Added by kanta roy on February 23, 2016 at 7:00am — 8 Comments
Added by kanta roy on February 18, 2016 at 12:55pm — 17 Comments
अचानक से कुछ होने लगा था । हल्का सा चक्कर और पेपर हाथ से सरककर नीचे गिर पडा़ । उठाने को हाथ बढाया तो एहसास हुआ कि शिथिल पड़ चुका था मै । देह भी निष्प्राण से हो चले थे । आँखों में ही अब होश बाकी था शायद ।सब देख और सुन पा रहा था । बगल वाले कमरे में नये साल की पार्टी अब भी जारी थी । घर के सब सदस्य , बेटे- बहू, नाती- पोते , आज इकट्ठे हो गये थे जश्न मनाने के लिए ।
मुझे पार्टी में ही तबियत नासाज लग रही थी । मै चुपके से अपने कमरे में आकर इस आराम चेयर पर एकदम…
ContinueAdded by kanta roy on February 16, 2016 at 11:45pm — 7 Comments
Added by kanta roy on February 4, 2016 at 5:30pm — 6 Comments
ये शबे-गम किसने दिया दिल को
किसने अपना बना लिया दिल को
मेरी नजरों में तेरे ख्वाब सनम
कह रहे हैं ये शुकरिया दिल को
इश्क तुमसे किया है शिद्दत से
और बे चैन कर लिया दिल को
पीला-पीला बसंती सा आंचल
मिस्ल-ए-गुलशन बना गया दिल को
चाँदनी दूर जा के चमके कहीं
हमने अब तो जला लिया दिल को
रूठी तकदीर आज जागी है
कौई तकदीर दे गया दिल को
छुप गया चाँद रात होने पर
उसने जब प्यार से छुआ दिल को
तंग…
Added by kanta roy on February 2, 2016 at 1:00pm — 5 Comments
शाखें गुल ख्वाब में खिली है अभी
इश्क में चोट ये नई है अभी
दिल है नादान कोई समझाये
आबरू -ए-वफ़ा बची है अभी
इस लुटे घर में कैसी आबादी
गैरों के सदके में बसी है अभी
बंध गए हैं हवा के पर सारे
क्यों दुआ बे असर हुई है अभी
राज नजरों नें आज जान लिया
गिरह ये कौन सी कसी है…
ContinueAdded by kanta roy on January 27, 2016 at 12:00am — 6 Comments
Added by kanta roy on January 23, 2016 at 10:34am — 7 Comments
Added by kanta roy on January 22, 2016 at 9:51pm — 5 Comments
भव्य आॅफिस। उसका पहला साक्षात्कार ...... , घबराहट लाजमी था । इसके बाद दो साक्षात्कार और । पिता नहीं रहे। घर की तंगहाली ,बडी़ होने का फ़र्ज़ ,नौकरी पाना उसकी जरूरत , आगे की पढाई को तिरोहित कर आज निकल आई थी ।
" पहले कभी कोई काम किया है ? "
"जी नहीं , यह मेरी पहली नौकरी होगी । " गरीबी ढीठ बना देती है उसने स्वंय में महसूस किया ।
" हम्म्म ! इस नौकरी को आप क्यों पाना चाहती है ?"
" कुछ करके दिखाना चाहती हूँ , यहाँ मेरे लिए पर्याप्त अवसर है…
ContinueAdded by kanta roy on January 4, 2016 at 10:02am — 6 Comments
" आइये ,अपनी कुर्सी पर विराज लीजिए ।" इतना तंज ! ऐसे कह गये वे जैसे उसके सिर पर ही बैठने वाली हो ।
"जी , अब काम समझा दिजीए कि मेरा काम क्या होगा यहाँ ?" उनके लहजे से अपमानित सा महसूस कर रही थी । क्या इनके साथ ही काम करना होगा उसे ? कैसे झेलेगी ? हृदय रूआँसा हो रहा था ।
" अरे ,आप क्या काम करेंगी ? आप तो बस पगार उठा कर ऐश करेंगी , काम तो हमें करना होगा ।" वह चिढ़ कर बोला ।
"मतलब ?" सुनकर अनमना उठी । सतीश आप कैसे झेलते रहे होंगे ऐसे लोगों को , पति की याद में…
Added by kanta roy on December 22, 2015 at 11:30am — 4 Comments
स्वच्छता की शपथ लेकर,घर- घर अलख जगाना है
भारत स्वच्छ बनाना है, आदर्श देश बनाना है-----------
नागरिक की भागीदारी, जन-सेवा की अब तैयारी
स्वच्छता की जिम्मेदारी , जन-जन की हो भागीदारी
जन-आँदोलन स्वच्छता के , नाम पर चलाना है
भारत स्वच्छ बनाना है ,आदर्श देश बनाना है ------------------
स्वच्छता ही सम्पदा है ,बात यह तुम जान लो
सड़कों ,गलियों की सफाई ,अभियान यह ठान लो
सुव्यवस्थित शौचालय ,कचरा ठिकाने लगाना है
भारत स्वच्छ बनाना है ,आदर्श देश…
Added by kanta roy on December 16, 2015 at 1:45pm — 1 Comment
क्या कसूर था उसका ? मन बेबस हो ,बार - बार डायरी के पन्ने पर लिखे उसके नाम पर जाकर ठहर जाती थी। एकटक देखती जाती ,मानो नाम में उसके अक्स दिखते हों , इबारत कर रही थी वह ....! अंगुलियों को फिराते हुए सहला रही थी उन जख्मों को भी , जो वह दे गया था ।
"उमाsss ! कहाँ भावमग्न हो रही है तु ?"
"कहीं नहीं रे ? "- उसने चौंक कर डायरी बंद कर ली , शायद फिर से चोरी पकड़ी गई थी । जिगरी थी और बरसों से रूम पार्टनर भी।
"तुमने सीधी माँग काढ़ ली ? फिर से…
ContinueAdded by kanta roy on December 15, 2015 at 1:00pm — 7 Comments
जीप में बैठते ही मन प्रसन्नता से भर रहा था। देश में वर्षों बाद वापसी , बार -बार हाथों में पकडे पेपर को पढ़ रही थी , पढ़ क्या रही थी , बार -बार निहार रही थी। सरकार ने पिछले दस साल से इस प्रोजेक्ट पर काम करके रामपुरा जैसी बंज़र भूमि को हरा -भरा बना दिया है।गाँव की फोटो कितनी सुन्दर है , मन आल्हादित हो रहा था। उसका गाँव मॉडल गाँव के तौर पर विदेशों में कौतुहल का विषय जो है ! बस अब कुछ देर में गाँव पहुँचने ही वाली थी। दशकों पहले सुखा और अकाल ने उसके पिता समेत गाँव वालो को विवश कर दिया था गावं…
ContinueAdded by kanta roy on December 4, 2015 at 3:00pm — 17 Comments
बेहाल होकर वह मोहित को एकटक देखे जा रही थी। चादर से ढका शव, शान्त चेहरा , सब्र आँखों से टूट कर बह रहा था , लेकिन रुदन हलक में जैसे अटक गया हो ,--" क्या हुआ तुम्हें ? आँखे न खोलोगे मोहित , देखो , मैं बेसब्र हो रही हूँ। क्या तुम यूँ अकेला मुझे छोड़ जाओगे ? तुमने तो कहा था, कि तमाम उम्र मेरा साथ दोगे, फिर ऐसे बीच राह में मुझे छोड़ , कहाँ , क्यों ? "-- होठों पर ताले जडे हुए थे , लेकिन आँखों ने सारी मर्यादा तोड़ दी थी. उसे एहसास हुआ दो नज़रों का घूरना , वह ग्लानि से भर उठी। अपराधी थी उन दो नज़रों की।…
ContinueAdded by kanta roy on November 30, 2015 at 12:30pm — 13 Comments
" ओ बाबू , सुन ना ! मुझे नेता बनना है , " --पैर पटक - पटक कर भोलूआ आज जिद पर आन पड़ा । कम अक्ल होने के बावजूद भोलूआ अपने भोलेपन के कारण गाँव भर का दुलारा था ।
बापू तो सुनते ही चक्कर खा गया । बिस्कुट ,चाकलेट और मेले घुमाने तक के सारे जिद तो आसानी से पूरा करता आया था , लेकिन बुरबक , अबकी कहाँ से नेता बनने का जिद पाल लिया । सोचे कि चलो गुड्डे- गुडि़या वाला नेता बना देंगे । रामलीला वाले सुगना से नेता जी का ड्रेस माँग के भी पहिराय देंगे , लेकिन भोलूआ का जिद तो असली नेता बनने से है । अब का…
Added by kanta roy on November 28, 2015 at 12:00pm — 10 Comments
सहसा अंतरव्यथा से जूझती हुई सिसकियों ने दम तोड़ ,घुटने टेक दिये । फैसला कायम हो चुका था । काले कोट वाले वजीर ने गुनाहों के कीचड़ में सने हुए बादशाह को , सूर्य सा दैदीप्यमान बना दिया था। गुनाह बेदाग़ बरी हो अट्टाहास करता हुआ बाहर की तरफ एक और बाजी खेलने को विदा हुआ । इधर काले कोट वाला वजीर अपने जेब की गहराई नाप रहा था।
और उधर अंधी के आँखों पर चढी काली पट्टी ने अंधेरों का वजूद अंततः कायम रखा. तराजू फिर जरा सा डोल कर रह गया ।
मौलिक व…
Added by kanta roy on November 3, 2015 at 11:00pm — 10 Comments
साफ़ नीला आसमान
सफेद रूई सा हल्का
बिलकुल हल्का ,
हल्का वाला सफेद बादल
कभी बहुत भारी सा हो जाता है
वक्त रेशम सी ,
रेशम सी मुलायम वक्त
फिसलती हुई ,सरकती हुई
रेशमी सा एहसास देती हुई गुजर जाती है
वक्त के वजूद में
जाने क्यों पहिए होते है
जो दिखाई नहीं देते पर ब्रेक नहीं होते है
शायद ब्रेक भी रहें हो कभी लेकिन
आजकल वक्त नहीं रूकता
यहाँ बाजार में बहुत भीड़ है
यह भीड़ कभी खत्म नहीं…
ContinueAdded by kanta roy on October 31, 2015 at 10:09am — 6 Comments
Added by kanta roy on October 28, 2015 at 8:36pm — 18 Comments
वे दिन भी भले थे
ये साँझ भी है भली
Added by kanta roy on October 21, 2015 at 10:00pm — 14 Comments
" ये क्या सुना मैने , तुम शादी तोड़ रही हो ? "
" सही सुना तुमने । मैने सोचा था कि ये शादी मुझे खुशी देगी । "
" हाँ ,देनी ही चाहिए थी ,तुमने घरवालों के मर्ज़ी के खिलाफ़ , अपने पसंद से जो की थी ! "
" उन दिनों हम एक दुसरे के लिए खास थे , लेकिन आज ....! "
" उन दिनों से ... ! , क्या मतलब है तुम्हारा , और आज क्या है ? "
" उनका सॉफ्स्टिकेटिड न होना , अर्थिनेस और सेंस ऑफ़ ह्यूमर भी बहुत खलता है। आज हम दोनों एक दुसरे के लिये बेहद आम है । "
" ऐसा क्यों ? "…
ContinueAdded by kanta roy on October 21, 2015 at 4:00pm — 9 Comments
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