कभी लगता है ,
वक़्त हमारे साथ नहीं है ,
फिर भी हम वक़्त का साथ नहीं छोड़ते।
कभी लगता है ,
हवा हमारे खिलाफ है ,
फिर भी हम हवा का साथ नहीं छोड़ते l
कभी लगता है ,
जिंदगी बोझ बन गयी है ,
फिर भी हम जिंदगी को नहीं छोड़ते l
कभी लगता है
सांस सांस भारी हो रही है ,
फिर भी हम सांस लेना नहीं छोड़ते l
ये सब जान हैं
और जान के दुश्मन भी l
जिंदगी की लड़ाई हम
जिंदगी में रह कर लड़ते हैं ,
जिंदगी के बाहर जाकर कौन…
Added by Dr. Vijai Shanker on June 16, 2019 at 10:04pm — No Comments
सूक्ष्म कविता - गणतंत्र - डॉo विजय शंकर
गण का तंत्र
या
तंत्र का गण ?
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on January 26, 2019 at 10:47am — 6 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on October 8, 2018 at 10:05pm — 18 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on August 15, 2018 at 9:59am — 8 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on August 7, 2018 at 7:59pm — 11 Comments
बहुत कुछ , बहुत हास्यास्पद है ,
फिर भी किसी को हंसी आती नहीं।
बहुत कुछ , बहुत दुखदायी है ,
फिर भी आंसू किसी को आते नहीं।… 1.
बाज़ार भी अजीब जगह है
जहां आप शाहंशाह होकर भी
रोज बिक तो सकते हैं , पर एक
दिन को भी अपनी पूरी हुकूमत में ,
पूरा बाज़ार खरीद नहीं सकते ………. 2 .
बहुत शिकायतें हैं हवा से
कि बुझा देती हैं चिरागों को ,
चलो एक चिराग ही बिना
हवा के जला के दिखा दो। ……….. 3…
Added by Dr. Vijai Shanker on June 21, 2018 at 8:30pm — 13 Comments
क्या फरक पड़ता है ,
कुछ पढ़े-लिखे लोगों ने
आपको और आपकी
किसी भी बात को नहीं समझा।
आपको , आप जैसे लोगों ने तो
समझा और खूब समझा।
आपकी नैय्या उनसे और
उनकी नैय्या आपसे
पार लग ही रही है ,
आगे भी लग जाएगी ।
- मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on March 23, 2018 at 5:41am — 7 Comments
आप सही हैं,
वह भी सही है ,
हर एक सही है ,
फिर भी कुछ भी
सही नहीं है।
कुछ गिने चुने
लोग बहुत खुश हैं ,
यह भी सही नहीं है।
सच जो भी है ,
सब जानते हैं ,
बस मानते नहीं ,
यह भी सही नहीं है।
ऊँट सामने है ,
देखते नहीं,
हड़िया में ढूँढ़ते है ,
यह भी सही है।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on February 21, 2018 at 8:40am — 13 Comments
कुछ डोरियां
कच्चे धागों की होती हैं ,
कुछ दृश्य होती हैं ,
कुछ अदृश्य होती हैं ,
कुछ , कुछ - कुछ
कसती , चुभती भी हैं ,
पर बांधे रहती हैं।
कुछ रेशम की डोरियां ,
कुछ साटन के फीते ,
रंगीले-चमकीले ,फिसलते ,
आकर्षित तो बहुत करते हैं ,
उदघाट्न के मौके जो देते हैं ,
पर काटे जाते हैं।
इस रेशम की डोरी
की लुभावनी दौड़ में ,
ज़रा सी चूक ,
बंधन की डोरियां
छूट गईं या टूट गईं ,
रेशम की डोरियां …
Added by Dr. Vijai Shanker on January 4, 2018 at 9:30am — 10 Comments
1.
सच का कहीं दूर तक
नहीं कोई पता है।
हाँ ये सच है
कि बहुत कुछ
झूठ पर टिका है।
2.
रेत मुठ्ठी से जब
फिसल जाती है ,
जिंदगी कुछ कुछ
समझ में आती है।
3.
रोज रोज के तजुर्बे
यूँ बीच बीच में
बांटा न करो ,
ये जिंदगी गर
एक सबक है तो
उसे पूरा तो हो लेने दो
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on December 24, 2017 at 7:52pm — 12 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on November 13, 2017 at 10:57am — 15 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on November 7, 2017 at 8:30am — 11 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on October 24, 2017 at 10:29am — 21 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on October 19, 2017 at 10:00pm — 2 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on October 17, 2017 at 7:34am — 12 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on October 12, 2017 at 6:48pm — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on September 30, 2017 at 10:45am — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on September 30, 2017 at 10:44am — No Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on September 25, 2017 at 8:04pm — 16 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on July 3, 2017 at 10:12am — 12 Comments
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