|
विराम-चिह्न की आत्मकहानी, सुनें उसी की जुबानी ।
मैं विराम-चिह्न हूँ। कुछ विद्वान मुझे विराम चिन्ह या विराम भी बोलते हैं लेकिन मुझे कोई आपत्ति नहीं है। हाँ, एक बात मैं… |
Added by Prabhakar Pandey on November 24, 2011 at 3:30pm — 3 Comments
Added by Arun Sri on November 23, 2011 at 1:30pm — 3 Comments
ग़ज़ल :- अस्ल में मौत का है कुआँ ज़िन्दगी !
पेट की भूख का है बयाँ ज़िन्दगी ,
अस्ल में मौत का है कुआँ ज़िन्दगी |
सबसे आगे निकलने की एक होड़ है ,
जलती संवेदनाएं धुआँ ज़िन्दगी |
इस तमाशे की कीमत चुकाओगे क्या ,
हम हथेली पे…
ContinueAdded by Abhinav Arun on November 22, 2011 at 7:30am — 15 Comments
बस क़दमों की आहट आये' आने का' इमकान कहाँ,
ऐसे झूटे' ख्वाबों के सच होने का' इमकान कहाँ।
उम्मीदों के' बागीचे का' पत्ता पत्ता बिखर गया,
इस गुलशन में' फूलों के' फिर खिलने का' इमकान कहाँ।
दाना खाने' के चक्कर में' पंछी जो' उस पार गये,
खा पीकर भी वापिस उनके' आने का' इमकान कहाँ।
हाँ दौलत के' ढेर नहीं ये' माना माँ के आँचल में,
पर' दो वक्ता रोज़ी के ना' मिलने का' इमकान कहाँ।
डगमग होके' गोते खाए रूहें बाबा अम्मा की,
टूटी नय्या' पर…
Added by इमरान खान on November 21, 2011 at 11:00am — 4 Comments
मुक्तक:
भारत
संजीव 'सलिल'
*
तम हरकर प्रकाश पा-देने में जो रत है.
दंडित उद्दंडों को कर, सज्जन हित नत है..
सत-शिव सुंदर, सत-चित आनंद जीवन दर्शन-
जिसका जग में देश वही अपना भारत है..
*
भारत को भाता है, जीवन का पथ सच्चा.
नहीं सुहाता देना-पाना धोखा-गच्चा..
धीर-वीर गंभीर रहे आदर्श हमारे-
पाक नासमझ समझ रहा है नाहक कच्चा..
*
भारत नहीं झुका है, भारत नहीं झुकेगा.
भारत नहीं रुका है, भारत नहीं रुकेगा..
हम-आप मेहनती हों, हम-आप नेक हों…
Added by sanjiv verma 'salil' on November 21, 2011 at 7:31am — 2 Comments
दोहा मुक्तिका
यादों की खिड़की खुली...
संजीव 'सलिल'
*
यादों की खिड़की खुली, पा पाँखुरी-गुलाब.
हूँ तो मैं खोले हुए, पढ़ता नहीं किताब..
गिनती की सांसें मिलीं, रखी तनिक हिसाब.
किसे पाता कहना पड़े, कब अलविदा जनाब..
हम दकियानूसी हुए, पिया नारियल-डाब.
प्रगतिशील पी कोल्डड्रिंक, करते गला ख़राब..
किसने लब से छू दिया पानी हुआ शराब.
मैंने थामा हाथ तो, टूट गया झट ख्वाब..
सच्चाई छिपती नहीं, ओढ़ें लाख…
Added by sanjiv verma 'salil' on November 20, 2011 at 11:53am — No Comments
तुमने कभी सुना है,
रात का शोर?
कभी सुने हैं
चीखते सन्नाटे?
जो सोने नहीं देते ।
बार बार एक ही
नाम पुकारते है |
और ये अंधेरा
जो शोर मचाता है
किसी की याद दिलाता है |
सन्नाटों को ये जुबान
किसने दे दी…
ContinueAdded by Vikram Srivastava on November 20, 2011 at 1:47am — No Comments
हुस्न मिल जायेगा पर नहीं सादगी.
Added by AVINASH S BAGDE on November 16, 2011 at 10:30am — No Comments
बचपन.
Added by AVINASH S BAGDE on November 12, 2011 at 9:00pm — 4 Comments
ये कैसा व्यापार हुआ,
दुश्मन सारा बाज़ार हुआ |
दिल लेकर दिल दे बैठे तो,
क्यूँ जग में हाहाकार हुआ|
…
Added by Vikram Srivastava on November 12, 2011 at 2:08am — 12 Comments
दोहा सलिला
गले मिले दोहा यमक
--संजीव 'सलिल'
*
जिस का रण वह ही लड़े, किस कारण रह मौन.
साथ न देते शेष क्यों?, बतलायेगा कौन??
*
ताज महल में सो रही, बिना ताज मुमताज.
शिव मंदिर को मकबरा, बना दिया बेकाज..
*
भोग लगा प्रभु को प्रथम, फिर करना सुख-भोग.
हरि को अर्पण किये बिन, बनता भोग कुरोग..
*
योग लगाते सेठ जी, निन्यान्नबे का फेर.
योग न कर दुर्योग से, रहे चिकित्सक-टेर..
*
दस सर तो देखे मगर,…
ContinueAdded by sanjiv verma 'salil' on November 12, 2011 at 1:00am — No Comments
भोर
Added by mohinichordia on November 11, 2011 at 9:00am — No Comments
Added by Rajeev Gupta on November 10, 2011 at 8:32pm — 1 Comment
अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद
दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेगें
आज़ाद ही रहे हैं आज़ाद ही रहेगें
अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद को उपरोक्त पंक्तियां अत्यंत प्रिय थी। इन्हे वह अनेक बार गुनगुनाया भी करते थे। चंद्रशेखर आज़ाद ने 27 फरवरी 1931 को ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के कंमाडर इन चीफ की हैसियत से इलाहबाद के अलेफ्रेड…
ContinueAdded by prabhat kumar roy on November 10, 2011 at 8:00am — 3 Comments
एक ग़ज़ल
आपका यूँ मुस्कुराना क्यों मुझे अच्छा लगा ?
एक होना, डूब जाना क्यों मुझे अच्छा लगा ?
जब अकेले हैं मिले, दीवानगी बढ़ती गई,
सिर हिलाना, भाग जाना क्यों मुझे अच्छा लगा ?
हाथ में मेरे, कलाई जब…
ContinueAdded by Afsos Ghazipuri on November 9, 2011 at 12:30am — 4 Comments
प्रैस रिपोर्टर : कुमुद शर्मा
रविवार की रात्री को देव प्रबोधनी एकादशी के अवसर पर त्रिवेणी कला संगम सभागार स्थित तानसेन मार्ग मंडी हॉउस नई दिल्ली में अखिल भारतीय स्वतन्त्र लेखक मंच द्वारा महाकवि कालीदास समारोह आयोजित किया गया जिस के मुख्य अतिथि भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त डाo जीo वीo जीo कृष्ण मूर्ती थे I त्रिवेणी हाल दर्शकों ,मिडिया,पत्रकारों,कलाकारों से खचाखच…
ContinueAdded by Deepak Sharma Kuluvi on November 8, 2011 at 2:45pm — No Comments
त्यागपत्र (कहानी)
लेखक - सतीश मापतपुरी
अंक 8 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे
------------- अंक - 9 --------------
रात्रि के 12 बज रहे थे. सिंह साहेब के सम्मान में एक बड़ी दवा कम्पनी ने राजधानी के एक शानदार होटल में भोज का आयोजन किया था. प्रबल बाबू उस दुनिया से बेखबर हो चुके थे, जहाँ गरीबी रेखा से भी नीचे लोग अपना जीवन बसर करते…
ContinueAdded by satish mapatpuri on November 7, 2011 at 8:00pm — 1 Comment
त्यागपत्र (कहानी)
लेखक - सतीश मापतपुरी
अंक 7 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे
-------------- अंक - 8 --------------
प्रबल प्रताप सिंह अब पूरी तरह बदल चुके थे. उनकी ममता को नैतिकता की वेदी पर अपने बच्चों का भविष्य कुर्बान करना गंवारा नहीं था. जीवन एक चढ़ान का नाम है, जहाँ से इंसान एक बार फिसलता है तो गिरता ही चला जाता है. उत्थान से…
ContinueAdded by satish mapatpuri on November 6, 2011 at 2:30pm — 1 Comment
दोहा सलिला:
गले मिले दोहा यमक
संजीव 'सलिल'
*
तेज हुई तलवार से, अधिक कलम की धार.
धार सलिल की देखिये, हाथ थाम पतवार..
*
तार रहे पुरखे- भले, मध्य न कोई तार.
तार-तम्यता बनी है, सतत तार-बे-तार..
*
हर आकार -प्रकार में, है वह निर-आकार.
देखें हर व्यापार में, वही मिला साकार..
*
चित कर विजयी हो हँसा, मल्ल जीत कर दाँव.
चित हरि-चरणों में लगा, तरा मिली हरि छाँव..
*…
Added by sanjiv verma 'salil' on November 5, 2011 at 1:23pm — No Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
Switch to the Mobile Optimized View
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |