2122 1122 1212 22/ 112
उसका बदला हुआ तर्ज़े करम सताता था
यार बेज़ार था कुछ यूँ कि कम सताता था //१
होके कुछ यूँ वो ब मिज़गाने नम सताता था
कब मैं समझा कि वो अबरू-ए-ख़म सताता था //२
दूर रहने पे तेरी क़ुरबतों की याद आई
पास रहने पे जुदाई का ग़म सताता था //३
जिनको इफ़रात थी रिज़्को ग़िज़ा की जीने में
ऐसे लोगों को भी कर्बे शिकम…
Added by राज़ नवादवी on December 1, 2018 at 11:30am — 8 Comments
२१२२ ११२२ ११२२ २२/ १२२
मैं हूँ साजिद, मेरा मस्जूद मगर जाने ना
घर में साकिन हैं कई, सबको तो घर जाने ना //१
ख़ुद ही पोशीदा है तू ख़ल्क़ में तो क्या शिकवा
कोई क्या आए तेरे दर पे अगर जाने ना //२
दोनों टकराती हैं हर रोज़ सरे बामे उफ़ुक़
मोजिज़ा है कि कभी शब को सहर जाने ना //३
ये अलग बात है तू मुझपे नज़र फ़रमा नहीं
वरना क्या बात है जो तेरी नज़र जाने ना //४
तू मुदावा है मेरे गम का तुझे क्या मालूम
बात यूँ है कि…
Added by राज़ नवादवी on November 26, 2018 at 12:04pm — 11 Comments
2122 1122 1122 22/ 122
वह्म को खोल के हमने तो वहम कर डाला
जीभ थी ऐंठती, इस दर्द को कम कर डाला
बाज़ लफ़्ज़ों के तलफ़्फ़ुज़ को हज़म कर डाला
नर्म जो थी न सदा उसको नरम कर डाला
क़ह्र की छुट्टी करी सीधे कहर को लाकर
टेढ़े अलफ़ाज़ पे हमने ये सितम कर डाला
क्योंकि लंबी थी बहुत रस्मो क़वायद पे बहस
ख़त्म होती नहीं ख़ुद, हमने ख़तम कर…
Added by राज़ नवादवी on November 25, 2018 at 9:59am — 15 Comments
2122 2122 2122 212
सोचता हूँ तुझमें कब बंदा नवाज़ी आएगी
तेरे तर्ज़े क़ौल में किस दिन गुदाज़ी आएगी //१
मैं अभी बच्चा हूँ मुझको छेड़ते हो किसलिए
मैं बड़ा भी होऊँगा, क़द में दराज़ी आएगी //२
देखता तो है पलट कर वो इशारों में अभी
मुस्कुराएगा वो कल, तब-ए- तराज़ी आएगी //३
तेरा ये हुस्ने मुजस्सम और मेरी दीवानगी
मिल गए हम दोनों फिर…
Added by राज़ नवादवी on November 21, 2018 at 6:00pm — 22 Comments
2212 1212 2212 1212
ख़ुशियों से क्या मिले मज़ा, ग़म ज़िंदगी में गर न हो
शामे हसीं का लुत्फ़ क्या जब जलती दोपहर न हो
लुत्फ़े वफ़ा भी दे अगर बेदाद मुख़्तसर न हो
इक शाम ऐसी तो बता जिसके लिए सहर न हो
हालात जीने के गराँ भी हों तो क्या बुराई है
मजनूँ मिले कहाँ अगर सहराओं में बसर न हो
ऐसी रविश तो ढूँढिए गिर्यावरी ए आशिक़ी
तकलीफ़ देह भी न हो, नाला भी बेअसर न हो
ख़ुशियों के मोल बढ़ते हैं रंजो अलम के क़ुर्ब से
तादाद…
Added by राज़ नवादवी on November 19, 2018 at 10:00am — 15 Comments
2122 1122 1122 22/ 112
सब्र रक्खो तो ज़रा हाल बयाँ होने तक
आग भी रहती है ख़ामोश धुआँ होने तक //१
समझेंगे आप भला क्यों ये गुमाँ होने तक
इश्क़ होता नहीं है दर्दे फुगाँ होने तक //२
तज्रिबा ये जो है सब आलमे सुग्रा का यहाँ
जाँ गुज़रती है सराबों से निहाँ होने तक //३
मुझको फ़िरदोस ने फिर से है निकाला बाहर
कौन है आलमे बाला में…
Added by राज़ नवादवी on November 17, 2018 at 11:00am — 11 Comments
2212 1212 2212 1212
ख़ुश्बू सी यूँ हवा में है, लगता वो आने वाला है
आबोहवा का हाल भी पिछले ज़माने वाला है //१
बाहों का तुम सहारा दो, तूफ़ान आने वाला है
दरिया तुम्हारे प्यार का सबको डुबाने वाला है ///२
बनते हो तीसमार खाँ, मेरी भी पर ज़रा सुनो
इक दिन ये वक़्त आईना तुमको दिखाने वाला है //३
मैं तो बड़े सुकून से सोया था तन्हा अपने घर
मुझको…
Added by राज़ नवादवी on November 17, 2018 at 10:15am — 6 Comments
2122 1122 1122 22
जब भी होता है मेरे क़ुर्ब में तू दीवाना
दौड़ता है मेरी नस नस में लहू दीवाना //१
एक हम ही नहीं बस्ती में परस्तार तेरे
जाने किस किस को बनाए तेरी खू दीवाना //२
इश्क़ में हारके वो सारा जहाँ आया है
इसलिए अश्कों से करता है वजू दीवाना //३
लोग आते हैं चले जाते हैं सायों की तरह
क्या करे बस्ती का भी होके ये कू दीवाना //४
चन्द लम्हों में ही हालात बदल जाते थे
मेरे नज़दीक जो…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on November 11, 2018 at 6:00pm — 12 Comments
1212 1122 1212 22
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हमारी रात उजालों से ख़ाली आई है
बड़ी उदास ये अबके दिवाली आई है //१
चमन उदास है कुछ यूँ ग़ुबारे हिज्राँ में
कली भी शाख़ पे ख़ुशबू से ख़ाली आई है //२
फ़ज़ा ख़मोश है घर की, अमा है सीने में
हमारा सोग मनाने रुदाली आई है //३
मवेशी खा गए या फिर है मारा पालों ने
कभी कभार ही फ़सलों पे बाली आई है…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on November 7, 2018 at 12:00pm — 16 Comments
२१२२ २१२२ २१२२
है वो मेरा दोस्त, मेरा नुकताचीं भी
शर्म खाए उससे कोई ख़ुर्दबीं भी //१
काविशे सुहबत में आके मैंने जाना
हाँ में उसकी तो छुपा था इक नहीं भी //२
जब उफ़ुक़ पे सुब्ह लाली खिल रही थी
थी हया से सुर्ख थोड़ी ये ज़मीं भी //३
दूर क्यों जाना है ज़्यादा जुस्तजू में
पालती है जबकि दुश्मन आस्तीं भी //४…
Added by राज़ नवादवी on November 4, 2018 at 7:30am — 10 Comments
२१२२ २१२२ २१२२
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आ गया है जेठ, गर्मी का महीना
अब समंदर को भी आयेगा पसीना //१
उम्र भी अब तो सताने लग गई है
डूबता ही जा रहा है ये सफ़ीना //२
सोचता हूँ जिंदगी भी क्या करम है
उफ़ ! ये मरना और यूँ मर मर के जीना //३
ज़िंदगानी के तराने गा रहे सब
हैं दिवाने सैकड़ों और इक हसीना //४…
Added by राज़ नवादवी on November 3, 2018 at 7:00am — 16 Comments
2212 1212 2212 12
दिल क्या लगे किसी का जब कोई न काम हो
इससे भला तो ग़ैब के घर में क़याम हो //1
कोशिश तो कर कि मुफ़लिसी मेरी न आम हो
मेरे दिवारो दर पे भी कोई तो बाम हो //2
इतना तो मेरी ख़्वाहिशों का एहतराम हो
गर हो न मय जो हल्क़ में, हाथों में जाम हो //3
कब तक हवाओं के फ़क़त बिखराव में जिऊँ
मेरे लिए भी ऐ ख़ुदा कोई निज़ाम हो…
Added by राज़ नवादवी on October 30, 2018 at 8:30pm — 14 Comments
1222 1222 1222 1222
(मिर्ज़ा ग़ालिब की ज़मीन पे लिखी ग़ज़ल)
जिन्हें भी टूट के चाहा वो पत्थर के सनम निकले
चलो अच्छा हुआ दिल से मुहब्बत के भरम निकले //1
उड़ें छीटें स्याही के, उठे पर्दा गुनाहों से
कभी तो तेग़ के बदले म्यानों से कलम निकले //2
हवा में ढूँढते थे पाँव अपने घर के रस्ते को
तेरी महफ़िल से आधी रात को पीकर जो हम निकले //3…
Added by राज़ नवादवी on October 26, 2018 at 4:30pm — 15 Comments
2122 1122 1122 22/ 112
याद की तह से कई भूले फ़साने निकले
आज हम तेरे लिखे ख़त जो जलाने निकले //1
चाहता हूँ मैं तुझे अपनी अना से बढ़कर
इस यकीं तक तुझे लाने में ज़माने निकले //२
ये भी अहसान जताने की नई कोशिश है
ख़त्म जब हो चुका रिश्ता तो मनाने निकले //3
अब कोई इनको बताए कि क़ज़ा क्या शय है
जा चुके छोड़ के दुनिया तो बुलाने निकले //4
जिनने खाई थी क़सम मुझको नहीं देखेंगे
आज काँधे पे मेरी लाश…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 14, 2018 at 10:00am — 13 Comments
2122 1122 1122 112/22
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जिसको भी चाहा मुहब्बत में हमारा न हुआ
दिल हमारा किसी सूरत भी गवारा न हुआ //1
मेरे क़िरदार में पाने की लियाक़त नहीं थी
मुझपे जो फैज इनायत का दुबारा न हुआ //2
आज फिर बाम पे छाई थी अमावस काली
आज फिर बिन्ते अशीयत का नज़ारा न हुआ //3
है जईफी तो सताती है हमें तन्हाई
जब जवाँ थे तो मुहब्बत का इशारा न हुआ //4
मौजें उठतीं है मगर रोक लेता है…
Added by राज़ नवादवी on October 14, 2018 at 10:00am — 8 Comments
जनाब बशीर बद्र साहब की ग़ज़ल "ख़ुदा मुझको ऐसी ख़ुदाई न दे" की ज़मीन पे लिखी ये ग़ज़ल.
122 122 122 12
ख़ुदा ग़र तू ग़म से रिहाई न दे
तो साँसों की मीठी दवाई न दे
भले अपनी सारी ख़ुदाई न दे
किसी को भी माँ की जुदाई न दे
मैं मर जाऊँ मिट जाऊँ हो जाऊँ ख़ाक़
मगर मुझको ख़ू ए गदाई न दे
तू रख सब असागिर को दुख से अलग
तू कोई भी…
Added by राज़ नवादवी on July 5, 2018 at 10:30am — 5 Comments
2122 2122 2122 212
जो नहीं मँझधार में थे, साहिलों के पास थे
मुद्दतों से पाँव उनके दलदलों के पास थे
जीत के सारे हुनर तो हौसलों के पास थे
पैतरे ही थे फ़क़त जो बुज़दिलों के पास थे
मैं कहाँ चूका बता इस ज़िंदगी की दौड़ में
लोग जो दौड़े नहीं वो मंज़िलों के पास थे
बर्क़ ने कुछ न बिगाड़ा जो थे ज़ेरे आसमाँ
वो परिंदे मर गये जो…
Added by राज़ नवादवी on July 1, 2018 at 6:30pm — 9 Comments
1212 1212 1212 1212
दिलों की आग बुझ गई, जिगर में अब धुआँ नहीं
कि तुम भी अब जवाँ नहीं, कि हम भी अब जवाँ नहीं
सितारे गुम हुए सभी, रुपहली कहकशाँ नहीं
ज़मीने दिल पे अब तेरी वफ़ा का आसमाँ नहीं
सफ़र भी ज़िंदगानी का हुआ कभी अयाँ नहीं
जहाँ पे रहगुज़र मिली वहाँ पे कारवाँ नहीं
वो मुझसे बोलता नहीं, वो मुझसे सरगिराँ नहीं
वफ़ा की आग क्या…
Added by राज़ नवादवी on July 1, 2018 at 6:00pm — 16 Comments
स्पेनिश कवि पाब्लो नेरुदा की कविता "You Start Dying Slowly" के हिन्दी अनुवाद से प्रेरित
सब को धीरे धीरे मरना पड़ता है
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सब को धीरे धीरे मरना पड़ता है
आप चाहे तुच्छ हों या हों आप महान
आप चाहे पत्थर हों, पेड़ हों
पशु हों, आदमी हों, या कोई साहिबे जहान
आप चाहे बुलंद हों या जोशे नातवान
सब को धीरे धीरे मरना पड़ता है
आप चाहे विनीत हों या कोई दहकता…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 10, 2017 at 3:00pm — 10 Comments
ग़ज़ल २२१ २१२१ १२२१ २१२
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लूटा जो तूने है मेरा, अरमान ही तो है
उजड़ा नहीं है घर मेरा, वीरान ही तो है
वादा खिलाफ़ी शोखी ए खूबाँ की है अदा
आएगा कल वो क़स्द ये इम्कान ही तो है
सीखेगा दिल के क़ायदे अपने हिसाब से
वो शोख़ संगदिल ज़रा नादान ही तो है
नज़रे करम कि हुब्ब के कुछ वलवले…
Added by राज़ नवादवी on October 9, 2017 at 11:31pm — 14 Comments
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