मंद -मंद बयार का झोका ,
पेड़ की टहनियों का झुकना!
झरने से निकलती कल-२ ध्वनि ,
दिनकर का बदली में छुपना!
प्रसून से निकलती सुगंध,
वृक्षों का आलिंगन करना !
चिड़ियों का मधुर गुनगुनाना ,
खुशियों भरा सुन्दर बहाना !
नदियों वृक्षों संग गुज़ारा ,
प्रकृति का अनुपम खज़ाना !
स्वर्ग इसी धरा पर ही है ,
सभी प्राणियों को बतलाना !
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on February 17, 2013 at 12:13pm — 11 Comments
ग़म की बस्ती में पड़ा हूँ ,
इस दर्द से उबार दो !
सच्चा ना सही ,
पर झूठा ही प्यार दो !
नफ़रत के इस रेगिस्तान में ,
प्यार की एक फुहार दो!
हमेशा के लिए ना सही,
पल भर के लिए उधार दो!
ग़मों को जो काट सके,
एक ऐसा औज़ार दो!
रस्ते से जो ना भटकाए,
एक ऐसा मददगार दो!
काट दूँ पूरी ज़िन्दगी,
पल ऐसा यादगार दो!
हो हमेशा खुशियाँ ही खुशियाँ,
एक ऐसा त्यौहार दो !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on February 16, 2013 at 3:24pm — 6 Comments
इस मलिन बस्ती से,
दूर जाना चाहता हूँ !
सब स्वार्थ से घिरे है ,
थोड़ा आराम चाहता हूँ !
ऐसा नहीं कि मै कमज़ोर हूँ ,
इनसे नहीं लड़ सकता !
अपनत्व दिखाते है फिर भी ,
चलते हैं चाल कुटिलता…
Added by ram shiromani pathak on February 12, 2013 at 7:00pm — 6 Comments
जब कभी ख़ुद रोना होगा ,
मेरी याद आयेगी तब तुझको !
बेइज्ज़त करेंगे अपने बेईमान कहकर ,
बेवफ़ा वो ख़ुद बेवफ़ा कहेंगे जब तुझको!
अँधेरे में पड़े रहोगे हमेशा,
लोग उजाला कहेंगे जब तुझको!
टूटी हुई कश्ती भी धोखा देगी ,
निगल जायेगा दर्द का समंदर जब तुझको!
दर्द आँखों में सीने में घाव होगा,
ज़िन्दगी ओढ़ा देगी जब कफ़न तुझको!
राम शिरोमंनी पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on February 8, 2013 at 7:19pm — 2 Comments
आलीशान वाहन में देखा ,
बैठा था एक सुन्दर पिल्ला !
खाने को इधर रोटी नहीं ,
गटक रहा था वह रसगुल्ला !
इर्ष्या हुयी पिल्ले से ,
क्रोध आ रहा रह-रह कर !
मै भूख से मर रहा ,
यह खा रहा पेट भरकर !
देख रहा ऐसी नज़रों से,
मानों समझ रहा भिखारी
सोचने पर मजबूर था ,
इतनी दयनीय दशा हमारी!
आदमी मरेगा भूख से ,
पिल्ला रसगुल्ला खायेगा !
किसी ने सच ही कहा है ,
ऐसा कलयुग आयेगा!
राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on February 6, 2013 at 8:30pm — 1 Comment
विकास तो बहोत किये ,
फिर भी हम पिछड़ गये ,
पाना था जो उत्कर्ष ,
उससे ही बिछड़ गये !!
प्रयास के उपरांत भी ,
ऐसा क्यूँ होता है !
जिसको हँसना चाहिए ,
वह स्वयं रोता है !
स्वच्छता की बात करने वाला ,
खुद गन्दगी नहीं धोता है ,
जिसको जागना चाहिए ,
वही अब सोता है!!
एक नई सोच ,
एक नई लालसा !
दिल में लिए हुये,
पाट रहा हूँ फासला !!
हारना नहीं है मुझे ,
लड़ता ही रहूँगा !
संघर्ष ही जीवन है,
प्रयास करता…
Added by ram shiromani pathak on February 5, 2013 at 8:30pm — 2 Comments
आते हुये लोग ,
जाते हुये लोग !
जीवन का सुख दुःख ,
आनंद और भोग !!
असली आनंद विदेशों में ,
विदेश यात्रा का सुख ,
खुश और कृत कृत हो जाऊ ,
भूलूं जीवन भर का दुःख !!
वहां का…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on February 4, 2013 at 1:28pm — 7 Comments
Added by ram shiromani pathak on February 4, 2013 at 12:59pm — 6 Comments
आदत हो गयी है,
आंख बंद करने की!
अच्छा बुरा कुछ भी हो ,
आदत हो गयी सहने की !!
आश्रित बनकर जीते है,
फेकी हुयी रोटी खाते है ,
हत्या कर देते है स्वाभिमान की ,
शायद! इसलिए झुककर जीते है !!
हम एक झूठी दुनियां में ,
अधखुली नींद सोते है!
वाह्य कठोरता दिखाते है !
अन्दर से फिर क्यूँ रोते है !!
आडम्बरों से भरा जीवन ,
बन चुकी कमजोरी है ,
वास्तविकता से सम्बन्ध नहीं ,
क्या ऐसा करना ज़रूरी है !!
आखिर कब तक यूँ…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on February 3, 2013 at 4:09pm — 1 Comment
गरीबी में हुआ गीला आटा,
फिर से लगा ज़ोरदार चांटा !
रोटी छीन गयी क्षण भर में ,
खड़ा हो गया गरीबी के रण में !!
क्या रोटी हो गयी अनमोल ,
इश्वर अब तो कोई पथ खोल !
मै अधीर ,व्यग्र ,व्याकुल मन से ,
कब दूर होगी गरीबी इस जीवन से !
इश्वर कब दूर होगा दुःख दाह,
अब तो दिखा दो कोई राह !!!!
ईश्वर !
गरीबी का करो अभिषेक ,
थोड़ा लगाओ अपना विवेक !
यदि इमानदारी की रोटी खाओगे ,
सदैव गीला आटा पाओगे !
हटाओ ये गरीब की ओट,
तू…
Added by ram shiromani pathak on February 2, 2013 at 6:30pm — 7 Comments
एक प्रयास-;
सभी गुरुजनों व् मित्रों का सहयोग और अमूल्य सुझाव चाहूँगा!!
जान दे देते है प्यार में ,
ऐसे भी लोग है इस संसार में !
इतनी अथाह श्रद्धा कैसे ,
"दीपक" क्या वे बीमार थे प्यार में!!
इश्क का छूरा लेकर टहलती है ,
जहाँ मिले वहीँ हलाल देती है !
बड़ी पारखी नज़र है इनकी,
मोहब्बत के मारों को पहचान लेती है!
मनाने चले थे इद,
हो गयी बकरीद !
प्यार किया था जुर्म नहीं,
"दीपक" ऐसी ना थी उम्मीद!
निस्वार्थ प्रेम से जो जाता ,
सारी…
Added by ram shiromani pathak on January 31, 2013 at 9:36pm — 3 Comments
क्यूँ छलक रहा अश्रु मेरा ,
क्यूँ जा रहा सुख मेरा !
करुणा बढ रही ह्रदय में ,
हाहाकार है स्वरों में !!
क्या ज़िन्दगी यहाँ सस्ती है ,
यह शमशान या बस्ती है !
जहाँ करते आमोद -प्रमोद सानन्द,
अब वीरान पड़ा है भू-खंड !
क्यूँ हो रहे तुम अधीर ,
प्रश्न करते ये मृत शरीर!
दिल से बस आह !निकलती,
जिनकी पूर्ति नम ऑंखें करती!
राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on January 29, 2013 at 7:19pm — 7 Comments
वाह रे पैसा ,
पैसे का अहंकार !
पैसे से सबकुछ
खरीदने को तैयार !
तो जाओ !!
पैसे से दो बूंद,
आंसू खरीद लाओ!
पैसे से खुशियों की,
एक दुकान तो लगाओ !
पैसे से रोते बच्चे को ,
एक मीठी नींद सुला दो !
वर्षों से खड़े वृक्षों को
थोड़ी सी सैर करा दो!!
पैसे से किसी का
दर्द कम कर दो
पैसे से किसी के दिल में
प्यार और सदभावना भर दो !
पैसे से ओंस की बूंदों में,
रजत आकर्षण डाल दो!
वीरान पड़े…
Added by ram shiromani pathak on January 28, 2013 at 1:30pm — 3 Comments
कैसे भूल सकता हूँ ,
भूंख से उसका कराहना !
ज़िन्दगी और मौत का ,
अजीब मंज़र !!
रोटी के लिए संघर्ष ,
सोचो कितनी दर्दनाक मौत ,
वो भी भूंख से ,
पेट की आंत गवाह है !!
अखबार का प्रथम पृष्ठ ,
भुखमरी से मौत का चित्रण ,
छापा गया था उसमे ,
विधिवत देकर उदाहरण!
कितना परिश्रम किया होगा ,
आंकड़े एकत्र करने में ,
काश! थोड़ी मेहनत की होती ,
इनका पेट भरने में !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक \अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on January 25, 2013 at 8:23pm — 4 Comments
स्वयं के आंसुओं से ,
कपोल उसका झुलस गया !
दया हाय! आयी मुझको ,
मेरा भी अश्रु बह गया !!
अपनो के लिए उसकी ,
पत्थर तोड़ती माता !
भूंख से छटपटाता बच्चा,
हाय! पाषाण ह्रदय विधाता !!
असहनीय पीड़ा से रो रही थी ,
नम आँखों से दर्द धो रही थी !
कई दिनों की भूंखी बेचारी ,
खुली आँखों से सो रही थी !
उसके आँख का खारा पानी ,
यह कह रहा था !
दिल में कहीं गम का ,
समंदर बह रहा था !!
दम तोड़ती ज़िन्दगी ,
दम तोड़ती मानवता !
कहीं ना…
Added by ram shiromani pathak on January 23, 2013 at 12:38pm — 7 Comments
भ्रष्टाचार में भी प्रतिस्पर्धा,
करते आपस में दंगल है !
क्या करूँ कितना मिल जाय ,
बस लूट पाट को बेकल है !!
पैसे के लिए लार टपकाते ,
मार पीट को ये तत्पर है !
बोलबचन से कभी कभी तो,
कर देते सब गुड़-गोबर है !!
कायरता ,पशुता से संचित ,
बनाते नया-नया पैमाना !
चालाकी,मक्कारी ही इनका,
बन चुका धंधा पुराना !!
धन के वन में विचरण करते ,
जैसे इनका ही जंगल है !
जंगल राज़ चला रहे फिर भी ,
कहते है कि सब मंगल है !!
राम शिरोमणि पाठक…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on January 21, 2013 at 8:22pm — 4 Comments
शब्दों में एक ज्वाला भर लो ,
लड़ने को अब कमर कस लो !
दुर्दशा पर चटखारे ना ले कोई ,
इतना खुद को सशक्त कर लो !!
शायद डर से गुमराह हो ,
अपना रास्ता खुद ही चुन लो !
इस हाल के ज़िम्मेदार है जो ,
उनसे अब दो दो हाँथ कर लो !!
यदि सहना है उत्पीडन इनका ,
यूँ ही खुद को बदनाम कर लो!
पड़े रहो मुर्दों की तरह,
खुद को इनका गुलाम कर लो!!
लड़ नहीं सकते जब तुम ,
कायर सा फिर जीना क्यूँ !
तिल तिल कर मरने से अच्छा ,
खुद का ही काम तमाम कर लो…
Added by ram shiromani pathak on January 19, 2013 at 1:49pm — 3 Comments
सर्द रातों का आतंक ,
सबका बुरा हाल हुआ !
रूह कपा देने वाली ठण्ड से ,
खड़ा एक एक बाल हुआ !!
क़यामत की धुंधली रातों में
डरे ,कांपते हुए जो सिमटे है !
उन गरीबों का क्या हाल होगा ,
जो फटे कम्बल में लिपटे है !!
सुख सुविधाओ से परिपूर्ण वो ,
क्या जाने सर्द रातों का स्याह सच !
कैसे ढकता बदन वह ,
एक अधखुला कवच !!
कहर बरसाती ठण्ड रातें ,
बर्फीली हवा झेलते फेफड़े ,
नेता जी कम्बल घोटाला करके ,
कलेजे पे रखते बर्फ के टुकड़े!!
राम…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on January 18, 2013 at 1:43pm — 4 Comments
आजकल हास्य के लिए ,
अश्लीलता का सहारा लिया जाता है !
जनता खूब हंसती भी है ,
उन्हें भी आनंद आता है !!
जब प्रतिदिन नवीन आविष्कार हो रहे ,
अश्लीलता और नग्नता पर !
आत्मा कह रही मेरी ,
तू भी कुछ नया कर !!
इस अधखुली दुनियां की ,
बात बहोत ही निराली है !
चमक तो दिखता है ,
पर दिन भी होती काली है !
टिप्पणी करने से डरता हूँ ,
क्या कहूँ ?कैसे कहूँ ?
उलझता जा रहा हूँ ,
इस अधखुली दुनियां में !!
राम शिरोमणि पाठक…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on January 17, 2013 at 6:07pm — 2 Comments
व्यसन बना जी का जंजाल ,
असमय ही खाए जा रहा काल !
इतनी सुन्दर ज़िन्दगी को ,
क्यूँ व्यर्थ में गवांते हो !
जानते हो की बुरी है ,
फिर भी पीते या खाते हो !!
व्यसन के अतिरिक्त कोई ,
कार्य नहीं है शेष !
अल्प दिनों बाद केवल
रह जाओगे अवशेष !!
फटे कपड़ों में जब इनके बच्चे ,
घर से बाहर निकलते है ,
लोग दया दिखाते बच्चों पर ,
व्यसनी को गाली देते है !!
सोचो ऐसे व्यसनी को ,
उनके अपने कैसे सहते है,
नशा करने के बाद ,…
Added by ram shiromani pathak on January 16, 2013 at 12:30pm — 3 Comments
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