Added by Dr Ashutosh Mishra on February 19, 2017 at 7:38am — 8 Comments
Added by Dr Ashutosh Mishra on February 13, 2017 at 3:04pm — 20 Comments
ओजोन की परत में अब छेद खल रहा है
धरती झुलस रही है जग सारा जल रहा है
उन्नति के नाम पर हैं ये कारनामे अपने
तालाब पाट घर के हम बुन रहे हैं सपने
खेतों में चौगनी है माना फसल बढ़ी पर
सब्जी अनाज फल में बिष खा रहे हैं अपने
नूतन प्रयोग अपना खुद हमको छल रहा है
धरती झुलस रही है जग सारा जल रहा है
ये गंदगी का ढेर जो चारो तरफ लगाया
इस गंदगी के ढेर को खुद हमने है बढ़ाया
हम खूब समझते है परिणाम जानते है
पर…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on January 1, 2017 at 3:33pm — 12 Comments
नवबर्ष पर हार्दिक शुभकामनाये
आओ मिलकर चमन सजायें
गीत नए फिर मिलकर गायें
कुमकुम रोली से रंग धरती
दर पर वन्दनवार लगाये
जान दे रहे हैं सरहद पर
आज भारती के जो लाल
उनके सीने हैं फौलादी
उन्हें डराएगा क्या काल
मुल्क पड़ोसी को अब आओ
हम उसकी औकात दिखाएं
आओ मिलकर चमन सजायें
गीत नए फिर मिलकर गायें
अश्क बहाने से होती
तौहीन शेर दिल वीरों की
अश्कों से बलिदान…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on January 1, 2017 at 1:38pm — 8 Comments
1222 1222 1222 1222 तरही ग़ज़ल
अगर बेटे की भाई से अदावत और हो जाती
मेरे अपने ही घर में इक बगावत और हो जाती
जहाँ खामोशी से मेरी जसामत और हो जाती
वहीं कुछ कहने से मेरे मुसाफत और हो जाती
हिमानी के शिखर पर डाल गलबहियाँ पलक मींचे
युगल प्रेमी यही सोचे क़यामत और हो जाती
सुलगती साँसे जलता तन पिला दो मय ये आँखों की
जहाँ सब कुछ हुआ इतनी इनायत और हो जाती
इधर बेटा उधर भाई पिता करते तो क्या करते
अगर…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 28, 2016 at 5:07pm — 8 Comments
2122 2122 2122 2122
शोध पेपर इक कहानी ऐसी बनते जा रहे हैं
जिसमे नित नव कल्पना के पंख लगते जा रहे है
सारी दुनिया के रसायन आज हैराँ सोचकर ये
हम जहाँ जुड़ ही नहीं सकते थे जुड़ते जा रहे हैं
आदमी कब व्याधियों से मुक्त होगा रब ही जाने
शोध', चूहे -खरहों के पर प्राण हरते जा रहे हैं
मोतियों से दांत दिखला पेस्ट जो करते प्रचारित
नीम की दातून से निज दांत घिसते जा रहे हैं
रोज अखबारों को पढ़कर दे रहे हैं…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on August 14, 2016 at 11:09am — 5 Comments
२१२२ ११२२ ११२२ २२/ ११२
ज़िंदगी तेरी उदासी का कोई राज भी है
तेरी आँखों में छुपा ख्वाब कोई आज भी है
पतझड़ों जैसा बिखरता है ये जीवन अपना
कोपलो जैसे नए सुख का ये आगाज भी है
गुनगुना लीजे कोई गीत अगर हों तन्हा
दिल की धड़कन भी है साँसों का हसीं साज भी है
वो खुदा अपने लिखे को ही बदलने के लिए
सबको देता है हुनर अलहदा अंदाज भी है
काम करना ही हमारा है इबादत रब की
इस इबादत में छिपा ज़िंदगी का…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 27, 2016 at 2:30pm — 14 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२2
जाने किस ऊंचाई पर सब लोग जाना चाहते है
हो जमी पे ही खड़े सब क्या दिखाना चाहते हैं
जो समंदर पार के ले आदमी वो ही बड़ा अब
आप ऐसी सोच रखकर क्या जताना चाहते है
आदि से कंगूरों की सूरत टिकी जिस नीव पर थी
आप क्यूँ उस नीव को ही अब भुलाना चाहते हैं
बंगले नौकर गाडी मोटर की तमन्ना तो नयी अब
पर अभी भी प्यार दिल में हम पुराना चाहते हैं
पढ़ लिया इतिहास सबने जानते अंजाम भी सब
फिर भी…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 22, 2016 at 1:30pm — 6 Comments
२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२
मीत बनाते बस इक अपना दुश्मन सौ खुद मिल जाते है
गुल को पाने की चाहत में खारों से तन छिल जाते हैं
हम तो उसको भाई कहते वो हमको कमजोर बताता
नहीं समझता जब हम अपनी पे आते सब हिल जाते है
बसें चलाते गले लगाते क्या क्या नहीं किया करते हम
पर जिस वक़्त गले मिलते दुश्मन को मौके मिल जाते हैं
हम पूरब के बासी हमको मत तहजीब सिखा उल्फत की
यहाँ जमाने से उल्फत में बदले दिल से दिल जाते…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 16, 2016 at 4:00pm — 6 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
नहीं आती मुझे अब नींद जीभर के पिला साकी
निशा गहरी डगर सूनी कहाँ जाएँ बता साकी
मुहब्बत मेरी पथराई जमाने भर की ठोकर खा
अहिल्या की तरह मेरी कभी जड़ता मिटा साकी
मैं भंवरों सा भटकता ही रहा ताउम्र बागों में
कमल से अपने इस दिल में तू ले मुझको छुपा साकी
ये मंजिल आखिरी मेरी ये पथ भी आखिरी मेरा
मेरी नजरों से तू नजरें घड़ी भर तो मिला साकी
जो सीना चीर पाहन का निकलता मैं…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 4, 2016 at 2:00pm — 13 Comments
१२१२२ १२१२२ १२१२२ १२१२२
नहीं है कोई अगर चितेरा संवरने से फायदा ही क्या है
लिखें सभी पर पढ़े न कोई तो लिखने से फायदा ही क्या है
कली कली से ये बात करती अरे सखी क्या ये ज़िन्दगानी
नहीं जो भंवरे नहीं जो तितली निखरने से फायदा ही क्या है
चलो कदम से कदम मिलाकर हसीं अगर जिन्दगी बनानी
ये बात हारों के मोती समझे बिखरने से फायदा ही क्या है
कलम तुम्हारी है खूब लिखती दुआ मेरी भी है खूब लिख्खे
ख्याल दिल से निकाल दो पर कि पढने से…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 3, 2016 at 3:00pm — 9 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
आकलन सरकार का तो खूब करते आप हैं
पर न सोचा आपने कितने किये खुद पाप हैं
हुक्मरानों को किया पैदा भी खुद है आपने
इस तरह रिश्ते से उनके आप माई बाप हैं
इक मसीहा तो सफाई के लिए चिल्ला रहा
रोज क्या ये भी कहे बीमारियाँ अभिशाप हैं
गंगा तू पावन करेगी पापी को वरदान ये
खुद सड़ेगी कोढियों सी कब मिले ये शाप हैं
बाँध सडकें पुल हुए कमजोर महलों वास्ते
लूट के ही माल से करते लुटेरे…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 28, 2016 at 2:30pm — 4 Comments
२१२२ २१२२ २१२२
याद उसको आज जब मैं कर रहा था
हिचकियाँ उसको न आयें डर रहा था
जिस जगह पर हुक्मरानों का महल है
हम गरीबो का वहाँ कल घर रहा था
जिस ग़ज़ल के दाम लाखों में लगे थे…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 24, 2016 at 12:00pm — 8 Comments
२१२२ ११२२ २१२२ २२ /११२
हाय वो कसमे वो वादे क्यूँ भुलाये तूने
क्या सबब रो के यूं आंसू भी बहाये तूने
खून से लिख्खे खतों में थी मेरी जान बसी
बेरहम हो के सभी ख़त वो जलाये तूने…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 23, 2016 at 1:30pm — 3 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
इक दफा ये मर्ज लग जाये तो छुटकारा नहीं
इश्क है ये मस्त खुशबू का कोई झोंका नहीं
यार तुमने जिन्दगी को गौर से देखा नहीं
दरमियाँ मेरे तुम्हारे लक्ष्मनी रेखा नहीं
तपती साँसों की तपिश कुछ सच बयानी कर रही
धड़कने कहती हैंं दिल की प्यार है धोखा नहीं
इश्क का अहसास कैसे ज़िंदगी में आ गया
शेख जी कुछ राय देंगे मैंने कुछ सोचा नहीं
इश्क है रब की इबादत राज गहरा जान लो
देख…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 16, 2016 at 2:30pm — 5 Comments
२१२२ ११२२ ११२२ २१२
आइना सब को दिखाते हैं कभी खुद देखिये
क्यूँ लगी ये आग हरसू आप खुद ही सोचिये
हुक्मरानों ने खता की बच्चों से बचपन छिना
अब्बू ना लौटेंगे चाहे लाख आंसू पोंछिये
अम्मी के हाथों के सेवइ अम्मा के हाथों की खीर
एक जैसा ही सुकू देती है खाकर देखिये
दिल हमीदों का न तोड़ो गर है कोई सिरफिरा
मौत हिन्दी की हुई मत हिन्दू मुस्लिम बोलिये
जो बचाने में लगा है इस वतन की आबरू
हम बिरोधी उसके हैं या नीतियों के…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 13, 2016 at 1:57pm — 12 Comments
२१२२ १२१२ २२/112
गुंचा गुंचा गुलाब हो जाये
सारा पानी शराब हो जाये
उसके वालिद को देख इश्क मेरा
हड्डी वाला कबाब हो जाये
क्या जरूरत है खोलने की लब
जब नजर से जबाब हो जाये
मेरी नजरों के रुख पे पड़ते ही
हाथ उसका नकाब हो जाये
साथ उनके गुजारे जो लम्हे
लिख सकूँ तो किताब हो जाये
साक़िया बात कल की कल होगी
आज का तो हिसाब हो जाये
आज जीभर…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 17, 2016 at 9:30am — 20 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२ आप पहले झोपडी तो इक बनाकर देखिये ख्वाब फिर महलों के भी दिल में सजा कर देखिये मैं नहीं हूँ तो हुआ क्या ये ग़ज़ल मेरी तो है मेरी गजलें भी कभी तो गुनगुना कर देखिये जिस तरफ देखोगे, तुमको बस नजर आयेंगे हम है मगर बस शर्त इतनी मुस्कुराकर देखिये है विरह के बाद में ही यार मिलने का मज़ा आग पहले ये विरह की खुद लगा कर देखिये चीज़ मय अच्छी… |
Added by Dr Ashutosh Mishra on April 24, 2016 at 2:00pm — 13 Comments
औरत .
सिर्फ एक
माँ, पत्नी, प्रेमिका
बेटी, बहू, सास,
दादी, नानी
ही नहीं.....
एक जीता जागता उदाहरण भी है
त्याग, ममता, बत्सलता
और संघर्ष का भी...........
एक निर्मात्री भी
मूल्यों , संस्कारों, परम्पराओं
और इतिहास की...............
एक इज्जत भी
घर कुटुंब, गाँव
और देश की.....
पर शायद अर्थहीन हो गया है
उसका सब कुछ होना भी
सिमट गया है
उसका बिरात स्वरुप
सिर्फ…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on March 12, 2016 at 3:32pm — 3 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
ये दौलत आदमी को आदमी रहने कहाँ देती ये बारिश बँध के इन नदियों को भी बहने कहाँ देती गजब का तैश अहदे नौ के इस आदम में देखा है ये ऐठन आदमी को आज कुछ सहने कहाँ देती हुए आजाद आजादी मिली कहने को बस हमको मगर दहशत दिलों की कुछ हमें कहने कहाँ देती ये बहशीपन ये गुंडागर्दी ये आतंक का साया शराफत मेरी दुनिया में… |
Added by Dr Ashutosh Mishra on February 21, 2016 at 2:08pm — 11 Comments
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