वागीश्वरी सवैया
वशीभूत जो सत्य औ स्नेह के हो, जहाँ में उसे ढूंढना क्या कहीं?
न ढूंढो उसे मन्दिरों-मस्जिदों में,शिवाले-शिलाखण्ड में भी नहीं!
जला प्रेम का दीप देखो दिलों में, मिलेगा तुम्हें वो सदा ही यहीं।
जहाँ नेह-निष्काम निष्ठा भरा हो, सखे! ईश का भी ठिकाना वहीं।।
दुर्मिल सवैया
दुख जीवन में अति देख कभी, मन को नर हे! न निराश करो।
रहता न सदा दुख जीवन में, तुम साहस से मन धीर धरो।।
रजनी उपरांत विहान नया, अँधियार घना मत देख डरो।
लघु-दीप जला…
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Added by रामबली गुप्ता on August 1, 2016 at 8:30pm —
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वह्र-122 122 122 122
निशा मध्य धीरे से घूँघट उठेगा।
खिला रूप विधु का ये मन मोह लेगा।।
प्रतीक्षा हृदय जिसकी करता रहा है।
उसी रात्रि का इंदु हिय में खिलेगा।।
मुदित होंगे मन सुख के सपने सजेंगे।
अमित स्रोत सुख का उमड़ के बहेगा।।
रहा आज तक है जो अव्यक्त हिय में।
वही प्रेम-सागर तरंगें भरेगा।।
नयन बंद होंगे अधर चुप रहेंगे।
मुखर मौन ही हाल हिय का कहेगा।।
खिला पुष्प-यौवन बिखेरेगा सौरभ।
भ्रमर पी अमिय मत्त आहें…
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Added by रामबली गुप्ता on July 25, 2016 at 2:00pm —
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मदिरा सवैया
चैन लुटा जब नैन मिले
तन औ मन की सुध भी न रही।
कोमल भाव जगे उर में
शुचि-शीतल-स्नेह-बयार बही।।
मौन रहे मुख नैनन ने
प्रिय से मन की हर बात कही।
चंद्र निहारत रैन कटें
मन की अब पीर न जाय सही।।
रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by रामबली गुप्ता on July 21, 2016 at 4:30pm —
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घेरि-घेरि घनघोर घटा अति स्नेह-सुधा बरसाए जन में।
चमक चंचला हाय! विरही मन की तपन बढ़ाये छन में।।
भीग-भीग हिय गीत प्रीत के गाये सुख पाये सावन में।
झूम-झूम तरु राग वागश्री गाएं हरषाएं जीवन में।।
टर्र-टर्र टर्राएं दादुर अति रति भाव जगा निज मन में।
म्याव-म्याव धुन गाये, नाचे मोर मोरनी के सँग वन में।।
कुहुक-कुहुक कर गाये कोयल हृदय चुराए छिप उपवन में।
सुखमय यह सावन मनभावन अति सुख लाये हर जीवन में।।
रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं…
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Added by रामबली गुप्ता on July 19, 2016 at 9:58pm —
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ईश करूं नित वंदना, रहो सदा हिय-धाम।
कलुष-भेद उर-तम मिटा, सफल करो सब काम।।1।।
सदा वास उर में करो, करुणानिधि जगदीश।
करूं जोर कर वंदना, धरो कृपा-कर शीश।।2।।
पार करो भवसिंधु से, बन तरणी-पतवार।
तुम बिन कौन सहाय अब, हे! जग-पालनहार।।3।।
हरि! हर लो हर भेद-तम, द्वेष-दंभ-दुर्भाव।
उर में नित सत-स्नेह के, भर दो निर्मल भाव।।4।।
सूर्य-चंद्र-भू-व्योम-जल, अनल--अनिल तनु-श्यान।
सिंधु-शैल-सरि सृष्टि के, कण-कण में भगवान।।5।।
कृपा-सिंधु…
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Added by रामबली गुप्ता on July 15, 2016 at 11:14am —
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वह्र-212 212 212 212
दिल तेरे बिन कहीं अब बहलता नही।
दर्द सीने में है दम निकलता नही।।
दर्द दिल का बढ़ा जा रहा है बहुत।
दर्दे दिल पे कोई जोर चलता नही।।
सिसकियों से मेरी दिल पिघलते गए।
दिल तेरा ये भला क्यूँ पिघलता नही।।
टालता हूँ बहुत ख़्वाब तेरे सनम।
टालने से मगर अब ये टलता नही।।
काश! मिल जाए तेरा सहारा मुझे।
बिन सहारे ये दिल अब सँभलता नही।।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by रामबली गुप्ता on July 11, 2016 at 10:30am —
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*छप्पय छंद*
ज्योतिपुंज जगदीश!
रहो नित ध्यान हमारे।
कलुष-द्वेष-दुर्भाव,
हृदय-तम हर लो सारे।।
सत्य-स्नेह-सद्भाव,
समर्पण का प्रभु! वर दो।
जला ज्ञान का दीप,
प्रभा-शुचि हिय में भर दो।
दो बल पौरुष-सद्बुद्धि हरि!
फहराएं ध्वज-धर्म हम।
हर जनजीवन के त्रास हर,
करें सदा सद्कर्म हम।।
*किरीट सवैया*
संकटमोचन! राम-सखा! तुम,
बुद्धि-दया-बल-सद्गुण-सागर।
दीन-दुखी…
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Added by रामबली गुप्ता on July 7, 2016 at 8:23am —
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ऐ! राही! आगे बढ़ता जा।
पथिक सत्य के पथ का तूँ है
उच्च-शिखर पर चढ़ता जा।
ऐ! राही! पथ पर.......
संघर्षों से तूँ ना डरना।
पथ पर पग पीछे ना धरना।।
बहुत मिलेंगे क्षणिक बवंडर।
रोकेंगे तुझको पग-पग पर।।
तोड़ आँधियों का मद प्यारे!
बाधाओं से लड़ता जा।
ऐ! राही! पथ पर.......
यूँ प्रतिमान रचे ना कोई।
कठिनाई से बचे न कोई।।
करके फिर अवलोकन देखो।
युग-पुरुषों का जीवन देखो।।
पाठ सत्य-संघर्ष-विजय का,
तव-जीवन के पढ़ता…
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Added by रामबली गुप्ता on July 4, 2016 at 12:18pm —
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*महाभुजंगप्रयात सवैया*
करूं अर्चना-वंदना मैं तुम्हारी, महावीर हे ! शूर रुद्रावतारी!
कृपा-दृष्टि डालो दया दान दे दो, बढ़े बुद्धि-विद्या बनूं सद्विचारी।।
हरो दीनता-दुःख-दुर्भाग्य सारे, तुम्हीं नाथ हे! लाल-सिंदूरधारी!
सदा हाथ आशीष का शीश पे हो, यही प्रार्थना हे! महाब्रह्मचारी।।
*कुण्डलिया छंद*
मृग-से सुंदर नैन हैं, ओष्ठ-अरुण-अंगार।
यौवन के हर पोर से, फूटे मधु की धार।
फूटे मधु की धार, तार उर के झंकृत कर।
काले-कुंचित केश, झूमते अहि से कटि…
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Added by रामबली गुप्ता on June 28, 2016 at 1:00pm —
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'मत्तगयन्द सवैया'
हे! जगदीश! सुनो विनती अब, भक्त तुम्हें दिन-रैन पुकारे।
व्याकुल नैन निहार रहे मग, दर्शन को तव साँझ-सकारे।
कौन भला जग में तुम्हरे बिन, संकट से प्रभु ! मोहि उबारे?
आय करो उजियार प्रभो ! हिय, जीवन के हर लो दुख सारे।।1।।
'दुर्मिल सवैया'
जय हे जगदीश! कृपा करके, कर आय प्रभो! मम शीश धरो।
तुम मूरत बुद्धि-दया-बल के, सदबुद्धि-दया-बल दान करो।
शुचि ज्ञान-प्रकाश बहा प्रभु हे ! मन के तम-पाप-प्रमाद हरो।
हर लो हर दुर्बलता हिय के, उर…
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Added by रामबली गुप्ता on June 13, 2016 at 1:00pm —
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तव भक्त पुकार रहा कब से,
अब आय प्रभो! कर शीश धरो।
मन में अँधियार घना बढ़ता,
तम-बंधन काट प्रकाश भरो।।
बस एक सहाय प्रभो! तुम ही,
दुविधा-दुख-संकट धाय हरो।
मम डूब रही नइया मग में,
भवसागर से प्रभु! पार करो।।1।।
मधुसूदन! द्वार परा कब से,
निज दर्शन दे उपकार करो।
तुम दीनन के दुख तारन हो,
दुविधा-दुख मोर अपार हरो।
प्रभु! ज्ञानद-प्रेमद-पुंज तुम्हीं,
उर ज्ञान-प्रभा-चिर-प्रेम भरो।
कमलापति हे! कमला सँग ले,
मन-मन्दिर मोहि सदा…
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Added by रामबली गुप्ता on May 27, 2016 at 3:00pm —
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प्रिय से रँगवावन को चुनरी,
मन मोद लिए मुसकाय चली।
सब छाड़ि जहाँ के लाज सखे!
भरि थाल गुलाल उड़ाय चली।
पट पीतहि लाल हरा रँग से,
मन प्रेमहि रंग रँगाय चली।
नव यौवन के मद से सबके,
मन में मदिरा छलकाय चली।।1।।
सुंदर पुष्प सजा तन पे,
लट-केश -घटा बिखराय चली है।
अंजित नैन कटार बने,
अधरों पर लाल लुभाय चली है।।
अंगहि चंदन गंध भरे,
मदमत्त गयंद लजाय चली है।
हाय! गयो हिय मोर सखे!
कटि जूँ गगरी छलकाय चली…
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Added by रामबली गुप्ता on May 9, 2016 at 5:30pm —
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बन प्रेम-प्रसून सुवासित हो,
उर में सबके नित वास करो।
मद-लोभ-अनीति-अधर्म तजो,
धर धर्म-ध्वजा नर-त्रास हरो।।
सत हेतु करो विषपान सदा,
नहि किंचित हे! मनुपुत्र! डरो।
सदभाव-सुकर्म-सुजीवन का,
जग में प्रतिमान नवीन धरो।।1।।
पथ में अति काल-बवंडर से,
नहि किंचित कंत! कदापि डरो।
करके दृढ़-निश्चय साहस से,
हिय धीर धरे नित यत्न करो।।
हर रोक-रुकावट-विघ्न मिटे,
जब सिंह समान हुँकार…
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Added by रामबली गुप्ता on May 6, 2016 at 4:30am —
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प्रियवर! अब तुम आन मिलो ।
सच में अब तुम आन मिलो ।।
तुम बिन भटकूँ मै बन पगली ।
हुई जिन्दगी जल बिन मछली ।।
रात चाँदनी आये जब-जब ।
मन की अगन बढ़ाये तब-तब ।।
दिन का दूजा नाम उदासी ।
हुई तिहाई तन से दासी ।।
नैना हर पल बाट तके हैं ।
विरह वेदना सह न सके हैं ।।
पर यादों में आते जब तुम ।
मन को बड़ा रिझाते तब तुम ।।
किन्तु चेतना लौटे ज्योंही ।
बिलख हृदय रो बैठे त्योंही ।।
नैन धैर्य खो देते हैं तब ।
अश्रु कपोल धो देते हैं तब…
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Added by रामबली गुप्ता on April 21, 2016 at 10:37am —
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हे महात्मन्!
हे वयोवृद्ध!
तेरी मृतात्मा सुने!
राम-गौतम की इस भूमि पर
अब वटवृक्ष छोड़,
उसकी टहनियों को
पूजा जायेगा।
तूने जो किये थे,
निः स्वार्थ कृत्य,
कर विस्मृत उन्हें,
बस तेरी कमियों को ही
उकेरा जायेगा।
इस सत्य-भूमि पर,
सत्यता को झुठलाकर
इतिहास को ही
तोड़ा मरोड़ा जायेगा,
तेरी रीतियों-नीतियों की
प्रबुद्ध आवाज को
अब अहिंसात्मक असहिष्णुता
बोला जायेगा।
जिन घटितों का तुझसे
दूर तक रिश्ता…
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Added by रामबली गुप्ता on April 13, 2016 at 2:15pm —
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आज प्रिये! कुछ कहना चाहूँ, हिय में तेरे रहना चाहूँ।
तेरे तन-मन में खोया मैं खोया ही अब रहना चाहूँ।।
आज प्रिये! कुछ.........
निज नृग-से न्यारे नयनों में अंजन-सा मुझे रचा लो तुम।
उलझा लो कुंचित-केशों में या गजरा मुझे बना लो तुम।।
अधरों की लाली बन प्यारी मैं अधर-सुधा पा लेना चाहूँ।
आज प्रिये! कुछ............
कानों का कुंडल बन जाऊँ या उर का हार बना लो तुम।
बन जाऊँ छम-छम पायल मैं या कंगन मुझे बना लो तुम।
नथ की नथिया बन सजनी मैं चूम होठ को लेना…
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Added by रामबली गुप्ता on April 8, 2016 at 10:01am —
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लच-लचक-लचक लचकाय चली,
कटि-धनु से शर बरसाय चली।
कजरारे चंचल नयनों से,
हिय पर दामिनि तड़पाय चली।।1।।
फर-फहर फहर फहराय चली,
लट-केश-घटा बिखराय चली।
अलि मनबढ़ सुध-बुध खो बैठे,
अधरों से मधु छलकाय चली।।2।।
सुर-सुरभि-सुरभि सुरभाय चली,
चहुँ ओर दिशा महकाय चली।
चम्पा-जूही सब लज्जित हैं,
तन चंदन-गंध बसाय चली।।3।।
लह-लहर-लहर लहराय चली,
तन से आँचल सरकाय चली।
नव-यौवन-धन तन-कंचन से,
रति मन में अति भड़काय…
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Added by रामबली गुप्ता on April 5, 2016 at 11:00am —
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हृदय का भ्रमर गुनगुनाता चला है।
नया सुर अधर पर सजाता चला है।
हृदय का भ्रमर.............
उजड़ जो गयी एक बगिया हुआ क्या,
बगीचे नए भी यहीं पर मिलेंगे।
नई नित्य कलियाँ सजाएंगी उपवन,
नए पुष्प अमृत-कलश ले खिलेंगे।
यही सोंचकर गीत गाता चला है।
हृदय का भ्रमर.............
तिमिर रात्रि का कब सदा ही रहेगा?
दिवा के उजाले भी चहुँ ओर होंगे।
नवोदित किरन तम का चीरेगी सीना,
प्रभा से प्रकाशित सकल वस्तु होंगे।
हृदय-तम में दीपक जलाता चला…
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Added by रामबली गुप्ता on April 4, 2016 at 10:30am —
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भावना के वाह को अब रोक लो तुम।
कहो कुछ भी किन्तु पहले सोंच लो तुम।।
भावना के वाह...........
शब्द-शर मुख से निकल ना लौटता है।
सालता तन-बदन हिय को घोंटता है।
कर न दें आहत किसी को शब्द तेरे,
हे! सखे! रुककर जरा यह सोंच लो तुम।
भावना के वाह.............
मान देकर हृदय सबका जीत तो लो।
शब्द-मधु बरसा उरों को सींच तो लो।
मान दोगे मान पावोगे सदा ही,
बोल मीठे बोल दो तो बोल लो तुम।
भावना के वाह...........
है बड़ा कोई यहाँ छोटा…
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Added by रामबली गुप्ता on April 2, 2016 at 5:32am —
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(1)
चंद्रमुखी! हे मृगनयनी! क्या यौवन-रूप सजाया है।
ओष्ठ-अरुण मधुरस के प्याले, सुंदर कंचन-काया है।
लोच कमरिया-इंद्रधनुष, लट-केश घटा की छाया है।
कटि गगरी धर जाने वाली, तूने हृदय चुराया है।
(2)
मुरलीधर धर मुरली अधरन, ग्वालिंन को नचावत हो।
विश्वम्भर भर प्रेम हृदय में, राधा को रिझावत हो।
चक्रपाणि पाणि चक्र धर, अधर्म को मिटावत हो।
दामोदर दर-दर भटकूँ मैं, क्यों न मोहि उबारत हो?
-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by रामबली गुप्ता on March 28, 2016 at 3:00pm —
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