२२१ २१२१ १२२१ २१२
ये रूप रंग गंध सभी शान बन गए
कुछ रोज में ही जो मेरी पहचान बन गए
नफरत के सिलसिले जो चले धूप छाँव बन
इंसानियत के शब्द भी मेहमान बन गए
तुम-तुम न रह सके न ही मैं-मैं ही बन सका
दोनों ही आज देख लो शैतान बन गए
खेमों में बँट गए हैं सभी आज इस तरह
कुछ राम बन गए कई रहमान बन गए
हद के सवाल पर या कि जिद के सवाल पर
हद भूलकर गिरे सभी नादान बन…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 17, 2016 at 9:35am — 5 Comments
2122 2122 2122 212
मौत है निष्ठूर निर्मम तो कड़ी है जिंदगी
जो ख़ुशी ही बाँटती हो तो भली है जिंदगी
लोग जीने के लिए हर रोज मरते जा रहे
ये सही है तो कहो क्या फिर यही है जिंदगी
दो निवालों के लिए दिनभर तपाया है बदन
या कि मानव व्यर्थ चाहत में तपी है जिंदगी
झूठ माया मोह रिश्ते सब सही लगते यहाँ
जाने कैसे चक्रव्यूहों में फँसी है जिंदगी
काठ का पलना कहीं तो खुद कहीं पर काठ है
है हँसी…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 9, 2016 at 7:00pm — 18 Comments
छाये नभपर घन मगर, सहमी है बरसात |
देख धरा का नग्न तन, उसे लगा आघात ||
उसे लगा आघात, वृक्ष जब कम-कम पाए,
विहगों के वह झूंड, नीड जब नजर न आए,
अब क्या कहे ‘अशोक’, मनुज फिरभी इतराए,
झूठी लेकर आस, देख घन नभ पर छाए ||
कहीं उडी है धूल तो, कहीं उठा तूफ़ान |
देख रहा है या कहीं, सोया है भगवान ||
सोया है भगवान, अगर तो मानव जागे,
हुई कहाँ है भूल , जोड़कर देखे तागे,
जीवन की यह राह, गलत तो नहीं मुड़ी है
देखे क्यों…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 6, 2016 at 8:59am — 2 Comments
२२१२ २२१२ २२
हमने यहीं पर ये चलन देखा
हर गैर में इक अपनापन देखा
देखी नुमाइश जिस्म की फिरभी
जूतों से नर का आकलन देखा
हर फूल ने खुश्बू गजब पायी
महका हुआ सारा चमन देखा
लिक्खा मनाही था मगर हमने
हर फूल छूकर आदतन देखा
उस दम ठगे से रह गए हम यूँ
फूलों को भँवरों में मगन देखा
होती है रुपियों से खनक कैसे
हमने भी रुक-रुक के वो फन देखा
रोशन चिरागों…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 2, 2016 at 6:40pm — 14 Comments
Added by Ashok Kumar Raktale on May 27, 2016 at 10:48pm — 7 Comments
दुर्मिल सवैया.
बदली - बदली मुख फेर लिया जब सूरज लालमलाल हुआ,
वन शुष्क हुआ हर एक हरा सच शुष्क भरा हर ताल हुआ,
तन शुष्क हुआ मन शुष्क हुआ हर ओर भयंकर हाल हुआ,
जब घाम बढ़ा तब सत्य कहूँ यह हाल बड़ा विकराल हुआ ||
तन ताप लिए तन आग लिए सब व्याकुल हैं तन प्यास लिए,
दिन मानव के खग के वन के पशु के कटते बस आस लिए,
सब सोच रहे अब ग्रीष्म टले बरसे बदली मृदु भास लिए,
निकले फिरसे बरसात लिए दिन सावन भादव मास लिए…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on May 22, 2016 at 3:40pm — 6 Comments
किस तरह का ये कहो नाता है
उनके बिन पल न रहा जाता है
लूट ले जाता है खुशियाँ सारी
उसका जाना न हमें भाता है
रात लाती है उम्मीदें लेकिन
दिन का सूरज हमें तड़पाता है
धूल हो जाते हैं अरमां सारे,
चैन इस दिल को नहीं आता है
रात आती है सितारे लेकर
चाँद रातों की नमी लाता है
मौलिक/अप्रकाशित.
Added by Ashok Kumar Raktale on April 24, 2016 at 4:30pm — 12 Comments
इस गीत के सभी अंतरे “हीर छंद” (६,६,११. आदि गुरु अंत रगण) पर आधारित हैं.
मानव है, मानव बन, मानव का प्यार ले,
बैर भूल, द्वेष मिटा, जिंदगी सँवार ले ||
लोक लाज, भूल गया, कैसा मनु कर्म…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on November 8, 2015 at 10:00am — 4 Comments
झुमका झांझर चूड़ियाँ, करधन नथ गलहार |
बिंदी देकर मांग भर,.....कर साजन सिंगार ||
सूनी सेज न भाय रे, छलकें छल-छल नैन |
पी-पी कर रतिया कटे,....दिन करते बेचैन ||
उस आँगन की धूल भी, करती है तकरार |
अपनेपन से लीपकर , जहां बिछाया प्यार ||
हरियाली घटने लगी, कृषक हुए सब दीन |
राजनीति जब देश की, खाने लगी जमीन ||
टहनी के हों पात या, हों फुनगी के फूल |
दोनों तरु की शान हैं, तरु दोनों का मूल ||…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on October 8, 2015 at 7:00pm — 8 Comments
मनुज रूप मैं पा गया,
हुआ स्वप्न साकार
कोमल किरणे भोर की,
बिखराती जब नेह है,
दिखती उल्लासित धरा
आन्दंदित हर देह है.
सचमुच एक सराय सा
लगा मुझे संसार
प्यार भरे व्यवहार से
मिलती देखी जीत है,
बना एक अनजान जब,
मेरे मन का मीत है
सच्ची निष्ठा ने किया,
हरदम बेडा पार
लोभ मोह माया कपट,
सारे लगते काल हैं,
सत्य यहाँ है मौत ही,
बाकी सब…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 9, 2015 at 9:07am — 14 Comments
छिड़ी हुई शब्दों की जंग | दिखा रहे नेता जी रंग ||
वैचारिकता नंगधडंग | सुनकर हैरत जन-जन दंग ||
जाति धर्म के पुते सियार | इनपर कहना है बेकार ||
बात-बात पर दिल पर वार | जन मानस पर अत्याचार ||
पांच वर्ष में एक चुनाव | छोड़े मन पर कई प्रभाव ||
महँगाई भी देती घाव | डुबो रही है सबकी नाव ||
नारी दोहन अत्याचार | मिला नहीं अबतक उपचार ||
सरकारें करती उपकार | निर्धन फिरभी हैं बीमार ||
तीर तराजू औ तलवार | किसे कहें अब जिम्मेदार…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on April 23, 2014 at 2:00pm — 27 Comments
नेकनीयती वृन्द के, मुरझाये..….हैं फूल |
कहकर पुष्प गुलाब का, दिए सैकड़ों शूल ||
बही नाव……..पतवार भी, तूफानों की धार |
बढ़ा प्रेम तब सरित का, जब पाया मँझधार ||
कुल की करुणा कान में, बोली थी चुपचाप |
देख समय सूरज चढा, तू भी इसको भाप ||
अवसर का उपहास है, अनजाने ही हार |
भोग रहे पीड़ा कई, गए समय की मार ||
कागज़ पर लिखता रहा, विरह प्रेम के गीत |
जुडी कलम की छंद से, अनजाने ही प्रीत ||
तप…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on December 10, 2013 at 9:30pm — 13 Comments
गूंजती थी जब खमोशी, हादसे होते रहे |
रात जागी थी जहां पर दिन वहीँ सोते रहे ||
अनमने से भाव थे वह अनमनी सी थी नजर
अनमने सिंगार पर ही मुग्ध हम होते रहे ||
कौंध कर बिजली गिरी वसुधा दिवाकर भी डरा,
कुंध तनमन क्रोध संकर बीज हम बोते रहे ||
भावना विचलित हुई जब चीर नैनो से हटा,
चार अश्रु गिर धरा पर माटी में खोते रहे ||
पीर बढती ही गई जब भावना के वेग से,
हम किनारे पर रहे हर शब्द को धोते रहे…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on November 20, 2013 at 7:00pm — 25 Comments
जीवन में सद्काम का,........... हुआ सदा सम्मान |
आये दिन अब कर्म के,........ जाने सजग किसान ||
कारी रैना भोर में,..................... बीती देकर ज्ञान |
चार प्रहर में दोपहर,.............…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on May 22, 2013 at 10:00pm — 7 Comments
नदिया का यह नीर भी, कुछ दिन का ही हाय |
उथला जल भी नहि बचा, जलप्राणी कित जाय ||
नदिया जल मल मूत्र सब, कैसा बढ़ा विकार |
मानव अवलम्बित धरा, सहती अत्याचार ||
क्षुधा तृप्त करता…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on April 30, 2013 at 8:07am — 22 Comments
चक्र घंटा शूल मूसल, धर धनुष अरु बान,
शंख साजे हाथ गौरी, शीत चन्द्र समान |
शुंभ दलना मात शारद, सृष्टि जननी जान,
है नमन माता चरण में, मात दें वरदान ||
कर कमल अरु अक्षमाला, विश्व ध्यावे मात, …
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on April 12, 2013 at 7:00am — 13 Comments
ढाक अमलतास पे, आ गयी बहार देखो,
सेमर भी कुसुमित, फाग का महीना है |
सारे रंग लाल-लाल, फूलों पर दिखाई दें,
कुहु-कुहू कोयल की, राग का महीना है |
सूरज का ताप तन, बदन झुलसायेगा,
तपन दहन…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on April 4, 2013 at 2:00pm — 16 Comments
बीते इसके साथ में, माह दिवस अरु साल,
छंद ‘चित्र से काव्य तक’, लगता बहुत कमाल,
लगता बहुत कमाल, गजब के छंद सुनाता,
छ्न्दोत्सव आगाज, महोत्सव सबको भाता,…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on April 1, 2013 at 8:08am — 13 Comments
लाल ललाम ललाट लिए,
ललि लागत है ललना अति गोरी,
गाल गुलाल गुबार गुमा,
गम गौण गिनावत है यह होरी,
नाच नचावत नाम…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on March 22, 2013 at 10:44pm — 7 Comments
राग-रागिणी प्रेम की, उन्नत भ्रष्टाचार,
बहलाए फुसलाय के, देती माँ आहार,
देती माँ आहार, बाल शिशु जब भी रोये,
लोरी देत सुनाय, नहीं जो शिशु को सोये,
पति को रही लुभाय, मधुर व्यंजन से भगिणी,
उन्नत भ्रष्टाचार, प्रेम की राग-रागिणी//
Added by Ashok Kumar Raktale on March 6, 2013 at 12:30pm — 7 Comments
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