ज़माना
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जनता देखो आया अब कैसा जमाना
कवि को मना है आज कल मुस्कुराना
लिखने पे पड़ता अब इन्हें जेल जाना
जनता देखो आया अब कैसा जमाना
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न खींचो अब कोई चित्र ये जंतु विचित्र
बैठ कर सदन में खूब मौज लेते सचित्र
ऐसा न था कभी इनका चरित्र पुराना
जनता देखो अब आया कैसा जमाना
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उजले तन…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 16, 2012 at 2:52pm — 4 Comments
मजदूर व्यापारी कामगार
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 4, 2012 at 2:52pm — 13 Comments
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 3, 2012 at 2:30pm — 9 Comments
करवा चौथ -एक सत्य कथा (हास्य व्यंग) लघु कथा
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 31, 2012 at 3:56pm — 4 Comments
रिटायरमेंट ( लघु कथा )
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 24, 2012 at 12:07pm — 20 Comments
नारी शशक्ति करण पर सुन्दर आयोजन
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 24, 2012 at 11:11am — 6 Comments
निमंत्रण
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 24, 2012 at 10:32am — 12 Comments
बहार आने पे चमन में फूल खिलते हैं
जब तलक महक औ रंगे जवानी हो
संग चलने दिल मिलने को मचलते हैं
छाती है जब खिजां गुलशने ए बहारां में
पराये तो क्या अपने भी रंग बदलते हैं
था अकेला चला काफिला बढ़ता गया
मकसद एक कभी जुदा जुदा
जमाने का भी अब बदला चलन यारों
मिल गयी उन्हें मंजिले मक़सूद
मील के पत्थर के मानिंद मैं तनहा रह गया
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on September 17, 2012 at 7:00pm — 4 Comments
ताज महल
चंचल हिरनी मृग नयनी
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 13, 2012 at 6:28pm — 12 Comments
तू बादल है मैं मस्त पवन
उड़ते फिरते उन्मुक्त गगन
गिरने न दूंगा धरा मध्य
बाहों में ले उड़ जाऊँगा
तू बादल है मैं मस्त पवन
उड़ते फिरते उन्मुक्त गगन
.
मन के सूने आँगन में
मस्त घटा बन छायी हो
रीता था जीवन मेरा
बहार बन के आयी हो
जम के बरसो थमना नहीं
प्यासा न रह जाए ये…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 26, 2012 at 10:14pm — 1 Comment
नीम में लगती दीमक
रिश्तों में मिठास नहीं
डूब गयी आशा किरण
एक दूजे पे विश्वास नहीं
रिश्तों का प्रबल क्षरण
जुड़ने के आसार नहीं
घर घर छिड़ा अब रण
मीठा स्वप्न संसार नहीं
चन्दन लिपटत न भुजंग
शीतलता का वास नहीं
माता करती भ्रूण भंग
नारी के संस्कार नहीं
भूल गए करना सत्संग
जीवन से अब प्यार नहीं
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 20, 2012 at 5:30pm — 14 Comments
जुम्मन अब्बू से बोला
दो पैसा बदलूँ चोला
निठल्लू जवान खाते गोला
सुधरो जल्दी तुमको बोला
पैसा न एक मेरे पास
कमाओ खुद छोडो आस
धंदा कोई न आता रास
बाजार करता न विश्वास
जेब कटी की सारी कमाई
पुलिस ले उडी भाई
युक्ती सुन्दर तुम्हे बताता
बन जा नेता का जमाता
अच्छी है ये तुम्हरी सीख
मांगनी पड़े अब न भीख
छुट भैया में बड़ा लोचा
करूँ धंधा कई बार सोचा
पनवाडी ने करा खाता बंद
सब बोले धंदा है मंद
माल मुफ्त अब…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 20, 2012 at 1:30pm — 8 Comments
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 17, 2012 at 4:54pm — 12 Comments
गांधी टोपी पहन के भागे कुरता पैजामा सिलवाने बाबा जी
कितना प्यारा देश का मौसम जनता को उल्लू बनाने बाबा जी
कर जोर मांगते भीख वोटन की पाकर जीत तन जाते बाबा जी
चोर चोर मौसेरे भाई बैठ संग देश की लाज लुटाते बाबा जी
मुन्नी संग कमर मटकाते जेल में राखी बंधवाते बाबा जी
सर्वस्व…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 16, 2012 at 1:37pm — 2 Comments
कितने ही प्रतिष्ठित समाजसेवी संगठनों में उच्च पद-धारिका तथा सुविख्यात समाज सेविका निवेदिता आज भी बाल श्रम पर कई जगह ज़ोरदार भाषण देकर घर लौटीं. कई-कई कार्यक्रमों में भाग लेने के उपरान्त वह काफी थक चुकी थी. पर्स और फाइल को बेतरतीब मेज पर फेंकते हुए निढाल सोफे पर पसर गई. झबरे बालों वाला प्यारा सा पप्पी तपाक से गोद में कूद आता है.
"रमिया ! पहले एक ग्लास पानी ला ... फिर एक गर्म गर्म चाय.........."
दस-बारह बरस की रमिया भागती हुई पानी लिये सामने चुपचाप खड़ी हो जाती है.
"ये…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 12:00pm — 20 Comments
छा गए नभ पे बादल
धरा पे हलचल हो गयी
बह चली शीतल पवन
आशाएं तरंगित हो गयी
बरसेगा धरती पे जल
किसान चलाएगा हल
डालेगा बीज खेतों में
स्वर्णिम होगा घर घर
बरखा बूँदें गिरने से
धरा तो गीली हो गयी
छा गए नभ पे बादल
धरा पे हलचल हो गयी
बह चला पानी धरती पर
अमूल्य है ये निर्मल जल
हो जाए कहीं बेकार नहीं
बना के मेड़ों पर बंद
जल निकास नाली हो गयी
छा गए नभ पे बादल
धरा पे हलचल हो…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 13, 2012 at 3:00pm — 11 Comments
पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ
जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ
मासूम सी कली तू बगिया में खिली है
थे कांटे वहाँ भी जिस घर में पली है
चुन लूँ तेरे कांटे जीवन संवार लूँ
पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ
जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ
बचपन में तेरे माँ बाप यों सो गए
खा गया था काल तुम थे रो…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 13, 2012 at 1:22pm — 8 Comments
बीती बातें याद कर मुस्कराना अच्छा लगता है
था कभी जो गाँव अपना शहर पुराना लगता है
मेड पर गिरते पड़ते छुप जाते थे खेतों में
नदी किनारे बनाते घरोंदे मिटाते थे रेतों में
बरसते पानी में छप छपाना अच्छा लगता है
बीती बातें याद कर मुस्कराना अच्छा लगता है
कूकती कोयल अमरिया आसमा की अरुणाई
तप्त दुपहरिया पेड़ तले सालन रोटी खाई
माँ के हाथों घूंघट ओट मुस्कराना अच्छा लगता है
बीती बातें याद कर मुस्कराना अच्छा लगता है
वो रहट की आवाजें वो गन्ने…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 12, 2012 at 5:00pm — 20 Comments
बाबा जी ओए बाबा जी गाओ सा रे गा मा जी ओए
पाकिस्तान बना समुन्दर चीन चलाये चप्पू जी
रामदेव का स्वदेशी अभियान बना रहा भारत महान
काला धन और भ्रष्टाचार देश की परम सुखी संतान
अन्ना को देश गांधी बोले हुंकार की उसके सिंहासन डोले
थे कभी अलग अलग दोनों अब अन्ना संग राम देव बोले
बाबा जी ओए बाबा जी गाओ सा रे गा मा जी
जनता में विश्वास जगा है जान गए किस किस ने ठगा है
राम देव को मिल गया ज्ञान क्या दगा है कौन सगा है
सोयी जनता चेत रही है बेईमानों को देख रही है…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 11, 2012 at 11:30am — 16 Comments
बैठा प्रभु मेरे समक्ष तिलक लगे निज आस
चन्दन मैं कैसे घिसूँ नहीं जो पानी पास
सात दीप और सात समुन्दर
सुन्दर कृति जल थल नभ पर
सात सुरों से संगीत बजता
पंचम पे पा सप्तम नी सजता
पंचम से गीत जब सजता
सप्तम बिना कंठ नहीं रुचता
पंचम सप्तम जब मिल जाते
गीत मनोहर सुन्दर भाते
जीवन का सुन्दर आधार
पंचम सप्तम का युगल संसार
तत्व समझते मुनिवर विज्ञानी
श्रष्टि जीवन शून्य बिन पानी
जल बिन जीवन मीन बिन पानी
पानी जीवन पर्याय बना है…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 11, 2012 at 10:00am — 6 Comments
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