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मिथिलेश वामनकर
  • भोपाल, मध्यप्रदेश
  • India
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मिथिलेश वामनकर's Discussions

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
8 Replies

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी नगर, भोपाल के सभागार राज-सदन में दिनांक 25/05/2024, शनिवार को सम्पन्न हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय अशोक निर्मल जी ने की। मुख्य…Continue

Started this discussion. Last reply by मिथिलेश वामनकर Jul 21.

ओबीओ साहित्यिक संगोष्ठी 'जहीर की तहरीर'

देश के अग्रणी ग़ज़लकार ज़हीर कुरेशी की तीसरी पुण्यतिथि दिनांक 20 अप्रैल 2024 को दुष्यंन्त कुमार संग्रहालय भोपाल में साहित्यिक…Continue

Started Apr 27

ओबीओ साहित्योत्सव भोपाल 2023
4 Replies

ओपन बुक्स ऑनलाइन की भोपाल इकाई का वार्षिकोत्सव 'ओबीओ साहित्योत्सव 2023' दिनांक 7 मई 2023 दिन रविवार को भोपाल की होटल रेवा रीजेंसी, एमपी नगर में सम्पन्न हुआ। यह आयोजन तीन सत्रों में आयोजित किया गया था। प्रथम सत्र में व्याख्यान व विमोचन, द्वितीय सत्र…Continue

Tags: लघुकथा, पाठ, काव्य, मुशायरा, सदस्य

Started this discussion. Last reply by मिथिलेश वामनकर May 16, 2023.

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी जनवरी 2023
2 Replies

तीन वर्षों के अंतराल के बाद दिनांक 28 जनवरी 2023 को ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार भोपाल चैप्टर की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी दुष्यन्त कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय में सम्पन्न हुई। सर्वप्रथम संस्था के नए अध्यक्ष आदरणीय अशोक निर्मल जी समेत मुख्य अतिथि…Continue

Started this discussion. Last reply by Saurabh Pandey Feb 19, 2023.

‘शब्दशिल्पी’ में प्रकाशनार्थ रचनाएँ आमंत्रित
19 Replies

ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार भोपाल के तत्वावधान में 15 अप्रैल 2018 को ‘ओबीओ साहित्योत्सव 2018’ का आयोजन किया जा रहा है. आयोजन की स्मृतियों…Continue

Started this discussion. Last reply by Harash Mahajan Apr 22, 2018.

ओबीओ साहित्यिक मासिक संगोष्ठी भोपाल चैप्टर दिसम्बर 2017
5 Replies

दिनांक 16 दिसम्बर 2017 को ओबीओ साहित्यिक मासिक संगोष्ठी का आयोजन नरेश मेहता हाल, हिंदी भवन भोपाल में किया गया। संगोष्ठी आदरणीय ज़हीर क़ुरैशी जी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में आदरणीय सौरभ पाण्डेयजी एवं आदरणीय…Continue

Started this discussion. Last reply by मिथिलेश वामनकर Jul 21.

ओबीओ साहित्यिक मासिक संगोष्ठी भोपाल चैप्टर नवम्बर 2017

दिनांक 18 नवम्बर 2017 को ओबीओ साहित्यिक मासिक संगोष्ठी का आयोजन नरेश मेहता हाल, हिंदी भवन भोपाल में किया गया। संगोष्ठी श्री ज़हीर क़ुरैशी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। मुख्य अतिथि एवं विष्ट अतिथि के रूप में आदरणीय सौरभ पाण्डेयजी एवं आदरणीय तिलकराज…Continue

Started Nov 19, 2017

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-85 में प्रस्तुत समस्त रचनाएँ
10 Replies

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-85 में प्रस्तुत समस्त रचनाएँविषय - "बाल साहित्य"आयोजन की अवधि- 10 नवम्बर 2017, दिन शुक्रवार से 11 नवम्बर 2017, दिन शनिवार तक पूरा प्रयास किया गया है, कि रचनाकारों की स्वीकृत रचनाएँ सम्मिलित हो जायँ. इसके बावज़ूद किन्हीं की…Continue

Started this discussion. Last reply by मिथिलेश वामनकर Nov 18, 2017.

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-84 में प्रस्तुत समस्त रचनाएँ
3 Replies

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-84 में प्रस्तुत समस्त रचनाएँविषय - "सूर्य/सूरज"आयोजन की अवधि- 13 अक्टूबर 2017, दिन शुक्रवार से 14 अक्टूबर 2017, दिन शनिवार की समाप्ति तक पूरा प्रयास किया गया है, कि रचनाकारों की स्वीकृत रचनाएँ सम्मिलित हो जायँ. इसके…Continue

Started this discussion. Last reply by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' Nov 10, 2017.

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-83 में प्रस्तुत समस्त रचनाएँ
4 Replies

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-83 में प्रस्तुत समस्त रचनाएँविषय - "उन्माद"आयोजन की अवधि- 8 सितम्बर 2017, दिन शुक्रवार से 9 सितम्बर 2017, दिन शनिवार की समाप्ति तक पूरा प्रयास किया गया है, कि रचनाकारों की स्वीकृत रचनाएँ सम्मिलित हो जायँ. इसके बावज़ूद…Continue

Started this discussion. Last reply by मिथिलेश वामनकर Nov 5, 2017.

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आपका हार्दिक स्वागत है :: मिथिलेश वामनकर

मेरी रचनाएँ

                                

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मेरे बारे में

मैं मिथिलेश वामनकर, पेशे से शासकीय सेवक हूं . मेरा जन्म म.प्र. राज्य के बैतूल जिले के गोराखार नामक एक आदिवासी बहुल गाँव में 15 जुलाई 1981 में हुआ. पापा जब बस्तर के स्कूल मास्टर से डिप्टी कलेक्टर बने तो शहर का मुंह देखना नसीब हुआ. इसके बाद पापा के ट्रांसफ़रों में ही मिडिल और हाईस्कूल बीत गये. 

           ये पूरा समय छत्ती्सगढ़ और विशेषकर बस्तर में बीता.  वर्ष 2001 में हम छत्तीसगढ़ छोड़ मध्य-प्रदेश आ गए.  वर्ष 2007 में पी.एस.सी .से चयनित हुआ और मध्यप्रदेश वाणिज्यिक कर विभाग में वाणिज्यिक कर अधिकारी के रूप में भोपाल में पदस्थ हुआ।  पदोन्नति पश्चात असिस्टेंट कमिश्नर के पद पर जबलपुर में पदस्थ हूँ।   वर्ष 2010 में विवाह हुआ । एक पुत्री का पिता बन गया हूँ तो जीवन में एक नया और रोमांचित कर देने वाला अहसास भर गया है. अपनी इस छोटी सी दुनिया में सुखी हूँ ।

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o लघुकथा

o नज़्म

 

o दोहे

o माहिया और छंद 

 

o नवगीत / गीत / अतुकांत

o ग़ज़ल

०ग़ज़ल

  1. रंगमंच ये सारा उसका
  2. मैं रैक बना हूँ
  3. तुम भी न बस
  4. लफ्ज़ सजाना पड़ता है
  5. अंततः विदा पाई
  6. ग़ज़लों को भी गीला होते देखा है
  7. जलता रहा रात भर
  8. कभी हाथ तो हिला दे
  9. उन्हें कांटे चुभोने दो
  10. कितनी किसे हिसाब क्या
  11. खबर है ये झूठी सबा चाहता हूँ
  12. मेरा दर्द दिल से निकाल दे
  13. व्यवहार भैयाजी
  14. कुर्बान तो गया
  15. पनिहारियाँ नहीं चलतीं
  16. जिस्म आबशार करे
  17. नया 'परकास' अच्छे दिन
  18. क्यूँ आज हवाओं में?
  19. कुरआन पढ़कर आरती
  20. जाने कैसा फंदा है
  21. होगा तो क्या होगा?
  22. बेटियाँ जो तरक्की करें
  23. कुछ तो कहो, कुछ जवाब दो
  24. दुनिया बिलकुल छोटी है
  25. मेरे रू-ब-रू ही नहीं
  26. इसी तरह से ग़ज़ल हुई है 
  27. बता क्या होगा ?
  28. मसरूफ है दुआ करने
  29. ज़रा सी बात पे फिर आज मुँह फुला आया
  30. नज़र इंसान की घातक हुई क्या?
  31. इस तरह आज हमें होश में आने का नहीं
  32. कभी ये रहा है बेहद, कभी मुख़्तसर रहा है
  33. जरा सा पास आकर देख तो लो
  34. धूप की तकसीम में कुछ तो हुआ है देखना
  35. गुलशन में फिर भौंरा आया, बढ़िया है
  36. दौर बदला है बदल जा ऐ सुखनवर साथ चल 
  37. ये काम बदी वाले, गर अपने नहीं होते
  38. संसार हो गया है, अब अंगहीन जैसे
  39. होंठों पे जिनके दीप जलाने की बात है
  40. नज़र अपनी सितारों पर टिकाने से जरा पहले
  41. ये लॉन एक खफ़ा-सी किताब है कोई
  42. तसव्वुफ़ का है आलम, जिंदगी रोने नहीं देती

  1. बह्र-ए-रमल : हम क्या करेंगे (14 रुक्ऩी)
  2. दीप के हौसले याद आने लगे (16 रुक्ऩी )
  3. सूरजमुखी के पास जा  
  4. हमारा फन नहीं देखा  
  5. कोई कारवां भी दिखा नही
  6. खुदा बोलता है
  7. किसी खामोश बैठी शायरी से
  8. गैर की ग़ज़ल थी तू...
  9. ज़रा सा बाज़ आ जाओ
  10. जमीं को कभी ये इज़ाज़त नहीं है
  11. पुराना- नया क्या ?
  12. अजब बनाया हुआ फरिश्तों
  13. एक मुट्ठी गालियाँ
  14. बाजरे की बालियाँ
  15. आखिर क्यों मैं ऐसा हूँ
  16. जवां परिंदे
  17. रिश्तें है बेतार
  18. छग्गन तेरी खेती तो हरियाई है
  19. पाँव में जंजीर है
  20. ये बम क्या करे
  21. गज़ब का छा रहा हूँ मैं
  22. घी डालना होगा
  23. पानी बना होगा
  24. बूँद भी नहीं मिलती
  25. मैं ही फ़क़त नादान हूँ
  26. कई पत्थर उछाले है
  27. तुलना इक तराजू से
  28. सीधा तीरथ-धाम किया
  29. पागल.! वहाँ से दूर रख
  30. आपकी ज़िद वही पुरानी थी
  31. बस्तर नहीं देखे जाते
  32. जो पढ़ेंगे आप वो साभार है
  33. बिगड़ता है किसी का क्या?
  34. शायरी का हुनर नहीं आता
  35. चलो अपनी सुनाते हैं 
  36. उछाल के बिजली के तार पर
  37. कुछ न कुछ आप करते रहें
  38. आदत टला-टली है
  39. मुम्बईया मजाहिया ग़ज़ल
  40. ताबिश हमेशा पास रखता हूँ
  41. जीवन उजड़ा नक्सल जैसा
  42. काम आप को करना पड़ेगा जी
  43. ख़ुल्द से भी मुहब्बत नहीं रही
  44. समय के साथ बदलेगी
  45. वो बदल जाए खुदारा बस इसी उम्मींद पर
  46. होरी के उसी गोदान जैसा हूँ
  47. नशे में हूँ मैं, मगर फिर भी चेतना ही लगे
  48. पूछते रह गए आप क्या कर चले?
  49.  गुमसुम क्यों नदी का तीर है?
  50. बंदगी जिनका सफीना था, वही पार गए
  51. हरेक बात, करामात कह रहा हूँ मैं
  52. दीप से सजा है घर, जिन्दगी का उत्सव है
  53. मखमली चाँदनी रोज आया करो
  54. तेरे होंठों से जुदा जाम रहा हूँ लेकिन
  55. चंद नई ग़ज़लें 
  56. पंख था कतरा हुआ



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Profile Information

Gender
Male
City State
mp
Native Place
betul
Profession
राज्य कर उपायुक्त, म. प्र. वाणिज्यिक कर विभाग
About me
मैं मिथिलेश वामनकर, पेशे से शासकीय सेवक हूं . मेरा जन्म म.प्र. राज्य के बैतूल जिले के गोराखार नामक एक आदिवासी बहुल गाँव में 15 जुलाई 1981 में हुआ. बचपन गाँव की धूल-मिट्टी खेलते और गाँव के एकमात्र प्रायमरी स्कूल में बेंत और तमाचों के बीच बीता. पापा जब बस्तर के स्कूल मास्टर से डिप्टी कलेक्टर बने तो शहर का मुंह देखना नसीब हुआ. इसके बाद पापा के ट्रांसफ़रों में ही मिडिल और हाईस्कूल बीत गये. कविताई का चस्का मुझे पापा से ही लगा। ये पूरा समय छत्ती्सगढ़ और विशेषकर बस्तर में बीता और मैं “छत्तीसगढ़ियां सबले बढ़ियां” बनता रहा. इधर कालेज आया तो बी.एस सी. यानी साइंस की पढ़ाई में मन नहीं लगा और तीन साल की स्नातक डिग्री पंचवर्षीय-कार्यक्रम के तहत पूरी हुई. मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ विभाजन के बाद मुझें भारत-विभाजन का दर्द समझ आया| वर्ष 2001 में हम छत्तीसगढ़ छोड़ मध्य-प्रदेश आ गए. हां…इस दर्मियान एक सॄजनात्मक कार्य अवश्य करता रहा कि एक उपन्यास, बीसियों – कहानियां और सैकड़ों – गज़ले (जिन्हें तब मैं गज़लें समझता था) कवितायें आदि लिख गया और इंटरनॆट का चस्का लगा तो कुछ दिन वेब – डिजाइनिंग भी की. फ़िर दिमाग दूसरी तरफ़ लगा और पी.एस.सी. की तैयारी में लग गया. इस बीच मैंने पी.एस. सी. में वैकल्पिक विषय के रूप में इतिहास और हिंदी साहित्य लिया तो उन्ही विषयों पर आधारित "विजयमित्र" नाम से ब्लॉग बना लिया। आज इस ब्लॉग पर हिट्स की कुल संख्या लगभग 15 लाख से अधिक है। खैर, पी.एस.सी की तैयारी और ब्लॊगिंग साथ-साथ चलती रही। वर्ष 2007 में पी.एस.सी .से चयनित हुआ और मध्यप्रदेश वाणिज्यिक कर विभाग में वाणिज्यिक कर अधिकारी के रूप में भोपाल में पदस्थ हुआ। इसी दौरान विभागीय हेल्पलाइन की एक हिंदी में साइट "हेल्पटैक्स" बनाई तो काफी दिनों तक चर्चित रहने का आनंद लेता रहा। पदोन्नति पश्चात असिस्टेंट कमिश्नर के पद पर जबलपुर के बाद पुनः भोपाल में पदस्थ हूँ। अब शासकीय सेवा के साथ ब्लॊगिंग, गीत, गज़ल, कविता, कहानियां आदि लिख लेता हूं या औपचारिक शब्दों में कहें तो साहित्य सेवा भी कर लेता हूँ. इधर ज़िन्दगी को समझने, उधेड़ने,, बुनने, कुछ पाऊं तो उसे गुनने, अतीत में झाकनें और कल्पनाओं की उड़ान भरने के अलावा कोई खास काम नहीं करता. अभी जबलपुर मे रह रहा हूँ और यही सब करने या न करने का भ्रम पाले बैठा हूँ. वर्ष 2010 में भोपाल में आकस्मिक रूप से घटित एक घटना की तरह प्रेम विवाह किया जिसमे देशी लव स्टोरी के समस्त तत्व समाहित थे। शादी करके एक पुत्री का पिता बन गया हूँ तो जीवन में एक नया और रोमांचित कर देने वाला अहसास भर गया है . पत्नी की खुशियाँ और बेटी की किलकारियां असीम सुख देती है जिससे वास्तव में जीवन की सार्थकता समझ आती है। अपनी इस छोटी सी दुनिया में सुखी हूँ । अतीत की स्मॄतियों के छालों और फ़ूलों में सिमटकर, भविष्य के चिंतन में किसी दरवेश सा वर्तमान को सहेज-संजोकर खुश रहता हूँ. कभी खुद के तो कभी सब के बारे में सोच लेता हूँ । मैं हूँ । मैं ज़िंदा हूँ. …… हम ज़िंदा है। सचमुच हम ज़िंदा है, ये सिद्ध करने की एक और नाकाम कोशिश में लग जाता हूँ. बस इतनी सी बातें है मेरे बारे में। कम से कम अब तक तो खुद को इतना ही समझ पाया हूँ।

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Comment Wall (96 comments)

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At 1:36am on April 21, 2020, Nisha said…

धरती माँ कर रही है पुकार ।

पोधें ले हम  यहाँ बेशुमार ।।

 वारिश के होयेंगे तब लिहाज़ ।

अन्न पैदा होयगा बन सवाल ।।

खुशहाली आयेगी देश अगर ।

किसान हल से बीज वो निकल ।।निशा 

At 1:31am on April 21, 2020, Nisha said…

t ओ.बी.ओ.की वी सालगिरह का तुहफ़ा

"बहुत बहुत बधाई स्वीकार करे सर"
At 11:36pm on March 4, 2020, Meera Trivedi said…

Janamdin kee shubh kamnaon ke liye dhanyavad. OBO se kai varshon pahale kat gayee thee aaj phir yaad aaya Bagee jee se punah milne par to khola and I am still here.

At 11:21pm on October 13, 2019, Nisha said…

बहुत बहुत धन्यवाद.

At 10:01pm on October 10, 2019, धर्मेन्द्र कुमार सिंह said…

बहुत बहुत धन्यवाद मिथिलेश जी

At 3:49am on August 8, 2018, केवल प्रसाद 'सत्यम' said…

भाई जी, नमस्कार!

मेरे अजीज़ मित्र का बेटा आपके भोपाल शहर के IDBI बैंक में  सेवा योगदान किया है। वह पहली बार किसी शहर में अकेले गया है। में भतीजी के शादी में व्यस्त हूं वरना में भी साथ में आता। अब आप भोपाल में ही रहते हैं इसलिए आपको थोड़ा सा कष्ट देना चाहता हूँ।  मेरा फोन नं 9415541353 है। आप अपना फोन नं0 उपलब्ध करा दें तो विस्तार से बात किया जा सके।

आपका मित्र

केवल प्रसाद सत्यम

लखनऊ

At 5:57pm on January 11, 2017, Abhishek kumar singh said…
हार्दिक आभार ओपेन बुक मे शामिल करने के लिए
At 11:10am on December 13, 2016, कुमार मुकुल said…
भाई मिथिलेश जी, बहुत बहुत धन्‍यवाद।
At 6:46pm on September 7, 2016, Arun Arnaw Khare said…

आप सभी का कोटिशः धन्यवाद... आपने मुझे ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार में शामिल कर लिया...

At 3:16pm on September 1, 2016, आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' said…

मिथिलेश जी...सर्वप्रथम तो आप सभी का कोटिशः धन्यवाद... आपने मुझे ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार में शामिल कर लिया...
मैं इस पर आभार व्यक्त करता हूँ आपका...मैंने मात्रिक गणना आदि कुछ लेख पड़े जो की काफ़ी फायदेमंद है हम सभी के लिए..इस समूह को बनाने एवं इसके सफल संचन हेतु आप बधाई के पात्र हैं.. मैं भी अपनी रचनाएं यहाँ पोस्ट कर अग्रजों का, गुरुजनों का आशीष एवं उनका मार्गदर्शन पाता रहूँ.. यही आशा करता हूँ ...
आपका दिन मंगलमय हो!!!

At 6:19pm on August 30, 2016, Gurpreet Singh jammu said…
जी बहूत बहुत धन्यवाद मिथिलेश ji
At 10:27am on August 29, 2016, Gurpreet Singh jammu said…
आदरणीय मिथिलेश जी. मैं obo का नया सदस्य हूँ.क्या मैं इस मंच पर अपनी तरफ़ से कोइ चर्चा शुरू कर सकता हूँ.जिस में कि मैं गज़ल के बारे में अपने प्रश्न पूछ सकूं और जो सदस्य जवाब देना चाहे वहाँ दें सके. अगर हाँ तो कैसे? या ऐसा ही कुछ और हो सके. Mehrbaani
At 8:07am on August 23, 2016, डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा said…

आदरणीय मिथिलेशजी,

सादर वन्दे. क्षमा करें, मैं अंतरजाल और OBO पर नियमित नहीं हूँ और न ही तकनिकी रूप से कुशल हूँ, सीख रहा हूँ. आपकी सद्भावनाओं पर आज दृष्टि पड़ी, आभार व्यक्त न कर पाने का अपराधी और क्षमा प्रार्थी हूँ. वैसे मैंने कभी अपना जन्म दिन मनाया नहीं, क्यूंकि ऐसी ख़ुशी और ग़म मैंने नहीं पाले. आजकल के ये सामान्य शिष्टाचार हैं, मैं इनमे अनाड़ी हूँ पर आपकी शुभकामनाओं हेतु आभार व्यक्त करता हूँ- बहुत विलम्ब हो गया है. कई प्रशंसकों को भी उत्तर नहीं दे पाता...अन्यथा लेते होंगे..मनसा सबको आभार व्यक्त करता हूँ. पुनश्च आभार.

At 8:35pm on August 14, 2016, अलका 'कृष्णांशी' said…

आदरणीय मिथिलेश वामनकर सर जी,ओ.बी.ओ. परिवार का सदस्य बनने का जो गौरव आप ने मुझे दिया उसके लिये दिल से आभार ,अभी सीखना शुरू किया है हमने, आपके निर्देशन में शायद हम भी कुछ अच्छा लिखना सीख जायें। 

At 4:52pm on July 7, 2016, Dr.Rupendra Kumar Kavi said…

namaskar

At 7:41pm on June 9, 2016, SudhenduOjha said…

आदरणीय मिथिलेश जी,

कह के तो नहीं गया था,

-पर सामान रह गया था

 

समय का ऐसा सैलाब,

-वजूद भी बह गया था

क्या आए हो सोच कर,

-हर चेहरा कह गया था

बाद रोने के यों सोचा,

-घात कई सह गया था

गिरा, मंज़िल से पहले,

-निशाना लह गया होगा

पुरजोर कोशिश में थी हवा,

-मकां ढह गया होगा

तुम आए, खैरमकदम!

-वरक मेरा दह गया होगा?

सादर,

 

मौलिक है, अप्रकाशित भी

सुधेन्दु ओझा

At 8:47am on May 24, 2016, महिमा वर्मा said…

उपयोगी जानकारी देने हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार आपका आ.आदरणीय मिथिलेश वामनकर सर जी,अभी यहाँ की जानकारी  पूरी नहीं है,तो आपको जवाब देने में देर हो गई पुनः आभार आपका .

At 9:12am on May 20, 2016, Abha saxena Doonwi said…

शुक्रिया  मिथिलेश वामनकर जी ...:)

At 9:15pm on May 7, 2016, Sushil Sarna said…

Resp.Sir I have received the poem through Resp.Er.Ganesh jee,s mail.Thanks for ur kind cooperation.

At 7:51pm on May 3, 2016, Sushil Sarna said…

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , नमस्कार  ... सर 66 वें लाइव समारोह में मैंने आपको प्रदत्त विषय पर एक अतुकांत रचना उत्सव में सम्मिलित करने हेतु अनुरोध किया था क्योँकि उस दौरान मैं दिल्ली गया हुआ था लेकिन भोपाल उत्सव के कारण वो सम्मिलित न हो सकी। आपसे अनुरोध है कि यदि वो रचना आपके मैसेज बॉक्स में सुरक्षित हो तो कृपया उसे सामान्य पोस्ट के अंतर्गत सम्मिलित करवा दें या मुझे मैसेज बॉक्स में प्रेषित कर दें ताकि मैं उसे पटल पर ला सकूं। आपसे सहयोग का अनुरोध है। धन्यवाद। 

 
 
 

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"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
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Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
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Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
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