मापनी २१२ २१२ २१२ २१२
रात दिन बस यही सोचता रह गया
पास आकर भी क्यों फासला रह गया
पत्थरों से लड़ाई कहाँ तक करे,
तोप का मुँह सिला का सिला रह गया
चढ़ गयीं परतें मुखोटे पे’ उनके कई,
बेखबर देखता आइना रह गया
वज्न…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 7, 2017 at 9:30am — 19 Comments
यार चलो नेता बन जाएँ
खूब फटे में टाँग अड़ाएँ
शेयर जैसे सुबह उछलकर,
लुढ़क शाम को नीचे आएँ
जंतर मंतर पर जाकर हम,
मूंगफली का भाव बढ़ाएँ
उल्टा पुल्टा बोल बोल कर,
चप्पल, जूते, थप्पड़ खाएँ…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 6, 2017 at 8:30am — 10 Comments
मापनी २२१ १२२२ २२१ १२२२
नफरत के किले सारे, अब हमको ढहाना है
जब हाथ मिलाया है, दिल को भी मिलाना है
चुपचाप न बैठोगे, पाओगे सदा मंजिल,
दुश्मन है तरक्की का, आलस को भगाना है…
Added by बसंत कुमार शर्मा on June 5, 2017 at 8:30am — 4 Comments
बहर- फैलुन*4
तुमसे मन की बात हो गई
सावन सी बरसात हो गई,
जब से आये हो जीवन में,
पूनम सी हर रात हो गई
नैनों से जब नैन मिले तो,
सपनों की बारात हो गई
दिल में तुमने हमें बसाया,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 3, 2017 at 1:34pm — 4 Comments
इतनी ज्यादा बात न कर
वादों की बरसात न कर
ह्रदय बड़ा ही नाजुक है,
उस पर यूँ आघात न कर
ख्यात न हो कुछ बात नहीं,
पर खुद को कुख्यात न कर
मानव को मानव रहने दे,
ऊंची नीची जात न कर
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 2, 2017 at 10:02am — 20 Comments
मापनी २२ २२ २२ २२
यदि करना इनकार नहीं है,
क्यों करता इकरार नहीं है
सच से रहता उसका झगड़ा,
झूठ मुझे स्वीकार नहीं है
शूल नहीं है प्रेम अगर, तो,
फूलों का भी हार नहीं है
दिल से कभी न कह…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on May 30, 2017 at 9:30am — 11 Comments
Added by बसंत कुमार शर्मा on May 25, 2017 at 10:00am — 2 Comments
Added by बसंत कुमार शर्मा on May 24, 2017 at 9:46am — 4 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
छोड़कर हमको किसी की जिंदगानी हो गए
ख्वाब आँखों में सजे सब आसमानी हो गए
प्रेम की संभावनाएँ थीं बहुत उनसे, मगर,
जब मिलीं नजरें परस्पर,शब्द पानी हो गए
वो उगे थे जंगलों में नागफनियों की तरह,
आ गए दरबार में तो…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on May 22, 2017 at 3:30pm — 16 Comments
सुख के दुख के हर सांचे में, मिटटी जैसी ढलती माँ
मैं क्या कोई जान न पाया, कब सोती कब जगती माँ
गाँव छोड़कर, गया नगर में, लाल कमाने धन दौलत,
अच्छे दिन की आशा पाले, रही स्वयं को ठगती माँ
दीवाली पर सजते देखे, घर आँगन चौबारे
रहे भागती और दौड़ती, पता नहीं कब सजती माँ
घर के कोने कोने का, दूर अँधेरा करने को,
दीपक में बाती के जैसी, रात रात भर जलती माँ
बेटी और बहू की खातिर, जोड़े जाने क्या क्या तो,
सपने बुनकर…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on May 18, 2017 at 10:25pm — 4 Comments
एक नवगीत
गायब हैं नकली रंगों में,
होली के हुडदंग.
नजर न आती आसमान में,
उड़ती हुई पतंग.
पड़ी ठण्ड जब रहे सिकुड़ते,
मिली न छत सबको,
मई जून में खूब तपाया,
सूरज ने…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on May 10, 2017 at 9:31am — 6 Comments
मापनी -१२२२ १२२२ १२२
कोई रिश्ता निभाया जा रहा है
मुझे फिर से बुलाया जा रहा है
भले ही खिड़कियाँ हैं बंद घर की,
मगर परदा उठाया जा रहा है
पड़ीं हैं नींव में चुपचाप ईंटे,
भले बोझा बढाया जा रहा…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on May 9, 2017 at 10:00am — 19 Comments
एक ग़ज़ल का प्रयास
२१२२ २१२२ २१२
नींद में आकर सताता है मुझे
ख्वाब भी तेरा जगाता है मुझे
झूमती आती घटायें बदलियाँ,
प्यार का मौसम बुलाता है मुझे
सर्दियों में सूर्य भाया था बहुत, …
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on May 8, 2017 at 10:00am — 14 Comments
कौन भरेगा पेट
छोड़ा गाँव आज बुधिया ने,
बिस्तर लिया लपेट
उपजायेगा कौन अन्न अब,
कौन भरेगा पेट
गायब हैं घर में खिड़की अब,
दरवाजों की चलती है
आज कमी आँगन की हमको,
बहुत यहाँ…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on May 6, 2017 at 7:30pm — 10 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |