2122 1122 1122 22
***
यार जब लौट के दर पे मेरे आया होगा,
आख़िरी ज़ोर मुहब्बत ने लगाया होगा ।
याद कर कर के वो तोड़ी हुई क़समें अपनी,
आज अश्कों के समंदर में नहाया होगा ।
ज़िक्र जब मेरी ज़फ़ाओं का किया होगा कहीं,
ख़ुद को उस भीड़ में तन्हा ही तो पाया होगा ।
दर्द अपनी ही अना का भी सहा होगा बहुत,
फिर से जब दिल में नया बीज लगाया होगा ।
जब दिया आस का बुझने लगा होगा उसने,
फिर…
Added by Harash Mahajan on September 12, 2020 at 6:00pm — 12 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
जिनके धन्धे दोहन वाले कब धरती का दुख समझे
सुन्दर तन औ' मन के काले कब धरती का दुख समझे।१।
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जिसने समझा थाती धरा को वो घावों को भरता नित
केवल शोर मचाने वाले कब धरती का दुख समझे।२।
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ताल, तलैया, झरने, नदिया इस के दुख में सूखे नित
और नदी सा बनते नाले कब धरती का दुख समझे।३।
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पेड़ कटे तो बादल रूठा और हवाएँ सब झपटीं
ये सड़कों के बढ़ते जाले कब धरती का दुख समझे।४।
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नित्य सितारों से गलबहियाँ उनकी तो हो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 12, 2020 at 5:58am — 6 Comments
122 122 122 12
जहाँ की नज़र में वो शैतान हैं
समझते हैं हम वो भी इंसान हैं
न हिंदू न यारो मुसलमान हैं
यहाँ सबसे पहले हम इंसान हैं
खु़दा कितने हैं ,कितने भगवान हैं
यही सोचकर लोग हैरान हैं
नहीं उनको हमसे महब्बत अगर
हमारे लिये क्योंं परेशान हैं
रिहा कर मुझे या तू क़ैदी बना
तेरे हैं क़फ़स तेरे ज़िंदान हैं
*मौलिक एवं अप्रकाशित.
Added by सालिक गणवीर on September 11, 2020 at 5:30pm — 11 Comments
मापनी २१२२ २१२२ २१२२
ज़िंदगी अच्छी तरह अब कट रही है,
आजकल खुद से हमारी पट रही है.
लूट कर वो ले गई है दिल हमारा,
झूलती रुखसार पर जो लट रही है.
हाल पूछा जो हमारा आज उसने, …
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on September 11, 2020 at 5:00pm — 9 Comments
अकेलेपन को भी हमने किया चौपाल के जैसा
बचा लेगा दुखों में ये हमें फिर ढाल के जैसा।१।
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भले ही दुश्मनी कितनी मगर आशीष हम देते
कभी दुश्मन न देखे बीसवें इस साल के जैसा।२।
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इसी से है जगतभर में हरापन जो भी दिखता है
हमारे मन का सागर ये न सूखे ताल के जैसा।३।
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सितारे अपने भी जगमग न कमतर चाँद से होते
अगर ये भाग्य भी होता चमकते भाल के…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 10, 2020 at 7:42pm — 2 Comments
2122 1122 1122 22(112)
जाने क्यूँ आज है औरत की ये औरत दुश्मन,
पास दौलत है तो उसकी है ये दौलत दुश्मन ।
दोस्त इस दौर के दुश्मन से भी बदतर क्यूँ हैं,
देख होती है मुहब्बत की हकीकत दुश्मन ।
माँग लो जितनी ख़ुदा से भी ये ख़ुशियाँ लेकिन,
हँसते-हँसते भी हो जाती है ये जन्नत दुश्मन ।
मैं बदल सकता था हाथों की लकीरों को मगर,
यूँ न होती वो अगर मेरी मसर्रत दुश्मन ।
ऐसे इंसानों की बस्ती से रहो दूर जहॉं,
'हर्ष' हो…
Added by Harash Mahajan on September 8, 2020 at 11:00pm — 11 Comments
"सुनो !! आज दो लीटर दूध और लेकर आना , बाबूजी का श्राद्ध करना है," ममता ने अपने पति रोहन से कहा ।
"ठीक है, ले आऊंगा," ये कहकर रोहन दूध लेने चला गया।
"चलो सोनू बेटा जल्दी करो! आज पाँच ब्राह्मणों को भोजन कराना है ;फटाफट नहा कर आओ! क्योंकि श्राद्ध तुम्हारे हाथ से होगा,"ये कहते हुए वो रसोई में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने में व्यस्त हो गई।
"मम्मा ये श्राद्ध हम क्यों कर रहे हैं ?" सोनू ने पूँछा।
"ये करने से तुम्हारे दादू हमें आशीर्वाद देंगे," हमारे घर में सम्पन्नता…
ContinueAdded by Madhu Passi 'महक' on September 8, 2020 at 12:00pm — 5 Comments
"हिन्दी बोलने में ना सकुचेंगे"
हिन्दी मातृभाषा है मेरी,
फिर क्यूं बोलने में शरमाऊं।
पट पट पट पट अंग्रेजी बोलना,
क्यूं ही मैं हरदम चाहूँ।।
हिन्दी बोलूं तो गंवार लगूं,
जो अंग्रेजी बोलूं तो शान।
क्यूं हम हिन्दी होकर भी,
नहीं करते हिन्दी का सम्मान।।
विदेशी भारत आकर भी,
इंग्लिश में ही बातें करता।
फिर भारतीय विदेश में जाकर ,
क्यूं हिन्दी बोलने में है कतराता ।।
गीता का उपदेश भी कृष्ण ने ,
हिन्दी में ही सुनाया है।…
Added by Neeta Tayal on September 8, 2020 at 10:00am — 4 Comments
बिना दिल के ......
लहरों से टकराती
हवाओं से उलझती कश्ती को
आख़िरकार
किनारा मिल ही गया
मगर
अभी तो उसे जीना था
वो समंदर
ज़िंदा थीं जिसमें
उसकी बेशुमार ख्वाहिशें
उसके साथ जीने की
लगता था
उसके बिना
रेतीले किनारों पर
मेरा बदन मृत सा पड़ा जी रहा था
इस आस में
कि मेरा समंदर
मुझे नहीं छोड़ेगा
इन रेतीले किनारों में
दफन होने के लिए
वो जानता है
बिना दिल के भी
कहीं ज़िस्म…
Added by Sushil Sarna on September 7, 2020 at 7:30pm — 8 Comments
मापनी २२ २२ २२ २२
है जिनके हाथों में सत्ता.
उनका हर दिन बढ़ता भत्ता.
छोड़ दिया जिसको डाली ने,
इधर-उधर उड़ता वह पत्ता.
कीमत भारी होनी ही थी,
था पुस्तक पर…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on September 7, 2020 at 3:30pm — 12 Comments
221 2121 1221 212
क्या जाने किस जनम का सिला दे गया मुझे
था बेगुनाह फिर भी सज़ा दे गया मुझे
कैसे यक़ीन कीजिए ग़ैरों की बात का
समझा था जिसको अपना दगा दे गया मुझे
लम्बी हो उम्र मेरी दुआ मांँगता रहा
मरने की मुफ़्त में जो दवा दे गया मुझे
उसके इशारों को मैं समझ ही नहीं सका
गूंँगा था आदमी जो सदा दे गया मुझे
ग़ज़लें पुरानी ले गया आया था ख़्वाब में
इनके इवज में घाव नया दे गया मुझे
भीगा था जिस्म…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on September 6, 2020 at 10:00pm — 18 Comments
एक गजल तेरे होठों पर लिख सकता था
इसकी टपक रही लाली पर बिक सकता था
किंतु सामने जब शहीद की पीर पुकारे
जान वतन पर देने वाला वीर पुकारे
जिसने भाई, लाल, कंत कुर्बान किये हों
सूख चुकी उनकी आँखों का नीर पुकारे
कैसे उन क़ातिल मुस्कानों पर बिकता
कैसे कोमल नाजुक होठों पर लिखता
एक गजल तेरी आँखों पर लिख सकता था
चंचल चितवन सी कमान पर बिक सकता था
पर कौरव-पांडव दल आँखें मींच रहा हो
चीर दुःशासन द्रुपद-सुता की…
Added by आशीष यादव on September 6, 2020 at 8:30pm — 8 Comments
221 2122 221 2122
ये मामला है दिल का फैला ले पर मेरे ख़त/1
जाना पड़ेगा तुझको उड़कर शहर मेरे ख़त
इस बार लिखना तय था वरना तो जाने कब से/2
आ जा रहे थे ख़्वाबों में उनके घर मेरे ख़त
अनपढ़ गंवार पागल थी इश्क़ क्या ही करती/3
चूल्हा जला रही थी वो फाड़ कर मेरे ख़त
सर्दी की रात थी जब उनको क़मर कहा था/4
उड़ कर के खुद गए थे उनके शहर मेरे ख़त
होठों की लाली होती थी जिन ख़तों पे पहले/5
अब रद्दी बन रहे थे बस उनके घर मेरे ख़त
इनकार लिखना…
ContinueAdded by Dimple Sharma on September 6, 2020 at 3:07pm — 10 Comments
शिक्षक है एक कुम्भकार और शिल्पकार
हम गीली मिट्टी देता हमे वो आकार
उसने ही अच्छे बुरे का ज्ञान करवाया
जीवन रूपी भंवर में कैसे है तैरना
ये मेरे गुरु ने मुझे सिखलाया
जैसे नदी में एक नाव माझी बिना
वैसे ही अज्ञानी हम शिक्षक बिना
जिंदगी में उसने हमें सही मुक़ाम पर पहुंचाया
जीवन रूपी भंवर में कैसे है तैरना
ये मेरे गुरु ने मुझे सिखलाया
उसने कभी कुछ नहीं हमसे माँगा
आगे बढ़ता देख हमें वो फूला न समाया …
ContinueAdded by Madhu Passi 'महक' on September 4, 2020 at 11:00am — 6 Comments
ज़िंदगी ........
झड़ जाते हैं
मौसमों की मार सहते सहते
एक एक करके सारे पात
किसी वयोवृद्ध वृक्ष के
भ्रम है उसकी अवस्था
क्योँकि
उम्र के चरम के बावज़ूद
रहती है ज़िंदा
अपने मौसम की प्रतीक्षा में
आदि किरण
ज़िंदगी की
लौट आते हैं उदास विहग
ज़िंदगी के
पुनः उन्हीं पर्ण विहीन शाखाओं पर
अंकुरित होती है जहाँ
फिर से शाखाओं की कोरों पर
पीत पुष्पों से
लौटे मौसम का अभिनन्दन करती…
Added by Sushil Sarna on September 3, 2020 at 9:30pm — 6 Comments
देह पर कुछ दोहे, ,,,,,,
देह धरा में खो गई, शून्य हुए सम्बंध ।
तस्वीरों में रह गई, रिश्तों की बस गंध ।।
देह मिटी तो मिट गए, भौतिक जग के दंश ।
शेष पवन में रह गए, कुछ यादों के अंश ।।
देह छोड़ के उड़ चला ,श्वास पंख का हंस ।
काल न छोड़े जीव को ,होता काल नृशंस ।।
आती -जाती देह में , सांसे हैं आभास ।
एक श्वास का भी नहीं, जीवन में विश्वास ।।
देह दास है श्वास की, श्वास देह की प्यास ।
श्वास देह की जिंदगी, श्वास देह की आस…
Added by Sushil Sarna on September 3, 2020 at 8:35pm — 10 Comments
धरणी को बरबाद कर
चन्द्र करो जा नष्ट
फिर ढूँढो घर तीसरा
जहाँ न कोई कष्ट
यह क्रम चलता ही रहे
मानव ही जब दुष्ट
आपस में लड़ कर करे
सर्व विभूति विनष्ट
समझे मालिक स्वयं को
बन बैठा भगवान
हिरनकशिपु सम सोच रख
औरों का अपमान
करते बम के परीक्षण
खुशी मने ज्यों पर्व
राम , कृष्ण सदृश कोई
आए , तोड़े गर्व
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on September 3, 2020 at 7:26pm — 3 Comments
Added by Neeta Tayal on September 3, 2020 at 3:27pm — 4 Comments
शिक्षा देने वाले हे गुरुजनों,
कैसे आपका बखान करूं।
सूरज को दिया दिखाने जैसा,
कैसे ये तुच्छ काम करूं।।
ज्ञान शस्त्र जो मिला आपसे,
फिर दुनियां से क्यूं डरूं।
अज्ञानता के अन्धकार को,
जन जन के जीवन से दूर करूं।।
शिक्षक दिवस पर सभी गुरुजनों को,
हाथ जोड़ वंदन करूं।
बिना रुके बिना झुके,
आपके प्रशस्त मार्ग पर बढ़ती रहूं।।
किताबी ज्ञान को व्यवहारिक कर
जीवन में कूट कूट कर भर लूं।
समानता का अधिकार दिलाने,
दुनियां से भी मैं लड़…
Added by Neeta Tayal on September 3, 2020 at 8:20am — 7 Comments
1212 1122 1212 22
बदल रहा है तेरा शह्र पैरहन मेरा/1
ख़ुदारा खैर है बदला नहीं है तन मेरा
तेरा यूँ ख्वाब-ओ-ख्यालों में आना जाना/2
रखेगा कौन बता यार यूँ जतन मेरा
तू लड़ मगर तोड़ मत ये आईना इकलौता/3
जो टूटा कौन निहारेगा फिर बदन मेरा
मुझे ख़बर हुई है तेरे आने की जबसे/4
महक रहा है तेरे ख्याल से बदन मेरा
था खुबसूरत मेरा भी एक आशियाना सुन/5
उजाड़ा है मेरे अपनों ने ही चमन मेरा
जो इन्तजार मेरी मौत का सभी को था/6
तो लो खरीद लिया…
Added by Dimple Sharma on September 2, 2020 at 4:00pm — 7 Comments
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