11212 *4
बने हमसफ़र तेरी ज़ीस्त में कोई मेहरबाँ वो तलाश कर
जो हयात भर तेरा साथ दे कोई जान-ए-जाँ वो तलाश कर
***
तेरे सुर में सुर जो मिला सके तेरे ग़म में साथ निभा सके
तेरे संग ख़ुशियाँ मना सके कोई हमज़बाँ वो तलाश कर
***
कहीं डूब जाये न दरमियाँ कभी सुन के बह्र की धमकियाँ
चले नाव ठीक से ज़ीस्त की कोई बादबाँ वो तलाश कर
***
भला लुत्फ़ क्या मिले प्यार में नहीं गर अना रहे यार में
जो अदा से जानता रूठना कोई सरगिराँ वो तलाश कर
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ये…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 20, 2019 at 3:00pm — 2 Comments
(२१२२ ११२२ ११२२ २२/११२ )
झूठ फैलाते हैं अक़्सर जो तक़ारीर के साथ
खेल करते हैं वतन की नई तामीर के साथ
***
ख़्वाब देखोगे न तो खाक़ मुकम्मल होंगे
ये तो पैवस्त* हुआ करते हैं ताबीर के साथ
***
जो बना सकते नहीं चन्द निशानात कभी
हैफ़* क्या हश्र करेंगे वही तस्वीर के साथ
***
ग़म भी हमराह ख़ुशी के नहीं रहते,जैसे
कोई शमशीर कहाँ रहती है शमशीर के…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 19, 2019 at 2:30am — 8 Comments
(२१२२ ११२२ ११२२ २२/११२ )
ख़त्म इकबाल-ए-हुकूमत* को न समझे कोई
और लाचार अदालत को न समझे कोई
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मीर सब आज वुजूद अपना बचाने में लगे
आम जनता की ज़रूरत को न समझे कोई
***
ख़ून के रिश्ते भुला देती है जो इक पल में
हैफ़ !भारत की सियासत को न समझे कोई
***
जिस्म को छू लिया और इश्क़ मुकम्मल समझा
इतना आसाँ भी महब्बत…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 14, 2019 at 12:30pm — 11 Comments
(२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २ )
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पांचों घी में रहती है जब सरकारी कारिन्दों की
कौन सुने फ़रियाद अँधेरी नगरी के बाशिन्दों की
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टूटी है मिजराबें फिर भी साज़ बजाना पड़ता है
बे-सुर होते सुर तो इसमें ग़ल्ती क्या साजिन्दों की
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फेंक दिया करते कचरे में क्या क्या लोग पुलिंदों में
असली कीमत आज समझते कचराबीन पुलिंदों की …
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 9, 2019 at 11:00pm — 4 Comments
(१२१२ ११२२ १२१२ २२/११२ )
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न हसरतों से ज़ियादा रखें लगाव कभी
वगरना क़ल्ब में मुमकिन है कोई घाव कभी
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इमारतें जो बनाते जनाब रिश्तों की
उन्हें भी चाहिए होता है रखरखाव कभी
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हयात का ये सफर एक सा कहाँ होता
कभी ख़ुशी तो मिले ग़म का भी पड़ाव कभी
***
न इश्क़ की भी ख़ुमारी सदा रहे…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 8, 2019 at 7:00pm — 17 Comments
प्रस्तुत है कुछ पुच्छल दोहे
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प्रेम और उत्साह जब ,पैदा करें तरंग |
छोड़ कुसुम के तीर तब , विहँसे तनिक अनंग ||
मिलन का क्षण ही ऐसा |
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देश प्रेम की हर समय ,उठती रहे हिलोर |
उन्नति की फिर देश में ,निश्चित होगी भोर ||
यही हो लक्ष्य हमेशा |
***
ह्रदय सभी के आ सकें ,थोड़े से भी पास |
फिर निश्चित इस देश में ,छा जाये…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 6, 2019 at 2:30pm — 5 Comments
++ग़ज़ल ++(1222 1222 1222 1222 )
हज़ारों बार क़ुदरत ने इशारा तो किया होगा
कभी नाहक कोई तूफ़ान शायद ही उठा होगा
***
जुनूनी है जिसे मंज़िल नज़र भी साफ़ आती है
वही अक़्सर अचानक नींद से उठकर खड़ा होगा
***
समझ रक्खे कोई तो इश्क़ की गलियाँ नहीं देखे
क़दम पहला उठाया वो यक़ीनन सरफिरा होगा
***
नफ़ा-नुक़्सान उल्फ़त में लगाए कौन छोडो…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 5, 2019 at 4:30pm — 4 Comments
( २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २ )
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लगता है इस साल सनम कटनी तन्हाई मुश्किल है
बीते लम्हों के सहरा से हैफ़* ! रिहाई मुश्किल है (*हाय-हाय ,अफ़सोस )
***
ख्वाब तसव्वुर ख़त मौसम ये चाँद बहाने कितने हैं
तेरी यादों के लश्कर से यार जुदाई मुश्किल है
***
माना ग़म की मार पड़ी है चारों खाने चित्त हुआ
कैसे भी हों मेरे अब हालात गदाई* मुश्किल…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 4, 2019 at 3:30pm — 7 Comments
(1212 1122 1212 22 /112 )
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बना हूँ ज़ीस्त में मर्ज़ी से मेरी आबिर* भी (*राहगीर )
फ़क़ीर मीर कभी और कभी मुसाफ़िर भी
*
किया शुरू'अ जहाँ से सफ़र न सोचा था
उसी जगह पे सफर होगा मेरा आखिर भी
*
ये दौड़भाग तो पीछा कभी न छोड़ेगी
ज़रा सा वक़्त निकालो ना ख़ुद की ख़ातिर भी
*
किसी ग़रीब की हालत का ज़िक़्र क्या…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 3, 2019 at 10:00am — 10 Comments
कैसा होगा नया साल यह, कहना शायद मुश्किल है
मनोकामना सम्भव है पर , अच्छी हो सबकी ख़ातिर |
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लिखा नियति ने जो इस पर है निर्भर क्या हो अगले पल |
कृपा बरस जाये प्रभु की या जीवन से हो जाये छल |
लेकिन अच्छा सोचोगे तो होगा जीवन में अच्छा
बुरा अगर सोचा तो वैसा सम्भव है हो जाये कल |
ज्योतिष-ज्ञान सभी की ख़ातिर रखना शायद मुश्किल…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 1, 2019 at 10:00pm — 8 Comments
(1212 1122 1212 22 )
है कितना मुझ पे तुम्हारा क़याम लिख देना
उठे जो दिल में वो बातें तमाम लिख देना
**
ज़रा सा हाशिया आगाज़ में ज़रूरी है
ख़ुदा का नाम ले ख़त मेरे नाम लिख देना
***
मुझे बताना कि क्या चल रहा है अब दिल में
गुज़र रही है तेरी कैसे शाम लिख देना
***
तरीका और भी है बात मुझ तलक पहुँचे
हवा के हाथ…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 29, 2018 at 11:00am — No Comments
आज पेश है एक नगमा --
*
ये मिला सिला हमें तुम्हारे एतबार का
कारवाँ लुटा लुटा सा रह गया है प्यार का
*
न तुम हमारे हो सके न और कोई हो सका
ग़रीब का नसीब तो न जग सका न सो सका
न भूल हम सके सनम कभी तुम्हारी बुज़दिली
कि कोशिशों से भी कभी कली न दिल की फिर खिली
मौसम-ए-ख़िज़ाँ ने घोंट डाला दम बहार का
कारवाँ लुटा लुटा सा रह गया है प्यार का
*
यक़ीन कैसे हम करें कि ज़िंदगी में तुम नहीं
सुकून के हसीन पल हमारे खो गए कहीं
जिधर भी…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 28, 2018 at 10:30pm — 6 Comments
( 22 22 22 22 22 22 22 2 )
***
बारम्बार सियासत की क्या यह नादानी अच्छी है ?
धर्मों की आपस में क्या आतिश भड़कानी अच्छी है ?
***
रखना दोस्त बचाकर मोती कुछ ख़ुशियों की ख़ातिर भी
छोटे मोटे ग़म पर आती क्या तुग़्यानी* अच्छी है ?(*बाढ़ )
***
सोचा समझा था पुरखों ने फिर कानून बनाये कुछ
आज़ादी की ख़ातिर तन की क्या उर्यानी* अच्छी है…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 27, 2018 at 11:30am — 8 Comments
गर मीर* ही न ध्यान रखेगा अवाम का (*नायक )
फिर क्या करे अवाम भी ऐसे निज़ाम का
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अब तक न याद आई थी उसको अवाम की
क्या रह गया यक़ीन फ़क़त आज राम का
***
दौलत कमाई ख़ूब मगर इतना याद रख-
"बरकत नहीं करे कभी पैसा हराम का "
***
बेकार तो जहाँ में नहीं जिन्स* कोई भी (*वस्तु )
गर्द-ओ-गुबार भी कभी होता है काम…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 26, 2018 at 2:30pm — 14 Comments
(221 2122 221 2122 )
पुरखार रहगुज़र है चलना सँभल सँभल के
आसाँ नहीं निभाना मत लेना इश्क़ हल्के
***
सच कह रहे हैं हमने देखा बहुत ज़माना
रह जाएँ आग में सब आशिक़ कहीं न जल के
***
दम तोड़ती यहाँ पर आई नज़र है हसरत
देखे हैं लुटते अरमाँ हर पल मचल मचल के
***
जो चाहते हैं अपना चैन-ओ-सुकून खोना
मैदाँ में वो ही आये हाथों में थूक मल के
***
अक़्सर यहाँ पे पड़ता मिर्गी के जैसा दौरा
कटती है रात सारी करवट बदल बदल के
***…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 24, 2018 at 11:30am — 6 Comments
ज़मीँ थे तुम मुहब्बत की तुम्हीँ गर आस्माँ होते
हमारे ग़म के अफ़साने ज़माने से निहाँ* होते (*छुपे हुए )
***
बने हो गैर के ,रुख़्सत हमारी ज़ीस्त से होकर
न देते तुम अगर धोका हमारे हमरहाँ* होते (*हमसफर )
***
तुम्हारी आँख की मय को अगर पीते ज़रा सी हम
तुम्हीं साक़ी बने होते तुम्हीं पीर-ए-मुग़ाँ* होते(*मदिरालय का प्रबंधक )
***
बनाया हिज़्र को हमने…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 23, 2018 at 2:00pm — 7 Comments
बह्र -बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
अरकान -मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
मापनी-1222 1222 1222 1222
***
फरेब-ओ-झूठ की यूँ तो सदा जयकार होती है,
मगर आवाज़ में सच की सदा खनकार होती है।
**
हुआ क्या है ज़माने को पड़ी क्या भाँग दरिया में
कोई दल हो मगर क्यों एक सी सरकार होती है
***
शजर में एक साया भी छुपा रहता है अनजाना
मगर उसके लिए…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 21, 2018 at 5:00pm — 15 Comments
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