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एक था भेंडर ( सच्ची कथा....'राज' )

जैसे ही कोई छुट्टी आती थी गाँव जाने का अवसर मिल जाता था चेहरा खिल उठता था  मन की मुराद पूरी जो हो जाती थी एक तो दादा जी, चाचा,चाची से मिलने की उत्सुकता दूसरे खेलने कूदने मस्ती करने की स्वछंदता हमेशा गाँव की ओर खींचती थी| उत्सुकता का एक कारण और भी था वो था .. कौतुहल से बच्चों की टोली में जुड़कर “भेंडर” की हरकतों का मजा लेना |

लेकिन उसका उपहास बनाने वालों को मैं पसंद नहीं करती थी|

घर वाले कहते थे उसे भेंडर नहीं भगत जी कहा करो हाँ कुछ गाँव वाले उसे भगत जी कहते थे…

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Added by rajesh kumari on July 21, 2015 at 11:30am — 18 Comments

'कॉमन' (लघुकथा ‘राज’)

 “वहीँ होगा तुम्हारा  लाड़ला इस वक़्त भी है न ? कितनी बार कहा दोस्ती बराबर वालों से ठीक है  सर्वेंट के उस लड़के से उसने क्या समझ के दोस्ती की? कुछ तो कॉमन हो... पर तुम क्यूँ समझाती, खुद भी तो.... छोटे घर की... छोटी सोच ...

जैसे संस्कार हैं वही तो बच्चे को दोगी” व्हीस्की का घूँट गले में उतारते हुए मोहित बोला|

“हाँ पापा है न एक चीज कॉमन !! उसके पापा भी रोज ड्रिक करके इतनी रात  गए घर में आते हैं और उसकी मम्मी पर इसी तरह चिल्लाते हैं, मेरी मम्मी की आँखें भी बरसती हैं और उसकी…

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Added by rajesh kumari on July 19, 2015 at 9:30am — 16 Comments

हम को तो सागर का लेकिन रोष दिखाई देता है (एक हिंदी ग़ज़ल 'राज')

२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २  

.

दूजे  में हमको जो अक्सर दोष दिखाई देता है 

अपने में तो वो खूबी का कोष दिखाई देता है

 

उथला पथली हो लहरों की, चाहे समझो अँगडाई 

हम को तो सागर का लेकिन रोष दिखाई देता है

 

कितना टूटा होगा बादल खुद की हस्ती को खोकर

लेकिन नभ के मुख दर्पण में तोष दिखाई देता है

 

जिसके मन में खोट नहीं है उसको लगता सब अच्छा             

 पतझड़ में भी जीवन का उद्धोष  दिखाई देता है

 

खुशियाँ हो तो…

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Added by rajesh kumari on July 13, 2015 at 11:30am — 17 Comments

बड़ी खूबसूरत हवालात होगी (फिल बदीह ग़ज़ल(राज)

122 122 122 122

 

 तुम्हारी समझ से वो सौगात होगी

,मगर मेरी नजरों में खैरात होगी

 

मुझे चाहिए मेहनतों के  निवाले,

जिये रहमतों पर तेरी जात होगी.

 

न जाने कहाँ अब मुलाकात होगी

,जहाँ आमने सामने बात होगी

 

घटाएँ हिमालय के रुखसार…

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Added by rajesh kumari on July 8, 2015 at 9:14pm — 15 Comments

आरती उतारूँ क्या?(छोटी बह्र की ग़ज़ल 'राज')

२१२ १२२ २

गली गली बुहारूँ क्या?

नालियाँ निथारूँ क्या ?

काम छोड़ कर अब मैं 

रास्ता निहारूँ क्या?

 

आसमां से उतरे हो  

आरती उतारूँ क्या?

 

धूल लग गई शायद

पाँव  भी पखारूँ क्या?

 

देखना है  चेह्रा  अब     

आईना सँवारूँ क्या?

 

लाए कुछ नए जुमले   

शब्द मैं सुधारूँ क्या? 

 

धूप लग रही क्या जी

अब्र को पुकारूँ क्या?

 

वोट मांगने आये 

पांच…

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Added by rajesh kumari on July 1, 2015 at 12:00pm — 27 Comments

कुछ कहमुकरियाँ

(१ )

क्रोध बड़ा उसका जहरीला

 मुखड़ा होता नीला पीला

छेड़ूँ तो दिखलाता दर्प

क्या सखि  साजन

ना सखि सर्प    

(२ )

झूम झूम कर मुझे रिझाता  

अपनी ताकत सदा दिखाता  

प्यार करूँ तो बनता साथी

क्या सखि साजन

ना सखि हाथी  

(३ )

हाय मूढ़ की अजब  कहानी  

काटे तो माँगू ना पानी  

क्रोघ करे तो भागे पिच्छू 

क्या सखि साजन

ना सखि बिच्छू   

(४ )

हर दम पानी पीता रहता

एक जगह पर…

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Added by rajesh kumari on June 25, 2015 at 11:15am — 21 Comments

वास्ता बीच अब कुछ रहा भी नहीं (फिल बदीह ग़ज़ल(राज)

कुछ कहा भी नहीं कुछ सुना भी नहीं

 वास्ता बीच अब कुछ रहा भी नहीं

 

वक्त मेरा समझिये हुआ है फ़िजूल,

प्यार उनकी नज़र में दिखा भी नहीं

 

कौन कहता यहाँ लोग मासूम हैं,

बात करते नहीं कायदा भी नहीं

 

है पड़ोसी मगर हाल तो देखिये

,बोलता भी नहीं जानता भी नहीं

 

फ़लसफ़े जिन्दगी के अजीबो गरीब,

अब कहो क्या लिखें कुछ नया भी नहीं

 

मुफ़लिसी से हुआ बेअसर ये सबू ,

जाम पर जाम पीकर नशा भी…

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Added by rajesh kumari on June 21, 2015 at 10:00am — 12 Comments

फिल बदीह ग़ज़ल(राज)

२१२२ २१२२ २१२   

 

चाँद को जो गुनगुनाना आ गया

चाँदनी को मुस्कुराना आ गया

 

 दीप राहों में जले कुछ इस कदर

 याद इक  मंजर पुराना आ गया

 

देख कर अठखेलियाँ वो अब्र की

 पंछियों को चहचहाना आ गया

 

मौतं से भी हो गई थी आशिकी

, जंग में जब जाँ लुटाना आ गया

 

पड़ गई कुछ जान उस मासूम में,

 पेट में जब एक दाना आ गया

 

जिंदगी की देखकर जद्दोजहद  ,

जोश हमको आजमाना…

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Added by rajesh kumari on June 17, 2015 at 10:30am — 18 Comments

हवा में यूँ तोते उड़ाया न कर(ग़ज़ल 'राज')

१२२ १२२ १२२ १२

मिला कीमती वक़्त जाया न कर

बुरी बात होंठों पे लाया न कर

 

बड़ी जितनी चादर उसी में सिमट    

तू ये नाज़ नखरे दिखाया न कर

 

कभी वो तेरा हाथ देंगे मरोड़

किसी को तू ऊँगली दिखाया न कर

 

अदब से कहेगा सुनेंगे सभी

सुलगती  जुबाँ से सुनाया न कर

 

तवा गर्म है सब्र से काम ले

इन हाथों को अपने जलाया न कर

 

सही है अगर तू दिखा तो सबूत

हवा में यूँ तोते उड़ाया न…

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Added by rajesh kumari on June 14, 2015 at 9:40am — 30 Comments

पहिये (हास्य व्यंग )

 “जज साहब, पहले ही मैं उस पहिये के नटबोल्ट टाईट करके रखता तो आज तलाक तक नौबत नहीं आती और गाड़ी सही चलती.. गलती मेरी ही है” “तुम पेशे से मकेनिक हो क्या”?जजसाहब ने चुटकी ली| “जी साहब,मेरा गैरेज है”|  

अगला केस ...

“आपको ये तो पता ही होगा मैडम कि पति पत्नी गाड़ी के दो पहियों के समान”...”जी जी अच्छे से पता है पर जंग लगे स्क्रू फिट हों पहिये में तो धोखा तो देंगे ही न!! पहले ही उसके  स्क्रू  टेस्ट कर लेती तो आज नौबत तलाक तक न पँहुचती और जब पहिया कंडम हो जाता है तो बदलना भी पड़ता…

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Added by rajesh kumari on June 10, 2015 at 12:30pm — 8 Comments

उजले-उजले सूरज खोये कैसे कैसे (ग़ज़ल 'राज')

२२२२ २२२२ २२२२   

दुनिया ने तो  काँटे बोये कैसे कैसे  

चुन-चुन कर हम कितना रोये कैसे कैसे  

 

काँटों तक ही दर्द नहीं सीमित था अपना  

बातों- बातों तीर  चुभोये कैसे कैसे

 

तुमको देखा तो जाने क्यों आया जाला

मल-मल कर आँखों को…

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Added by rajesh kumari on June 6, 2015 at 6:00pm — 27 Comments

टॉकिंग इन हिंदी (लघु कथा)

“मिस मिस ! नीरज इस टॉकिंग इन हिंदी अगेन”.मनीष ने चुगली लगाते हुए टीचर से कहा .... चटाक !!!! और शिक्षाविभाग के मंत्री  नीरज श्रीवास्तव जी का हाथ अचानक गाल पर पँहुचा फिर  वर्तमान के धरातल पर लौट कर सामान्य होते हुए तेवरी स्वर में  बोले

“कई बार चेतावनी देने के बाद आँकड़ों के अनुसार तुम्हारे विभाग में कुल २० प्रतिशत हिंदी में काम होता है मनीष जी,आय एम् टॉकिंग अगेन इन हिंदी... तुम्हारे निलंबन के आदेश दो दिन में पँहुच जायेंगे” मनीष का कद मानो यकायक छोटा हो गया.    

(मौलिक एवं…

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Added by rajesh kumari on June 4, 2015 at 10:00am — 22 Comments

मुहब्बत का मेरी कोई नशा है क्या नहीं (ग़ज़ल 'राज')

१२२२ १२२२ १२२२ १२

तेरी तहरीर में हर्फ़े वफ़ा है क्या  नहीं

कहीं दिल में मेरी कोई जगा (जगह )है क्या  नहीं

 

पँहुचते ही नहीं मुझ तक कभी तेरे ख़ुतूत

लिखा उन पर मेरे घर…

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Added by rajesh kumari on June 1, 2015 at 9:30pm — 21 Comments

शक्ति छंद (नेपाल भूकंप )

शक्ति छंद (नेपाल भूकंप )

  

अभी फूल पूरे खिले भी न थे

नई जिंदगी से मिले भी न थे

चली बेरहम वक़्त की आरियाँ

कटे शीश धड़ से मिटी क्यारियाँ

 

कहर बन फटी थरथराती जमी

जहाँ सांस आई वहीँ पे थमी

दिखाई अजब काल ने क्रूरता

फिरा क्रुद्ध यमराज यूँ घूरता

 

निवाले कई काल के हैं बने

दबे हर जगह जिस्म खूँ से सने

बचा जो यहाँ ढूँढता आसरा

सहारा बना एक का दूसरा

 

बचे काल से एक भाई बहन

सिसकते…

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Added by rajesh kumari on May 13, 2015 at 8:53am — 24 Comments

आज शादी की वर्ष गाँठ पर एक लघु कथा आप सबके लिए ....“वेडिंग एनिवर्सरी”

“क्या कहा शाम को छुट्टी दे दूँ ? रूपा क्या कह रही हो तुम्हे अच्छे से पता है  आज हमारी वेडिंग एनिवर्सरी की पार्टी है ऐसे में तुम्हे छुट्टी ? चुपचाप शाम को तुम दोनों ढंग के कपड़े पहन के आना बहुत  लोग आयेंगे, दीपू बाहर सर्व करने में हाथ बटाएगा” सोनिया थोड़ा गुस्से से बोली|

“वो क्या है न मेमसाब जी,आज हमे पिक्चर जाना था आज हम दोनों की भी” ...रूपा ने बीच में ही दीपू के मुख पर हाथ धर दिया और बात काट कर बोली “जी मेमसाब हम आ जायेंगे”|

उसकी आँखों में झिलमिलाये आँसू मेमसाहब और दीपू से छुपे…

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Added by rajesh kumari on May 3, 2015 at 8:21am — 32 Comments

बैसाखी की सबको शुभकामनाये (दस माहिया)

 बैसाखी  की  सबको शुभकामनाये

 (दस माहिया)

(१)

कोठे पे वो पाखी

नाच रहा देखो

अज आई बैसाखी 

 

(२)

गेहुओं की बालियाँ

फसल कटी देखो

नच पीट के तालियाँ

 

(३)

नच लें औ गायें हम  

आई बैशाखी

नव वर्ष मनाएँ हम 

 

(४)

करो तन मन चंगा जी

आज धरा पर खुद

उतरी थी गंगा जी

( ५ )

गुरु गोविंद सिंह हुए

बना खालसा…

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Added by rajesh kumari on April 13, 2015 at 11:00am — 21 Comments

जिये जा जिये जा (एक बहुत छोटी बह्र पर ग़ज़ल 'राज')

१२२ १२२

भलाई किये जा

बुराई लिये  जा

 

उन्हें बाँट अमृत

जहर खुद पिये जा

 

तेरे पास जो है

दिये जा दिये जा

 

उन्हें तू उठा दे 

मगर खुद निये जा  

 

जवानी लुटा दे

बुढ़ापा सिये जा

 

जमाना ख़रा है

भरोसा किये जा

 

यही जिन्दगी है

जिये जा जिये जा

-------(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Added by rajesh kumari on April 12, 2015 at 11:09am — 26 Comments

मुक्ति बोध (लघु कथा ...'राज')

   

 रोहित का आठवाँ  जन्मदिवस है मम्मी पापा उत्साहित हैं, कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते उसके जन्म दिवस की पार्टी की तैयारी में,  तन मन  से लगे हैं  ये सोचकर की शायद उनका लाडला नार्मल हो जाए उसके चेहरे पर एक बार मुस्कराहट वापस आ जाए|

पापा ने बड़े प्यार सेपूछा ”बोलो बेटा क्या लोगे ? जो भी तुम इस बर्थ डे पर मांगोगे मैं तुम्हे वही लाकर दूंगा"

” पापा मुझे एक तोता ला दो”|

सुनते ही जैसे पापा को  पंख लग गए तुरंत एक तोते का पिंजरा ले आये| मम्मी पापा दोनों की ख़ुशी…

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Added by rajesh kumari on April 8, 2015 at 10:28am — 32 Comments

इक मुसाफिर राह में सिन्दूर से नहला गया (ग़ज़ल "राज")

2122  2122  2122  212

मोतियों को गूंथकर धागा सदा हँसता गया

जंग खाये रास्तों को कांरवाँ चमका गया

 

ओस से भीगे बदन पर थी नजर खुर्शीद की

प्यास उसकी खुद बुझाकर फूल इक खिलता गया

 

बन गये अफ़साने कितने और नगमें जी उठे 

जब जमीं ने सर उठाया आसमां झुकता गया

 

कहकशाँ में यूँ नहाई चाँदनी जल्वानशीं

नूर उसका देखकर महताब भी पथरा गया

 

हुस्न की मलिका कली की देख वो अँगड़ाइयां  

चूम कर  रुख्सार उसके दफअतन भँवरा…

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Added by rajesh kumari on March 22, 2015 at 6:30pm — 24 Comments

जीवन गठरिया (लघु कथा 'राज')

प्रधान मंत्री का कारवाँ चला जा रहा था कि बीच में एक जंगल से गुजरते हुए साइड विंडो से अचानक दिखाई दिया, कुछ स्त्रियाँ सिर पर लकड़ियों की गठरिया लिए जा रही थीं  उनमे एक वृद्धा जो पीछे रह गई थी अभी गठरिया बाँध ही रही थी कि प्रधान मंत्री जी ने गाड़ी रुकवाई और उस वृद्धा से बातचीत करने पंहुच गए.|

  “किस गाँव की हो माई? इस उम्र में ये काम!.. तुम्हारे बच्चे’?

“क्यूँ नहीं साब जी,  एक बिटवा है जो  फ़ौज में है, पोता है, बहू है” वृद्धा बोली.  

“बेटा पैसा तो भेजता होगा”? “हाँ जी, जब से…

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Added by rajesh kumari on March 20, 2015 at 11:20am — 39 Comments

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