खूब आशीष दो रब नये वर्ष में
सिर्फ सुख में रहें सब नये वर्ष में/१
*
सुन जिसे पीर मन की स्वयं ही हरे
गीत ऐसा लिखें अब नये वर्ष में/२
*
छोड़कर द्वेष बाँटें सभी में सहज
प्रेम की सीख मजहब नये वर्ष में/३
*
नीति ऐसी बने जिससे आगे न हो
बन्द कोई भी मकतब नये वर्ष में/४
*
काम आये यहाँ और के आदमी
सिर्फ साधे न मतलब नये वर्ष में/५
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2021 at 10:39am — 2 Comments
छोटी सी पुकार
क़ि छोटा सा एक नीड़ है
मेरी अमानत
इस पर नज़र रखना…
Added by amita tiwari on December 30, 2021 at 11:30pm — No Comments
आज
काश ! सलाह दे पाऊँ
दीवार को
कि बाहों में भर
फुसफुसा ले
सुना ले सारी दिल की बातें
कर ले सारे गिले शिकवे शिकायतें
ठंडी साँसों को और गहराले
कर ले कलेजे का लिहाज़
कि कहाँ अब बाकि हफ़्ते दिन रैन
घड़ी दो घड़ी की भी क्या बिसात
कि बस सीने से चस्पाँ कलेंडर
इतिहास हो जाने को है
काल क़ा चक्र एहसास हो जाने को है
जी चाहता है
स्मरण दिला दूँ
दीवार को
क़ि ये भी…
ContinueAdded by amita tiwari on December 30, 2021 at 11:30pm — 1 Comment
1222 1222 1222 122
किसी की बेरुख़ी है या सनम हालात का दुख
परेशां हूँ हुआ है अब तुझे किस बात का दुख
तुम्हें तो पड़ गई हैं आदतें सी रतजगों की
तुम्हें क्या फ़र्क़ पड़ता बढ़ रहा जो रात का दुख
जमाती सर्दियाँ, फुटपाथ का घर, पेट ख़ाली
उन्हें सोने नहीं देता कई हालात का दुख
भिंगोते रात का आँचल बशर अपने ग़मों से…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 30, 2021 at 11:00am — 5 Comments
आने वाले साल से, कहे बीतता वर्ष
मुझ सा दुख मत बाँटना, देना केवल हर्ष।।
*
वर्ग भेद जग से मिटा, मिटा जाति संधर्ष
कर देना कर थामकर, निर्धन का उत्कर्ष।।
*
पहले सा परमार्थ भी, वह फिर गुणे सहर्ष
स्वार्थ साधना ही न हो, सत्ता का निष्कर्ष।।
*
घर आँगन है जो बसा, झाड़ पोंछ सब कर्ष
भर देना सौहार्द्र से, अब के भारतवर्ष।।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर'
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 30, 2021 at 7:30am — No Comments
दिल से दिल की हो गई, दिल ही दिल में बात ।
दिल तड़पा दिल के लिए, मचल गए जज़्बात ।
दिल में दिल की जीत है, दिल में दिल की हार -
दिल को दिल ही दिल मिली, धड़कन की सौगात ।
2.
काल गर्भ में है निहित, कर्म फलों का राज़।
अंतस में गूँजे सदा, कर्मों की आवाज़ ।
कर्म प्राण है जीव का, कर्म जीव की आस -
अच्छे कर्मो से करो, जीने का आगाज़ ।
सुशील सरना / 27-12-21
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 27, 2021 at 7:30pm — 4 Comments
"अन्तिम विदा" की शाम के बाद
कुछ पलों के लिए ही सही
एक बार पुन: तुम्हारा लोट आना
आँचभरी वेदना को छुपाती मेरी आँखों में देखना
मानवीय उलझनें, प्यार की तलाश
और अब अश्चर्य और उत्साह का सुप्रसार…
ContinueAdded by vijay nikore on December 27, 2021 at 4:00pm — 3 Comments
,
उस के नाम पे धोके खाते रहते हो
फिर भी उस के ही गुण गाते रहते हो.
.
उस के आगे बोल नहीं पाते हो तुम
मैं बोलूँ तो हाथ दबाते रहते हो.
.
कोई नया इस दुनिआ में कब आता है
तुम ही जा कर वापस आते रहते हो.
.
तुम को वापस अपने घर भी जाना है
क्यूँ दुनिआ से लाग लगाते रहते हो.
.
अक्सर मिलता है वो इन्साँ पूजता है
वो जिस को तुम ख़ुदा बताते रहते हो.
.
वाइज़ जी क्या तुम ने वो सब सीख लिया
हम को जो कुछ तुम समझाते रहते…
Added by Nilesh Shevgaonkar on December 27, 2021 at 8:30am — 9 Comments
सूरज यूँ है गाँव में, बहुत अधिक अँधियार।
नगर-नगर ही कर रही, किरणें हर व्यापार।।१
*
बन जाती है देश में, जिस की भी सरकार।
जूती सीधी कर रहे, नित उस की अखबार।।२
*
कैसे ये बस्ती जली, क्यों उजड़ा बाजार।
किस से पूछें बोलिए, जगी नहीं सरकार।।३
*
गमलों में फसलें उगा, खेतों में हथियार।
इसी सोच से क्या सुखी, होगा यह संसार।।४
*
कोई जब हो छीनता, थोड़ा भी अधिकार।
आँखों से आँसू नहीं, निकलें बस अंगार।।५
*
बातें व्यर्थ सुकून की,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2021 at 6:02am — 6 Comments
122 122 122 122
रजाई में दुबके, कहे सुन छमाछम..
किचन तक गयी धूप जाड़े की पुरनम
चकित चौंक उठतीं नवोढ़ा की आँखें
मुई चूड़ियो मत उठा शोर मद्धम
तुम्हीं को मुबारक जो ठानी है कुट्टी
नजर तो नजर से उठाती है सरगम
गजल-गीत संवेदना के हैं जाये
रखें हौसला पर जमाने का कायम
भरी जेब, निश्चिंतता हो मुखर तो
यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम
निराला जो ताना, तो बाना गजब का
नए नाम-यश का उड़ाना है परचम…
Added by Saurabh Pandey on December 25, 2021 at 10:52pm — 4 Comments
122-122-122-122
यही है शिकायत यही तो गिला है
चराग़ों तले क्यों अँधेरा हुआ है (1)
लुटाया है सब कुछ कहा जा रहा है
मैं ये सोचता हूँ मुझे क्या मिला है (2)
कभी सामने जो अकड़ता बहुत था
वही उसके क़दमों के नीचे पड़ा है (3)
न आगे कोई है न है कोई पीछे
बयाँ दे रहा बीच सबके खड़ा है (4)
बड़ी मुश्किलों से कटी ज़िंदगी ये
न जाने मुक़द्दर में क्या क्या लिखा है (5)
ख़ुशी के दो पल हाथ आते नहीं पर
ये ग़म है कि…
Added by सालिक गणवीर on December 24, 2021 at 11:00pm — 4 Comments
उसकी आँखें जो बोलती होतीं
कितने अफ़्साने कह रही होतीं
यूँ ख़ला में न ताकती होतीं
सिम्त मेरी भी देखती होतीं
काश आँखें मेरी इन आँखों से
हर घड़ी बात कर रही होतीं
उसकी आँखें जो बोलती होतीं...
देखकर मुझको मुस्कराती वो
अपनी आँखों में भी बसाती वो
जब कभी मुझसे रूठ जाती वो
मुझको आँखों से ही बताती वो
मेरे आने की राह भी तकतीं
नज़रें बस दरपे ही टिकी होतीं
उसकी आँखें जो बोलती…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 23, 2021 at 9:47pm — 4 Comments
लेता है भुजपाश में, बढ़चढ़ ज्यू ही काम।
एक हवेली प्यार की, होती नित नीलाम।।१
*
कर लो ढब ऐश्वर्य को, चाहे इस के नाम।
दुधली की दुधली रहे, हर जीवन की शाम।।२
*
सिलता रहा जुबान जो, बढ़चढ़ यहाँ निजाम।
शब्दों ने झर आँख से, किया कहन का काम।।३
*
निर्धन को जिसने दिये, हरदम कम ही दाम।
धनी उसे ठग ले गया, पैसा नित्य तमाम।।४
*
रमे यहाँ व्यापार में , सब ले उसका नाम।
महज भक्ति के भाव से, किसको प्यारे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 23, 2021 at 10:00am — 4 Comments
कहीं से उड़ के परिन्दे कहीं पे उतरे हैं
ख़ुदा से हो के ख़फ़ा हम ज़मीं पे उतरे हैं.
.
तुम्हारे ढब से मिली बारहा जो रुसवाई
हर एक बात पे हाँ से नहीं पे उतरे हैं.
.
हमारी आँखों की झीलें भी इक ठिकाना है
तुम्हारी यादों के सारस यहीं पे उतरे हैं.
.
हमारी फ़िक्र से नीचे फ़लक मुहल्ला है
ये शम्स चाँद सितारे वहीं पे उतरे हैं.
.
हज़ारों बार ज़मीं ने ये माथा चूमा है
उजाले सजदों के मेरे जबीं पे उतरे हैं.
.
निलेश "नूर"…
Added by Nilesh Shevgaonkar on December 22, 2021 at 10:30pm — 10 Comments
221 - 1222 - 221 - 1222
ये दर्द मिरे दिल के कब दिल से उतरते हैं
दिल में ही किया है घर सजते हैं सँवरते हैं
आती हैं बहारें तो खिलते हैं उमीदों से
गुल-बर्ग मगर फिर ये मोती से बिखरते हैं
जब टूटे हुए दिल पर तुम ज़र्ब लगाते हो
पूछो न मेरे क्या क्या जज़्बात उभरते हैं
पैवस्त ज़माने से थे जो मेरे सीने में
अब दर्द वही फिर से रह-रह के उभरते हैं
देखे हैं मुक़द्दर तो बिगड़े हुए बनते…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 21, 2021 at 10:13pm — 10 Comments
लघु से लघुतम बात को, जो देते हैं तूल।
ये तो निश्चित जानिए, मन में उनके शूल।१।
*
बनते बाल दबंग अब, पढ़ना लिखना भूल।
हुए नहीं क्यों सभ्य वो, जाकर नित स्कूल।२।
*
करती मैला भाल है, मद में उठकर धूल।
करे शिला को ईश यूँ, न्योछावर हो फूल।३।
*
साक्ष्य समय विपरीत पर, तजे सत्य ना मूल।
ज्यों नद सूखी पर हुए, एक नहीं दो कूल।४।
*
जलने को पथ काल का, तकना होगी भूल।
हवा कभी होती नहीं, सुनो दीप अनुकूल।५।
*
कड़वी बातें तीर सी,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 20, 2021 at 10:28pm — 8 Comments
पूछा मैंने पानी से
क्यूँ
सबको गीला कर देता है
पानी बोला
प्यार किया है
ख़ुद से भी ज़्यादा औरों से
इसीलिये चिपका रह जाता हूँ
मैं अपनों…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 19, 2021 at 10:30pm — 3 Comments
2122 1212 22
बस यही इक फ़रेब खा बैठा
मैं उसे ज़िन्दगी बना बैठा
एक पत्थर है ज़िन्दगी मेरी
उसी पत्थर से दिल लगा बैठा
धूप अपने शबाब पर आई
और साया भी दूर जा बैठा
ख़त्म कैसे भला अँधेरा हो
एक दीपक था जो बुझा बैठा
फिर ग़ज़ल रो पड़ी सरे महफ़िल
गीत फिर ग़म भरा सुना बैठा
'ब्रज' लिए है उदासियाँ अपनी
सामने चाँद अनमना बैठा
(मैलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 18, 2021 at 12:30pm — 10 Comments
राजनीति के पेड़ से, लिपटे बहुत भुजंग।
जिनके विष से हो गये, सब आदर्श अपंग।१।
*
बँधकर पक्की डोर से, छूना नहीं अनंग।
सबके मन की चाह है, होना कटी पतंग।२।
*
शिव सा बना न आचरण, होते गये अनंग।
लील रहे जीवन तभी, ओछे प्रेम प्रसंग।३।
*
क्षीण,हीन उल्लास अब, शेष न कोई ढंग।
हालातों ने कर दिया, जीवन अन्ध सुरंग।४।
*
बेढब फीके हो गये, जब से जीवन रंग।
कितनों ने है कर लिया, अपनी साँसें भंग।५।
*
तन की गलियाँ बढ़ गयीं, मन का आँगन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 16, 2021 at 2:26pm — 4 Comments
221 - 2122 - 221 - 2122
इन्साफ़ बेचते हैं फ़ैज़ान बेचते हैं
हाकिम हैं कितने ही जो ईमान बेचते हैं
अज़मत वक़ार-ओ-हशमत पहचान बेचते हैं
क्या-क्या ये बे-हया बे-ईमान बेचते हैं
मअ'सूम को सज़ा दें मुजरिम को बख़्श दें जो
आदिल कहाँ के हैं वो इरफ़ान बेचते हैं
घटती ही जा रही है तौक़ीर अदलिया की
जबसे वहाँ के 'लाला' 'सामान' बेचते हैं
उनके दिलों में कितनी अज़मत ख़ुदा की होगी
पत्थर तराश कर…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 16, 2021 at 10:39am — 8 Comments
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