Added by Dr T R Sukul on January 27, 2016 at 10:19am — 12 Comments
1222 1222 1222 1222
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भला तू देखता क्यों है महज इस आदमी का रंग
दिखाई क्यों न देता है धवल जो दोस्ती का रंग /1
सुना है खूब भाता है तुझे तो रंग भड़कीला
मगर जादा बिखेरे है छटा सुन सादगी का रंग/2
किसी को जाम भाता है किसी को शबनमी बँूदें
किसे मालूम है कैसा भला इस तिश्नगी का रंग/3
महज इक आदमी है तू न ही हिंदू न ही मुस्लिम
करे बदरंग क्यों बतला तू बँटकर जिंदगी का रंग/4
अगर बँटना ही है तुझको…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 26, 2016 at 10:41am — 16 Comments
मैं राजपथ हूँ
भारी बूटों की ठक ठक
बच्चों की टोली की लक दक
अपने सीने पर महसूसने को
हूँ फिर से आतुरI
सर्द सुबह को जब
जोश का सैलाब
उमड़ता है मेरे आस पास
सुर ताल में चलती टोलियाँ
रोंद्ती हैं मेरे सीने को
कितना आराम पाता हूँ
सच कहूं ,तभी आती है साँस में साँस
इतराता हूँ अपने आप पर I
पर आज कुछ डरा हुआ हूँ
भविष्य को लेकर चिंतित भी
शायद बूढा हो रहा हूँ…
ContinueAdded by pratibha pande on January 25, 2016 at 4:52pm — 8 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on January 24, 2016 at 10:30pm — 14 Comments
(आदरणीय सौरभ पाण्डेय के पितृ-शोक पर एक हार्दिक संवेदना )
पहले संदर्भ प्रसंग सहित इस जगती में परिभाषित कर
फिर हो जाते हैं हाथ दूर जीवन का दीप प्रकाशित कर
.
देते हैं वे सन्देश हमें
हर दीपक को बुझ जाना है
पर ज्योति-शेष रहते-रहते
शत-शत नव दीप जलाना है
फैलायी जो रेशमी रश्मि उसको अब रंग-विलासित कर
पहले संदर्भ प्रसंग सहित......
.
है सहज रोप देना पादप
तप है उसको जीवित रखना
करना…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 21, 2016 at 10:00pm — 4 Comments
एक फ़ौज़ी की मौत – ( लघुकथा ) –
"क्या हुआ नत्थी राम, किस बात पर कर ली आत्म हत्या तुम्हारे लडके ने,कोई चिट्ठी छोडी क्या"!
"थानेदार साब,वह आत्म हत्या नहीं कर सकता,वह तो एक फ़ौज़ी था,उसे मारा गया है"!
"पर उसका शरीर तो गॉव के बाहर पेड पर लटका मिला था"!
"यह सब साज़िश है,उसे मार कर लटका दिया गया"!
" ऐसा कैसे कह रहे हो, क्या तुम्हारी दुश्मनी थी किसी से "!
"दरोगा जी, मैं तो सीधा सादा आदमी हूं! मेरा बेटा शादी के लिये तीस दिन की छुट्टी ले कर आया था!जिस दिन वह…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 21, 2016 at 6:39pm — 10 Comments
2122—1122—1122—22 |
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दिल तो है पास, तेरा सिर्फ़ है आना बाक़ी |
और ये बात जमाने से छुपाना बाक़ी |
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ज़िंदगी इतनी-सी मुहलत की गुज़ारिश सुन लो… |
Added by मिथिलेश वामनकर on January 20, 2016 at 8:41pm — 30 Comments
२१२२/१२१२/२२
अपने दिल में वो राज़ रखता है,
शायरों सा मिजाज़ रखता है.
.
अब सियासत में आ गया है तो
हर किसी को नवाज़ रखता है.
.
बात करता है गर्क़ होने की,
और कितने जहाज़ रखता है.
.
दिल से देता है वो दुआएँ जब
उन पे थोड़ी नमाज़ रखता है.
.
जानें कितनों से दिल लगा होगा
दिल में ढेरों दराज़ रखता है.
.
ये सदी और ये वफ़ादारी
जाहिलों से रिवाज़ रखता है.
.
हर्फ़ उसके तो हैं ज़मीनी, पर
वो तख़य्युल…
Added by Nilesh Shevgaonkar on January 17, 2016 at 11:00am — 10 Comments
लेखक उसके हर रूप पर मोहित था, इसलिये प्रतिदिन उसका पीछा कर उस पर एक पुस्तक लिख रहा था| आज वो पुस्तक पूरी करने जा रहा था, उसने पहला पन्ना खोला, जिस पर लिखा था, "आज मैनें उसे कछुए के रूप में देखा, वो अपने खोल में घुस कर सो रहा था"
फिर उसने अगला पन्ना खोला, उस पर लिखा था, "आज वो सियार के रूप में था, एक के पीछे एक सभी आँखें बंद कर चिल्ला रहे थे"
और तीसरे पन्ने पर लिखा था, "आज…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on January 13, 2016 at 5:46pm — 6 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 2, 2016 at 8:40am — 7 Comments
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