दिग्पाल छ्न्द(मात्रिक छ्न्द)/ मृदुगति छ्न्द
मापनी:2212 122 2212 122
(वियोग श्रृंगार रस)
हाँ, प्रेम है तुम्हीं से,मनमीत मान लो तुम
चाहत हमें तुम्हीं से, ये बात जान लो तुम
क्यों छोड़ चल दिए हो,मँझधार में मुझे तुम
मुख मोड़ चल दिये हो, तज धार में मुझे तुम।
मुश्किल हुआ विरह अब,ये पल बिता न पाऊँ
साथी बिना तुम्हारे, किस ओर पग बढ़ाऊँ
जो होंठ पर टिका है, इक नाम है तुम्हारा
अब याद ही तुम्हारी, प्रीतम मुझे सहारा।
ये प्रेम का…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 3, 2016 at 8:30pm —
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आ बैठ कंठ शारद,हम ध्यान हैं लगाते
वाणी बने सही यह,कर जोरि कर मनाते
सुर साधना करें माँ,नत हो तुझे बुलाएँ
हों शब्द भाव ऐसे,सबको सदा सुहाएँ।
बोलें सदा सही हम,हर झूठ से बचाओ
हो पुण्य कर्म सारे,हर पाप से बचाओ
हैं मंद बुद्धि प्राणी,अब आप ही सँभालो
वाणी हमें गले से,हँसके जरा लगालो।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 2, 2016 at 4:29pm —
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गीत
मापनी :2212 122 2212 122
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मुझको सता रही हैं,यादें सभी तुम्हारी
दिलकश अदा तुम्हारी,मोहक हँसी तुम्हारी
चुपचाप पास आना,आकर मुझे सताना
वो पास बैठ जाना, हर बात को बताना
कब भूल पा रहा हूँ,वो दिल्लगी तुम्हारी
दिलकश.....
मैं भूलता जहां को,नजदीक तुम अगर थे
इस प्रेम की डगर पर,ऐ जान हमसफ़र थे
महसूस कर रहा हूँ,हर साँस भी तुम्हारी
दिलकश.....
नज़रें करें शरारत,अच्छी मुझे लगी थी
जब देख…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 1, 2016 at 5:01pm —
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ताटंक छ्न्द
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1.उमर बढ़ी पर प्रीत लगाई,अब दूजी से जाने क्यों
नहीं पराई औरत है वह,बीवी इसको माने क्यों
पूरा दिन ही गिटर-पिटर बस, फोन लिए करते जाते
मुझे भुलाकर बात उसी से,ध्यान दिए करते जाते
2.
मैंने बोला नहीं दूसरी,लगा मीडिया प्यारा है
इसपे ही लिखता रहता हूँ,यह अच्छा औ न्यारा है
बोल पड़ी झटसे मुझसे वह,मुझको भी दिखलाओ तो
कैसे करते काम इसी पर,थोड़ा सा समझाओ तो
3.
उसे जरा सा यह मैंने तोे,बस यूँ ही बतलाया था
कैसे सोशल हम हो…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 21, 2016 at 5:00pm —
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पावन ही यदि भाव हो,तो पावन त्यौहार
सूत्र रक्षार्थ बाँधती, भाई को हर नार
भाई को हर नार,चाह रक्षा की रखती
हर भाई में नेक,मनुष वह हर पल लखती
सतविन्दर कविराय,विचारों का हो धावन
पूजित हो हर नार,रहे सबका दिल पावन।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 18, 2016 at 11:00am —
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ताटंक छंद
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1
बुरे समय का खेला चलता, गुण की कीमत जाती है
लोग बुरे आगे बढ़ते हैं,अच्छों की मत जाती है
मक्कारी के घर भरते हैं,सच्चाई घबराई है
जनता देखो भूखी मरती,कुत्ता खात मलाई है।
2.
बहा पसीना खेत कमाता, पोषण सबका होता है
खुद का बच्चा तड़प तड़प कर, भूखा घर में सोता है
कुदरत ने तो मारा उसको,करता तंत्र पिसाई है
जनता देखो भूखी मरती,कुत्ता खात मलाई है।
3
जो करते हैं काम अनेकों ,नाम कभी क्या होता है,
काट लफंगे खा जाते…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 16, 2016 at 9:00pm —
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ताटंक छ्न्द
पास खड़ी है सजधज कर वह,दुल्हन सबसे प्यारी है
सबको वही पसन्द बहुत है,देखो सबसे न्यारी है
वरण किया जो लेकर आए,उसको वे मतवाले थे
आजादी की दुल्हन खातिर,खुद मिट जाने वाले थे।
देकर अपनी आहुति जो भी,आजादी को लाए थे
राग रंग और मौज मस्ती,क्या उन सबको भाए थे
कुछ तो तोड़ गये थे बेड़ी, जो गैरों ने डाली थी
अबतक भी है घोर गुलामी,जो अपनों ने पाली थी।
भूख बनी आदत जिसकी है,खाने को कब दाना है
तन सर्दी से ठिठुर रहा है,नहीं वस्त्र का…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 15, 2016 at 11:04pm —
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आजादी वह भाव है,जिससे सबको प्यार
इसको पाने के लिए,हुई बहुत तकरार
हुई बहुत तकरार,कई ने जान गँवाई
हुए शहीद अनेक,तभी आज़ादी पाई
सतविन्दर कविराय,रहे सुख से आबादी
है अद्भुत यह भाव,नाम जिसका आजादी
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 14, 2016 at 6:16pm —
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आधार चौपाई छंद
मन में पहले गुरु बैठाना
मातु शारदे को फिर ध्याना।
सच को लिखना सीख लिया है
सबको दर्पण है दिखलाना।
भाव सृजन जब हो जाये तो
उनको दुनिया तक पहुँचाना
धन की ही चाहत है सबको
ज्ञान मूल है ये समझाना।
भारत माता की महिमा को
जन जन को है हमें सुनाना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 13, 2016 at 12:28pm —
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दोधक छंद(गीत)
प्रथम प्रयास
211 211 211 22
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देख लिया सब हाल सँभालो
देश हुआ बदहाल सँभालो
बाढ़ कहीँ,जल भी कब आया
मान लिया सब ईश्वर माया
ईश्वर को तुम साथ मिलालो
देश हुआ बदहाल सँभालो।1।
कीमत जीवन की पहचानो
पेट भरें अपना सब जानो
भूख किसी पर थोप न डालो
देश हुआ बदहाल सँभालो ।2।
सोच लिए चलते घटिया जो
बात सभी करते घटिया जो
राष्ट्र विरोधि जुबान दबालो
देश हुआ बदहाल सँभालो।3।
मौलिक एवं…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 9, 2016 at 6:08pm —
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प्रेम रतन अनमोल,इसे तुम रखो सँभााले
खुशियों का भंडार,यही है सुन मतवाले
बड़े-बड़े सब दुःख,प्रेम से ही कम होते
कष्ट बनें जो भार, इसी से हल्के होते
सहज लगे संघर्ष,प्रेम की ऐसी माया
जीवन का यह सार,ध्यान तू रख रे भाया
हमने सारे कष्ट,प्रेम के किए हवाले
खुशियों का भंडार ,यही है सुन मतवाले
मात-पिता के काम,समर्पित हैं बच्चों को
प्रेम डोर दे बाँध,सभी मन के सच्चों को
पावन सा इक भाव,प्रेम बन जग में आया
इसपर ही संसार,टिका यह उसका…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 7, 2016 at 5:00pm —
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गीत(सार छ्न्द)प्रयास
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आज पड़े सावन के झूले,सबके मन हर्षाते
भूल गए मुझको तो साजन,याद बहुत हैं आते
बूँद पड़े जब तन पर मेरे तन शीतल हो जाता
आग लगी अंतस में जो है उसको कौन बुझाता
प्रेम पर्व पर प्रियतम सबको,जानूँ खूब सुहाते
भूल गए मुझको तो साजन याद बहुत हैं आते।1।
सोहे सभी सिंगार सहेली जब, साजन हो संगी
बिन साजन के सजना भी तो, लगता है बेढंगी
सारे हार सिंगार सजन जी ,तुझे रिझाने लाते
भूल गए मुझको तो साजन याद बहुत हैं…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 6, 2016 at 6:31pm —
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1222,1222,1222,1222
कभी छाया मिली गहरी ,कभी फिर धूप पड़ती है
चले जीवन सही साथी,नहीं मुश्किल अकड़ती है
जमाना ये उसे चाहे दुखों को जो भुलाता है
सतत बढ़ता चला जाए नहीं खुद को रुलाता है
मुसीबत को बहुत छोटी,समझ कर जो चला जाए
खुदा देखो उसे ही तो ज़माने में सदा लाए
नहीं तो देख लो कितनी यहाँ पर उम्र झड़ती है
चले जीवन सही साथी,नहीं मुश्किल अकड़ती है।1।
मुहब्बत एक प्यारा सा ख़ुशी का ही खज़ाना है
इसी को पास रखकर ही हमें जीवन बिताना…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 4, 2016 at 11:00pm —
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नारी
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अबला बनीं सबला अभी तो हम उन्हें सम्मान दें
उत्साह से वे कर रहीं हर काम को अब मान दें
चलते रहे यह मानकर कुछ कर नहीं सकती कभी
कमजोर उनको मानते अब तक चले हैं जी सभी
हैं जानते यह हम सभी सबला हुई अब नार हैं
जीवन उन्हीं से चल रहा,वे ही सबल आधार हैं
नारी सही हैं बढ़ रहीं अपने वतन पर जान दें
उत्साह से वे कर रहीं हर काम को अब मान दें।
इक कल्पना ने था रचा इतिहास सब हैं जानते
आकाश पर लहरा गई थी जो ध्वजा पहचानते
लक्ष्मी…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 3, 2016 at 5:00pm —
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भारती को अब नहीं फिर से सताना चाहिए
दुश्मनों को देश के अब ये बताना चाहिए
आज अपने देश में जो ये घृणा का दौर है
पागलों ने सब किया है ये नहीं कुछ और है
नफरतों को बेचते जो काम ऐसे कर रहे
बांटते हैं देश को बस जेब अपनी भर रहे
उन सभी के चेहरे से पट हटाना चाहिए
दुश्मनों को देश के अब ये बताना चाहिए।।१।।
देश के जो रक्षकों को पत्थरों से मारते
दुश्मनों से जा मिलें वो क्या कभी हैं हारते
आज मिलकर हम सभी उत्तर उन्हें देते चलें
साथ आएँ वो…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 1, 2016 at 9:30pm —
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देश-देश चिल्लाते सारे,मतलब इसका समझो तो
संस्कृति,उत्सव परम्पराएँ, गुण माटी का समझो तो
मातृ भूमि का कण-कण सारा,संग उसी के जनता है
साथ सभी ये मिल जाते हैं,देश तभी तो बनता है।
हे भारत के युवा सुनो तुम, देशभक्ति मन में भरना
जीवन अपना इसकी खातिर,सारा अर्पण तुम करना
पढ़-लिखकर है बढ़ते रहना, भारत आगे करना है
खेल,ज्ञान में मान कमाकर, प्रतिमानों को गढ़ना है
मौलिक एवम् अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 29, 2016 at 10:33pm —
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कीमत ए बेपरवाही
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हंसी ख़ुशी जीवन बीत रहा था।वे दोनों और उनका पांच साल का बच्चा,जो उनकी ख़ुशी का सबसे बड़ा कारण था और ज़रिया भी।
आज जब वह कपड़े धोने के बाद कमरे में गई तो बच्चे को फर्श पर अचेत हाल में देखते ही उसके पैरों तले जमीन खिसक गई।उसे तो उसने टीवी पर कार्टून देखते हुए छोड़ा था।
पर क्या हुआ? न कोई आवाज ,न कोई हलचल।मुँह में झाग और शरीर नीला।शायद कोई दौरा था।
शंकित मन से पति को फोन मिलाया,"सुनिए....चीनू को पता नहीं ...क्या हुआ है?वो....कुछ…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 26, 2016 at 11:29pm —
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पीर पराई बूझता,है सच्चा इंसान
दर्द लगे सबका जिसे,अपने दर्द समान
अपने दर्द समान, दूर उसको वह करता
जाता खुद को भूल,देख औरों को मरता
लगता उसका जोर,बचाने में भी भाई
हर अच्छा इंसान,समझता पीर पराई।
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आस लगाए जो रहें,करें नहीं कुछ कर्म
बनें रहें बस आलसी,नहीं उन्हें है शर्म
नहीं उन्हें है शर्म,रहें पुरषार्थ भुलाकर
जो देखें बस बाट, हाथ पर हाथ चढ़ाकर
उनका राखा राम,नहीं जिनको श्रम सुहाए
बिना करे कुछ कर्म,रहें जो आस…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 25, 2016 at 12:30am —
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वीर कहीं रावल बप्पा थे,राणा कुम्भा की थी शान
आधी देह संग लड़ जाते,राणा सांगा बहुत महान
जिनके पुरखों की गाथा का,कर पाया न कोई बखान
कहें महाराणा जी सारे,उन प्रताप का गाऊं गान
जैवन्ता बाई थी माता,औ उदय सिंह जी थे तात
बड़े चाव से उनको पाला,शुरु से सीखी अच्छी बात
पलते-बढ़ते ही राणा ने,दुश्मन की जानी औकात
मौके पर ही धोखा देदे,ऐसी थी अकबर की जात
अकबर ने तो यह सोचा था,जीतेगा वह हिंदुस्तान
नतमस्तक बहु राज्य हुए थे,बढ़ जाती थी उसकी…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 23, 2016 at 7:48am —
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चन्द हाइकू:
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कवि हृदय
निश्छल सा आशिक
शब्दों से प्यार।
छँटे तमस
मन पर पसरा
शब्द उजाला।
कल्पना सधे
झूठ-कपट भगे
सज्जन कवि।
शब्द साधना
विश्व की जागृति
रचनाकार।
प्रकृति प्रेम
पर्यावरण सेवा
शब्द उद्गार।
राष्ट्र भावना
बलवती अपार
करे सृजन।
समाजिकता
सोहार्द को बढ़ावा
सत्य उद्गार।
मौलिक एवम् अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 21, 2016 at 4:30pm —
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