामोश रहो
शायद ही कभी
ठिठुरते हुए बिस्तर पे
कभी चांदनी बरसे
या फिर झील के ठहरे हुए पानी में
कभी लहरे मचले
जब कभी आँखों के समंदर में
कोई चाँद उतरे
मेरे हमदम मेरे हमराज
यूं ही खामोश रहो…
Added by Gul Sarika Thakur on November 2, 2012 at 10:05pm — 9 Comments
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