जिंदगी के नशे मे है झूमती जिंदगी
मौत के कुएँ मे भी है घूमती जिंदगी
जिंदगी की कीमत तो जिंदगी ही जाने
रेगिस्तान मे जलबूँद है ढूँढती जिंदगी
हो गर जवाब तो वो लाजवाब ही होवे
हर पल ऐसे सवाल है पूछती जिंदगी
कोई मिला खाक मे, कोई खुद धुआँ हुवा
धरती ओर गगन के बीच है झूलती जिंदगी
किसी का गम किसी की मुस्कुराहट यहाँ
हर हाल मे मुस्कुराके आँखे है मूंदती जिंदगी
जान ले "मासूम " रुसवाई नही किसी को यहाँ
मौत के भी खुश होकर पग है…
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Added by Pallav Pancholi on August 7, 2010 at 3:30pm —
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कैसे विनम्र सा बैठा
अथाह सागर फैला हुआ
मौत सा सन्नाटा सुनाई देता
इसके अन्दर सिमटा हुआ
बंद करके आँखें मैं
लेट गया सफ़ेद रेत पे
सुनने को आतुर था मन
सुर जो बनता
लहरों के साहिल पे टकराने से
जब पूरा ध्यान उन लहरों पर था
और मन के सारे द्वार मैंने खोल दिए
पहचानने को वो शक्ति मैं था बैठा
ऐसा लगता मानो कह रहा सागर
धैर्य हूँ मैं
शंकर हूँ और शक्ति हूँ…
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Added by अनुपम ध्यानी on August 7, 2010 at 1:24am —
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दो सीधे से सवाल का जवाब दोस्तों ,
क्यों पी रही है मुझको ये शराब दोस्तों ,
मैने शराब पी थी गम भुलाने के लिए
बढ़ने लगी है क्यों मेरी अजाब दोस्तों,
माना कि पी गया मै जश्ने यार मे बहुत ,
डर है जिगर न दे कहीं जवाब दोस्तों ,
इतनी ही गर हसीं है ये प्याले की महेबुबा,
फिर क्यों मिला रहे सुरा में आब दोस्तों,
मैने जवानी जाम संग बितायी शान से,
चर्चा हुई बुढ़ापे की ख़राब दोस्तों ,
कितनी ही मिन्नतों के बाद जिंदगी मिली,
ना…
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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 7, 2010 at 1:00am —
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यह कैसा सावन
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सावन के झूलों के संग
हिलोरे लेती मैं
और मेरी
सतरंगी चुनर के रंग
कहाँ खो गए
अब के क्यों
बर्फ सी जमी है
सावन मैं
एहसास भी बर्फ सी
सफ़ेद चादर ओढ़े
सो गए.
Added by rajni chhabra on August 6, 2010 at 11:23pm —
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हिन्दी वैभव:
हिन्दी को कम आंकनेवालों को चुनौती है कि वे विश्व की किसी भी अन्य भाषा में हिन्दी की तरह अगणित रूप और उन रूपों में विविध विधाओं में सकारात्मक-सृजनात्मक-सामयिक लेखन के उदाहरण दें. शब्दों को ग्रहण करने, पचाने और विधाओं को अपने संस्कार के अनुरूप ढालकर मूल से अधिक प्रभावी और बहुआयामी बनाने की अपनी अभूतपूर्व क्षमता के कारण हिन्दी ही भावी विश्व-वाणी है. इस अटल सत्य को स्वीकार कर जितनी जल्दी हम अपनी ऊर्जा हिन्दी में हिंदीतर साहित्य और संगणकीय तकनीक को आत्मसात करेंगे, अपना और हिन्दी का…
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Added by sanjiv verma 'salil' on August 6, 2010 at 7:57pm —
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गिरते -पड़ते डांस करें, बिन सुर - ताल के गाना.
ये है रैप ज़माना - ये है रैप ज़माना.
स्कूल हो या कॉलेज हो, बस फिल्मों का नॉलेज हो.
क्या रखा है किताबों में, अलजबरा के हिसाबों में.
झगड़ा है इतिहासों में, टेंसन संधि- समासों में.
तर्कशास्त्र तो टेढ़ा है, इंगलिश एक बखेड़ा है.
राजनीति में पचड़ा है, अर्थशास्त्र एक दुखड़ा है.
कौन फंसे साइक्लोजी में, लफड़ा है बाईलोजी में.
पानीपत में कौन जीता, बेमतलब सर है खपाना.
ये है रैप ज़माना…
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Added by satish mapatpuri on August 6, 2010 at 4:00pm —
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लेह से कारगिल तक का राजमार्ग
फिजाओं में घुला था बारूदी महक
हो भी क्यों ना
यह युध्ध तीर -कमानों से नहीं
बोफोर्स्र तोपों का था ॥
अँधेरी रातों में
घावों से रिस रहा था मवाद
शरीर निढाल था
और पैर मानो
लोहे का बना था ....
मिलों तक थकान नहीं था
मगर कान जगे थे
और जब कान जागता हो
तो नींद कैसे आएगी ॥
धुल के गुब्बार
आखों में धुल नहीं झोक पाए
वह नेस्नाबुद करना चाहता था
चाँद -तारे उगे हरे झंडे
और फतह…
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Added by baban pandey on August 6, 2010 at 12:12pm —
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ज्ञात हैं हमें कि हर भाव
इतना शक्तिशाली होता है
कि वो आपका जीवन
बदल दे
असीम शक्ति का
प्रमाण है भाव
व्यक्त न भी हो सके तो
क्या
है वो ही प्रणाम
जो पशुओं और मनुष्य में
करता है चुनाव
एक ऐसा ही भाव है
कायरता।
कायरता, बुजदिली
या जो भी कह लो
अद्भुत शक्ति है इसमें
जो काया पलट दे
और साधारण से
असाधारण , अनुपम में बदल दे
भय हो जब हार…
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Added by अनुपम ध्यानी on August 5, 2010 at 10:01pm —
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जैसे ही अगस्त आया है
वैसे ही सब कवियों ने
तिरंगा उठाया है
और स्याही में कलम डुबो के
सब को यह दिलासा दिलाया है
कि “हम भूले नहीं हैं
भारत हमारा है”
काला है , गोरा है
अभिशप्त है तो क्या हुआ
दरिद्र है तो क्या हुआ
भ्रष्ट है तो क्या हुआ
बाकी न सही पर
अगस्त आते ही हमे याद
ज़रूर आया है
भारत हमारा है।
शब्दावली से…
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Added by अनुपम ध्यानी on August 5, 2010 at 8:30am —
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मुक्तिका:
मन में दृढ़ विश्वास लिये.
संजीव 'सलिल'
**
मन में दृढ़ विश्वास लिये.
फिरते हैं हम प्यास लिये..
ढाई आखर पढ़ लें तो
जीवन जियें हुलास लिये..
पिये अँधेरे और जले
दीपक सदृश उजास लिये..
कोई राह दिखाये क्यों?
बढ़ते कदम कयास लिये..
अधरों पर मुस्कान 'सलिल'
आयी मगर भड़ास लिये..
मंजिल की तू फ़िक्र न कर
कल रे 'सलिल' प्रयास…
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Added by sanjiv verma 'salil' on August 4, 2010 at 8:37am —
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अजनबीपन
दर्पण के पीछे है
एक और दर्पण
मन के भीतर है
एक और मन
शब्दों के जाल में
अनजाने भाव है
ऊपर से गहराई
नापते हैं हम
रात की सियाही में
दर्द के सैलाब पर
अंधेरे की चादर
तानते हैं हम
शूलों के दर्द में
फूल जो महका
उसकी ही रुह से
अनजान है हम
अपनी ही काया के
भीतर जो छाया है
उसकी सच्चाई कब
पहचानते हैं हम
दर्पण के पीछे..
मन के…
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Added by Narendra Vyas on August 3, 2010 at 4:12pm —
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कई बरसों के बाद घर मेरे चिड़ियाँ आईं
बाद मुद्दत ज्यों पीहर में बेटियाँ आईं !
ज़मीं वालों के तो हिस्से में कोठियाँ आईं,
बैल वालों के नसीबों में झुग्गियाँ आईं !
जाल दिलकश बड़े ले ले के मकड़ियां आईं
कत्ल हों जाएँगी यहाँ जो तितलियाँ आईं !
झोपडी कांप उठी रूह तलक सावन में,
ज्योंही आकाश पे काली सी बदलियाँ आईं !
ऐसे महसूस हुआ लौट के बचपन आया,
कल बड़ी याद मुझे माँ की झिड़कियां आईं !
बेटियों के लिए पीहर में पड़ गए ताले
हाथ…
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Added by योगराज प्रभाकर on August 2, 2010 at 9:00pm —
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नज़र को धोखा बार- बार यही होता है.
यूँ तो कुछ भी क्षितिज के पार नहीं होता है .
खुदा बनाता है क्यों उनको हसीं.
जिनके दिल में तमिज़े प्यार नहीं होता है .
दिल भले साज़ है पर सबसे जुदा.
ये वो सितार जिसमे तार नहीं होता है.
उनकी मासूमियत पे हैरां हूँ.
ये भी नहीं कहते ऐतबार नहीं होता है .
रेत में गुल खिला रहे हो पुरी.
दिलजलों के लिए बहार नहीं होता है.
गीतकार- सतीश मापतपुरी
मोबाइल - 9334414611
Added by satish mapatpuri on August 2, 2010 at 4:53pm —
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भाई कोई मुझे बताये गुरु पागल को समझाए ,
सोहराबुदीन कौन था जिसको दिए सब मिटाए ,
कोई कहता था आतंकबादी था वो बड़ा हठीला ,
किया क्यों उसके कारण मुश्किल किसी का जीना ,
मर गया तो मिट गई बाते क्यों उल्टी हवा बहाए ,
भाई कोई मुझे बताये गुरु पागल को समझाए ,
जो ऐसा काम किया क्यों उसे सूली पे चढाते हो ,
अफजल गुरु को जो बचाए उसको सलाम बजाते हो ,
जागो हिंद के जागो भाई करो उसको सलाम ,
जो इस तरफ के कालिख पोतो के काम करे तमाम ,
सिद्ध हुआ था आतंकबादी मारे तो तगमा…
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Added by Rash Bihari Ravi on August 2, 2010 at 2:00pm —
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गीत...
प्रतिभा खुद में वन्दनीय है...
संजीव 'सलिल'
**
प्रतिभा खुद में वन्दनीय है...
*
प्रतिभा मेघा दीप्ति उजाला
शुभ या अशुभ नहीं होता है.
वैसा फल पाता है साधक-
जैसा बीज रहा बोता है.
शिव को भजते राम और
रावण दोनों पर भाव भिन्न है.
एक शिविर में नव जीवन है
दूजे का अस्तित्व छिन्न है.
शिवता हो या भाव-भक्ति हो
सबको अब तक प्रार्थनीय है.
प्रतिभा खुद में वन्दनीय है.....
*
अन्न एक ही खाकर…
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Added by sanjiv verma 'salil' on August 2, 2010 at 10:45am —
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सितारों की महफ़िल में आज डा. रूप चन्द्र शास्त्री मयंक और आचार्य संजीव वर्मा सलिल
लखनऊ, गुरुवार, २९ जुलाई २०१०
ब्लोगोत्सव-२०१० को आयामित करने हेतु किये गए कार्यों में जिनका अवदान सर्वोपरि है वे हैं डा. रूप चन्द्र शास्त्री मयंक और आचार्य संजीव वर्मा सलिल जिन्होनें उत्सव गीत रचकर ब्लोगोत्सव में प्राण फूंकने का महत्वपूर्ण कार्य किया. ब्लोगोत्सव की टीम ने उनके इस अवदान के लिए संयुक्त रूप से उन दोनों सुमधुर गीतकार को वर्ष के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार का अलंकरण देते हुए सम्मानित करने का निर्णय…
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Added by sanjiv verma 'salil' on August 2, 2010 at 10:41am —
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किसी को मत अपना मान परिंदे
ये दुनिया बड़ी बेईमान परिंदे
मंदिर-मस्जिद ढूंढ़ रहा किसको
हर गली बिकता भगवान परिंदे
मोह का झूठा बंधन दुनियादारी
मत उलझा इसमें जान परिंदे
सांसों के पंख नहीं वश में अपने
ज़िस्मानी पंख झूठी शान परिंदे
मन की तिजोरी जब तक खाली
दौलत पर कैसा अभिमान परिंदे
जितना ऊपर उड़ता जीवन पंछी
खुलता सच का आसमान परिंदे
दुनिया में जो जीना चाहे सुख से
बंद रख आँखें और कान परिंदे
मेरी पुस्तक "एक कोशिश रोशनी की ओर "से
Added by asha pandey ojha on August 2, 2010 at 10:15am —
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हवाओ से कह दो अपनी औकात में रहे
हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं।
फिज़ाओं से कह दो अपनी हदों में रहे
हम बहारो से नहीं घटाओ से बनते है।
फूलो से कह दो कही और खिले
हम पंखुड़ी से नहीं काँटों में रहते हैं।
दुश्मनों से कह दो कही और बसे
हम कही और नहीं दोस्तों के दिल में रहते हैं।
Added by praveena joshi on August 1, 2010 at 4:02pm —
9 Comments
होती है सुबह,ओर ढलती है मेरी शाम बस तेरा नाम ले लेकर
करने लगा शुरू मे आज कल हर काम बस तेरा नाम लेकर
कोई पीता है खुशी मे, किसी को गम, पीना सीखा देता यहाँ
मैने पीया है अपनी ज़िंदगी का हर जाम बस तेरा नाम लेकर
कोई करता है तीरथ यहाँ तो कोई जाता है मक्का ओर मदीना
हो गये पूरे इस जीवन के मेरे सारे धाम बस तेरा नाम लेकर
कोई भागता है दौलत के पीछे तो कोई शोहरत का दीवाना यहाँ
मुझे मिल जाती जहाँ की खुशियाँ तमाम बस तेरा नाम लेकर
किसी को जन्नत…
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Added by Pallav Pancholi on July 30, 2010 at 1:33am —
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पागल किसे कहते है
मैं नहीं जानता
मगर इतना जानता हू कि
अगर आप पर
पागलपन सवार है
तो हिमालय लांघना
कौन सी बड़ी बात है ॥
दोस्तों ,....
हवा जब पागल बनती है
उसे तूफ़ान कहते है
और ....
तूफ़ान घंटे भर में
वह कर देता है जो
हवा वर्षों से नहीं कर सकती ॥
मेरे युवा दोस्तों ....
आइये हमलोग भी तूफ़ान बने
छतविहीन घरों को छत देने के लिए
वृक्षों को नई जड़ देने के लिए
आईये ....
तूफ़ान बन फसलों के साथ…
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Added by baban pandey on July 29, 2010 at 9:15pm —
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