छंदों की फुहार हैं भीगे अशआर हैं
कहे कलम क्या; सृजन करूँ ?
मैं ग़ज़ल लिखूँ या गीत लिखूँ ?
जो नित नए रंग बदलते हों
पल पल में साथ बदलते हों
नूतन परिधानों की…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 1, 2013 at 11:30am — 18 Comments
2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2
"रमल मुसम्मन महजूफ"
.
जिंदगी तू ही बता दे जुस्तजू क्या है
इक निवाले के सिवा अब आर्ज़ू क्या है
ख़ास जोरोजर समझते हैं जहाँ …
ContinueAdded by rajesh kumari on September 25, 2013 at 2:30pm — 37 Comments
२ १ २ २ २ १ २ २ २ १ २
रुक्न --फ़ाइलातुन ,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन
बह्र --रमल मुसद्दस महजूफ
पत्थरों से ज्यों मुहब्बत हो रही
गुगुनाने को तबीयत हो रही…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 16, 2013 at 2:00pm — 39 Comments
नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे
नई डगर पे अब क़दमों को मोड़ दे!!
राहों में जब
तेरी कंटक आयेंगे
उलझेंगे फिर
मन को बहुत डरायेंगे
आगे बढ़कर उस डाली को तोड़ दे
जहरीली मूलों को तू झिंझोड़ दे
नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे!!
घर के तेरे
दरवाजे भी टोकेंगे
मर्यादा की
बैसाखी से रोकेंगे
आगे बढ़कर उनके रुख को मोड़ दे
घूंघट में छुप कर शर्माना छोड़ दे
नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे!!
दुश्मन तेरे…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 14, 2013 at 1:16pm — 19 Comments
२ १ २ २ २ १ २ १ १ २ १ २
.
छोडो अपनी ढाई चाल बहुत हुआ
खून में आया उबाल बहुत हुआ
आम जनता की आवाज दबे नहीं
देश में लाये भूचाल बहुत हुआ …
ContinueAdded by rajesh kumari on September 6, 2013 at 7:30pm — 20 Comments
दीवार तग़ाफुल की ये ढाओ तो सही
इक बाँध रिफ़ाकत का बनाओ तो सही
आ पाक मुहब्बत में मिटा दें सरहदें
इस ओर जरा हाथ बढ़ाओ तो सही
हैरान परेशान खड़े हो इस…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 2, 2013 at 9:30am — 35 Comments
"भाभी कहाँ से लायी हो इतनी सुन्दर दुल्हन ? नजर ना लगे", श्यामला ने घूंघट उठाते ही कहा, "..ऐसा लगे है जैसे कौव्वा जलेबी ले उड़ा.."
दूर बैठी श्यामा ने जैसे ही दबी जबान में कहा, खिलखिलाहट से सारा कमरा गूँज उठा ।
"श्यामा भाभी कभी तो मीठा बोल लिया करो.. मेरा भतीजा कहाँ से कव्वा लगता है तुम्हे ? मेरे घर का कोई शुभ काम तुम्हे सहन नहीं होता तो क्यूँ आती हो ?" श्यामला ने आँखें तरेरते हुए श्यामा को कहा।
मुंह दिखाई का सिलसिला चल ही रहा था कि पड़ोस का नन्हें बदहवास-सा दौड़ता हुआ…
Added by rajesh kumari on August 30, 2013 at 11:30am — 25 Comments
तोमर छंद, प्रत्येक चरण में १२ मात्राएँ तुकान्त चरणान्त गुरु लघु से अंत )
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चोरी का बुना जाल ,फंस गए नन्द लाल
देख दधि मटकी हाल , हुई मैया बेहाल
पड़ गया उल्टा दांव, जब पकड़ा दबे पाँव,
ढूंढें नहि मिली ठांव, जा…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 28, 2013 at 2:00pm — 17 Comments
"मीता देखो अभी वक़्त है फैसला बदल लो, ईद का दिन है कहीं कुछ भी हो सकता है.. फ्लाईट से चलते हैं.."
"नहीं पहले प्रोग्राम के अनुसार ही चलते हैं", मीता अपने पति से बोली, "देखो आते वक़्त जम्मू से श्री नगर के रास्ते की कितनी खूबसूरत यादें हमारे कैमरे में बंद हैं ! जाते वक़्त भी जो जगह छूट गई थी.. उनकी तस्वीरें भी कैद करुँगी, ईद के दिन कश्मीर कैसा लगता है.. देखना चाहती हूँ.. देखो कैसा दुल्हन की तरह सजा है.. लोग बड़े बूढ़े बच्चे स्त्रियाँ कितने सुंदर लिबास में सजे धजे घूम रहे हैं, इस…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 24, 2013 at 12:00pm — 22 Comments
पोखर छल छल जल भरे ,धुले धुले मैदान|
काई ने पहना दिए , हरित नवल परिधान||
धरती अंतर में छुपा,दादुर जीव विचित्र|
नव चौमासे ने कहा ,बाहर आजा मित्र||
मुक्तक फूटें मेघ से ,टपर टपर टपकाय |
प्यासा चातक चुन रहा,चरुवा भरता जाय||
…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 26, 2013 at 4:30pm — 13 Comments
इतना ओवर री एक्ट क्यूँ कर रही हो ऋतिका! मुंह कब तक फुलाए रखोगी ऐसा क्या कर दिया मैंने? तुम ही तो चाहती थी कि मैं तुम्हारी तरह समाज सेवा करूँ इसी लिए तो उस एक्सीडेंट के केस को अपनी कार में उठा के लाया पूरी कार ब्लड से गन्दी भी करवाई ,अपने हॉस्पिटल में एडमिट भी किया और ट्रीट मेंट भी कर रहा हूँ और क्या चाहिए तुमको ? और अच्छी खासी रकम भी तो ली है ये क्यूँ नहीं कहते!!! ,ऋतिका का दबा गुस्सा मानो अचानक ज्वाला मुखी बनकर फूट निकला ,केवल दो…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 16, 2013 at 9:42pm — 15 Comments
जीवन में हर रंग दिखाता ये पल्लू
सर पर तो पूरित हो जाता है पल्लू
गर्मी में चेहरे का पसीना पौंछता
सावन में छतरी बन जाता है पल्लू
जब- तब शादी में गठबंधन करवाता
दो जीवन को एक बनाता ये पल्लू
झोली बन कर आखत अर्पण करवाता
फिर घूँघट की शान बढाता है पल्लू
कभी कभी नव शिशु का झूला बन जाता
आँखों से…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 12, 2013 at 12:00pm — 26 Comments
रोज शोलों में झुलसती तितलियाँ हम देखते हैं (ग़ज़ल "राज")
२ १ २ २ २ १ २ २ २ १ २ २ २ १ २ २
बहर ----रमल मुसम्मन सालिम
रदीफ़ --हम देखते हैं
काफिया-- इयाँ
आज क्या-क्या जिंदगी के दरमियाँ हम देखते हैं
जश्ने हशमत या मुसल्सल पस्तियाँ हम देखते हैं
खो गए हैं ख़्वाब के वो सब जजीरे तीरगी में
गर्दिशों में डगमगाती कश्तियाँ हम देखते हैं
ख़ुश्क हैं पत्ते यहाँ अब यास में…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 9, 2013 at 5:30pm — 40 Comments
वजन : 2122 1212 22
वक़्त किसका गुलाम होता है
कब कहाँ किसके नाम होता है
कल तलक जिससे था गिला तुमको
आज किस्सा तमाम होता है
खास है जो मुआमला अपना
घर से निकला तो आम होता है
आज जग में सिया नहीं मिलती
औ’…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 2, 2013 at 11:00am — 48 Comments
ऐसी प्रलय भयंकर आई ,होश मनुज के दियो उड़ाय
काल घनों पर उड़ के आया ,घर के दीपक दियो बुझाय
पिघली धरा मोम के जैसे ,पर्वत शीशे से चटकाय
ध्वस्त हुए सब मंदिर मस्जिद ,धर्म कहाँ कोई बतलाय
बच्चे बूढ़े युवक युवतियां ,हुए जलमग्न कौन बचाय
शिव शंकर आकंठ डूबे , चमत्कार नाही दिखलाय
केदारनाथ शिवालय भीतर,ढेर लाश के दियो लगाय
मौत से लड़कर बच गए जो ,उनकी पीर कही ना जाय
नागिन सी फुफकारें नदियाँ ,निर्झर गए खूब पगलाय
पर्वत हुए खून…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 23, 2013 at 3:15pm — 33 Comments
जख्म कांटो से खायें हैं हमें फूलों को सताना नहीं आता
इश्क़े सफीने बचाए हैं हमे तूफाँ में डुबाना नहीं आता
तुम बुजदिली कहलो या समझो शाइस्तगी मेरी
हुए सब अपने पराये हैं हमे सच्चाई छुपाना नहीं आता
किसी ने दिल से निकाला , किसी ने राह में फेंका
सर पे हमने बिठाए हैं हमे ठोकर से हटाना नहीं आता
कभी ना बेरुखी भायी कभी ना नफरतें पाली
दिलों में ही घर …
ContinueAdded by rajesh kumari on June 20, 2013 at 7:30pm — 18 Comments
सुबह दरवाजे पे देखा
ढेरों फूल, हैं बिखरे
कहीं से, रात को तूफ़ान
लेकर साथ आया था
मेरी ही याद उन्हें आई ;कुछ श्रद्धा रही होगी
दरख्तों ने दिए आशीष कोई मर्जी रही…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 8, 2013 at 11:58am — 20 Comments
बहर --रमल मुसद्दस सालिम
2122 2122 2122
उम्र जितनी तेज़ बढती जा रही है
वो खुदाया पास मेरे आ रही है
राह में किस मोड़ पर हो जाए मिलना
जिन्दगी ये सोचती सी जा रही है
क्या किसी तूफ़ान का संकेत है ये
रेत में बुलबुल नहा कर जा रही है
जानते हैं भाग्य अपना पीत पत्ते
फ़स्ल देखो पतझड़ों की आ रही है
खुल गयीं हैं जुल्फ उसकी आज शायद
वादियों…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 5, 2013 at 3:30pm — 33 Comments
साथी रे बिन प्रीत तुम्हारी रीती है मन की गागर
नदिया की तृष्णा हरे कैसे लवणित बूँद -बूँद सागर
अवगुंठित भाव होकर अधीर
गीतों में निरी भरते हैं पीर
विरह कंटक चुभ हिय घाव करें…
ContinueAdded by rajesh kumari on May 31, 2013 at 11:00pm — 22 Comments
(प्रवास पर होने के कारण तरही मुशायरा अंक ३५ की ग़ज़ल यहाँ पेश कर रही हूँ )
आज जिस हाल में खुदा लाया
वक्त सपने वहीँ सजा लाया
रात सपने हसीन लाती है
दिन बुलाकर करीब क्या लाया
चाँदनी से सितारे रूठेंगे
चाँद दिल रात का चुरा लाया
तुम मिलोगे हजार कोशिश की
फिर हमें आज वास्ता लाया
जाते- जाते यही कहा उसने
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया
मोड़ जिसपर जुदा हुए थे हम
फिर वहीँ आज…
ContinueAdded by rajesh kumari on May 22, 2013 at 11:00am — 18 Comments
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