रात की रानी अस्पताल में,
तुम फिर से मुस्कराया करो !!
बिस्तर पर लेटी राज दुलारी ,
पर उसको चोट लगी है भारी ,
लौटा दो फिर से उसकी हँसी,
उसे धीरे से गुदगुदाया करो !
रात की रानी अस्पताल में,
तुम फिर से मुस्कराया करो !!
तरह - तरह के मर्ज पड़े है,
जाने कितने दुःख-दर्द पड़ें हैं,
पीड़ा कम हो जाए उनकी,
ऐसा मरहम लगाया करो !
रात की रानी अस्पताल में,
तुम फिर से मुस्कराया करो !!
कुछ…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 16, 2015 at 8:33pm — 28 Comments
2122--2122--2122--212
इक यही सूरत बची है आज़्मा कर देखिये
दोस्ती अब दुश्मनों से भी निभाकर कर देखिये
आँख से रंगीन चश्में को हटाकर देखिये
जिंदगी के रंग थोड़ा पास आकर देखिये
रोज खुश रहने में दिल को लुत्फ़ मिलता है मगर
जायका बदले ज़रा सा ग़म भी खाकर देखिये
कल बड़ी मासूमियत से आईने ने ये कहा
हो सके तो आज मुझको मुस्कराकर देखिये
छोड़ कर इन ख़ामोशियों को चार दिन तन्हाँ कहीं
आसमां को भी कभी सर…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 16, 2015 at 3:30am — 16 Comments
अपने कोकून को
तोड़ दिया है मैंने अब
जिसमे कैद था, मैं एक वक़्त से
और समेट लिया था अपने आप को
इस काराग्रह में ,एक बंदी की तरह !
निकल आया हूँ बाहर , उड़ने की चाह लिए
अब बस कुछ ही दिनों में, पंख भी निकल आयेंगे
उड़ जाऊंगा दूर गगन में कहीं , इससे पहले की लोग
मुझे फिर से ना उबाल डालें , एक रेशम का धागा बनाने के लिए
और उस धागे से अपनी , सतरंगी साड़ियाँ और धोतियाँ बनाने के लिए !!
© हरि प्रकाश दुबे
“मौलिक व अप्रकाशित…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 12, 2015 at 3:30pm — 26 Comments
“आज स्त्री दिवस है भाई, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, ८ मार्च है ना, समझे कुछ !”
“किस लिए मना रहें हैं भईया, और कबसे ?”
“ अरे यार एकदम बकलोल हो क्या ? अरे महिलाओं के लिए, उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तरक़्क़ी दिलाने और उन महिलाओं को याद करने के लिए जिन्होंने महिलाओं के लिए प्रयास किए, अरे १९०९ से मना रहें हैं १०० साल से जयादा हो गए मनाते हुए, कुछ पढ़ते नहीं हो क्या ? !”
“तब भइया, रोज क्यों नहीं मनाते, देखिये न सभी स्त्रीयां सुबह से रात तक घर, परिवार,समाज का कितना…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 8, 2015 at 3:16pm — 27 Comments
22--22—22--22--22—2
मैं तो हूँ फ़कीर मैं झूमता चला हूँ
आदाब कर खुदा को नाचता चला हूँ
मस्त हूँ ख़ुशी मैं कहूं इसे ही जीना
गम के भँवर मैं मस्त तैरता चला हूँ
मौत क्या बला है मैंने इसे न जाना
जिंदगी मिली है बस भागता चला हूँ
बड़ी ख़ाक छानी पहले हुआ परेशां
नसीब को नाज़ तले रौंदता चला हूँ (नाज़= कोमलता)
शक हो किसी के दिल में तो आजमाले
इस देह को न’अश को सौंपता चला हूँ (न’अश =…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 8, 2015 at 11:06am — 12 Comments
“ कवि सम्मलेन का भव्य आयोजन हो रहा था, सभागार श्रोताओं से खचाखच भरा हुआ था , देश के कई बड़े कवि मंच पर उपस्तिथ थे, मंच संचालक महोदय बार –बार निवेदन कर रहे थे की अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना का पाठ करें, इसी श्रृंखला में उन्होंने कहा, अब मैं आमंत्रित करता हूँ, आप के ही शहर से आये हुए श्रधेय कवि विद्यालंकार जी का, तालियों से सभागार गूँज उठा !”
“तभी मंच संचालक महोदय ने उनके कान में कहा ‘सर कृपया १५ मिनट से ज्यादा समय मत लीजियेगा’ !”
“विद्यालंकार जी ने मंच पर आसीन कवियों एवम् श्रोताओं से…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 5, 2015 at 12:49pm — 10 Comments
डरना हो तो बुरे कर्म से , डरना सीखो मतवाले !
उनको चैन कभी ना मिलता , जिनके होते मन काले !!
तोल सको तो पहले तोलो, बिन तोले कुछ मत बोलो !
मौन रहो जितना संभव हो , कम बोलो मीठा बोलो !!
खाना हो तो गम को खाओ, आंसू पीकर खुश होना !
गम सहने की चीज है बंधू , अपना गम न कहीं रोना !!
जला सको तो अहं जला दो , वरना अहं जला देगा !
हिरण्यकश्यप रावण के सम, तुमको भी मरवा देगा !!
दिखा सको तो राह दिखाओ , उसको जो पथ में भूला !
भगत…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 2, 2015 at 9:00pm — 16 Comments
दिल में रहने वाले मुझसे नकाब क्यों ?
इतना मुझे बता दे मुझसे हिज़ाब क्यों?
साकीं यह सुना तू है मदिरा का सागर
लाखों को तूने तारा मुझको जवाब क्यों?
मेरे गुनाह लाखों होंगे ये मैंने है माना
गैरों से कुछ न पूछा मुझसे हिसाब क्यों?
तूने जिसको अपनाया उसको खुदा बनाया
उनका नसीब है अच्छा मेरा खराब क्यों?
छोटी सी ये हस्ती में है कुल कमाल तेरा
बेहद का है तू दरीया फिर मैं हुबाब क्यों?
© हरि…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 1, 2015 at 2:34pm — 30 Comments
राष्ट्रधर्म ही सार है, राष्ट्रधर्म ही मूल ,
लेशमात्र सन्देह भी, कर देगा सब धूल !
रहे राष्ट्र के प्यार में, मानव का हर कृत्य,
रोम–रोम में राष्ट्रहित, क्या अफसर क्या भृत्य !
राष्ट्रघात या द्रोह से, जग में प्रलय दिखाय,
राष्ट्रप्रेम वह शक्ति है, विश्वविजय हो जाय !
राष्ट्र इतर अस्तित्व सब, समझो है बेजान ,
राष्ट्र रहे तो सब रहे, आन बान औ शान !
लहू बहा दो राष्ट्रहित, और बहा दो स्वेद,
प्राण जाय गर…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 25, 2015 at 9:30am — 13 Comments
क्यों
घबराते हो
परिवर्तन से ?
परिवर्तन तो होगा
होता रहा है, होगा बार- बार
किसी के लिए अच्छा भी हो सकता है
किसी के लिए अवांछनीय भी हो सकता है
पर सृष्टी का नियम है, बदल सकते हो क्या ?
पर एक बात जान लो, परिवर्तन से ही इंसान लड़ता है
आगे बढता है ,परिवर्तन से ही इंसान सड़ जाने से बचता है !!
क्यों
घबराते हो
समस्याओं से ?
समस्यायें तो आयेंगी
आती रही है, आयेंगी बार – बार
जीवन ऐसे ही चलता है…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 23, 2015 at 10:30pm — 15 Comments
“हर बार, वह उस आखिरी ‘समोसे’ की तरह मन मसोस कर रह जाता, जिसे कोई नहीं खाता था, आखिर वह अपने डिग्री कॉलेज की क्रिकेट टीम का ‘१२ वाँ खिलाड़ी जो था’ पर आज उसने हिम्मत जुटाकर ‘कप्तान’ से कहा ‘सर’ एक बार मुझे भी खेलने का मौका चाहिए!”
“अरे यार, तुम तो टीम के अभिन्न अंग हो, तुम तो बस मैच का आनन्द लो, हां बस बीच –बीच में चाय, पानी, समोसा, कोल्डड्रिंक, जूस –वूस ले आया करो !”
“समय बदला और फाइनल मैच से ठीक एक दिन पहले कप्तान और उसका प्रिय खिलाड़ी कार दुर्घटना में जख्मीं हो गए, और उस दिन…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 23, 2015 at 2:48am — 18 Comments
“मंत्री जी, शानदार पुल बनकर तैयार है, आपके नाम की शिला भी रखवा दी है, बस जल्दी से उद्घाटन कर दीजिये !”
“अरे यार देख रहे हो कितना व्यस्त चल रहा हूँ आजकल, लेन-देन तो हो गया है न, फिर तुम्हे उद्घाटन की इतनी चिंता क्यों है ?”
“साहब, चिंता उद्घाटन की नहीं है, बारिश की है !”
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित”
Added by Hari Prakash Dubey on February 20, 2015 at 3:13am — 31 Comments
घनघोर घटायें छायीं हैं, देखो न इनमे खो जाना ,
बड़ी तेज चली पुरवाई है,देखो न इनमे खो जाना !!
पिया , क्यूँ रूठे हो मुझसे,
मुझे आज है तुमको मानना,
पिया निकल पड़ी हूँ घर से,
अपने दफ्तर का पता बताना !!
जिद करती हो जैसे बच्चे,
जाओ मुझे नहीं घर आना,
थोडा दूर रहो अब मुझसे ,
मेरी कीमत का पता लगाना !!
माना भूल हो गयी मुझसे,
अब माफ़ भी कर दो जाना,
कितना प्रेम करती हूँ तुमसे,
मुझे आज…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 17, 2015 at 11:04am — 17 Comments
तुम साहसी हो,
मैं यह मानकर चला,
इसी भाव को,
हृदय में धारण कर,
प्रेम पथ पर आगे बढ़ा,
भावी जीवन का स्वप्न सजोयें,
परिवार, समाज, दुनिया से लड़ा,
पर देखो आज शर्मिन्दा खड़ा हूँ ,
स्वयं की नजरों में गिरा पड़ा हूँ ,
मुझे प्यार किया तुमने, पर कह ना सकीं,
मेरा जीवन होम हुआ, पर भंग न तुम्हारा मौन हुआ !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित
Added by Hari Prakash Dubey on February 14, 2015 at 8:52am — 16 Comments
सुबह शाम
दफ्तर काम
ढलता सूरज
उगता चाँद
रात, तुम्हारी याद
आखों से बरसात !!
कभी भूख
कभी प्यास
कभी हर्ष
कभी विषाद
तन्हाई, रात वीरान
सुलगते हुए अरमान !!
तन्हा सफर
स्ट्रीट लाईट
पाखी जलता
मन मचलता
प्यास, बैचैन करवटें
बिस्तर पर सिलवटें !!
उगता सूरज
आँखें लाल
वही सवाल
वही मदहोशी
गुम, खुद में कहीं
नहीं सुध किसी चीज़ की !!
फिर…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 9, 2015 at 10:21am — 26 Comments
सोने का संसार !
उषा छिप गयी नभस्थली में,
देकर यह उपहार !
लघु–लघु कलियाँ भी प्रभात में,
होती हैं साकार !
प्रातः- समीरण कर देता है,
नव-जीवन संचार !
लोल-लोल लहलही लतायें,…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 8, 2015 at 12:16am — 19 Comments
“छोटी आज सुबह से ही सज धज कर बैठी थी, उसने बहुत ही सुन्दर राखी खरीद कर पहले ही रख ली थी, थाली में रोली, चावल, दीया- बाती और मिठाई सजा कर बैठी थी, आज कई दिनों बाद उसका राजा भईया आ रहा था, आज ‘रक्षाबंधन’ जो था !”
“तभी उसके मोबाइल फ़ोन की घंटी बजी ,एक एस.ऍम.एस था.. “हे छोटी ,हैप्पी रक्षाबंधन टू यू”, सॉरी आज नहीं आ पाऊंगा तुम्हारी भाभी को लेकर ससुराल आ गया हूँ , मॉम, डैड को हेलो कहना , लव यू बाय !”
“छोटी ने लैपटॉप उठाया ,एक अटैचमेंट बनाया ,मेल किया , भाई को एस.ऍम.एस किया “भईया, राखी…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 3, 2015 at 8:15pm — 27 Comments
Added by Hari Prakash Dubey on February 2, 2015 at 6:30pm — 15 Comments
“सुनिए , जरा प्याज काट दीजिये । ”
“देख नहीं रही हो , अभी-अभी थक हार के घर लौटा हूँ ।”
अरे….मैं भी तो आज 5 बजे दफ्तर से आयीं हूँ ।
“हाँ तो कौन सा पहाड़ खोद कर आई हो ।”
“तो तुम ही कौन सा लोहा पिघला रहे थे ?”
“इतना सुनते ही पति ने चप्पल उठा के पत्नी के मुहँ पर दे मारी, पत्नी तमतमा कर आई और पास ही पड़ा जूता उठा कर पति के मुहँ पर जड़ दिया ।”
इधर खबर आ रही थी.. “अभी –अभी , वेंटिलेटर पर पड़ी भारतीय संस्कृति ने दम तोड़ दिया ।”
© हरि प्रकाश…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 27, 2015 at 10:00pm — 25 Comments
“अरे यार ओबामा साहब के रास्ते में कुत्ता आ गया, सुरक्षा व्यवस्था में भयंकर चूक हो गयी, अगर उसमें बम लगा होता तो?”
“कुछ नहीं यार “भारतीय कुत्ता” था, जान दे देता पर ओबामा साहब को कुछ नहीं होने देता, यार देश की इज्ज़त का सवाल था आखिर ।" जय हिन्द !
हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित
Added by Hari Prakash Dubey on January 26, 2015 at 1:00pm — 29 Comments
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