“इस सन्डे कहाँ पार्टी करें कोमल”? नील ने पूछा. “यू लाइक मॉल चलते हैं” “अरे यार, फिर वहीँ.... बोर हो गए हमेशा मॉल मॉल में जाते कोई नई जगह... “फिर उस भूतिया महल में चलें? है हिम्मत’? बीच में ही बात काटती हुई आस्था बोली| “ना बाबा ना मैं तो नहीं जा सकती तू जा सकती है”?
“मैं भूतों में विश्वास नहीं करती हम आज के युग में जीते हैं क्या पुराने लोगों जैसी घिसी पिटी बातें करते हो और फिर हमारे साथ विश्वास भी तो है उस पर विश्वास करना चाहिए सब भूतों को ठिकाने लगा देगा हाहाहा”..…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 13, 2015 at 7:30pm — 24 Comments
१२२ १२२ २२१ २१२ २१२
हटाये जो काँटे तो रास्ते सुधरते गये
दुआएँ समझ कर हम झोलियों में भरते गये
कदम दर कदम जिस जिस मोड़ से गुजरते गये
बने तल्ख़ियों के घर टूटते बिखरते गये
खुदा जाने कैसे किस कांच के बने थे अजब
दरकते रहे पत्थर आईने सँवरते गये
दबाता रहा हमको झूठ आजमाता रहा
सदा सच पकड़ हम हालात से उबरते गये
ज़माना कसौटी पे रात दिन परखता रहा
तपे रोज जितना हम और भी निखरते…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 8, 2015 at 9:34am — 25 Comments
२२२२ २२२२ २२२२ २
शर्मिंदा आज किसी रूह की पैदाइश होगी---रूह में ह साइलेंट है
गैरों के आगे फिर सूरत की नुमाइश होगी
फिर से टूटेगा रब की रहमत का देख भरम
फिर आज किसी की किस्मत की आजमाइश होगी---(आजमाइश की मात्रा गिराकर अजमाइश किया है)
ज़र्रे ज़र्रे में महकेगी दौलत की खुशबू
नजरों नजरों में फिर कोई फर्माइश होगी
हँस हँस के मिटेगी जल जल के लुटेगी रात शमा
धज्जी धज्जी…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 2, 2015 at 10:30am — 24 Comments
122 122 122 2
कभी जिन्दगी को जिया होता
ख़ुदा का अदा शुक्रिया होता
मुकम्मल नई इक ग़ज़ल होती
अगर अश्क़ हँस के पिया होता
फ़लक चूमता ये कदम तेरे
कोई काम ऐसा किया होता
बिखरती न गिरती दुआ रब की
अगर चाकदामन सिया होता
कई रास्ते खुल गए होते
किसी का कभी गम लिया होता
कहाँ काटता यूँ अकेलापन
किसी को सहारा दिया होता
है क्या जीस्त खानाबदोशों की
ठिकाना न…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 5, 2015 at 7:42pm — 18 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ २
कभी फुर्सत मिले तो सोच हारा कैसे
बिना तैरे मिले किसको किनारा कैसे
जहाँ लगती दिलों की भी बराबर कीमत
वहाँ पैसों बिना भी हो गुज़ारा कैसे
जिसे भाने लगे कबसे रकीबों के घर
भला दिल से कहें उसको हमारा कैसे
मुहब्बत की जहाँ रिमझिम फुहारें गिरती
सुलग उट्ठा वहाँ अदना शरारा कैसे
जहाँ मासूम लाशें हर तरफ फैली थी
डरी आँखों ने देखा वो नज़ारा कैसे
नहीं मिलती…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 22, 2015 at 10:25am — 17 Comments
रोज की तरह ऑफिस में घुसने से पहले उसने झुक कर उस भिखारी को कुछ पैसे दिए बहुत जल्दी में था पर्स पाकेट में रखने की बजाय वहीँ गिर गया जो उस भिखारी ने तुरंत लपक लिया| भिखारी ने देखा कुछ पैसों के साथ पर्स में दो तीन तरह के कार्ड थे|
कुछ देर बाद बाहर के ऑफिस से ऊँची आवाज आवाज आई अरे अरे ये भिखारी अन्दर कैसे आ गया?’ “साब बड़े साहब का ये पर्स गिर गया था सो उसे ही देने आया था”| “अच्छा अच्छा लाओ मैं दे दूँगा लेते हुए बाबू का चेहरा चमक उठा|
“साहब इस गमले से एक…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 19, 2015 at 11:08am — 30 Comments
उसने सागर से कहा “पानी दो बहुत प्यासा हूँ”
सागर बोला -“रोज पीते हो खाली हो गया हूँ”|
नदिया से कहा “पानी दो बहुत प्यासा हूँ” नदिया ने कहा “आगे जा रही हूँ पसीना बहाने वाले प्यासों के पास;
पीछे लौटना मेरी नियति नहीं है”|
कुए से कहा “पानी दो प्यासा हूँ गला सूख रहा है मर जाऊँगा ”
कुँए ने कहा “मैं स्वाभिमानी हूँ प्यासे के पास नहीं जाता प्यासा मेरे पास आता है”|
पास बहते नाले से कहा "तू ही पिला दे यार" उसने कहा “पहले ही तू मुझे बहुत गन्दा कर चुका…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 20, 2014 at 11:00am — 25 Comments
212 122 212 12
बिन कहा समझते हैं कमाल है
क्या से क्या समझते हैं कमाल है
मैं मना करूँ तो हाँ जो हाँ करूँ
तो मना समझते हैं कमाल है
शर्म से निगाहें जो झुकी मेरी
वो अदा समझते हैं कमाल है
कद्र मैं करूँ जज्बात की जिसे
वो वफ़ा समझते हैं कमाल है
चूड़ियाँ बजें मेरी ये आदतन
वो सदा समझते हैं कमाल है
झाँकते वो मेरी आँखों के निहाँ
आईना समझते हैं…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 14, 2014 at 10:45am — 30 Comments
२११२ २१२२ १२२१ २२१२ २२
लोग हुनरमंद कितने किसी को गुमाँ तक नहीं होता
आग लगाते वो कुछ इस तरह जो धुआँ तक नहीं होता
जह्र फैलाते हुए उम्र गुजरी भले बाद में उनकी
मैय्यत उठाने कोई यारों का कारवाँ तक नहीं होता
आज यहाँ की बदल गई आबो हवा देखिये कितनी
वृद्ध की माफ़िक झुका वो शजर जो जवाँ तक नहीं होता
मूक हैं लाचार हैं जानवर हैं यही जिंदगी इनकी
ढो रहे हैं बोझ पर दर्द इनका बयाँ तक नहीं होता
ख़्वाब सजाते…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 30, 2014 at 7:05pm — 23 Comments
आ चल बुने राष्ट्रीय स्वेटर
सहिष्णुता की ऊन का गोला
सलाइयाँ सद्व्यवहार की
रंग रंग के डालें बूटे
मनुसाई कतारें प्यार की
करें बुनाई सब मिलजुल कर
आ चल बुने राष्ट्रीय स्वेटर
अब सर्दी का लगा महीना
देश मेरा ये थर-थर काँपे
एक-एक मिल भरें उष्णता
शाल बना कांधों पर ढापें
धूप-धूप गूँथे प्रभाकर
आ चल बुने राष्ट्रीय स्वेटर
हिंदू मुस्लिम सिक्ख…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 24, 2014 at 11:07am — 25 Comments
1222 1222 1222 1222
नहीं होता तो क्या होता अगर होगा तो क्या होगा
कभी तुमने बचाया क्या अभी खोया तो क्या होगा
जमाने को सिखाया है हुनर तुमने यही अब तक
वफ़ा करके कभी खुद को मिले धोखा तो क्या होगा
किसी की जिन्दगी में तुम उजाला कर नहीं सकते
अगर खुर्शीद भी दिन में न अब जागा तो क्या होगा
चले हो आबशारों को जलाने आग से अपनी
समंदर ने तुम्हारा रास्ता रोका तो क्या होगा
लिए वो हाथ में पत्थर कभी फेंका…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 18, 2014 at 10:43pm — 25 Comments
तुमने बुलाया और मैं चली आई
मगर तुम भी जानते हो
न तुमने दिल से बुलाया
न मैं दिल से आई
अच्छा हुआ जो तुम
मेरी महफ़िल में नहीं आये
क्यूंकि तुम अदब से आ नहीं सकते थे
और मैं औपचारिकतानिभा नहीं सकती थी
आयोजन में कस के गले मिले और बोले
अरे बहुत दिनों बाद मिले हो
अच्छा लगा आप से मिलकर
सुनकर हम दोनों के घरों के पड़ोसी गेट हँस पड़े
सुबह से भोलू गांधी जी की प्रतिमा…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 16, 2014 at 1:00pm — 14 Comments
१२२ १२२ १२२ १२२
नहीं पाँव दिखते जहाँ पर खड़े हो
बताओ जरा क्या तुम इतने बड़े हो?
उड़ाया जिसे ठोकरों से हटाया
उसी ख़ाक के तुम छलकते घड़े हो
जमाना नया है नयी नस्ल आई
पुराने चलन पर अभी तक अड़े हो
झुकी कायनातें झुका आसमां तक
न सोचो खुदी को फ़लक पे जड़े हो
वही रास्ते हैं वही मंजिलें हैं
वही कारवाँ है मगर तुम छड़े हो
जहाँ है मुहब्बत वहीँ हैं उजाले
निहाँ तीरगी है जहाँ गिर पड़े हो…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 1, 2014 at 12:45pm — 32 Comments
“माँ वो कोठी वाली मैडम हर दीवाली पर लक्ष्मी जी के पैर बनाती हैं तू क्यूँ नहीं बनाती? इसी लिए हमारे घर लक्ष्मी नहीं आती क्या?”रिक्कू ने बड़े भोलेपन से पूछा|
”बेटा, हमारे घर भी एक बार लक्ष्मी आई थी पर तेरे बापू ने दारु के लिए उसे बेच दिया अब वो कभी नहीं आएगी”|
.
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by rajesh kumari on October 20, 2014 at 3:30pm — 12 Comments
धरती से नीले अम्बर तक
बिना किसी व्यवधान
इठलाती तितली सी चंचल
भरती रहे उड़ान
ना कोई सीमा ना कोई बंद
हो कितनी स्वछन्द
ऐ कविता!
कभी करुण रस से आप्लावित
भीगे आखर से बोझिल
कभी डूब शिंगार झील में
आती नख- शिख तक झिलमिल
कभी गरल तू विरह का पीती
कभी नेह मकरंद
हो कितनी स्वछन्द
ऐ कविता!
कभी परों पर लगा बसंती
रंग अबीर गुलाबी लाल
कहीं बिठाती दीये…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 9, 2014 at 12:50pm — 16 Comments
२१२२ २१२२ २१२२
ढूँढती इक मौज तूफां में किनारा
क्यूँ समझता ही नहीं सागर ईशारा
तिश्नगी उसको कहाँ तक ले गई है
अक्स अपना झील में उसने उतारा
फ़र्क क्या पड़ता चमकती चाँदनी को
छटपटाता फिर कहीं टूटा सितारा
फट गया जो पैरहन तो ग़म नहीं है
चाक दिल सिलता नहीं देखो दुबारा
डोलती किश्ती बढ़ाती हाथ अपना
उस तरफ़ तुम मोड़ लो अपना शिकारा
खोल दो गर तुम लटकती उस पतंग को
लोग…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 4, 2014 at 10:30am — 27 Comments
1222 1222
वतन की जान है हिंदी
उपार्जित मान है हिंदी
धरा जो गुनगुनाती है
मुक़द्दस गान है हिंदी
हिमालय फ़क्र करता है
अजल से शान है हिंदी
तेरे वर्के तगाफ़ुल पे
नया फ़रमान है हिंदी
इबादत पे सदाक़त पे
सदा कुर्बान है हिंदी
मेरा मजहब मेरी दौलत
मेरा ईमान है हिंदी
हमारी पाक़ संस्कृति में
बसा सम्मान है हिंदी
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(मौलिक एवं…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 25, 2014 at 11:03am — 30 Comments
“हेप्पी टीचर्स डे”(संस्मरण)
सन १९८६ में विशाखापत्तनम नेवल पब्लिक स्कूल में शिक्षण काल के दौरान का ये वाकया.... छठी कक्षा का सबसे शरारती छात्र आये दिन कोई न कोई शरारत करना और ढेर सारी डांट खाना|होम वर्क कभी पूरा करके ना लाना क्लास में दूसरे पढ़ते हुए छात्रों को भी डिस्टर्ब करना मानो उसकी आदत ही बन गई थी|बहुत बार दंड देकर दुःख भी होता था,किन्तु वो था कि सुधरने का नाम ही नहीं लेता था|माँ बाप भी आकर मुझे बोलते थे की मैडम आप ही इसे सुधार सकती हो|उस दिन तो हद ही हो गई जब वो मेरी हिदायतों…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 5, 2014 at 11:52am — 14 Comments
‘’बहुत खुश दिख रही हो लाजो” गाँव से आई लाजो की सहेली कनिया ने कहा|
“हाँ हाँ क्यूँ नहीं बेटा बहू काम पर चले जाते हैं नौकरानी सब काम कर जाती है बस घर में महारानी की तरह रहती हूँ” लाजो ने जबाब दिया|
कुछ देर की शान्ति के बाद फिर लाजो बोली”ये सुख तेरा ही तो दिया हुआ है उस दिन न तू उस बुढ़िया से पिंड छुडाने का आइडिया देती तो आगे भी न जाने कितने सालों तक मुझे उसकी गंद उठानी पड़ती और मेरा रोहित दादी की सेवा के लिए मुझे वहीँ सड़ने के लिए छोड़े रखता, नरक बनी हुई थी मेरी…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 31, 2014 at 1:00pm — 18 Comments
12122 12122 1212
कभी लबों तक पँहुचता प्याला न छीनिए
ग़रीब के हाथ से निवाला न छीनिए
यतीम का बचपना निराला न छीनिए
जमीन, दरगाह या शिवाला न छीनिए
बड़ी नहीं कोई चीज़ तहजीब से यहाँ
नक़ाब, सिर पे ढका दुशाला न छीनिए
नसीब में क्या लिखा यहाँ कौन जानता
किसी जवाँ दीप का उजाला न छीनिए
समान हक़ है मिला सभी को पढ़ाई का
गरीब बच्चों से पाठ शाला न छीनिए
जुड़े खुदा से…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 26, 2014 at 5:00pm — 31 Comments
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