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All Blog Posts Tagged 'अतुकांत' (257)


सदस्य कार्यकारिणी
अतुकांत - समय को भी तो एक दिन बूढ़ा होना है -- गिरिराज भंडारी

वो ममता मयी छुवन हो

जो माँ की कोख से निकलते ही मिली

या हो उसी गोद की जीवन दायनी हरारत

या

तुम्हारी उंगलियों को थामे ,

चलना सिखाते 

पिता की मज़बूत, ज़िम्मेदार हथेली हो

या हो

जमाने की भाग दौड़ से दूर , निश्चिंत

कलुषहीन  हृदय से

धमा चौकड़ी मचाते , गिरते गिराते , खेलते कूदते

बच्चे

या फिर स्कूलों कालेजों की किशोरा वस्था की निर्दोष मौज मस्तियाँ

 

या हो वो जवानी में पारिवारिक , सामाजिक ज़िम्मेदारियों…

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Added by गिरिराज भंडारी on October 25, 2015 at 1:48pm — 14 Comments

दुनियाँ क्या से क्या हो गई-- डॉo विजय शंकर।

दुनियाँ,क्या से क्या
हो गई,
रफ़्तार, हवा से तेज
हो गई ,
जिंदगी, बस एक रेस
हो गई ,
मेहबूब की बातें,
मेहबूब से बातें ,
ग़ज़ल न जाने कहाँ ग़ुम
हो गई,
इश्क न जाने कहाँ खो गया
अफेयर का ज़माना हो गया ,
चलते हैं ,
बदलते हैं ,
कितने फेयर होते हैं ,
जफ़ा को अब कोई रोता नहीं ,
जिक्रे वफ़ा अब कहीं होता नहीं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on October 4, 2015 at 10:31am — 20 Comments

एकात्म बोध /कविता : नीरज

तेजी से घूम रहे चक्र पर
हम ठेल दिये गए हैं
किनारों की ओर
जहां
महसूस होती है सर्वाधिक
इसकी गति
ऊंची उठती है उर्मियाँ
जैसे जैसे हम बढ़ते हैं
केंद्र की ओर
सायास
स्थिरता बढ़ती जाती है
प्रशांत हो जाती है तरंगे
सत्य का बोध
अनावृत होने लगता है
अनुभव होता है एकात्म का ....
.............. नीरज कुमार नीर

Added by Neeraj Neer on September 26, 2015 at 12:37pm — 5 Comments

उसकी देह अब भी मांसल है / अतुकांत कविता

सोनाली भट्टाचार्य एवं सभी तेजाब पीड़ितों के लिए 

वह एक लड़की थी

उन्नत नितंबों

पुष्ट उरोजों वाली

श्यामल घनेरे केश

बल खाते पर्वतों के बीच

लहराते

लगता बाढ़ की पगलाई नदी

मेघों के मध्य

घाटी में से गुजर रही हो

खुलकर खिलखिला कर हँसती

कई सितार एक साथ झंकृत हो उठते

उसके सपनों में आता

फिल्मी राजकुमार

जिसके साथ वह

गीत गाती झूमती नाचती

फूलों के बाग में

स्कूल कॉलेज से आती जाती

सबकी निगाहों की केंद्र बिन्दु

सबके…

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Added by Neeraj Neer on September 13, 2015 at 5:17pm — 12 Comments

बस तुम नहीं आती

खोल रखे है मैंने

खिड़कियाँ और सभी दरवाजे

भीतर आते हैं

धूप , चाँदनी ,

निशांत समीर ,

दोपहर के गरम थपेड़े ,

पूस की  शीत लहर ,

बरखा बूंदे

तमस, प्रकाश

पुष्प सुवास, उमसाती गँधाती अपराह्न की हवा

और सभी कुछ

अपनी मर्जी से

और अक्सर उतर आता है

खाली आकाश भी

बस तुम नहीं आती

कितने बरस बीत गए

पर तुम नहीं आती

खोल रखे होंगे

तुमने भी शायद

खिड़कियाँ और दरवाजे

..... नीरज कुमार…

Continue

Added by Neeraj Neer on August 2, 2015 at 8:59am — 12 Comments

शहीद

बहुत सोचा तो लगा

सच ही तो कहते हैं

वे तो भर्ती होते हैं मरने के लिए

अवगत होते हैं

अपने कार्य के निहित खतरों से

पर एक बात समझ नहीं आयी

जब सामने से चलती हैं गोलियां

उनके पास भी तो होता है

भाग खड़े होने का विकल्प

पर वे भागते क्यों नहीं

देते हैं गोलियों का जवाब

पीघला देते हैं लोहे को

अपने सीने में कैद करके

बारूद को कर देते हैं बर्फ

वे धोखा नहीं दे पाते

अपनी मातृभूमि को

राजनेताओं की तरह

मेरी समझ में कुछ कमी है शायद…

Continue

Added by Neeraj Neer on July 18, 2015 at 8:18pm — 6 Comments

ऊंचे चमकदार आदर्श -- डॉo विजय शंकर

ऊंचे आदर्श ,

बहुत ऊंचे , पहुँच से ऊपर ,

झाड़फानूस की तरफ ,

रौशन भी होते हैं , चमक के साथ ,

बिजली आती रहे तब ,

और हैं भी केवल उन घरों में

जो इतने बड़े हैं कि

झाड़फानूस लगवा सके।

पर वे भी बस उसकी चमक से

उपकृत , चमत्कृत होते रहते हैं ,

अधिकांशतः किसी के आने पर

उसे रौशन करते हैं , दिखाने के लिए।

सामान्यतः तो आदमी मामूली चप्पलों में ही

चलता है , उसका जीवन तो उन्हीं में बीतता हैं ।

उनमें से बहुतों ने तो झाड़फानूस देखे भी नहीं हैं… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 23, 2015 at 1:20pm — 8 Comments


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प्यार - एक वैचारिक अतुकांत -'' हाँ , आपसे ही कह रहा हूँ '' ( गिरिराज भंडारी )

प्यार - एक वैचारिक अतुकांत --'' हाँ , आपसे ही कह रहा हूँ ''

********************************************************************

वाह !

किसने कह दिया ?

आपके दिल में प्यार भरा है, सागर सा

खुद ही दे दिये सर्टिफिकेट , खुद को ही

वाह ! क्या बात है

बिना जाने सच्चाई क्या है ? कैसी है ?

प्यार है भी कि नहीं दुनिया में

प्यार नाम की चीज़ होती कैसी है ?

रहता कहाँ है प्यार ?

किन शर्तों में जी पाता है ?…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 18, 2015 at 10:00am — 10 Comments

वक़्त मुसाफिरी का है ,गुजार ले-- डॉo विजय शंकर

ये तू , ये मैं ,

ये साथ , ये अकेलापन,

सब यहीं है ,

यहीं का है,

एक बार यहां से गए ,

तो तू कौन,

मैं कौन,

एक नाम ही है,

सब यहीं रह जाएगा ,

बहती हवा में बह जाएगा ,

द्रव्य, दृश्य,शब्द, स्मृतियाँ, सब,

कुछ मिटटी में , कुछ

वायु में विलीन हो जाएगा ,

नष्ट नहीं होगा ,

पर साथ नहीं जाएगा ,



ये तू, ये मैं , ये साथ ,

ये रिश्ते , ये बंधन ,

ये सब यहीं के हैं ,

यहीं तक हैं ,

यहीं रह जाएंगे ,

समय में खो जाएंगे… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on May 13, 2015 at 7:04am — 24 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
स्वीकृति के लिये छटपटाती बातें

इनकार कितना भी कर लें

दिल पर हाथ रख कर पूरी इमानदरी से सोचेंगे तो आप भी कहेंगे

हम भावनाओं की दुनिया में जीते हैं

और ये सच हो भी क्यों न , एकाध अपवाद छोड़कर

हम सब दो पवित्र भावनाओं के मिलन का ही तो परिणाम हैं

 

भावनायें गणितीय नहीं होतीं

कारण और परिणाम दोनों का गणितीय आकलन नामुमकिन है

हम सब ये जानते हैं , फिर भी

दूसरों के मामले में हम सदा गणितीय हल चाहते हैं ,

अक्सर रोते बैठते हैं , दो और दो चार न पा के

उत्तर…

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Added by गिरिराज भंडारी on May 12, 2015 at 9:15am — 15 Comments

अपेक्षा है तुझे....! (अतुकांत)

सब कुछ

है तेरा

तुझ पर, तेरे कारण ही

और तेरे ही लिए हैं

अपने दामन में पाले हैं तूने

समान, असमान भाव से 

कांटे भी, फूल भी

देव और दानव  

जल भी तेरा, थल भी

मरुस्थल और तेरे ही है पर्वत

तेरी ही नदियाँ

तेरा ही आश्रय है, सागर को

अश्विन से फाल्गुन तक

सिकुड़ती है,  तू

ज्येष्ठ की दहक में 

तपती और पिघलती रही

अथाह सहनशीलता है,  तुझमे

इस तरह सिकुड़ने और

पिघलने के…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on May 10, 2015 at 11:26am — 12 Comments

माँ परियों की रानी है -- डॉo विजय शंकर

मातृ-दिवस पर



माँ

जिसके बिन जन्म नहीं

सुरक्षा है, सुकून है ,

शान्ति हैं ,

ज्ञान है , संस्कृति है ,

एक पूर्ण परिवेश है ,

अबोथ के लिए ,

अपना विश्वकोष है ,

ईश्वर का वरदान है।

नैसर्गिक अधिकार है ,

अमूल्य है, मूल्यरहित

उपहार है.



स्वर्ग में ,

अप्सराएं प्रतीक्षा करतीं हैं ,

स्वर्ग जाने पर मिलती हैं ,

किसने देखा है,

किसने जाना है ?



धरती पर आने पर

सबसे पहले माँ मिलती है,

माँ प्रतीक्षा… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on May 10, 2015 at 10:00am — 14 Comments

मेरा अस्तित्व कहाँ है // रवि प्रकाश

एक समन्दर भी है अन्दर

थोड़ा उथला,थोड़ा गहरा

और लहर पे लहर चढ़ी है

पहले भी मालूम था लेकिन-

जब से तेरा नाम लिखा है

धाराएँ कुछ और हो गईं

सभी किनारे छूट गए हैं।

कब सूरज ने दम तोड़ा था

तड़प-तड़प के हिमशिखरों पर

टूटे तारे कौन गली में

आस जगा कर रहे बिखरते

प्रोषितपतिका रात बनी कब

दरके थे तटबंध हृदय के

कब मैंने आलाप किया था

वेदमंत्र सा राग तुम्हारा

कब उतरा मेरे अधरों पे

कुछ भी तो अब याद नहीं है।

वो छोटा सा एक अकेला

पल,जब… Continue

Added by Ravi Prakash on May 8, 2015 at 7:01am — 14 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
अतुकांत -- लौटेंगे कर्म फल आप तक ज़रूर - ( गिरिराज भंडारी )

लौटेंगे कर्म फल आप तक ज़रूर

******************************

बातें हमेशा मुँह से ही बोली जायें तभी समझीं जायें ज़रूरी नहीं

कभी कभी परिस्थितियाँ जियादा मुखर होतीं हैं शब्दों से ,

और ईमानदार भी होतीं हैं

देखा है मैनें

जिसे परिवार में समदर्शी होना चाहिये

उनको छाँटते निमारते ,

अपनों में से भी और अपना  

 

वैसे गलत भी नहीं है ये

अधिकार है आपका , सबका  

देखा जाये तो मेरा भी है

 

तो, छाँटिये बेधड़क , बस ये…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on May 4, 2015 at 7:04pm — 16 Comments

क्या होगा तब

जब करूंगा अंतिम प्रयाण

ढहते हुए भवन को छोडकर

निकलूँगा जब बाहर

किस माध्यम से होकर गुज़रूँगा ?

वहाँ हवा होगी या निर्वात होगा?

होगी गहराई या ऊंचाई में उड़ूँगा

मुझे ऊंचाई से डर लगता है

तैरना भी नहीं आता

क्या यह डर तब भी होगा

मेरा हाथ थामे कोई ले चलेगा

या मैं अकेले ही जाऊंगा

चारो ओर होगा प्रकाश

या अंधेरे ने मुझे घेरा होगा

मुझे अकेलेपन और अंधकार से भी डर लगता है

क्या यह डर तब भी होगा?

भय तो विचारों से होते हैं उत्पन्न

क्या…

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Added by Neeraj Neer on May 3, 2015 at 6:47pm — 12 Comments

सौंदर्य प्रतिभा ज्ञान---डॉo विजय शंकर

सौंदर्य को सजावट ,

आभूषण ,शृंगार चाहिए ,

सादगी को…...क्या चाहिए ,

सादगी,.. वो तो, सबको चाहिए।

वो रोज सज के निकलती

लोग परेशान हो जाते थे ,

इक बार सादगी से निकली

कितने लोग बेहोश हो गए।



पहुँच से पहचान है ,

जिसकी पहचान है

वही प्रतिभावान है , अन्यथा

प्रतिभा को पहचान चाहिए ,

पहचान का एहसान चाहिए ।



ज्ञान को सम्मान चाहिए ,

जहां सब ज्ञानी हो ……… ,

जाने दीजिये, ज्ञान तो स्वयं दाता है |

तो इतना सज संवर के क्यों आता… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on May 3, 2015 at 10:28am — 16 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
किसने कहा प्रेम अंधा होता है -- अतुकांत ( गिरिराज भंडारी )

किसने कहा प्रेम अंधा होता है

****************************

किसने कहा प्रेम अंधा होता है

रहा होगा उसी का , जिसने कहा

मेरा तो नहीं है

देखता है सब कुछ

वो महसूस भी कर सकता है

जो दिखाई नहीं देता उसे भी

वो जानता है अपने प्रिय की अच्छाइयाँ और

बुराइयाँ भी

वो ये भी जानता है कि ,

उसका प्रेम,  पूर्ण है ,

बह रहा है वो तेज़ पहाड़ी नदी के जैसे , अबाध

साथ मे बह रहे हैं ,

डूब उतर रहे हैं साथ साथ

व्यर्थ की…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on May 1, 2015 at 12:20pm — 8 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
किसने कहा प्रेम अंधा होता है -- अतुकांत ( गिरिराज भंडारी )

किसने कहा प्रेम अंधा होता है

****************************

किसने कहा प्रेम अंधा होता है

रहा होगा उसी का , जिसने कहा

मेरा तो नहीं है

देखता है सब कुछ

वो महसूस भी कर सकता है

जो दिखाई नहीं देता उसे भी

वो जानता है अपने प्रिय की अच्छाइयाँ और

बुराइयाँ भी

वो ये भी जानता है कि ,

उसका प्रेम,  पूर्ण है ,

बह रहा है वो तेज़ पहाड़ी नदी के जैसे , अबाध

साथ मे बह रहे हैं ,

डूब उतर रहे हैं साथ साथ

व्यर्थ की…

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Added by गिरिराज भंडारी on May 1, 2015 at 12:20pm — 19 Comments

सामान्य ज्ञान का प्रश्न---डॉo विजय शंकर

व्यवस्था का मान करें ,

उस से ज्यादा जो व्यवस्था में हैं ,

उनका सम्मान करें।

वे कौन हैं , कहाँ से आये हैं ,

पूछ कर न अपना

अपमान करें।

जो व्यवस्था में हैं ,

वे माननीय , आदरणीय हैं ,

पूज्यनीय , वन्दनीय हैं ,

ओजस्वी ,प्रकाशमान

देवतास्वरूप हैं ,

उनकें ज्ञान पर , उनकें

सामान्य ज्ञान पर प्रश्न न करें ,

वे स्वयं सामान्य ज्ञान का प्रश्न हैं,

बड़ी परीक्षाओं में सामान्य ज्ञान

के प्रश्न पत्रों में पूछे जाते हैं ,

उन पर जो सही… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on May 1, 2015 at 9:42am — 14 Comments

माँ क्यों चुप हो?कुछ तो बोलो

मदर्स दे आने वाला है बस एक दिन के लिए 

--------------------------------------------------

माँ क्यों चुप हो कुछ बोलो तो  ?

अपने मन की पीड़ा को

मेरे आगे खोलो तो

माँ तुम क्यों चुप हो ?

 

कर्तव्य निष्ठ की बेदी बन

तुमने अपने को…

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Added by kalpna mishra bajpai on April 30, 2015 at 8:30pm — 7 Comments

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